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जो समय में है वो समय बर्बाद कर रहा है || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)

Acharya Prashant

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जो समय में है वो समय बर्बाद कर रहा है || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)

आचार्य प्रशांत: पहली बात तो ये कि समय को नहीं मैनेज (प्रबंधित) किया जा सकता, ध्यान से समझिएगा इस बात को:

समय का अर्थ है एक प्राकृतिक परिवर्तन जो हो ही रहा है। उसको कोई नहीं मैनेज कर सकता। होना उसका स्वभाव है, वो होगा; हाँ एक एंटिटी (सत्ता) है, जिसको मैनेज किया जा सकता है यदि उसे समझा जाएँ तो, और समझना ही मैनेज करना है।

समझने और मैनेज करने में कोई ख़ास अंतर नहीं है। एक बार समझ लिया तो मैनेज हो जाएगा, या इसको ऐसे कह लेते हैं कि एक बार समझ लिया तो फिर मैनेज करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है।

समझना ही मैनेज करना है।

क्यों कहते हो कि, "मुझे टाइम मैनेज करना है"? तुम कहते इसीलिए हो क्योंकि पाते हो कि दिन निकल गया, कुछ सार्थक हुआ नहीं। जब वक़्त ख़राब हो रहा था, तो क्या उस वक़्त जानते थे कि, "मैं वक़्त ख़राब कर रहा हूँ"? ठीक उस वक़्त, उसके आगे पीछे नहीं।

क्या ठीक उस वक़्त जानते थे कि ये वक़्त ख़राब करना है?

तुम तो बाद में जानते हो। बाद में जानना सिर्फ़ एक कल्पना है, एक विचार है। वो उस वक़्त का जानना तो नहीं है न कि, "मैं समय ख़राब कर रहा हूँ।"

ये मत सोचिए कि समय बर्बाद हो रहा है। उस सत्ता, उस इकाई के बारे में सोचिए जो समय बर्बाद कर रही है।

कौन समय बर्बाद कर रहा है? आपका मन समय बर्बाद कर रहा है। इसको समझिएगा और अगर ज़रूरत पड़े तो याद कर लीजिएगा। मन खुद ही समय है। जब तक मन की गतिविधि रहेगी, तब तक समय निरंतर चलता रहेगा। एक समय होता है, जिसे हम क्रोनोलॉजिकल (कालक्रमबद्ध) टाइम कहते हैं, जो घड़ी दिखाती है। वो अपनी गति से चलता रहता है।

जिसे तुम कहते हो कि समय ख़राब हो गया, वो मनोवैज्ञानिक समय है।

क्रोनोलॉजिकल टाइम किसी पर निर्भर नहीं करता। वो इस दुनिया की प्रकृति है। मनोवैज्ञानिक समय वो है जिसे तुम बर्बाद करते हो।

कैसे बर्बाद करते हो?

समय में रह कर; ध्यान देंगें तो ही समझ में आएगा, बात गहरी है।

समय कैसे बर्बाद होता है?

समय ऐसे ही बर्बाद होता है क्योंकि हम समय में यात्रा कर रहे होते हैं। समय में हम कैसे यात्रा कर रहे होते हैं? आप सब यहाँ बैठे हैं। पर आप में से बहुत सारे लोग हैं, जो समय में यात्रा करके पौने-पाँच बजे पहुँच चुके हैं, कि "पौने-पाँच बज चुका है, और मैं इस कमरे से बाहर हूँ, और मुझे जो-जो करना होता है, वो मैं कर रहा हूँ।" आप में से बहुत सारे लोग हैं, जो समय में यात्रा करके अभी से दो दिन पहले पहुँच चुके हैं और ये याद कर रहे हैं कि, "दो दिन पहले, मुझे मेरे दोस्त ने या पिता ने या टीचर ने क्या बोल दिया था?" मन समय है क्योंकि वो लगातार समय में ही यात्रा करता है। मन इस क्षण में रह ही नहीं सकता।

आप में से कुछ हैं जो इस क्षण में है, आप में से कुछ हैं जो ध्यान दे रहे हैं, क्या वो अतीत या भविष्य में हैं?

समय का अर्थ ही है या तो अतीत या भविष्य।

आप में से जो लोग ध्यान दे रहे हैं क्या वो समय में है? वो समय में नहीं हैं न? और बड़ी मज़ेदार बात निकल कर आई। जो समय में नहीं है, उसका समय ख़राब नहीं हो रहा। और जो समय में है, वो समय बर्बाद कर रहा है।

जो ठीक अभी मौजूद है, ध्यान में है, वो इस क्षण का ठीक अभी-अभी पूरा-पूरा सदुपयोग कर रहा है, और जो इस क्षण में नहीं है, यानि जो समय में है, अतीत या भविष्य की कल्पनाओं में खोया हुआ है, वही है जो समय को ख़राब कर रहा है।

मन ही समय है और मन ही है जो स्वयं समय बर्बाद करता है। मन की गतिविधि और किसी लिए नहीं पर बस समय बर्बाद करने के लिए होती है।

मन की कोई भी गतिविधि समय बर्बाद करना ही है क्योंकि मन की गतिविधि के होने का अर्थ ही है ध्यान का ना होना।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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