ज़िन्दगी में पहले कुछ बन जाओ, कोई आंतरिक मक़ाम हासिल कर लो, फिर तुम्हें समझ में आएगा न कि रिश्ता किससे बनाना है। अब रिश्ता बना लिए छब्बीस की उमर में – तुम्हारा लक्ष्य हो सकता है जीवन में ऊपर उठना हो, जिससे तुमने रिश्ता बना लिया है उसे ना उठने से कोई मतलब है, ना बढ़ने से कोई मतलब है, उसे बस फैलने से मतलब है।
तुम ऊपर उठना चाहते हो, वो फैलना चाहता है।
प्रकृति के इरादे तुम समझते नहीं, अपनी चेतना की बेचैनी तुम समझते नहीं, आत्मज्ञान तुमको है नहीं, आत्म जिज्ञासा तुमने कभी करी नहीं, शास्त्रों के पास तुम कभी गए नहीं, स्वयं को जानने की शिक्षा तुम्हें कभी मिली नहीं। नतीजा – ग़लत रिश्ते, ग़लत वर्तमान, ग़लत भविष्य और चौपट जीवन।
तुम्हें कुछ बात समझ में आ रही है?
जिन्हें जीवन में ऊपर उठना हो, जिनके जीवन का ग्राफ़ ऊपर की ओर जा रहा हो, उन्हें जल्दी रिश्ता बनाना चाहिए या ठहर कर, देर में?