बहुत सारी लड़कियों को शादी का आकर्षण इसलिए रहता है कि, ‘उसके बाद किसी की आमदनी मेरी हो जाएगी। पति घर लाएगा और मेरे हाथ मैं तनख़्वाह रख देगा।‘ क्षमा माँगते हुए कह रहा हूँ, ये वैश्यावृति है।
बड़ी साधारण योग्यता की कोई लड़की अगर पा जाए कोई ऊँचे पद का पति तो उसको भी यही लगता है और उसके आसपास वालों को भी यही लगता है कि इसकी तो ज़िंदगी बन गई न। “इतना कमाने के लिए तो पति को बड़ी मेहनत करनी पड़ी, बड़ी पढ़ाई करनी पड़ी, बड़ा व्यवसाय जमाना पड़ा और मुझे सिर्फ़ विवाह करना पड़ा! जो कुछ पति ने हासिल किया इतनी मेहनत कर के, वो मैंने हासिल कर लिया बस विवाह कर के।“ सब स्त्रियों, सब औरतों में ऐसे विचार नहीं होते; कोई मेरी बात को अन्यथा ना ले। पर समाज में और स्त्रियों के बड़े वर्ग में अभी भी ऐसी मान्यता है इसलिए मजबूर होकर मुझे इस बात को उद्घाटित करना पड़ रहा है।