जीवन को गम्भीरता से कैसे ले सकते हो?

Acharya Prashant

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जीवन को गम्भीरता से कैसे ले सकते हो?

वक्ता: ये जो तुम हो, कितने साल लेकर आये हो? जितने भी लेकर आये हो उसमें से एक-तिहाई, एक-चौथाई तो गये। या नहीं गये? चार दिन थे तो एक गया, कुछ के साथ हो सकता है दो चले गये हों, कुछ के हो सकता है चार में से साढ़े तीन भी जा चुके हों।

(सभी श्रोता हँसते हैं)

कोई भरोसा नहीं, तो क्या गंभीरता से ले रहे हो? क्या बचाना चाहते हो? बचाते-बचाते एक दिन साफ़ हो जाओगे। बचेगा क्या? अरे जीवन भर इन्होंने बचाया बहुत। पर बचा क्या है? सम्माननीय से सम्माननीय आदमी भी सम्मान लेकर नहीं विदा होता। हाँ, विदा होने के दो ही तरीके होते हैं :

एक तो ये कि उलझनों में, तनाव में, भारी होकर, कि दुनिया भर की जिम्मेदारियां हमारे ही ऊपर हैं, ऐसे विदा हुए और रो रहे हैं, चिल्ला रहे हैं, ‘अभी तो बहुत काम बाकि थे, अभी तो मेरी कहानी अंतराल तक भी नहीं पहुंची थी और आप मझे उठाकर रवाना कर रहे हो। नहीं, नहीं, नहीं, मझे अभी और चाहिए, और चाहिए’। तो एक तो जाने का ये तरीका है। और दूसरा तरीका ये है, ‘जब आने में ही कुछ ख़ास नहीं था, तो जाने में ही क्या ख़ास है? कल ले चल रहे हैं, अभी ले चलो। मज़े में जिये हैं, मज़े में मर भी लेंगे। क्या रखा है?’ कबीर का दोहा है,

‘आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर,एक सिंहासन चढ़ी चले, दूजे बांध ज़ंजीर’

ज़्यादातर लोग जो मरते हैं, वो जंजीरें बांध-बांध कर ही मरते हैं। छटपटा रहे हैं कि किसी तरह से एक दिन और जीने को मिल जाए। अरे! तुम्हें अस्सी साल मिले, उसमें तुमने क्या उखाड़ लिया? ज़रा मौज में, ज़रा बादशाह की तरह जियो न, ‘सिंहासन चढ़ी चले’। ये इतने हल्के हैं कि जाने का क्या खौफ है। चेहरा झुका-झुका सा न लगे, यूँ ना लगे कि कंधे पर पता नहीं कितने बोझ है| बड़ी जिम्मेदारियां उठानी हैं, बड़े करतब करके दिखाने हैं, नाम रोशन करना है, ये और वो। अरबों अरब वर्ष का अस्तित्व है अंतरिक्ष का, उसमें तुम्हारे पचास साल, सत्तर साल क्या हैं? पलक झपकने बराबर नहीं हैं। तुम अपने आप को कितना महत्वपूर्ण माने बैठे हो? तुम्हारे होने में कुछ नहीं रखा है, पूरे अस्तित्व के सामने तुम्हारा पूरा जीवन काल, पलक झपकने से भी छोटा है। तुम क्या उसको गंभीरता से लेकर के झुके-झुके से रहते हो?

नहीं! मामला बड़ा गंभीर है

(सभी श्रोता हँसते हैं)

बरसाती कीड़े देखे हैं?

सभी श्रोता (एक स्वर में): जी, सर।

वक्ता: जो सुबह पैदा होते हैं और दोपहर तक मर जाते हैं किसी बल्ब के नीचे। उनका जीवन काल इतना ही होता है कि वो सुबह पैदा होंगे और दोपहर तक मर भी जाएंगे। वैसे ही हमारी हालत है। जैसे तुमको लगता है न कि अरे चार घंटे का तो इसका जीवन था, वैसे ही कोई और देख रहा होगा तुम्हें तो कहेगा कि अरे चार दिन का तो इसका जीवन था। अब वो जो बरसाती कीड़ा है वो कह रहा है, ‘जीवन में महान उद्देश्यों की प्राप्ति करनी है।

(सभी श्रोता हँसते हैं)

और तुम देख रहे हो कि वो कीड़ा अभी मरने वाला है, और वो आत्महत्या पर उतारू है कि प्रेमिका नहीं मिली, और तुम कह रहे हो, ‘इतनी घूम रहीं हैं पूरी दुनिया में, कहीं और चला जा’। और वो कह रहा है, ‘अरे फलाने ने बेइज्ज़ती कर दी, गाली दे दी, सम्मान नहीं दिया, हम पहुंचे तो कुर्सी नहीं दी, चाय नहीं पिलाई’ और बड़ी महत्वपूर्ण घटना घट गयी! और उन्हीं कीड़ों में किसी को नोबेल पुरस्कार मिल रहा है।

(सभी श्रोता हँसते हैं)

श्रोता १: ऑस्कर, ऑस्कर ..

वक्ता: ऑस्कर। और वो चौड़ा होकर घूम रहा है। और तुम देख रहे हो कि वो बल्ब जल रहा है, अभी तुझे वहीँ जाकर ख़त्म होना है। ये भी गंभीरता से लेने की बात है कि हम कीड़े निकले! ‘नहीं सर, थोड़ा सा ताल ऊपर कर दो, कुत्ता, बिल्ली तक ठीक था, कीड़ा नहीं बोलना, इज्ज़त पर बात आती है’!

(सभी हँसते हैं)

‘आज कीड़ा बोला है, कल वायरस बोलोगे! अरे हम खानदानी लोग हैं। आप रिकॉर्डिंग करते हो, यूट्यूब पर चला जाएगा कि सभा में श्रोताओं को कीड़ा बोल आये। और दो चार कीड़ियाँ हैं, उनके ब्यूटी पार्लर हैं’।

(सभी ठहाके मार कर हँसते हैं)

और वो लगी पड़ी हैं कि हमारी भौएँ नोचकर दूसरी बना दो। और तुम कह रहे हो, ‘अरी! साढ़े सत्ताईस सेकंड और हैं तेरे पास, मौज कर ले’। और उसमें से उसने दस सेकंड ड्रेस चुनने में निकाल दिए। ‘ज़रा आना इधर, चेंज रूम के सामने आना। कैसी लग रही हूँ’? और उसके साथ वो जो अभागा कीड़ा है, वो सर पीट रहा है। ‘कहाँ से फस गया’? और उनमें से एक है जो दौलत इकट्ठा करनें में लगा है। अब कीड़े दौलत भी तो क्या इकट्ठा करेंगे? कीड़ों को जो पसंद आएगी! तो वो इधर की गंदगी, उधर की गंदगी इकट्ठा कर रहा है, और उस पर यूँ बैठा हुआ है, पहरा दे रहा है कि कोई ले ना जाए। ज़बरदस्त पहरेदारी चल रही है। लड़ाइयाँ चल रहीं हैं बड़ी-बड़ी, कीड़ों ने एटम बम बना लिए हैं। और कीड़ों ने धर्म विकसित कर लिए हैं| दो चार कीड़े हैं वो घंटे बजा रहे हैं, दो चार नमाज़ पढ़ रहे हैं और उसके बाद बाहर आकर लड़ रहे हैं | ‘खबरदार! दंगे हो गये, कीड़ों ने मकौडों की बहन छेड़ दी!’

(सभी ज़ोर हँसते हैं)

और ये सब कहाँ हो रहा है? एक बिजली के बल्ब के नीचे! जहाँ पर अगर दस पंद्रह जीवित कीड़े हैं, तो हज़ारों की लाशें पड़ीं हैं| देखा है ऐसा?

सभी श्रोता(एक स्वर में): जी सर।

वक्ता: और वो जल रहा होता है। ख़ासतौर पर बाहर अगर थोड़ी हरियाली है, और अगर पंद्रह-बीस कीड़ें है जो उसके पास हैं, तो नीचे सैकड़ों, हज़ारों मुर्दा पड़े हुए हैं| और कीड़ों को ये दिखाई नहीं दे रहा है। नीचे देखो, ये तुम्हारा साथ भी होना है। तुम क्या गंभीरता में जी रहे हो? तुम्हें दिख नहीं रहा? दुनिया कब्रगाह है बहुत बड़ी। ‘साधो ये मुर्दों का गाँव’। जहाँ तुम बैठे हो वहां भी हज़ारों लाशें दबी होंगी। नहीं, कुछ नहीं दिख रहा। और कुछ कीड़े हैं, वो डिग्रियां इकट्ठी कर रहे हैं, ‘मैं ये कर लूँ, मैं वो कर लूँ’| और, गुरु कीड़ा और शिष्य कीड़ा। और एक लगा हुआ है पांच-सात को लेकर कि ‘आओ मैं तुम्हारा कल्याण करूँगा’ और बाकि सब कह रहे हैं, ‘महाराज’। और घंटियाँ बज रहीं हैं चारों तरफ से |

एक कीड़ा राजनेता है! एक धरना देने बैठ गया है, ‘अनशन! खाना नहीं खाऊँगा, मर जाऊँगा’! अभी भी कुछ सीरियस है, गंभीरता बड़ी मज़ेदार चीज़ है। है न ?

गंभीर तो होना ही चाहिए, कुछ ख़ास है करने के लिए !

इसमें कुछ ख़ास है ..

‘छात्रों, अगर जीवन में तुम गंभीर नहीं हो, तो कुछ नहीं कर सकते’।‘बेटा, जीवन में इज्ज़त तभी मिलेगी जब कुछ बनकर दिखाओगे’।‘शादी करना चाहते हो? पिताजी से तभी मिलवाऊँगी जब तुम्हारी नौकरी लग जाएगी’!

(सभी हँसते हैं)

‘अरे बेटा, कुछ पाने के लिए कुछ खोना होता है! पाण्डेय जी आपका लड़का कुछ गड़बड़ है, गंभीर नहीं रहता। आपने संस्कार ठीक नहीं दिए’| ‘गंभीरता से पढ़ाई करो’।‘तुमने क्या समझ रखा है? ज़िन्दगी खेल है, मज़ाक है? नहीं! ज़िन्दगी जंग है’!

(सभी श्रोता हँसते हैं)

‘ज़िन्दगी में चारों तरफ चुनौतियाँ हैं और तुम्हें उन चुनौतियों का सामना करना है।’‘छात्रों, हम आज तुम्हें यहां भविष्य में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताएँगे। हम तुम्हें भविष्य के लिए तैयार करेंगे’।

और तुम सुन रहे हो। सेलिब्रिटी कीड़ा !!!!

और दुनिया भर के कॉलेज, विश्वविद्यालय तुम्हें यही बता रहें हैं, ‘भविष्य का निर्माण कैसे करें?’ और तुम आकर्षित हो जाते हो |

‘देखिये गुप्ता जी आज कल प्रतिस्पर्धा का ज़माना है और भविष्य में ये और बढ़ने ही वाली है, तो जिसको कुछ बन कर दिखाना है, उसको हमारे ही स्कूल में दाखिला ले लेना चाहिए’।

आगे आपदा आने वाली है, विपत्तियाँ आने वाली हैं, भविष्य में हमारे घर में सुनामी आ जाएगी, और हमें आज से तयारी करनी है। इससे पहले की दुश्मन हम पर वार करे, हम दुश्मन पर आक्रमण कर देंगे। और जीवन ही सबसे बड़ा दुश्मन है इसलिए जीवन पर ही आक्रमण करो। बिल्कुल आक्रामक रहो! तैयारी कर के रखो, तोपें तैयार करा कर रखो, पैसा जमा करके रखो, डिग्रीयाँ एकत्रित करके रखो, जीवन बीमा करके रखो, दोस्त-यार जमा करके रखो और जैसे ही मौका आये, बोलो, ‘फायर!’

(सभी हँसते हैं)

‘वर्मा जी आप तो बड़े गैर ज़िम्मेदार निकले, आपने बीमा नहीं कराया? आपको अपने बच्चों की परवाह नहीं है? मैने तोपें तैयार कर रखीं हैं। देखिये !

(सभी हँसते हैं)

सतर्क कीड़ा !! वो तैयार बैठा है तोपें लेकर के, कि जीवन की जंग जीत कर ही मानूंगा |

और एक है, प्रेरक कीड़ा! उसको काम ही यही है की जा, जा कर सबको कह रहा है, ‘उठ जाओ, सोना नहीं, जागते रहो! और पा लो जो तुम्हें पाना है, अपने सपनों को हकीकत में बदल दो’!

और तुम कह रहे हो, ‘ये बढ़िया है, ये शुभचिन्तक है हमारा, ये हमसे कह रहा है जागते रहो, सोना नहीं, अपने सपनों को हकीकत में बदल दो। अदब से रहो, मैनर्स एंड अटीकेट‌्स ! सुबह सुबह गुड मोर्निंग किया करो, दोपहर में गुड आफ्टरनून और सोते समय गुड नाईट। अगर जीवित बचो तब तक तो !!

इज्ज़त पर आंच आती है। और अगर तुमने ये सब नियम नहीं माने, तो तुम्हारा कोई बहुत बड़ा नुक़सान कर दिया जाएगा |

कुछ को तो मज़ा आ रहा है, और कुछ को ये सुनकर लाचारगी हो रही है। ‘नहीं! सर कैसी बातें कर रहें हैं’!

विचारक कीड़ा !! वो सोचता बहुत है !

-’संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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