तुम अभी नये-नये किसी नौकरी में लगे हो और जहाँ तुम्हारी कोई हैसियत नहीं, औकात नहीं, आमदनी नहीं, तुमने अभी कुछ सीखा नहीं, कोई तरक्की नहीं करी, कोई पहचान नहीं बनायी, ना ज्ञान अर्जित किया। ना तुम अभी सामाजिक दृष्टि से कुछ हो, ना आंतरिक, आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ हो और तुमने रिश्ता बना लिया। निश्चितरूप से ये रिश्ता बनाने के लिए तुम्हें कैसी लड़की मिली होगी? अपने जैसी ही तो मिली होगी। क्योंकि बहुत बेहतर होती तो तुमसे रिश्ता क्यों बनाती? अगर बहुत बेहतर होती तो वो एक साधारण, औसत लड़के से रिश्ता क्यों बनाती? तुमने एक साधारण-औसत लड़की से जल्दबाज़ी में बना लिया रिश्ता। अब वो तुमको भी बेहतर होने नहीं देगी; तुम बेहतर होकर देखो।
और ये बात मैं लड़कियों के संदर्भ में भी बोल रहा हूँ। तुम किसी साधारण औसत लड़के से रिश्ता बना लोगी, उसके बाद अगर तुम ज़िन्दगी में तरक्की करना चाहोगी तो वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड , प्रेमी या पति तुम्हें तरक्की करने नहीं देगा।
ये होता है जब तुम प्रकृति-प्रदत्त कामवासना में पड़कर जल्दी से रिश्तेबाज़ी में कूद पड़ते हो।