जानने और जानकारी में क्या फ़र्क है? || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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जानने और जानकारी में क्या फ़र्क है? || आचार्य प्रशांत (2013)

प्रश्न: लर्निंग क्या है? लर्निंग, नॉलेज से कैसे अलग है?

वक्ता: आप बताइए। अच्छा सवाल है। लर्निंग क्या है? लर्निंग नॉलेज से कैसे अलग है? दोनों शब्दों पर ही गौर करिए। उनकी बनावट को देखिये पता चल जाएगा। बोलो राहुल, (श्रोता को इंगित करते हुए), ये तुम्हारी पसंदीदा विषय हैं। लर्निंग और नॉलेज में क्या अंतर है?

श्रोता: नॉलेज मेरे हिसाब से आता है अतीत से। लर्निंग, मैं अभी जो सुन रहा हूँ ध्यान से, वही लर्निंग है मेरे लिए अभी।

वक्ता: दोनों शब्दों में क्या अंतर है?

श्रोता: वैसे तो शब्दकोष में इनका मीनिंग तो नहीं मिलता है, पर अंतर यही है कि नॉलेज अतीत से ही आता है।

श्रोता: लर्निंग एक गतिविधि है।

श्रोता: जो भी सामने से सर ने कहा अभी, या मैंने अभी ध्यान से सुना उसको लर्निंग बोलेंगे। स्कूल में जो हमको पढ़ाया जाता है, मूलतः जो भी प्रमेय सिखाया जाता है, वो सब नॉलेज से आ रहा है।

श्रोता: लर्निंग अपूर्ण वर्तमान है और नॉलेज भूतपूर्ण है।

श्रोता: अच्छा इसको तोड़ दें? लर्न और नो में क्या अंतर होगा?

वक्ता: एक हैं बिलकुल, कोई अंतर नहीं है। उसी नॉलेज को नोइंग बना दो, तो वही हो जाएगा।

श्रोता: फिर ये कैसे कह सकते हैं कि या तो वो लर्नर है या वो नॉलेजेबल है? इन दोनों में कैसे फ़र्क कर पाएँगे?

वक्ता: बहुत अन्तर है, बहुत अंतर है। नॉलेजेबल मतलब…

श्रोता: इकट्ठा कर चुका है।

वक्ता: हाँ।

श्रोता: पूर्ण विराम लग गया।

वक्ता: मतलब जिसकी प्रतिक्रियाएँ पीछे से आते हैं। अब जैसे ये लर्निंग , नॉलेज और नोइंग, ये सारी बातें इस कमरे में हम बीस बार-पचास बार कर चुके हैं, लोग बैठे हैं जिन्होंने ये बातें कई बार सुनी हैं, पढ़ा है, विडियो देखे हैं तो आपने जैसे ही पूछा कि लर्निंग क्या, नॉलेज क्या? तो ये भी हो सकता है कि स्मृति का बटन दब जाए और सारी प्रतिक्रियाएँ पीछे से आने लग जाएँ। ये हमारी नॉलेजेबिलिटी है कि ये बड़े ज्ञानी हैं, ये बड़े जानकार हैं, जानकार माने प्रतिक्रिया पीछे से आ रही है।

श्रोता: कंटेंट है उनके पास कोई।

वक्ता: कंटेंट है, कोई डेटाबेस है उनके पास, उस डेटाबेस से उठा कर उन्होनें कुछ आगे फ़ेंक दिया। तो उन्हें कुछ मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। वो बस पीछे जाते हैं और डेटाबेस पर गूगल करते हैं। जब सवाल आया तो जवाब आएगा ‘’अच्छा! लर्निंग , हाँ, मुझे पता है,’’ ये उत्तर दिया। समझ रहे हैं न बात को? उनकी चेतना नहीं काम करती उनकी स्मृति काम करती है, तो वो तो नॉलेजेबल आदमी हो गया। उसकी भी कीमत है, ऐसा नहीं है कि उसकी कोई कीमत नहीं है पर उसकी कीमत स्मृति जितनी ही है। और आप देखिये, पहले स्मृति पर बड़ा जोर दिया जाता था, मेमोरी शार्पनिंग की ये तकनीक हैं, इन फैक्ट बहुत लोगों को तो इस बात का श्रेय मिलता था कि इनकी स्मृति बड़ी अच्छी है। लेकिन अब जैसे-जैसे समय बीत रहा है, तो स्मृति का काम तो सारा मैकेनिकल हो गया है। आपको स्मृति रखनी ही क्यूँ है?

श्रोता: स्मृति के लिए बादाम खिला देते थे कि स्ट्रोंग हो जाए।

वक्ता: हाँ। और उन सब का बड़ा ऑब्जेक्टिव ही यही होता था कि इससे याद्दाश्त तेज़ होगी और अब ज़माना वो आ गया है कि याद्दाश्त की कोई कीमत ही नहीं रही। आपको जो चाहिए गूगल दे देगा, आपको जो चाहिए आप फ़ोन में फ़ीड कर लीजिए। आपको याद रखना है कि इतने बजे मीटिंग है, तो रिमाइंडर डाल दीजिए। तो मेमोरी की कीमत, धीरे-धीरे कम होती जा रही है। और समय ऐसा आएगा जब मेमोरी की कीमत बहुत ही कम हो जाएगी और बड़ा अच्छा समय होगा वो।

श्रोता: ऐसा कह सकते हैं कि नॉलेज जो है, वो बंद कर देती है कि ‘‘मैं जानता हूँ’’ तो आगे का ओपननेस नहीं होता है। क्या है मचीज़ मेरे सामने, वो देखने के लिए कुछ नहीं रहता है। लर्निंग में ओपेननेस होता है।

श्रोता: फिर तो नॉलेज बोल नहीं सकता है न? जब आप नॉलेज को सीमित कर दिए हैं कि नॉलेज मतलब सीमा, मेरे ख़याल से वो कहीं भी नॉलेज के नज़दीक नहीं है।

वक्ता: पर आप एक बताइए, आप और नॉलेज का करोगे क्या? नॉलेज का अर्थ ही है कि वो सीमित हो गया न मामला! तो अब अगर आपको पता है लर्निंग का अर्थ, पता है का मतलब समझते हैं? पता है माने, फुल स्टॉप।

श्रोता: यही तो मैं कह रहा हूँ, फुल स्टॉप नहीं लगना चाहिए।

वक्ता: पर नॉलेज तो लगा ही देगा। नॉलेज तो फुल स्टॉप लगा ही देगा। जब जान ही गए तो अब लग गया न फुल स्टॉप? लगना चाहिए नहीं, पर वो लगा देगा तो इसीलिए ये भाव हमेशा बना रहे कि मैं जानने के क्षेत्र में नहीं घूमता हूँ। ‘’मैं नॉलेज के घर में नहीं रहता हूँ। एक कॉलोनी है नॉलेज की, पर मैं वहाँ नहीं रहता हूँ। मैं वहाँ जा सकता हूँ अगर मैं चाहूँ तो, पर मैं वहाँ नहीं रहता।‘’ तो कहाँ रहता हूँ मैं? ‘’मैं लर्निंग में रहता हूँ, मैं आश्चर्य में रहता हूँ, मैं सहजता में रहता हूँ, आई लिव इन जस्ट नथिंग। ‘’ एक तरीके के खालीपन में। नॉलेज एक कॉलोनी है जिसमें बहुत घनी आबादी है। नॉलेज आपके एक अपार्टमेंट की तरह है। नॉलेज जो है न, वो ऐसा है जैसे एक अपार्टमेंट है जिसमें 2 बी.एच.के के कितने? 80 घर हैं। और होंगे, 200 घर हैं। वो एक्सेसिबल है, मैं जब चाहूँ उसमें जा सकता हूँ पर मैं उसमें रहता नहीं, मैं रहता कहाँ हूँ? मैं बिलकुल ख़ाली मैदान में रहता हूँ, जहाँ कुछ नहीं है। बस खुला आसमान है और ज़मीन है।

श्रोता: और देखा जाए तो जो प्रक्रिया होती है, प्रोसेस टू गेन नॉलेज , वो वास्तव में लर्निंग के द्वारा ही आ रहा है। अगर आप खाली मैदान पर नहीं खड़े हैं, तो आप वो बिल्डिंग कभी खड़ी ही नहीं कर पाएँगे।

वक्ता: तुम अगर ये सोच रहे हो कि जानकारी वर्तमान से अतीत में जाती है और लर्निंग अतीत में जाकर नॉलेज बन जाती है तो गड़बड़ कर रहे हो।

श्रोता: मुझे भी ऐसा ही लगता था, तभी मैं एक्सपीरिएंस के सवाल बार-बार उठाती थी।

वक्ता: नहीं, गलत सोच रहे हो।

वक्ता: इन्होनें ये कहा कि अभी की लर्निंग कल का नॉलेज बन जाएगी। इन्होनें ये कहा कि आज जो आपकी लर्निंग है, जब कल का सवेरा आएगा, तो वो आपका नॉलेज बन चुकी होगी। नहीं, बात ये नहीं है। लर्निंग नॉलेज में तबदील नहीं होती है, स्मृति नॉलेज में तबदील होती है। लर्निंग बिलकुल दूसरी चीज़ है, वो शब्दों में बयान नहीं होती। लर्निंग का मतलब है होना। लर्निंग का मतलब ये नहीं है कि मैं जानकारी इकट्ठा कर रहा हूँ। देखिये, विद्यालय में जब कहा जाता था न कि ही इज़ लर्निंग या जब हम बोलते हैं कि ही इज़ लर्निंग फ्रेंच या ही इज़ लर्निंग संस्कृत, तो हम लर्निंग शब्द का बड़ा दुरुपयोग करते हैं। वी डू नॉट लर्न।

श्रोता: प्रतिभा भी एक तरह की दुरुपयोग लर्निंग ही है।

वक्ता: हाँ, ये जब आप कहते हो न कि आई एम लर्निंग जर्मन, जर्मन लैंग्वेज, वो लर्निंग नहीं है। दैट इज़ जस्ट एक्युमुलेशन। .

आप किसी भाषा के बारे में कुछ तथ्य संचित कर रहे हैं, और आप उन्हें अपनी स्मृति के सुपुर्द कर रहे हैं। वो लर्निंग नहीं है। लर्निंग इससे पूर्णतया अलग चीज़ है। लर्निंग इज़ अ पर्टिकुलर प्रेसेंस, लर्निंग इज़ बीइंग, लर्निंग कभी नॉलेज नहीं बनेगी।

श्रो ता: लर्निंग मेमोरी के क्षेत्र के बाहर की एक्टिविटी है, पर क्या कभी वो मेमोरी के क्षेत्र में जाती भी है?

वक्ता: नहीं, बिलकुल नहीं। आप ऐसे समझ लो, आप इस सेशन में बैठे हो न? जो वास्तविक लर्निंग है वो आपके माइंड को बाय-पास करके हो रही है। मैंने कहा न कि एक 2-3 बी.एच.के का अपार्टमेंट है और एक ख़ाली मैदान है। उस ख़ाली मैदान की ओर जाने वाले सारे रास्ते उस बिल्डिंग को बाय-पास करके जाते हैं। अभी आपकी जो भी लर्निंग हो रही है, कृपया करके ये न समझें कि वो माइंड के ज़रिए हो रही है। जो वास्तविक लर्निंग हो रही है वो माइंड को बाय-पास करके हो रही है और वो बड़ी अद्भुत घटना है कि आप यहाँ आएँ, और आप यहाँ बैठे और आपने बड़ी ज़ोर का ध्यान लगाया इसलिए आप लर्निंग में हो, ऐसा कुछ भी नहीं है। जो वास्तविक घटना घट रही है उसका मन से कुछ लेना-देना ही नहीं है। मेमोरी में क्या जा रहे हैं?

श्रोता: सूचना।

श्रोता: शब्द।

वक्ता : ये जो इन्द्रीयगत इनपुट है न, ये जो आ रहा है इसकी कोई कीमत ही नहीं है। और जो लोग इसीलिए — फिर से कह रहा हूँ — इस तक सीमित रह जाएँगे भले ही उन्होंने इनको कितनी ही बारीकी से पकड़ा हो, पर जो लोग इस तक सीमित रह जाते हैं बड़े, नॉलेजेबल हो जाते हैं और उनको लर्निंग कुछ भी नहीं मिलती। और ये बड़ी ही सूक्ष्म बात है। आप यहाँ से उठ कर जाओ, और आपका मन भले ही आपसे जोर-जोर से ये कह रहा हो कि आज तो भाई साहब एक-एक शब्द मैंने पकड़ लिया, आज तो बड़ी ज़ोर की इन्फार्मेशन कलेक्ट करी है, आज तो खूब नोट्स बना लिए, लेकिन उसमें आपकी लर्निंग की बड़ी संभावना है कि कुछ भी न हुई हो। और ये भी हो सकता है कि किसी दिन आप यहाँ से उठो तो मन कुलबुला रहा हो, मन कह रहा हो यार, क्या फ़ालतू है, मैं तो चिढ़ गया, मेरे को तो कुछ समझ में भी नहीं आया और जो बातें थी वो बड़ी असंगत थी, उनमें विरोधाभास था! और लर्निंग खूब जम के हुई है। क्यूँकी लर्निंग माइंड को हमेशा बाय-पास करके होती है।

श्रोता: नॉलेज इज़ गेटिंग एंड लर्निंग इज़ लूसिंग । वो जो इर्रिटेशन हो रही है कि क्या बकवास थी और ये सब कुछ छूटा है जिसकी वजह से..

वक्ता: नॉलेज का तात्पर्य ही ये है कि, कि है ही नॉलेज को प्राप्त करने के लिए। कृपया समझिएगा इसको। लर्निंग का तात्पर्य है कि अब मैं और नॉलेज एक हैं, तो वो लिमिटेड वेसल जो नॉलेज इकट्ठा करती है वो अब मैं नहीं हूँ। नॉलेज क्या करता है कि मैं हूँ, अहंकार है और वो अहंकार क्या कर रहा है? वो अहंकार इकट्ठा कर रहा है। ये नॉलेज है। तो आप यहाँ बैठे हो, और मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसको आप अपनी आइडेंटिटी के अनुसार, अपने सन्दर्भों में सुन रहे हो, ये आपने नॉलेज इकट्ठा कर लिया और यहाँ बैठने का दूसरा तरीका यह है कि आप भूल ही गए कि आप हो कौन। आप भूल ही गए कि आप यहाँ पर इन्फार्मेशन इकट्ठी करने आओ, आप टाइम को भी भूल गए और आप बाकी सारी चीज़ें भूल गए तब जो होगा वो लर्निंग होगी।

श्रोता: तो इसका मतलब हम यह कह सकते हैं कि डिराइविंग सम सॉर्ट ऑफ़ सेंस फ्रॉम नॉलेज इस लर्निंग।

वक्ता: नहीं, बिलकुल नहीं । क्यूँकी जिसको आप सेंस बोल रहे हो वो अर्थ ही है, और अर्थ का मतलब यही होता है कि आपने भाषा बदल दी।

श्रोता: लर्निंग और नॉलेज पर अष्टावक्र का एक वाक्य है, जो बहुत ही ज़रूरी है। उनके पिताजी बहुत ही बड़े विद्वान थे और वो सुबह उठ के वेदों का पाठ किया करते थे तो फिर वेद याद करके रिपीट किए जाते थे तो उस पर अष्टावक्र ने अपने पिता से कहा था कि जो आप मन्त्र पढ़ते हैं, इनकी जो अग्नि थी वो तो कब की समाप्त हो चुकी है, अब राख़ बची हुई है, उसको क्या दोहरा रहे हैं? मतलब जब इनकी रचना हुई तब तो इनका महत्त्व था, इनका सेंस था लेकिन बार-बार उसी पीढ़ियों से रिपीटिशन होते-होते …

वक्ता: नहीं। रचना के समय महत्त्व नहीं था, सेंस नहीं था वो जो रचना का क्षण था उस समय पर लर्निंग से निकले थे ये। इसीलिए

वेद की भाषा महत्वपूर्ण नहीं है, वेद का जन्म महत्वपूर्ण है।

नहीं समझ रहे बात को?

श्रोता: तो फिर वो हमारे लिए क्यूँ महत्वपूर्ण हैं?

वक्ता: वेद ने तो नहीं कहा मैं महत्व्पूर्ण हूँ।

श्रोता: नहीं हैं, लेकिन कहते तो हैं हम।

वक्ता: क्यूँ पढ़ते हैं, मत पढ़िए। वेद का मज़ा तभी है जब वेद आपको एक नए वेद को रचने में मदद कर दे। अगर वेद के सामने आने से इतना ही हुआ है कि आप उसको रटते रह गए हैं, तो फ़ालतू हैं वेद।

असली उपनिषद् वो है जो आपसे एक नया उपनिषद् लिखवा दे।

श्रोता: तो ये वही बात हो गई न कि लर्निंग , कि जब हम वेद को पढेंगे और लर्निंग होगी तो हम एक नए वेद की रचना करेंगे जैसे …

वक्ता: आप कोई रचना नहीं करोगे। आप जब उपनिषद् को पढ़ोगे तो यदि आप उपनिषद् के साथ एक हो पाए तो फिर जैसे ही आपका मुँह खुलेगा और आप जो भी बोलोगे वो एक नया उपनिषद् होगा। उपनिषद् आपके सामने है और आप उपनिषद् में तल्लीन हो गए हो, आप एक हो गए हो उपनिषद् से, बिलकुल एक हो गए हो। उस क्षण में आपके मुँह से जो भी निकलेगा वो उपनिषद् है, ये अर्थ है लर्निंग का।

श्रोता: सर, जब हम कोई भी किताब पढ़ते हैं तो हम वही समझते हैं, मतलब जितनी मेरी सीमितता है, मेरी आइडेंटिटी है तो उस समय तो हम कुछ समझ ही नहीं पाते।

वक्ता: आप और कुछ कर भी नहीं सकते। आप और कुछ कर नहीं सकते इसी लिए लर्निंग समझने का नाम नहीं है।

श्रोता: इसीलिए लर्निंग हो भी नहीं पा रही है।

वक्ता: लर्निंग आपके करने से होती भी नहीं है, आप तो इतना ही कर सकते हो कि जो पढ़ रहे हो उसमें डूब जाओ। लर्निंग खुद होती है आपके करने की चीज़ नहीं है।

श्रोता: और जहाँ हम कोशिश करने लगते हैं, वहाँ फिर होती भी नहीं है।

वक्ता: कोशिश करने का अर्थ है, स्वार्थ है। आप किस चीज़ की कोशिश करते हो? कभी भी आप किसी चीज़ की कोशिश करोगे? जहाँ आपको कुछ अपना फ़ायदा दिख रहा होगा। अब मिटने में तो कभी किसी को कोई फ़ायदा दिखेगा नहीं न! इसीलिए आप कभी ऐसी कोशिश करोगे भी नहीं कि जो आपको लर्निंग की ओर ले जाए। कोई भी घटना जब घट रही होती है तो नॉलेज तो इकट्ठा हो ही रहा होता है। लेकिन उससे बिलकुल हट के एक दूसरी प्रक्रिया भी हो सकती है, उसका नाम लर्निंग है। और दोनों को कभी भी कंफ्यूज़ नहीं करना चाहिए।

श्रोता: तो क्या लर्निंग क्रियान्वित होना चाहिए, सर?

वक्ता: सारा एक्सीक्युशन का अर्थ है, कर्म। सारा कर्म यदि लर्निंग से निकलेगा तो जैसा भी कर्म होगा वो, उसमें वो लर्निंग अपने-आप को दिखाएगी ही। तो एक्सीक्युटेबल का क्या अर्थ है आपका? एक्सीक्युशन माने कर्म और एक्सीक्युशन जब भी होगा, जैसा भी होगा आप चाहो न चाहो उसमें उस लर्निंग की छाप रहेगी ही रहेगी। उसमें फिर आपको तय नहीं करना पड़ेगा कि ‘’जो मैंने सीखा, अब मैं ज़रा उसको व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल भी तो कर के देखूँ।‘’ कह रहे हो तुमने सीख ही लिया है या, इसको तुम प्रैक्टिकली दिखाओगे भी। डेमोंसट्रेट नहीं करना होगा, वो लर्निंग फूटती है फिर।

श्रोता: तो फिर हम ये कह सकते हैं सर फिर कि, लर्निंग इज़ अ चेंज इन बिहेवियर ?

वक्ता: चेंज इन बिहेवियर तो हज़ार तरीकों से आ सकता है।

श्रोता: जैसे कि कहीं पर एक साइन बोर्ड है जिस पर लिखा हुआ है थूकना मना है और तब भी आप वहाँ पर थूकते करते हैं। आपको नहीं लगता वहाँ पर वो कोई लर्निंग है?

वक्ता : नहीं, समझिएगा इसको। कंडीशनिंग इज़ अ चेंज इन बिहेवियर। आपने कहा *लर्निंग इज़ अ चेंज इन बिहेवियर*। लर्निंग में आचरण करने वाला ही नहीं रहता। अगर आप कोई ख़ास बदलाव चाहते हैं आचरण में तो आपको लोगों को अच्छे से संस्कारित करना होगा। आप अगर चाहते हैं कि सब आपके पैर छुएँ, तो सबको कंडीशन कर दीजिए पैर छूने के लिए, वो आपके पैर छू लेंगे। लर्निंग का मतलब है कि वो जिसको कंडीशन किया जा सकता था, उसका विघलन हो गया है। तो व्यवहार में बदलाव बिलकुल भी लर्निंग नहीं है, वो कंडीशनिंग है। लर्निंग का मतलब है बिहेव करने के लिए कोई है ही नहीं, बस स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। बचा ही कौन है बर्ताव करने वाला? और तुम उसे सिखा भी क्या पाओगे अब?

ये जो आप बोल रहे हो न ये साइकोलॉजी की दी हुई डेफिनिशन है। आप साइकोलॉजी बैकग्राउंड से तो नहीं हो? ये साइकोलॉजी की बड़ी स्टैण्डर्ड परिभाषा है कि लर्निंग इज़ चेंज इन बिहेवियर। वहाँ पर तो चलता भी यही है कि पहले से ही तय कर दिया जाता है कि लर्निंग आउटपुट क्या हैं इसके। आप कुछ करने जा रहे हो और वो बड़ी पागलपने की बात है। जब भी आपने आउटपुट पहले से ही तय कर दिया तो आप कंडीशन करने जा रहे हो किसी को। लर्निंग आपके बाँधने की चीज़ नहीं है कि आप तय करोगे। लर्निंग हुई नहीं कि उसके बाद कोई क्या करेगा, इसको कोई और नहीं निर्धारित कर सकता। लर्निंग महामुक्ति है। लर्निंग का मतलब ये थोड़ी है कि अब मेरे कुत्ते ने लर्न कर लिया है न्यूज़ पेपर लाना उस पेपर बेचने वाले से।

श्रोता: वो तो ट्रेनिंग हो गई।

वक्ता: हाँ, वो ट्रेनिंग है एक प्रकार की। वो लर्निंग नहीं है, कंडीशनिंग है।

श्रोता: तो जैसे एक कंपनी में ट्रेनिंग हुई। के.एफ़.सी में ट्रेनिंग हुई और ट्रेनिंग का उन्होंने पहले से आउटपुट बना लिया कि ये होने वाला है और ट्रेनिंग है लाइफ़ एजुकेशन के ऊपर तो उनका आउटपुट है कि इस ट्रेनिंग के बाद हमारे 20% आउटपुट बढ़ जाएँगे, पर उसके बाद उन्होंने कंपनी ही बंद कर दी।

वक्ता: लर्निंग बड़ी ही अप्रत्याशित चीज़ है। वो क्या कर देगी आप नहीं जानते।

श्रोता: चेंज कर देगी कुछ।

वक्ता: कुछ तो बदलेगा पर आपके हिसाब से नहीं बदलेगा।

श्रोता: कंडीशनिंग में हमारे…?

वक्ता: जो होगा, आपके हिसाब से होगा। जब भी मामला आपके हिसाब से चले समझ लीजिए कंडीशनिंग है। और जहाँ पर भी सब उल्टा-पुल्टा हो रहा हो, केऔटिक सा लग रहा हो समझ लीजिये कुछ और ही हो रहा है। नाउ द गेम इज़ प्लेयिंग यू। तब समझिए कि अब मज़ा आ रहा है, ज़िन्दगी में।

श्रोता: तो ये कह सकते हैं क्या कि कंडीशनिंग आचरण को बदलती है और लर्निंग में अंतस का रूपांतरण हो जाता है?

वक्ता: नहीं, अंतस का रूपांतरण नहीं होता। अंतस का रूप ही नहीं होता तो रूपांतरण कहाँ से हो जाएगा? अंतस का कोई रूप होता है क्या? ये पहली बात तुमने बिलकुल ठीक बोली कि आचरण बदले वो कंडीशनिंग है और जहाँ पर अंतस ही प्रकट हो जाए, वो लर्निंग है।

श्रोता: इसको ऐसे भी कह सकते हैं कि नॉलेज में मन में बदलाव होते हैं, और लर्निंग में मन ही बदलता है।

वक्ता: मन ही बदलता नहीं है, मन घुलता है। कंडीशनिंग में मन बदलता है, लर्निंग में मन घुलता है। या ये कह लो कि मन डूबता है, घुलने का अर्थ ये है कि मन डूबता है, तल्लीन हो जाता है।

श्रोता: हिंदी में क्या शब्द होगा, लर्निंग के सबसे पास? क्यूँकी हिंदी में तो याद करना होता है, और याद तो..

वक्ता: बोध, जानना, बोध।

श्रोता: और नॉलेज को ज्ञान?

वक्ता: हाँ।

‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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