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जगदीशचन्द्र बोस: वो भारतीय वैज्ञानिक जो दो नोबेल पुरस्कार का हकदार था

जगदीशचन्द्र बोस: वो भारतीय वैज्ञानिक जो दो नोबेल पुरस्कार का हकदार था

बात है 1895 की। एक भारतीय वैज्ञानिक ने अपना नया आविष्कार दिखाने के लिए कुछ दोस्तों को दावत पर बुलाया।

वे दिखाना चाहते थे कि कैसे रेडियो वेव्स दीवार को भी पार कर सकती हैं। उन्होंने एक प्रयोग करके दिखाया, जिसमें एक कमरे में घंटी बजाने से दूसरे कमरे में बारूद में विस्फोट हो गया। सभी दोस्त चकित रह गए!

ये प्रयोग सफल हो पाया उनके आविष्कार - “मर्करी कोहेरर रेडियो वेव रिसीवर” की वजह से। उस रात जाने-अनजाने में उन्होंने वायरलेस कम्युनिकेशन की नींव रख दी।

हम जिस भारतीय वैज्ञानिक की बात कर रहे हैं वो हैं - जगदीशचन्द्र बोस। और उस रात उनके घर आए दोस्तों में से एक थे - गुग्लिल्मो मार्कोनी।

30 नवंबर को श्री जगदीशचन्द्र बोस का जन्मदिन होता है। आइए उनसे मिलते हैं:

जगदीशचंद्र बोस का जन्म बंगाल में हुआ। स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे लंदन विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन करने गए।

रेडियो एक ऐसा आविष्कार था जिसके पीछे कई प्रतिभाशाली दिमाग थे। रेडियो के आविष्कारक के रूप में किसी एक व्यक्ति को चिन्हित करना संभव नहीं है।

रेडियो उपकरणों की दौड़ जेम्स क्लर्क मैक्सवेल द्वारा शुरू की गई, जिन्होंने इलेक्ट्रो-मैगनेटिक वेव्स की भविष्यवाणी की थी। उनके शोध को हेनरिक हर्ट्ज़ ने आगे बढ़ाया, फिर बोस ने माइक्रोवेव पर अध्ययन किया और यह साबित किया कि रेडियो वेव्स ठोस वस्तुओं से गुजर सकती हैं।

मार्कोनी भी इसी बीच रेडियो वेव्स पर काम कर रहे थे लेकिन उनका शोध एक जगह पर आकर अटक गया। बोस के “मर्करी कोहेरर” के आविष्कार ने मार्कोनी के रेडियो विकास को गति दी।

मार्कोनी वायरलेस तकनीक का व्यावसायीकरण करना चाहते थे, लेकिन बोस इसके ख़िलाफ़ थे। कई लोगों ने बोस पर अपने आविष्कार का पेटेंट कराने का दबाव डाला, लेकिन उन्होंने कहा, “मेरी रुचि केवल शोध में है, पैसा कमाने में नहीं”।

मार्कोनी ने बोस के आविष्कार का उपयोग किया, लेकिन उन्हें कभी श्रेय नहीं दिया। बोस को उस समय के नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा, और उनके योगदान को भुला दिया गया। 1909 में मार्कोनी को रेडियो के लिए नोबल पुरस्कार मिला।

आगे जाकर रेडियो वेव्स का पता लगाने के लिए बोस ने सेमीकंडक्टर जंक्शन का उपयोग किया। नोबेल पुरस्कार विजेता सर नेविल मॉट का मानना था कि बोस पी-एन टाइप सेमीकंडक्टर की परिकल्पना करने में समकालीन विज्ञान से 60 साल आगे थे।

रेडियो प्रौद्योगिकी में बोस के योगदान को अंधेरे में रखा गया और हाल ही में यह प्रकाश में आया। स्वयं मार्कोनी के पोते फ्रांसेस्को मार्कोनी ने अपने एक लेक्चर में बोस को रेडियो के आविष्कारक, और अपने दादा को उसके प्रचारक के रूप में संबोधित किया। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय संस्था IEEE ने बोस को रेडियो विज्ञान के जनक की उपाधि दी।

कई वैज्ञानिकों का मानना है कि बोस दो नोबेल पुरस्कार के हकदार थे - एक रेडियो वेव्स पर उनके शोध के लिए और दूसरा उनके सेमीकंडक्टर शोध के लिए।

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This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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