इसके बिना जीने में क्या मज़ा! || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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इसके बिना जीने में क्या मज़ा! || नीम लड्डू

सही लक्ष्य की खातिर जियो। दिल में एक सही उद्वेश्य होना चाहिए। उसके बाद किसी पॉजिटिव थिंकिंग की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। ये चीज़ इतनी ज़बरदस्त मिल गई है, प्यार हो गया है इससे, अब मजबूर हैं इसके सामने। अब चाहें भी पीछे हटना तो हट नहीं सकते। जब ऐसा हो जाता है न योद्धा कि कहे, “अब चाहूँ भी तब भी पीछे नहीं हट पाऊँगा। ये लड़ाई बड़ी शानदार है! ये लड़ाई तो लड़नी-ही-लड़नी है।“ तब समझ लीजिए कि अब ये लड़ेगा लड़ेगा और जीत की परवाह किए बिना लड़ेगा, और जान की परवाह किए बिना लड़ेगा। पॉजिटिव नेगेटिव बहुत बच्चों वाली बातें हो जाती हैं। ओछी बातें हो जाती हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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