क़ैद में हो, जूझ जाओ! || (2019)

Acharya Prashant

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क़ैद में हो, जूझ जाओ! || (2019)

प्रश्नकर्ता: आत्मिक आज़ादी की ओर कैसे बढ़ें?

आचार्य प्रशांत: कसाई के पिंजड़े देखे हैं न? उसमें कुक्कड़ मुर्गा और गुटरी मुर्गी बैठकर चर्चा कर रहे हैं कि, "क्या महाराष्ट्र का हाल भी कर्नाटक जैसा होगा?” और थोड़ी ही देर पहले उन्होंने देखा है कि पिंजड़े में एक हाथ भीतर आया था, एक को उठाया था, वहाँ ले जाकर के पत्थर पर रखा था, और खच! या वो मुर्गा-मुर्गी बैठकर के कहें कि, "माता का व्रत रखते हैं, क्या होगा रे! आरती गाते हैं।" क्या? वहाँ अंदर एक ज्योतिषी भी है। वो कहता है, "मैं पंजे देखता हूँ।" वो सबको उनके पिछले जन्म और अगले जन्म का हाल बता रहा है।

क्या करोगे ये सब जानकर? तुम्हारे लिए इनकी कोई प्रासंगिकता? कुछ मिलेगा?

थोड़ा बड़ा पिंजरा है। उसके भीतर भूरी मुर्गी ने ब्यूटी पार्लर भी खोल रखा है। वहाँ चार-पाँच लाइन (कतार) लगाकर के खड़ी हुई हैं। कह रही हैं, "मेरे पंख वगैरह ज़रा चमका दो अच्छे से।" अभी ये नोचे जाएँगे! वहाँ पंख चमकाने के लिए खड़ी है। कह रही है, "नाखून अच्छे से क्लिप कर देना।" अभी इन्हें कुत्ते खा रहे होंगे सड़क के।

होश का मतलब यही होता है — अपनी वर्तमान हालत के प्रति ईमानदारी।

असल में जानना भी नहीं, सिर्फ़ ईमानदारी। क्योंकि भाई जानते तो हम हैं ही। कौन है जो नहीं जानता?

हमें ज्ञान की नहीं ईमानदारी की कमी है। हमें होश की नहीं साहस की कमी है।

सब जानते हैं, पर भीतर इतनी तामसिकता भरी हुई है कि कौन संघर्ष करे इस क़ैद, इस पिंजड़े, इस कसाई के ख़िलाफ़! तो अपने-आपको ऐसा जताओ, अपने ही प्रति ऐसा अभिनय करो, जैसे सब ठीक चल रहा है —"सब ठीक ही तो चल रहा है।" सुबह-सुबह कुक्कड़ उठकर बोलता है, "गुड मॉर्निंग! गुड मॉर्निंग ? तेरे लिए गुड मॉर्निंग (शुभ प्रभात)? तेरे लिए कैसे गुड (शुभ) है ये मॉर्निंग (मॉर्निंग)? वो कहे कि, "देखिए मैं कितना निर्बल हूँ, और ये लोहे की सलाखें हैं, और वो अब्दुल कसाई है, उसकी बाहें देखिए, मज़बूत। मेरी हैसियत क्या है? वहाँ वो चाकू है, उसकी धार देखिए। मेरी औक़ात क्या है?”

तो भाई तू एक काम कर, तू मुक्त होने की कोशिश में इन तीलियों से, इन सलाखों से लड़कर मर जा। वो मौत भली होगी न! कम-से-कम उस मौत में कुछ रस तो होगा, कुछ दम होगा, कुछ ईमानदारी होगी। और तू अपनी ओर से पूरी कोशिश तो कर, क्या पता कहीं से सहारा आ जाए। कौन जाने कहीं से सहारा आ जाए।

मदद मिलती है, सहारे आते हैं, चमत्कार होते हैं, थोड़ा भरोसा तो रखो। और नहीं होंगे चमत्कार तो अधिक-से-अधिक क्या होगा? मर ही तो जाओगे। मर तो वैसे भी रहे थे वहाँ।

तो मुर्गे की मदद भी ख़ुदा तभी करता है जब वो पंख फड़फड़ा कर, जान लगाकर कसाई के हाथों से छिटक करके सड़क पर दौड़ पड़ता है। और कहता है, "होगा जो होगा, वो देखा जाएगा। जो भी होगा, अभी जो हालत है, उससे बेहतर ही होगा।"

आयी बात समझ में?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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