कहानी किस्मत की || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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कहानी किस्मत की || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

*श्रोता: * सर क्या किस्मत जैसी कोई चीज़ होती है ?

*वक्ता: * जिसे तूम दुनिया कहते हो, उसमें जो भी कुछ तुम्हें दिखाई देता है, सुनाई देता है, जो भी भौतिक है, वो cause and effect के दायरे में आता है, कार्य-कारण के दायरे में।जैसे कि कोई करता है, जैसे कि कोई कर्ता है।पर जैसे- जैसे तुम इस जाल को, अपने देखने के दायरे को बड़ा करके देखते जाते हो, तुम्हें दिखाई पड़ता है कि जिसने जो कुछ भी किया उसे वो करना ही था क्योंकि उससे पहले एक घटना घट चुकी थी।

ऐसे समझो कि ‘A’ ।eads to ‘B’, ‘B’ ।eads to ‘C’, ‘C’ ।eads to ‘D’ और ऐसे करते के अल्टीमाटेली ‘Z’. ये एक छोटा सा ही पैमाना है पर इसको देख लेते हैं।अगर तुम एक छोटी दृष्टि से देख रहे हो, एक सीमित क्षेत्र को देख रहे हो तो तुम्हें ऐसा लगेगा कि ‘G’ ।eads to ‘H’ और तुम कहोगे कि ‘G’ ने कुछ किया, जिसकी वजह से ‘H’ हुआ।थोडा सा और बड़ा करोगे तो तुम कहोगे नहीं, ‘G’ ने कुछ नहीं किया, ‘F’ ने पहले ही कुछ कर रखा था जिस कारण ‘G’ होना ही था तो ‘F’ की वजह से ‘H’ हुआ।तुम थोडा और अपना दायरा बढ़ाओगे और तुम कहोगे नहीं, ‘E’ ने पहले ही कुछ कर रखा था जिस कारण ‘F’ होना ही था, तो ‘E’ की वजह से हुआ ।ऐसा करते तुम ‘A’ तक पहुँच जाओगे और दूसरी दिशा में देखना शुरू करोगे, तो तुम कहोगे कि नहीं ‘H’ पर बात रूकती नहीं है।एक बार ‘H’ हो गया तो अब ‘I’ का होना पक्का है।और एक बार ‘I’ हो गया तो अब ‘J’ का होना पक्का है।दोनों दिशा में तुम पाओगे कि अनंत है ।

जैसे कोई बहुत बड़ी मशीन हो और जिसमें बहुत सारे गियर्स और लिवर्स आपस में जुड़े हुए हों।बहुत बड़ी मशीन ।और उसमें तुम यहाँ पर एक बटन दबाओ और यहाँ पर एक लिवर घूमना शुरू हो।और अंत में वहाँ पर जो आखिरी पुर्ज़ा है वो भी घूमना शुरू होगा ।पहले एल लिवर घूमा, उससे कुछ और, उससे कुछ और, और आखिरी वाला भी घूम पड़ा।मशीन इतनी बड़ी हो सकती है कि यहाँ पर जो हो रहा है उस मूवमेंट को वहाँ तक पहुँचने में दस साल, बीस साल या दो हज़ार साल लग जाएँ, इतनी बड़ी भी मशीन हो सकती है।लेकिन जिस समय यहाँ पर पहले गियर घूमा था उसी समय ये पक्का नहीं हो गया था कि वो आखिरी भी घूमेगा? इसी का नाम क़िस्मत है ।

हम चूँकि पूरी मशीन को नहीं देख पाते, हम उसके बहुत छोटे से हिस्से को देखते हैं, तो हमें लगता है कि एक गियर दूसरे गियर को घुमा रहा है।हमें लगता है कि One gear is the mover and one gear is the moved. हमें लगता है कि इसमें कोई कर्ता है और इसी कारण हमें अपने प्रति भी ये शंका हो सकती है कि हम भी कुछ कर सकते हैं ।ये सब कुछ एक मशीन का ही एक हिस्सा है जो अपने आप काम कर रही है ।और जो कुछ भी हो रहा है, वो वैसा ही हो रहा था और वैसा ही होना पक्का था।

जो भी कुछ मैटेरियल है, भौतिक है वो कॉज एंड इफ़ेक्ट, कार्य-कारण के दायरे में आता ही आता है।हर कारण के पीछे एक और कारण है, उसके पीछे एक और कारण है, उसके पीछे एक और कारण है, उसके पीछे एक और, पूरा जैसे मैंने कहा एक नेटवर्क है, जाल है कारण का और प्रभाव का।जो एक कारण के लिए प्रभाव है वो दूसरे प्रभाव के लिए कारण है।एक कारण से जो प्रभाव निकल रहा है वो किसी दूसरे प्रभाव का कारण बन जाता है

अब तुम्हारा सवाल होना चाहिए कि सब कुछ अगर पहले से ही तय है तो मैं क्या कर रहा हूँ ? अगर सब कुछ वही हो रहा है जो होना है तो मैं क्या कर रहा हूँ।तुम्हारा होना बस इसलिए है ताकि तुम समझ सको कि जो हो रहा है बस हो रहा है, तुम उसमें हस्तक्षेप।हमारी बीमारी ही ये है कि हम टाँग अड़ाने में बहुत उत्सुक हैं, हमें ये लगता है कि जब तक हम ना करें कुछ होगा नहीं।जबकि तथ्य यही है कि जो होना होता है वो होता ही तभी है जब तुम अपने आप को बीच में से हटा देते हो।

जो होना है वो तभी वास्तविक और सुन्दर होता है जब तुम उसको होने देते हो।अभी तुम में से बहुत लोग मुझसे बात करना चाहते हैं, पर वो अपने आप को बीच में डाल के बैठे हुए हैं, इस कारण जो हो सकता है वो हो नहीं रहा।असली घटना तब घटती है जब तुम अपने आप को बीच में से हटा देते हो और होनी को होने देते हो।

प्रेम तुम्हारे जीवन में इसी कारण तो उतर नहीं पाता।प्रेम का क्षण आता है, तुम खड़े हो जाते हो बीच में रास्ता रोक कर, नहीं मुझे डर लग रहा है, मैं होने नहीं दूँगा।वो दरवाज़ा खटखटाता है, तुम खड़े हो जाते हो कि नहीं खोलने दूँगा ।तुम्हारा काम इतना ही है कि तुम हट जाओ.

तुम खुद सबसे बड़े काँटे हो अपनी राह के।अपनी राह से खुद को हटा लो, तुम्हारी राह बड़ी आसान है, उसी को मैं किस्मत कह रहा हूँ।वो अपने आप करेगी जो करना होगा। You are not wanted, go away.

वो तुम्हारे मन-मुताबिक़ नहीं होगा क्योंकि मन का तो कुछ पक्का नहीं, कुछ भी कर सकता है, लेकिन होगा वही जो होना चाहिए, जो उचित है।मैं यहाँ पर ये नहीं कह रहा हूँ कि तुम कुछ करो मत, जो होना है सो होगा।मैं तुमसे कह रहा हूँ कि अगर तुम्हारा करना भी हो रहा है, तो उसको होने दो ।तुम अपने करने को भी तो रोक कर बैठ जाते हो, यही तुम्हारे दुःख का कारण है।जब करने का क्षण आता है, तो किस्मत कहती है करो पर तुम उस करने के रास्ते में खड़े हो जाते हो।

नदी का काम है बहना और वो बहेगी, तुम्हारा काम है उसके साथ रहो।जिसे किस्मत कह रहे हो, जो कॉज एंड इफ़ेक्ट – कार्य -कारण है, वो नदी के प्रवाह की तरह है जो बह रहा है।एक बिंदु से दूसरे बिंदु, दूसरे बिंदु से तीसरे बिंदु, यही तो कॉज एंड इफ़ेक्टहै।यहाँ तक पानी ना पहुंचे तो अगले पर नहीं पहुँच सकता और यहाँ पर पहुँच गया तो पक्का है कि अगले पर पहुँचेगा ही पहुँचेगा ।

तुम इस बड़ी नदी की हलकी, पतली सी धारा हो।कोशिश ये रहती है कि मैं इस नदी के विपरीत कुछ कर जाऊं और वो तुम कर सकते नहीं, क्यूंकि धारा कभी नदी के विपरीत बह सकती नहीं।तुम्हारी मौज इसी में है कि नदी अगर कह रही है – बहो, तो तुम बहो।अगर वक़्त आ गया है कि तुम खूब काम करो, तो खुद को खूब काम करने भी दो और अगर वक़्त है कि तुम सो जाओ तो सो जाओ, शिथिल पड़ जाओ, कोई दिक्कत नहीं, हर्ज़ा नहीं है ।

प्रारब्ध स्वयं जानता है कि इस वक़्त अब क्या होना चाहिए। हाँ, तुम नहीं जानते, तो तुम अपने उस ज्ञान को, अपने विचारों को बहुत अहमियत भी मत दो।मन को बिल्कुल खाली कर लो और फिर जो होता है उसे होने दो ।मन को बिलकुल खाली कर लो और अपने आप को छूट दो कि अब जो होता है सो हो।जैसे अभी सुन रहे हो खाली मन के साथ ।मन को अभी तुमने खुली छूट दे रखी है कि जो आता हो सो आये, जीवन ऐसे ही जियो ।

मन खाली रखो और खाली मन बहुत समझता है, खाली मन बिल्कुल ध्यान में होता है।उस ध्यान से जो उचित कर्म होना है वो अपने आप हो जाता है, तुम्हारी ज़रूरत ही नहीं पड़ती।उसी का नाम किस्मत है।

किस्मत का अर्थ है कि उचित कर्म जो अपने आप हो जाता है बिना तुम्हारे किये, जब तुम ध्यान में होते हो।अपने आप होगा।

मुझे अभी सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ रही है कि मैं तुमसे क्या बोलूँ ।एक तरह से मैं जो कह रहा हूँ उसको तुम किस्मत मान सकते हो क्योंकि ये मेरा तो तय किया नहीं है कहीं से।किस्मत तो मैं इसको तब ना बोलूं, अगर मैं कहूँ कि ये किस्मत नहीं है, तो इसका आशय ये होगा कि मैंने कुछ किया है।पर इसमें मेरा कुछ है नहीं, मैं तुम्हारे सामने बैठा हुआ हूँ और मैंने अपने आप को अनुमति दे दी है बोलने की और जो बोला जा रहा है, वो बोला जा रहा है उसमें मेरी मौजूदगी का कोई स्थान नहीं।और ये क्षण तुमने भी अनुभव किये हैं ।ऐसा नहीं है कि तुमने नहीं अनुभव किये हैं ।

प्रेम में ऐसा ही होता है, वहाँ भी सोच-विचार के लिए बहुत स्थान नहीं होता।फिर तो बस जो होना होता है वो हो रहा होता है।और अगर वैसा नहीं हो रहा है तो फिर वो प्रेम भी नहीं है।उससे एक निचले तल पर जब तुम खेलते हो तब भी तुमने अनुभव किया होगा।तुम खेल रहे हो फुटबॉल, तुम्हारे पास बहुत स्थान नहीं है सोचने का कि क्या करूँ, क्या ना करूँ, फिर तो जो हो रहा है बस हो रहा है।या प्लानिंग करते हो, जो होता है बस होता है और जो सोचना शुरू कर देता वो फँस जाता है।खेल में ख़ास तौर पर तुमने देखा होगा कि ऐन मौके पर जिसके मन में विचार उठ आया, उसका हारना पक्का है।सबसे अच्छा खिलाड़ी वही होता है जो निर्विचार खेले ।वो करीब-क़रीब ध्यान की अवस्था होती है, मैडिटेशन जैसा होता है।वो यही किस्मत है।मैं अपने को अनुमति देता हूँ कि जो होता है सो हो।मैं उसको रोकूँगा नहीं।मैं अपने आप को गहरे कर्म की भी अनुमति दे रहा हूँ और मैं अपने आप को गहरे अकर्म की भी अनुमति दे रहा हूँ।पर एक बात पक्की है कि मैं भांजी नहीं मारूँगा।

बहुत ही विनम्रता से ये स्वीकार करो कि जो भी हमें दिखाई पड़ता है, सुनाई पड़ता है, जिसको भी हम दुनिया जानते है वो किस्मत की ही देन है।तुम्हारे पास वाकई ऐसा कुछ भी नहीं है जो तुम्हारा अपना हो।हम सब अपने आप को शरीर से बड़ा बाँध के रखते हैं कि मैं ये शरीर ही तो हूँ।तुम्हारे शरीर की पहली दो कोशिकाएं बाहर से आयीं, एक माँ से, एक बाप से।वो इकट्ठे आएँगी ये भी तुमने नहीं तय किया, माँ-बाप ने तय किया, उसके बाद भी शरीर में जो कुछ जुड़ रहा है वो बाहर से ही आ रहा है, खाना, पीना, धूप, हवा, ये शरीर की बात हुई, पूरा बाहरी है।शुरुआत से लेकर अन्त तक बाहरी है शरीर तुम में से कितने लोगों ने तय किया था कि बालों का रंग काला होना चाहिए, कितनों ने तय किया था कि लड़की पैदा होना है या लड़का ?

शरीर बाहरी, मन को देख लो।आज हम बात कर चुके हैं, मन में जो कुछ आया है, बाहर स्व ही आया है, तुम्हारा एक-2 ख़याल बाहरी है, ये सब किस्मत ही तो है।जो इसको ना समझे वो पागल जो कहे ये सब मेरा है वही पागल है, और हम यही कहते हैं।मेरे विचार हैं,मेरी मान्यताएँ, बिना ये जाने कि मेरा इनमें कुछ नहीं है।किस्मत है तुम्हारी कि हिन्दुस्तान में पैदा हुए, इसीलिए ऐसा सोचते हो ।किस्मत है तुम्हारी कि लड़की पैदा हुई हो इसी वजह से मन में एक प्रकार के भाव उठते हैं।तुम्हारा इसमें है क्या? सब किस्मत ही तो है।लेकिन मुझे गलत मत समझ लेना, मैं निष्क्रियता की वकालत नहीं कर रहा हूँ कि सब किस्मत ही है तो तुम सो जाओ।क़िस्मत ये भी चाहती है कि तुम न सो जाना।किस्मत ने तुम्हें जवान किया है और जवान आदमी सोने के लिए नहीं जवान होता।तुम्हारा काम तो बस होनी को होने देना है, पूरी तरीके से और जब सब होनी हो रही हो तो उसकी मौज तुम्हारी है, मज़े तुम्हारे हैं।देखो ना कितना आसान हो गाय, मन पर बोझ डालने की ज़रुरत ही नहीं है।मैंने तुम्हें थोडा एक लॉजिकल-तर्क से समझाया, कारण-कार्य का उदाहरण लेकर ।उसी बात को जो थोड़ी आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं वो थोड़े दूसरे तरीके से कह गए हैं ।

रामायण में एक पंक्ति आती है “तुलसी भरोसे राम के निर्भय हो के सोय, अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय “।समझो इस बात को “तुलसी भरोसे राम के निर्भय हो के सोय”,”अनहोनी होनी नहीं”, जो होना नहीं है वो होगा कैसे ? “होनी होय सो होय” और जो होना है वो तो होगा ही।होता रहे हमारा क्या जाता है? “अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय”।हम निर्भय होकरसो रहे हैं ।

तुम निर्भय होकर इसीलिए नहीं सो पाते क्योंकि तुम्हारे मन पर एक बोझ है कि मेरा जो होगा, मुझे ही करना होगा।हमें बार- बार ये सिखाया गया है कि अपने हाथों अपनी किस्मत खुद सँवारो।तुम्हें बताया गया है कि अपना रास्ता खुद बनाओ, यही सब है,तुम्हें बताया गया है कि जब तक तुम कुछ नहीं करोगे, कुछ होगा नहीं ।पर तुमने कभी अपने आप से पूछा नहीं कि “करता तो मैं हमेशा रहा हूँ पर हुआ तो कुछ आज तक भी नहीं “।जब इस कर-कर के कुछ हो ही नहीं रहा है तो कुछ ना कर के ही देख लो।मैं तुमको आमन्त्रित कर रहा हूँ ना करने के लिए।अब तुम डर जाओगे ।

करेंगे नहीं तो होगा कैसे ? तुम्हारे करने से तुम्हारी साँस चल रही है ? तुम्हारे करने से तुम्हारा खाना पचता है ? तुम कर-कर के जवान हुए हो ? तुम्हारे जीवन में जो महत्त्वपूर्ण है सब बिना तुम्हारे किये हो रहा है, तुम क्यों बीच में बिन बुलाये मेहमान की तरह घुसे रहे हो ?

निकल जाओ अपनी ज़िन्दगी से बाहर और ज़िन्दगी को चलने दो।अपनी ही ज़िन्दगी को चलने दो, उससे बाहर निकलो, उसे चलने दो।नहीं, हम करेंगे।इसी का नाम ईगो है, यही अहंकार है, “मैं करूँगा, मैं कर के दिखाऊँगा” ।क्या करके दिखा लिया है अभी तक? और इरादे गहरे हैं।और मैं जो बात बोल रहा हूँ वो इतनी सीधी है कि खतरनाक लग रही है।कि कह क्या रहे हैं, कि करो कुछ मत बस मौज करो, ऐसा होता नहीं।अरे, ऐसा ही होता है ।

इसी बात के लिए कहा था कि अनुग्रहीत रहो, ग्रेटफुल रहो, कि तुम्हें कुछ करने का दायित्व दिया ही नहीं गया है ।तुम्हें तो दायित्व दिया गया है मौज मनाने का।तुम्हें तो दायित्व दिया गया है कि जीवन चलेगा अपनी गति से चलेगा, तुम मौज मनाओ।तुम उसको देखो बस, और उसको देखने में बड़ा आनन्द है ।

पहली बात, जानो कि ये सब कुछ अपने हिसाब से हो रहा है, मेरा इसमें कोई योगदान नहीं, समझो इस बात को ।और दूसरा, जो अपने हिसाब से हो रहा है, उसको होने ही दो, तुम बाहर हटो।जब तक पहला नहीं होगा, दूसरा नहीं कर पाओगे।

पहला है ये समझना कि ये सब हो तो रही ही है ना।ये सब हो तो रही ही है, इस होने में मेरा काम क्या है, मेरा योगदान क्या है ? अनंत वर्षों से चली आ रही दुनिया और अनंत समय तक चलेगी, उसमें मेरा ये साठ-सत्तर साल का जीवन क्या है ? एक पलक झपकने बराबर भी नहीं है।पर मैं क्या मान के बैठा हूँ कि मेरे किये से कुछ होगा ।गलतफहमियों का तो कोई इलाज नहीं है कि मेरे किये से कुछ होगा ।

तो एक बार एक खरगोश भागा जा रहा था बहुत ज़ोर से, पूरी ताकत से ।हाथी ने उससे पुछा “काहे को भाग रहा है भाई” ?बोलता है,”आसमान गिरने वाला है”।तो हाथी ने कहा,”बेचारा खरगोश डर गया है, ये छुपने के लिए भाग रहा है”।हाथी समझदार हाथी है, हाथी ने कहा “आसमान गिरता नहीं, पहली बात और इसे किसी ने बता दिया है तो ये छुपने भाग रहा है”।तो हाथी ने उसे ज्ञान देना चाहा।हाथी बोलता है ,”बेटा खरगोश अगर आसमान गिर रहा है तो तू जाएगा कहाँ?”, “जहाँ भी जाएगा वहाँ आसमान गिरेगा तो क्यों भाग रहा है? खड़ा ही हो जा” ।खरगोश ने कहा “तुम पागल हो क्या ?”, “मैं कहीं भाग नहीं रहा, मैं पहाड़ पर चढूँगा ताकि जब गिरे तो उसे थाम लूं, सब के लिए।भागना-वागना किसको है, अरे हम थामेंगे।आसमान गिरेगा, हम थाम के दिखायेंगे”।तो हम पहाड़ पर चढ़ेंगे और अपने लिए नहीं थामेंगे, पूरा थामेंगे, अब किसी पर नहीं गिरेगा।

तो ऐसा ही हमारा जीवन है, पहली बात कि उनको लगातार ये लगता रहता है कि आसमान गिरा।हम सब का जीवन ऐसा ही है कि बस गिरा।कभी किसी आदमी को देखो कि ऊपर से बम गिर रहा है और वो ऊपर देख रहा हो, तो जैसी उसकी शकल हो जायेगी, वैसी हमारी शकल हो जाती है।

तो पहली भूल तो ये कि कुछ अनर्थ होने जा रहा है, अनिष्ट और दूसरी कि मैं उसको रोक कर दिखाऊंगा ।आसमान गिरने जा रहा है और मैं उसको रोक कर दिखा दूँगा।और इसी का नाम तुम कहते हो कि ये मेरे लक्ष्य , मेरी उम्मीदे हैं।ये तुम्हारी ज़िन्दगी की कहानी है।तुम अपनी नज़रों में महत्त्वपूर्ण हो जाते हो जब तुम ये कहते हो कि मुझे कुछ कर के दिखाना है।तुमने एक बार ये स्वीकार कर लिया कि किस्मत है, तो अहंकार कहाँ शरण पायेगा।अहंकार को तो मैं का आसरा चाहिए।मैं कुछ कर के दिखा रहा हूँ।तुम समझने की कोशिश कर रहे होगे तो नहीं आएगी क्योंकि फिर से तुम आ गये बीच में, हाँ, तुम हट गए हो तो समझ में आ रही होगी ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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