जो बहुत होशियार बनते हैं || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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जो बहुत होशियार बनते हैं  || नीम लड्डू

बहुत मोटी मार पड़ती है ठीक तब जब तुम्हें ज़रा भी अंदेशा नहीं होता कि मार खाने वाले हो। माया भी कोई छोटी-मोटी खिलाड़न थोड़े ही है। बेहोशों को छोड़ देती है, वह कहती है, “यह तो पहले ही गिरा हुआ है इसको क्या गिराएँ? शू!” वह भी पसंद करती है उनका शिकार करना जिनका दावा होता है होश का। वह कहती है, “आप आइये, अब मिला कोई बाँका-पट्ठा! अब मिला कोई जो बड़े विश्वास के साथ छाती ठोक कर खड़ा हुआ है कि ‘हम जागृत हैं, हमें होश है’।“ माया कहती है, “हम तुम्हारा शिकार करेंगे और ऐसा शिकार करेंगे तुम्हारा कि तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि तुम शिकार हो गए।“ कैसा रहेगा?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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