प्रश्न: ‘रिचुअल्स’ (धार्मिक अनुष्ठान) का क्या महत्त्व है?
वक्ता: बहुत थोड़े समय के लिए जब मन स्वयं अपनी जागृति में कहे कि, “ऐसा-ऐसा करो, और निरंतर करो, इससे शान्ति मिलती है,” तब उस निरंतरता का नाम ‘रिचुअल’ है। जब वो निरंतरता भी अपनी है, भीतर से उठती है, तब तो उसका कोई महत्त्व है भी, अन्यथा नहीं है।
श्रोता १: सर, कई धर्मों में ऐसी मान्यता है कि अगर किसी की अकालमृत्यु हो जाए, और उसके सारे मृत्यु से जुड़े संस्कार न किये जाएँ, उसकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलती। ऐसे नियमों का, ऐसे संस्कारों का क्या महत्त्व है? कई लोग ये सब संस्कार केवल डर के कारण करते हैं, कि नहीं किये तो कोई उन्होनी हो जाएगी। तो ये सब धार्मिक अनुष्ठान कहाँ से आते हैं?
वक्ता: आपने ही तो कहा कि डर से आते हैं। तो बेहतर है कि उस डर का ही उन्मूलन कर दिया जाए। डर न रहे, तो ये सब करोगे? तो बेहतर नहीं है कि निर्भयता को ही प्राप्त हो जाओ?
ये सब ऊट-पटाँग कर्म-काण्ड करो, उससे बेहतर है कि सीधे वो कर लो जो तुम्हें भय से ही खाली कर देगा।
~ ‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।