कैसे जियें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

5 min
61 reads
कैसे जियें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

सोमवीर : सर, कैसे जीना चाहिये?

वक्ता : सोमवीर का सवाल है कैसे जिएं? तो हम पिछले एक घंटे से कर क्या रहे हैं? कितने लोगों को शक है कि वो यहाँ मुर्दा हैं? कितने लोगों को शक है कि उनके अगल-बगल एक-दो लाशें पड़ी हुई हैं?

अरे! जीना, सोमवीर कोई खास अवसर थोड़ी है कि ऐसा कुछ होगा तो हम मानेंगे कि हम जी रहे हैं। जी तो तुम लगातार रहे ही हो। ये बोलना, ये सुनना, ये बैठना, ये मुस्कुराना, यही सब तो जीवन है और क्या है जीना? जीना इससे अलग थोड़ी कुछ है। इसी को जब तुम ध्यान से करते हो तो इसमें मज़ा आता है, उसे जीना कहते हैं।

जो लोग अभी ध्यान से कुछ सुन रहे हैं, उन्हें कुछ मिल रहा है, उनके चेहरे ही अलग हैं और कुछ लोग हैं जो इधर-उधर पड़ोसी के साथ लगे हुए हैं, चुटकी काट रहे हैं, खुजला रहे हैं, हिल-डुल रहे हैं, उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है, उन्हें सिर्फ बेचैनी मिल रही है, वो जिंदा ही नहीं हैं। जो भी कुछ कर रहे हो, खेल रहे हो तो पूरी तरह खेलो, सुन रहे हो तो सिफ सुनो, खा रहे हो तो सिर्फ खाओ, पढ़ रहे हो तो सिर्फ पढ़ो, बोल रहे हो तो पूरा ध्यान सिर्फ बोलने में, तब भूल जाओ कुछ भी और, यही ज़िन्दगी है, यही जीवन है। प्रतिपल जो हो रहा है, यही तो जीवन है, इससे अलग थोड़ी कुछ होता है जीवन

पर हम ऐसे जीते नहीं, हम जब खा रहे होते हैं तो हमें याद आता है कि असाइनमेंट बाकि है, हम जब यहाँ बैठे होते हैं तो हमे याद आता है कि मेस कितने बजे खुलेगी, हम जब खेल रहे होते हैं तो हमे याद आता है कि वहाँ ग्राउंड के बगल से कौन जा रही है, ऐसे ही होता है न? कोई नहीं होगा यहाँ पर जो जब से यहाँ बैठा है, तब से सिर्फ सुन रहा है, मन कितनी ही जगहों पर हो आया होगा।

इसको कहते हैं ‘न ‘ जीना, इसको कहते हैं ‘मुर्दा होना’ क्योंकि जिंदगी कहाँ है? यहाँ है। तुम साँस कब ले रहे हो? अभी ले रहे हो, तुम बैठे कहाँ हो? यहाँ हो। तो इसलिए तुम जी भी यहीं सकते हो, मन अगर कहीं और घूम रहा है तो तुम मुर्दा हो।

जो लोग पूर्णतः यहीं हैं और अभी हैं, वो जिंदा हैं और जो कहीं और घूम रहे हैं वो मुर्दा हैं।

तो अभी तुम पूरी तरह जिंदा हो पर अगले पल की कोई गारंटी भी नहीं है, जल्दी मर भी सकते हो। हमारा ऐसे ही है, जीते हैं, मरते हैं और फिर…

श्रोता : जीते हैं

वक्ता : …और कुल मिला कर बहुत थोड़ा जीते हैं जो लोग सत्तर-अस्सी साल के हो जाते हैं, तो अगर वास्तव में देखो तो, कि उन्होंने कितना जिया है तो बहुत कम जिया है इसलिए तो ये हालत रहती है कि बुढ़ापे में हो और, ज्यादा बेचैनी है, ऊब है, थकान है क्योंकि उन्हें पता है कि उन्होंने जिया नहीं कुछ भी, मिला था जीवन जीने के लिए पर जी पाये नहीं, इसलिए और गहरी निराशा आ जाती है उनमें, बात-बात पर खिसियाते हैं|

तुम क्या कहते हो, सठियाना, वो सठियाना नहीं है, बस वो समझ रहा है कि अब मौत आ गयी है और ज़िन्दगी बेकार गयी। तुमसे भी दूर नहीं है, भारत में जो औसत उम्र है वो सत्तर साल है, तो एक तिहाई तो तुम्हारी भी बीत गयी। मतलब तीन दिन अगर मिले थे तो एक दिन तो बिता दिया तुमने, तो बहुत समय तो तुम्हारे पास भी नहीं बचा है, ये मत सोचना कि अभी तो हम पैदा भी नहीं हुए हैं। बस अभी-अभी पैदा होकर यहाँ आ रहे हैं, हमारे पास तो पूरा जीवन बचा हुआ है। मेरे जो बैच मेटस हैं, अभी री-यूनियन हुआ था, तीन-सौ अठारह लोग थे, आई.आई.टी के बैच में मेरे, सिर्फ तीन-सौ बारह को निमंत्रण गया आने का, छह गए!

तुम्हारे पास भी कोई ज्यादा समय नहीं है। कोई गारंटी नहीं है इस बात की, कि डिग्री लेके ही निकलोगे यहाँ से।

इतने कॉलेज में अद्वैत का प्रोग्राम चलता है। पिछले पांच साल में ऐसा दो-चार बार हो चूका है कि यहाँ से लोग पहुंचे सेशन लेने के लिए और वहां बताया गया कि छुट्टी है। क्यों?

श्रोता : चले गए।

वक्ता : कोई बाइक चला रहा था, ट्रक के नीचे आ गया किसी का रिजल्ट खराब आया तो नदी में कूद गया, किसी की गर्लफ्रेंड ने धोखा दे दिया तो फिनाइल पी गया, किसी को कोई बीमारी हो गयी। तो जीने के लिए कोई बहुत समय है नहीं, सोमवीर। यही है जो हाथ में है, इसी को जियो और इसको गवांते जा रहे हो तो जिंदगी ही गवांते जा रहे हो। अगर तुमने पीछले एक-डेढ़ घंटे में कुछ हिस्सा गंवाया है इस सैशन का तो, वो तुम्हारी अपनी जिंदगी का हिस्सा है जो तुमने गंवा दिया और ये वापस नहीं मिलेगा।

ये मत सोचना कि असीमित समय है तुम्हारे पास, न, थोड़ा ही है। उस ही को जियो और भरपूर जियो, पूरी तरह जियो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories