प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, महामृत्युंजय मंत्र का जाप क्या मदद कर सकता है कुछ वृत्तियों को काबू करने के लिए? क्योंकि वृत्तियों से मुक्ति ही सत्य की ओर ले जा सकती है और यह जाप भी बंधनों से मुक्ति के लिए जाना जाता है।
आचार्य प्रशांत: 'जाना जाता है,' किसके द्वारा? बाई हूम ऐंड फॉर हूम (किसके द्वारा और किसके लिए)? महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ पता है आपको? अर्थ पता हुए बिना अगर आप जाप करते रहेंगे तो कोई फ़ायदा नहीं होगा। और अर्थ भी अगर आपको बस शाब्दिक अर्थ पता है, शाब्दिक अर्थ इतना ही है कि जैसे पक जाने पर, पूरी तरह से परिपक्व हो जाने पर फल बेल से अलग हो जाता है, बिना किसी कष्ट के। वैसे ही बढ़िया जीवन बिताकर के मैं भी अलग हो जाऊँ, मृत्यु के समय पर। अगर आप इसका शाब्दिक अर्थ ही करेंगे तो उससे कौनसा आपको आध्यात्मिक लाभ हो जाएगा? क्योंकि शाब्दिक अर्थ में तो कोई विशेष बात है ही नहीं।
देखिए, अगर आप मेरे संपर्क में रहे हैं, मुझे सुनते रहे हैं, मैंने अनगिनत बार कहा है, “बिना अर्थ जाने कुछ भी दोहराने से कुछ नहीं मिलेगा, एकदम कुछ नहीं मिलेगा।” हाँ, क्या मिल सकता है अधिक-से-अधिक? उथला सा एक आत्मविश्वास, आत्मसांत्वना, जिसको आप आत्मप्रवंचना भी बोल सकते हैं कि ख़ुद को बता दिया कि हम तो आध्यात्मिक हैं क्योंकि हम फ़लाने मंत्र का जाप करते हैं। ये विचार आपके पास जहाँ से भी आया है, इसे त्याग दें। अक्सर तो इस तरह के विचार औने-पौने गुरुओं द्वारा ही प्रचारित किये जाते हैं। 'ये फ़लाना मंत्र है, इसका ऐसे जाप करो, ये करो, वो करो। दिन में तीन बार, एक बार खाने से पहले, एक बार खाने के बाद, दूध के साथ लेना मंत्र।' कुछ होगा?
मंत्र चेतना के एक बहुत ऊँचे बिंदु से निकलते हैं न, मंत्र माने श्लोक। उपनिषदों का हर श्लोक एक मंत्र है। वो चेतना के एक बिंदु से आते हैं और इसलिए आते हैं ताकि आपकी चेतना भी वहाँ उठ सके। उठने का तरीक़ा क्या है? मंत्र का अर्थ कीजिए, उस अर्थ का मनन कीजिए, समझिए कि बात क्या है।
अभी आज हम बार-बार कह रहे हैं, “सर्वं खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन।” इससे बड़ा मंत्र हो ही नहीं सकता। आपको मंत्र चाहिए, दे दिया, लीजिए। लेकिन दोहराने भर से नहीं होगा, गहरे जाने से होगा। गहराई पहले आती है, दोहराव बाद में आता है। और जो गहरे जाने लगते हैं, वो पाते हैं कि दोहराव अपनेआप होने लग गया, क्योंकि गहराई में कुछ इतनी प्यारी चीज़ मिल जाती है कि आप उसके पास बार-बार, बार-बार जाते हैं। इसी को तो दोहराव बोलते हैं। मंत्र का अर्थ समझ में आ गया, वो अर्थ अब छूट ही नहीं रहा। वो भीतर अब गीत की तरह बज रहा है अर्थ। लो, ये तुम दोहराने लग गये। ये भीतर अब तुमने माला जपनी शुरू दी।
कबीर साहब बोलते हैं न, "भीतर की माला जप।" ये भीतर की माला जपनी शुरू कर दी। कैसे जपनी शुरू कर दी? प्रेम हो गया, वो अर्थ इतना सुंदर था कि प्रेम हो गया। अब बाहर कुछ भी चलता रहे, भीतर माला अब फिर ही रही है, फिर ही रही है, फिर ही रही है। वो बात इतनी अच्छी है! अच्छी है माने मुक्तिदायक है, और कुछ नहीं अच्छा होता।
प्र२: प्रणाम आचार्य जी! आचार्य जी, जैसे कहा गया कि एक गीत चल रहा है, पीछे-पीछे गीत चल रहा है। तो मेरे मन में अपने गुरु जी से मिला हुआ गुरु मंत्र चलता रहता है, चाहे दुख हो या सुख हो। तो क्या अहंकार ने ये सहारा लिया है अपनेआप को बचाने का?
आचार्य: गुरु जी से ही पूछो न (हँसते हुए)। मंत्र उन्होंने दिया है। ये सेकेंड ओपिनियन (दूसरी राय) लेने आये हो यहाँ पर। कह रहे हैं, 'वैसे तो मेरा डॉक्टर अच्छा है, लेकिन ज़रा इधर इनका क्लीनिक भी है, एक सेकेंड ओपिनियन ले लेते हैं।' ऐसा कुछ नहीं। (हँसते हैं)
मंत्र अगर वास्तविक होगा तो तुम्हारी समझ को उत्तरोत्तर और गहरा करता जाएगा। मंत्र अगर वास्तविक होगा तो ऐसा थोड़ी होगा कि सबसे पहले मंत्र ही समझ में नहीं आएगा और पूछोगे कि ये मंत्र कुछ काम का भी है या नहीं? दवाई काम की है या नहीं, अगर तुम दो महीने से ले रहे हो तो किसी और से पूछने की ज़रूरत पड़ेगी क्या? अगर दो महीने से दवाई ले रहे हो, दवाई काम की है तो सबसे पहले किसको पता होगा कि काम कर रही है दवाई? तुमको पता होगा।
अगर तुम दो महीने, दो साल से दवाई ले रहे हो और फिर भी किसी से जाकर पूछना पड़ रहा है कि ये दवाई काम भी करती है या नहीं, इसका मतलब पक्का है कि कोई काम नहीं करती, नहीं तो पूछने थोड़ी जाते किसी और से। उस दवाई का काम ही है — जैसे किसी को दिखायी न देता हो, उसको दवाई दी जा रही है रोशनी सुधारने की, आँखों की दवाई दी जा रही है। और वो दो साल से दवाई ले रहा है और दो साल के बाद किसी से पूछने जा रहा है, 'ज़रा देखना, ये दवाई ठीक है? पढ़ना, क्या लिखा है इसमें?' भाई, दवाई ठीक नहीं है, कोई फ़र्क नहीं पड़ता उस पर क्या लिखा हुआ है। क्योंकि अगर वो ठीक होती तो तुम्हें किसी और से नहीं पूछना पड़ता, तुम्हें मुझसे नहीं पूछना पड़ता कि क्या लिखा हुआ है। आँख की ही तो दवाई है न, आँख ठीक हो गयी होती तो सबसे पहले ख़ुद पढ़ लेते क्या लिखा हुआ है।
मंत्रों में कोई जादुई शक्तियाँ नहीं होती, भई। आपको उन्हें समझना पड़ता है। एक छोटी सी बात क्यों नहीं पल्ले पड़ रही! छठी का लड़का घूम रहा है और वो दिमाग में गाये जा रहा है, 'ए स्क्वैयर प्लस बी स्क्वैयर इज इक्वल टू सी स्क्वैयर, ए स्क्वैयर प्लस बी स्क्वैयर इज इक्वल टू सी स्क्वैयर।' इससे क्या होगा, क्या होगा इससे? इससे एक भी सवाल हल हो जाएगा? न उसे ए पता, न बी पता, न सी पता, स्क्वैयर भी नहीं पता, जोड़ना भी नहीं आता। दोहराने से क्या होगा, अगर तुम उसका अर्थ ही नहीं समझते तो?
और अर्थ भी, फिर कह रहा हूँ, मात्र शाब्दिक ही नहीं, सांकेतिक भी समझना पड़ता है। शाब्दिक अर्थ तो अनुवाद मात्र होता है कि अनुवाद ले लिया। वो अनुवाद से कुछ नहीं बात बनेगी। हर मंत्र में कहीं दूर को इशारा होता है।