जवाब दें आइ.आइ.टी बॉम्बे और आइ.आइ.टी मद्रास (IIT Bombay and IIT Madras) || आचार्य प्रशांत (2021)

Acharya Prashant

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जवाब दें आइ.आइ.टी बॉम्बे और आइ.आइ.टी मद्रास (IIT Bombay and IIT Madras) || आचार्य प्रशांत (2021)

प्रश्नकर्ता: चरण स्पर्श आचार्य जी। आपसे पहले मैं किसी संस्था से जुड़ा रहा और वो बताते हैं कि सुबह साढ़े तीन बजे उठकर शिव बाबा से बात करो और ये सब चीज़ें करता था। उसके बाद दूसरों को भी सुना। वो भी बताते हैं कि फलाहार करो, ये करो, वो करो। उससे आगे बढ़ने की बजाय मेरी प्रगति पीछे को होने लगी। डिप्रेशन की दवा वगैरह भी लेता था। सब उल्टा-पुल्टा था। जैसे-जैसे आपको सुनना चालू किया तो चीज़ें बेहतर होती गयीं। और जैसे आपने संगत पर ज़ोर दिया है तो अब मैं पहले तो किरणें-विरणें भेजा करता। बताया जाता था कि किरणें भेजो और ऐसे विचार करो, यहाँ से व्हाइट बॉल , ब्लैक बॉल भेजो।

लेकिन उससे कुछ हो नहीं रहा था और उनकी सब प्रक्रियाएँ करता था। उनसे कुछ हुआ नहीं।

आपको सुनने के बाद मैंने संगत बदली जहाँ, मैं समय देता था वो बदला और जो विडियोज़ देखता था, जो भी फ़ालतू चीज़ें पहले करता था वो सब करना मैंने कम कर दिया।

अब आचार्य जी, कोई ऐसी खास समस्या तो नहीं रह गयी, शान्ति आ गयी है, सबकुछ हो गया है, चीज़ें बिलकुल बदल चुकी हैं। संगत तो लगभग बदल गयी है, साल भर करीब हो गया है कि दवाई भी छूट चुकी है पूरी तरह से।

बस एक समस्या रह गयी है कि हफ़्ते-दस दिन में कभी-कभी कोई बॉलीवुड मूवी वगैरह देखने का मन होता है, कभी पत्नी भी मुँह बनाती है। तो बस यही आपसे पूछना है कि बॉलीवुड मूवीज़ कभी-कभी देख सकता हूँ। क्योंकि जब भी ऐसा लगता है कि दो-तीन घंटे व्यर्थ करूँगा तो कहीं ऐसा न हो पुरानी लाइफ़ वैसी हो जाए, मन खराब हो जाए। तो बस आपसे यही पूछना है कि हफ़्ते दस दिन में अगर कभी मन करता है तो बॉलीवुड मूवीज़ (फ़िल्में) देखूँ या नहीं देखूँ। यही भय है।

आचार्य प्रशांत: पता चला है संस्थाओं का नशा करता है (आचार्य जी एवं सभी श्रोता हँसते हैं)। नये-नये गुरुओं से मज़ा करता है। क्या बोलूँ, भाई। इसमें कुछ है नहीं अब, जो था वो निपट गया। क्या अन्तिम समस्या ये फ़िल्मों वाली बची है? (श्रोतागण हँसते है)

प्र: हाँ, कभी बस यही मतलब ज़्यादा बड़ा कोई मुद्दा तो नहीं है। कभी-कभी मन होता है तो देखूँ कि नहीं। मतलब ये रहता है कि मन नहीं खराब हो बस। बाकी सब चेंज हो गयी लाइफ़ बिलकुल चेंज ही हो गयी अब कोई।

आचार्य: खुश हो गये। (आचार्य जी एवं सभी श्रोता हँसते हैं) देखो, जिन महानुभवों की तुमने बात करी, एक और तो मुझे ये अपनी ज़िम्मेदारी लगती है कि मैं उनकी तारीफ़ें करता रहा करूँ और दूसरी ओर मुझे फिर न घिन सी भी आती है, बार-बार इस तरह के लोगों का, संस्थाओं का नाम ज़बान से निकालने में। तो इसलिए उनके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहता। हम सब अच्छे लोग हैं, प्यार से मिले हैं क्या गाली-गलौज करें।

बल्कि बात उनकी कर लो न तुम सब्सक्राइबर वगैरह कह रहे थे, बात उनकी कर लो जो पीछे-पीछे चलते हैं। जा उनके पीछे चलते हैं, जो उनको बड़ा बना दिया है उनकी बात कर लो। क्योंकि तुम भी उनके पीछे, उनकी सच्चाई देखकर नहीं, उनके सब्सक्राइबर देखकर गये थे न।

प्र: दोस्तों को।

आचार्य: तो बात इन सब्सक्राइबर से, इन दोस्तों से पूछी जानी चाहिए कि तुम ये हरकतें क्यों कर रहे हो और एक बार किसी के पास एक क्रिटिकल मास आ जाये तो स्नो बॉलिंग इफ़ेक्ट ( बॉलिंग प्रभाव) होता है तो लोग उसके पास सिर्फ़ इसलिए जाते है क्योंकि और लोग उसके पास जा चुके हैं। उसके बाद तो फ़िर बिलकुल ही सवाल नहीं उठता कि सच्चाई क्या है। एकदम नहीं उठता न।

तो सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए, जिन्होंने इनको इतना बड़ा बना दिया और ये बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। क्योंकि अगर ऐसी ताकतें हमारे बीच मौजूद हैं जो गलत चीज़ों को बड़ा बना देती है, तो उन्होंने दो-ही-चार चीज़ों को बड़ा नहीं बनाया होगा। उन्होंने पचासों गलत चीज़ों को जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत बड़ा बना दिया होगा। गलत अभिनेताओं को बड़ा बना दिया होगा, गलत नेताओं को बड़ा बना दिया होगा, गलत लेखकों को बड़ा बना दिया होगा, गलत विचारकों को बड़ा बना दिया होगा। है न?

वो ताकतें हमारे बीच की होंगी न जो माया को, शैतान को प्रोत्साहन दे रही है। उन ताकतों की बात करो न। वो ताकतें जब तक मौजूद हैं तब तक तो गलत लोग जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में शिखर पर पहुँचते ही रहेंगे। नेता भी गलत होंगे, अफ़सर भी गलत होंगे। हर वो व्यक्ति जो किसी पद पर, जगह पर, ताकत पर बैठा हुआ है सब गलत होंगे। कौन है वो जो इनको ऊँचा उठा देता है। ये हमको पूछना पड़ेगा न। वो कौन है जो उनको वहाँ तक पहुँचा रहा है। उसकी खबर लेते हैं। वो ज़्यादा ज़रूरी है । क्योंकि एक बात अच्छे से समझो जिसने गलत को ऊँचाई पर पहुँचाया है वो सिर्फ़ गलत को ऊँचाई पर ही नहीं पहुँचा रहा, वो सही को ऊँचाई पर पहुँचने से रोक भी रहा है। वो इतने से ही संतुष्ट नहीं हो जाएगा कि मैंने एक धूर्त आदमी को शिखर पर बैठा दिया‌। वो ये भी देख रहा है लगातार, उसकी नज़र है कि कोई सही आदमी तो ऊपर नहीं उठा रहा और वो जैसे ही किसी सही आदमी को ऊपर उठता देखेगा किसी तरीके से उस पर वार करेगा, घात करेगा।

ये कौन है? ये हमें पूछना पड़ेगा, ये कौन है जो ये सब कर रहा है। उसका कोई चेहरा है, उसका कोई नाम है, ये कौन है? ये कैसे हो जाता है? हमें उस पूरी प्रक्रिया को समझना पड़ेगा जिसके द्वारा एक अयोग्य व्यक्ति, एक कुपात्र या एक बेईमान और धूर्त ताकत या व्यक्ति जो भी है संस्था कुछ भी। वो ऐसी जगह पर पहुँच जाती है, ऐसा महत्व हासिल कर लेती है जो उसको नहीं मिलना चाहिए था। वो प्रक्रिया क्या है पूरी।

अभी ये ताज़ा उदाहरण है जो मन में आता है। क्या? आइआइटी बॉम्बे ने मुझे आमन्त्रित करा था, उनका कुछ कार्यक्रम था उसमें। फिर उनकी और से सूचना आयी। मुझे मालूम नहीं उनकी ओर से जो हमें सूचना आयी कि उनके किसी प्रोफ़ेसर ने कहा कि नहीं, नहीं इनको मत बुलाओ। इनकी जगह उन्हीं देवीजी को बुलाओ जिनका आपने नाम लिया, किरणें वगैरह। तो फिर वो देवीजी वहाँ गयीं वहाँ । गयी कि नहीं गयी, मैं ये सब जानता नहीं। जितनी मुझे सूचना आयी मैं ये बता रहा हूँ और ये हाल आइआइटी का है। आइआइटी की स्थापना अन्धविश्वास फैलाने के लिए को गयी थी? आइआइटी में जाकर के आप ये सब बातें करें की। पानी में किरण डाल दो और फ़लाने की आत्मा, फ़लानी दीदी में या दादी में साल में एक बार उतरती है और वो फिर कुछ-कुछ, ऐसे-ऐसे। जो भी है । गाँधी जी के तीन बन्दर( हाथ से इशारा बताते हुए)। आइआइटी इसलिए स्थापित किये गए थे?

इसी तरीके से आइआइटी चेन्नई में एक सज्जन जाकर बता आते हैं कि पानी में तो मेमोरी होती है। ये आइआइटी की मंच से किया जा रहा है। कोई-न-कोई तो वहाँ पर बैठा हुआ है न और आइआइटी का अलुमनस (पूर्व छात्र) होने के नाते मुझे और ज़्यादा तकलीफ़ है।

कोई तो ऐसे पदों पर बैठ गया है न आइआइटी में भी जो अन्धविश्वास को प्रोत्साहन दे रहा है। ये है सारी गड़बड़। अगर अन्धविश्वास फैलाने वाले एक आदमी को देश का प्रधानमन्त्री रीट्वीट करता हो तो आप क्या करोगे? अब बोलो, क्या करोगे? उस व्यक्ति की अपनेआप में क्या हैसियत है? कुछ नहीं इसे ही अपना कोई। बहुत सारे यहाँ ऋषिकेश चले जाओ यहाँ पर घूम रहे हैं योगाट्रेनर। कुछ नहीं। पर जब उसको किसी वजह से सत्ता का समर्थन मिल जाए और बहुत बड़े-बड़े नागरिक सम्मान मिल जाएँ। पद्मश्री दे दो, पद्मभूषण दे दो, भारत रत्न ही दे दो। तो फिर तो आम आदमी को यही लगता है न कि इनके सब्सक्राइबर बहुत हैं, उनको इतने सम्मान मिले हैं, सब नेता लोग आकर इनके पाँव छू रहे हैं, तो ये बड़ा आदमी है। तो आम आदमी पीछे-पीछे चल देता है भीड़, भेड़ बैंक एकदम। आम आदमी को मैं दोष क्यों दूँ? मैं उन ताकतों से सवाल पूछना चाहता हूँ न जो गलत लोगों को उठाकर के ऊँचाइयों पर बैठा देती हैं।

भारत के नागरिक सम्मान अन्धविश्वास फैलाने के लिए हैं? भारत का संविधान कहता है कि नागरिकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की स्थापना होनी चाहिए। साइंटिफिक टेंपर (वैज्ञानिक दृष्टिकोण)। तो आपने भारत के नागरिक सम्मान एक अन्धविश्वास फैलने वाले व्यक्ति को दे कैसे दिये? कैसे दे दिये?

अब तुम्हारे जैसे हज़ारों लोग फिर पीछे-पीछे चलेंगे कि नहीं देखो ये तो वहाँ गए थे, राष्ट्रपति ने खुद इनको दिया है, तो ये तो अच्छा ही आदमी होंगे। और जिन्होंने उनको उठाकर के वहाँ बैठाया न वो ही मैं जितनी बातें बोल रहा हूँ ये सारी बातें नोट करते जा रहे हैं और मैं उनकी हिटलिस्ट में बहुत ऊपर हूँ। तुम्हें लग रहा है मुझे छोड़ देंगे?

जिस नियत से वो धूर्त लोगों को ऊपर उठा रहे हैं, उसी नियत से तुम्हें नहीं लगा रहा कि वो मुझे छोड़ने नहीं वाले ।

उनसे सवाल पूछो न। तुम तो कुछ नहीं हो। तुम तो मोहरे हो। तुम्हें तो जिधर भीड़ दिखती है तुम पीछे-पीछे चल देते हो। सवाल ये पूछा जाना चाहिए कि भीड़ जुटने वाला कौन है। वो मास्टरमाइंड (विख्यात मन) कौन है जो भीड़ की व्यवस्था कर रहा है। आइआइटी बॉम्बे, आइआइटी चेन्नई इन दोनों को कठघरे में खड़ा करके सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए?

और ये तो दो उदाहरण हैं। मैं इनकी पूरी कुंडली से वाकिफ़ नहीं हूँ। मैं नहीं जानता इनके पीछे कौनसी ताकतें है, इन्हें फंडिंग कहाँ से आती है, इन्हें समर्थन कहाँ से मिलता है, कौन किस राजनेता से जुड़ा हुआ है। किसका क्या चल रहा है, मैं यह सब नहीं जानता। पर अगर तुम उत्सुक हो तो पूरी छानबीन, जाँच-पड़ताल कर लेना। ऐसी ऐसी मनोरंजक सामग्री मिलेगी कि हक्के-बक्के रह जाओगे। मैं नहीं जानता। मुझे उतना ही पता जितना सामान्य मीडिया में आ जाता है सामने तो मेरे पास करने के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण काम है तो मैं उनमें लगा हुआ हूँ।

पर इतना स्पष्ट हो जाता है कि जिन जगहों से, जिन लोगों से पूरे देश की जनता का मन विकृत किया जा रहा हो। वो जगहें जिससे समर्थन पा रही हैं, वो समर्थन देने वाला भी बहुत गड़बड़ ही होगा। ऐसे तो पूरी दुनिया ही अपनी है। ‘चीन और अब हमारा सारा जहाँ हमारा!’ लेकिन ये भारत है न इससे बड़ा प्यार रहा है। पढ़ा-लिखा हूँ। सैंकड़ों किताबें छानी है हर क्षेत्र की। अब अध्यात्म तुम्हारे सामने है, तो इतना बता सकता हूँ कि भारत की दुर्गति में झूठे अध्यात्म का, अन्धविश्वास का जो रोल (भूमिका) रहा है उससे ज़्यादा कुछ नहीं।

हमें सबसे ज़्यादा झूठे धर्म ने तोड़ा है। और झूठे धर्म ने दो तरफ़ा मार करी है — एक तो पूरी तरह तोड़ा है, गुलाम बनवाया है, लूटा है। और दूसरी चीज़ उसने ये करी है कि हमें सच्चे धर्म तक पहुँचने नहीं दिया कभी। वो सच्चा धर्म मौजूद रहा है। वो बैठा हुआ है हमारे उपनिषदों में। बैठा हुआ है गीता के निष्काम कर्म में। पर आम हिन्दुस्तानी धर्म के नाम पर यही सब गन्द-फन्द करता रह गया है। पानी में किरणें उतारना। जो भी है। मैं बिलकुल आज से पहले मैंने उस चीज़ का नाम भी नहीं सुना था।

जो भी है पानी में किरणें उतारना इत्यादि, पर इस तरह की चीज़ें बहुत आयात में हैं। यही चल रही हैं आज भी चल रही हैं। पढ़े पढ़े-लिखे लोगों में चल रही हैं। अभी हम थोड़ी देर पहले बात कर तो रहे थे वो दो पढ़े-लिखे लोगों ने अपनी दो बेटियों की हत्या कर दी और ये बोलकर के कि हम तो इनकी आत्माएँ वापस लाकर के इनमें वापस डाल देंगे।

न जाने किस गुरु के वो अनुयायी थे। ऐसे ही ये कांड दिल्ली में हुआ था दो-तीन साल पहले।

प्र: बुरारी कांड।

आचार्य: हाँ। बुरारी कांड। तो दिल्ली में हो, चाहे दक्षिण भारत में और दक्षिण भारत वालों ने कहा है साफ़-साफ़ कि वो वहाँ के किसी गुरु के हैं अनुयायी। दक्षिण भारत के ही। जिनका काम ही यही है बताना कि मुर्दा ऐसा, मुर्दा ऐसे चलाना है, मुर्दे में ऐसे जान डालनी है इत्यादि-इत्यादि। यही कर-करके कहीं के नहीं रहे हम। बर्बाद हो गये।

तुर्क, अरब, मंगोल, मुगल, ब्रिटिश, फ्रेंच, पुर्तगीज़, डच बताओ, किसने-किसने नहीं लूटा हमको? मैं उनको क्यों दोष दूँ कि उन्होंने हमें लूटा। तुम दुनिया के सबसे बड़े देश। तुम भीतरी तौर पर इतने कमज़ोर कैसे हो गये कि वहाँ हज़ारों मील दूर से जहाज़ पर बैठकर आते थे और तुमको पीटकर निकल लेते थे। ऐसा कैसे हो गया? कैसे हो गया? उसकी वजह यही है। यही, यही। अन्धविश्वास, अन्धविश्वास। झूठ को प्रोत्साहन। और झूठ बिलकुल प्राणघाती हो जाता है जब वो धर्म की शक्ल ले लेता है। अब वो झूठ कहाँ रहा? अब तो धर्म हो गया न वो। और ये सब धर्म के नाम पर चलता है ये करना वो करना। आज भी पूर्णिमा है जाओ इधर उधर कुछ कर लो गन्द-फन्द। उससे क्या पता तुममें कुछ सिद्धियाँ जाग्रत हो जाएँ!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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