प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। आपको तीन-चार साल से सुन रहा हूँ लेकिन सत्र में पहली बार आया हूँ। मेरा सवाल है जो है कि जब मैं आसपास देखता हूँ तो वहाँ पर समस्याएँ हैं, उनको मैं अपनी समझ से दो वर्गों में बाँटता हूँ। एक वर्ग है जैसे धार्मिक अन्धविश्वास, रीति-रिवाज़, कुरीतियाँ इत्यादि। वो ऐसी समस्याएँ हैं जिसे कोई ऊपर ऊपर से देखकर कह देगा कि ये धर्म से सम्बन्धित हैं। फिर एक दूसरा वर्ग आता है जिसमें निरपेक्ष समस्याएँ आती हैं जैसे कि सामाजिक अपराध, मानसिक बीमारियाँ, आत्महत्या की समस्या आदि। वो ऐसी हैं कि उनको कोई ऊपर ऊपर से नहीं कहेगा कि धर्म या अध्यात्म से सम्बन्धित हैं।
अध्यात्म का सम्बन्ध मानव मन से जुड़ी समस्याओं से है ये समझ आता है। अशिक्षा, गरीबी, स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएँ, यातायात की समस्याएँ, इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्याएँ आदि का धर्म से क्या लेना-देना है? गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए अध्यात्म किस तरह से सहायक है? कृपया समझाएँ।
आचार्य प्रशांत: दुनिया का कोई प्रपंच नहीं है, जिसका समाधान अध्यात्म नहीं है। दुनिया की हर समस्या तुम किसी वर्ग, उपवर्ग में रखो, अध्यात्म के ह्रास की वजह से ही होती है। कोई भी समस्या हो, तुम बोल दो कि सामाजिक समस्या है, तुमने कहा, ’सेक्युलर समस्या है, सब समस्याएँ सिर्फ़ इसलिए होती हैं, क्योंकि वास्तविक धर्म अनुपस्थित होता है।’
धर्म सब चीज़ों में हैं, धर्म तो वास्तव में सेकुलरिज़्म में भी है। अगर सेकुलरिज़्म का अर्थ है पन्थनिरपेक्षता, तो वो कहता है कि सत्य आवश्यक है, उस तक पहुँचना है, चाहे जो रास्ता मिले। मैं किसी एक रास्ते के प्रति विशेष पूर्वाग्रह नहीं रखूँगा।
तो अगर वास्तव में समझा जाए, तो विशुद्ध सेकुलरिज़्म का भी असली अर्थ धार्मिकता ही है। अगर कोई सच्चा सेक्युलर होगा, तो वो बहुत धार्मिक आदमी होगा और जो धार्मिक आदमी होगा, वही सेक्युलर हो सकता है।
सारी समस्याएँ हमारे लिए ही तो हैं न, सारी ही समस्याएँ हमारे द्वारा निर्मित हैं, कोई भी व्यक्ति कब समस्या निर्मित करता है? जब वह बेहोश होता हे। अध्यात्म बेहोशी से होश में आने का विज्ञान है। कैसे कह रहे हो तुम कि सड़क पर जो ट्रैफ़िक होता है, उसका धर्म से कोई लेना देना नहीं? कैसे नहीं भाई? होशमन्द आदमी गाड़ी वैसे ही चलाएगा जैसे बेहोश आदमी चलाता है, नशेड़ी चलाता है? जल्दी बोलो। तो फिर धार्मिक आदमी का ट्रैफ़िक से अलग सम्बन्ध होगा न, बेहोश आदमी की अपेक्षा।
सड़क कहाँ बनानी है? कितनी चौड़ी रखनी है, ये निर्धारण कोई अधिकारी करता है, कोई अथॉरिटी। वो बेहोश है, तो एक निर्णय लेगा, वो होश में है, तो दूसरा निर्णय लेगा। ये जो तुम्हें तमाम इंफ्रास्ट्रक्चरल बोटल नेक्स दिखतें हैं, कि जहाँ पर सिक्स लेन होना चाहिए, वहाँ टू लेन है। जहाँ सड़क होनी ही नहीं चाहिए, वहाँ सड़क बना दी। ये सब सड़कें आसमान से तो नहीं गिरी। किसी का निर्णय था कि ये सब करो। जिसका निर्णय था, अगर वो वास्तव में आध्यात्मिक आदमी होता, तो क्या इतने निम्न कोटि के निर्णय लेता? बोलो।
क्या आपकी कोई भी ऐसी समस्या है जो आपकी भागीदारी के बिना बढ़ आयी? हमारी समस्याओं में हमारा पूरा योगदान रहता है न। अधिकांश तो वो हमारा निर्माण ही होती हैं। हम समस्याएँ क्यों निर्मित करतें हैं? क्योंकि हम अधार्मिक हैं, क्योंकि हमारी चेतना सोयी हुई है।
इसलिए अध्यात्म कोई क्षेत्र नहीं है। आपने कहा कि क्या अध्यात्म का क्षेत्र समस्याओं को सुलझाने में सहायक हो सकता है। अध्यात्म सब क्षेत्रों का आधार है। आप किसी भी क्षेत्र में हों, आपको आध्यात्मिक होना पड़ेगा। नहीं तो आप जिस भी क्षेत्र में हैं, आप वहीं पर मुँह की खाएँगे। आप अच्छे फुटबॉलर हो सकतें हैं क्या ध्यान के बिना? आप अच्छे सलामी बल्लेबाज़ हो सकते हैं धैर्य के बिना? आप ओपनिंग बैट्समैन हो सकते हैं साउथ अफ़्रीका में अगर आपके पास धैर्य की कमी है? बोलिए।
धैर्य आपको विज्ञान सिखाएगा क्या? जितने भी लोगों ने विज्ञान पढ़ा हो, वो बताएँ उस में ‘पेशंश’ नाम का कोई चैप्टर था? ये आपको कौन बताएगा कि अहंकार अधीरा होता है, अहंकार में धीरज की कमी होती है और इसलिए कमी होती है, और अधैर्य के ये घातक परिणाम होते हैं, तो इसलिए धीरज धरो।
ये बात न विज्ञान बताएगा, न संविधान बताएगा, न कोई प्रयोगशाला बताएगी। आपके अन्तर्जगत के बारे में तो आपको अध्यात्म ही बताएगा न। अगर आपको अन्तर जगत का नहीं पता, तो आप न वैज्ञानिक बन सकते है, न क्रिकेटर। एक वैज्ञानिक को , जो कि प्योर साइंटिफिक रिसर्च में है, दूसरे वैज्ञानिक से ईर्ष्या हो गयी। दोनों एक ही प्रयोगशाला में काम करते थे। वैज्ञानिकों को भी आपस मे घोर ईर्ष्या होती है। अब ‘ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए’, ये बात उन्हें अपनी रिसर्च से पता चलेगी? ये किसी साइंटिफिक जर्नल में छपेगी क्या बात, ‘डोंट बी जैलस’ (ईर्ष्यालु मत बनो)? वो कैसे अपनी ईर्ष्या पर क़ाबू करेगा? है तो वैज्ञानिक, हो सकता है नासा का वैज्ञानिक हो, पर ईर्ष्या उठ रही हे उसमें, वो भी अपने साथी वैज्ञानिक के प्रति। ये उसे कौन बताएगा कि ईर्ष्या क्या चीज़ है? अध्यात्म ही तो बताएगा न।
अध्यात्म हर क्षेत्र का आधार है। अध्यात्म ही बताएगा, किस क्षेत्र में किस तरह का शोध होना चाहिए। नहीं तो शोध तो आप वैसा भी कर सकते हो जिससे कोविड-19 पैदा हो गया। हमारे ही द्वारा की गयी रिसर्च का परिणाम है कोविड-19। आध्यात्मिक नहीं हो आप, तो इसी तरह के रिसर्च करोगे।
अध्यात्म को क्या समझते हो कि आपके पास पाँच चीज़ें हैं, और पाँच चीज़ों में से एक चीज़ अध्यात्म है? तो वो चार चीज़ें जहाँ उपयोगी होती हों, उनको वहाँ लगा दो, अध्यात्म को भी एक जगह देकर फिट कर दो और कह दो, 'देखो मैं तो स्मार्ट हूँ, देखो मैं हर तरह की कला जानता हूँ'। जब कुछ काम नहीं करता, तो मैं एक श्लोक सुना देता हूँ।’
तुम्हारी साँस-साँस का आधार है अध्यात्म। दुनियाभर में तुम कहीं भी कोई समस्या देख रहे हो, उसकी एक ही वजह है, अध्यात्म का पतन। चाहे वो क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) हो, चाइल्ड ट्रैफ़िकिंग (बाल तस्करी) हो, बायोडायवर्सिटी लॉस (जैव-विविधता का ह्रास), एक्सटिंग्शन ऑफ़ स्पीशीज़ (प्रजातियों का विलुप्त होना), तुम समस्याओं का नाम बताओ न। आतंकवाद, बिगट्री (कट्टरता), मानसिक समस्याएँ, आर्थिक विषमताएँ, आण्विक ख़तरे हर समस्या के मूल में तो इंसान बैठा है न, कि नहीं। या हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है कि कहीं कोई एस्टेरॉयड आकर पृथ्वी को तबाह न कर दे? ये हमारी सबसे बड़ी समस्या है? है क्या?
आपकी जो बड़ी बड़ी समस्याएँ हैं, सब आपने बनायी हैं। आपने बनायी हैं, क्योंकि आप बेहोश हो, आप बेहोश हो क्योंकि अध्यात्म नहीं है आपके पास। जिसको आप दुनिया का सबसे विकसित मुल्क कहते हो, उसी के पास दुनिया की सबसे बड़ी न्यूक्लियर स्टॉक पाइल (परमाणु भंडार) है। ये है आपके विकास की अवधारणा ।
बेहोश आदमी को अगर विज्ञान भी मिलेगा, तो वह उस विज्ञान से विध्वंस की ही सामग्री बनाएगा। जिसको आप विकास कहते हो, वही क्लाइमेट चेंज के लिए सबसे ज़्यादा उत्तरदायी है। और आप पगलाये रहते हो, ‘विकास चाहिए, विकास चाहिए।’ साथ ही ये भी कहते हो, ‘नहीं, देखो पृथ्वी तबाह हो रही है, बचाना है, बहुत जलदी ख़त्म हो जाएगी, दस ही बीस साल बचे हैं।' और साथ ही ये भी कहते हो' नहीं-नहीं, हमें भोगने के लिए और माल चाहिए ना'।
कैसे कर लोगे? भोगने का माल भी चाहिए पृथ्वी का विनाश भी रोकना है। अध्यात्म के अलावा तुम्हें कौन बताएगा कि भोग तुम्हें वो नहीं दे सकता, जो तुम चाहते हो। कि भोग-भोगकर आनन्द और मुक्ति नहीं पाओगे। अध्यात्म के अलावा तुम्हें कौन बताएगा ये, बोलो?
अध्यात्म नहीं होगा, तो तुम क्लाइमेट चेंज को कैसे रोक पाओगे? तुम्हें समझ में नहीं आता कि क्योटो, रियो दि जनैरियो से लेकर अभी तक सारी क्लाइमेट चेंज टॉक्स (जलवायु-परिवर्तन वार्तालाप) विफल क्यों होती हैं? तुम क्या सोच रहे हो ये अन्तर्राष्ट्रीय मनमुटाव की बात है? कोई मनमुटाव नहीं है। वहाँ जितने नेता एकत्रित होतें हैं, सबमें बराबर की मूक सहमति है, ‘हमें कुछ नहीं करना’। क्यों कुछ नहीं करना? क्योंकि जो नेता वहाँ इकट्ठा हो रहें हैं, सब जनतान्त्रिक विश्व से आ रहें हैं, उन्हें वही करना होगा जो उनकी जनता चाहती है। और जनता के पास अध्यात्म नहीं है, तो जनता सिर्फ़ भोग चाहती है। जनता जब भोग चाहती है तो जनता के नेता भोग पर अंकुश कैसे लगा सकते हैं? तो वो सब वहाँ खानापूर्ति के लिए इकट्ठा हो जाते हैं, कभी पेरिस में, कभी कोपनहेगन में। और वहाँ जा के चाय-वाय पी लेते हैं और फ़ोटो खिंचा लेते हैं और कहतें हैं कि देखो हमने अपने लिए नये लक्ष्य निर्धारित करे हैं। पहले हमारा लक्ष्य था, आज से तीस साल पहले कि औसत ग्लोबल टेंपरेचर , औसत वैश्विक तापमान एक डिग्री से ज़्यादा नहीं बढ़ना चाहिए'। अब हम कह रहे है,' देखो ढाई डिग्री तक भी चलेगा'। बस कुछ अरब जानवर मरेंगे, क्या फ़र्क पड़ता है? कुछ करोड़ गरीब बेघर होंगें ,क्या फ़र्क पड़ता है? ‘ढाई डिग्री, ढाई डिग्री।’ चाय पी लेतें हैं।
वहाँ पहले ही एक मूक सहमति हो चुकी है, हमें किसी को कुछ नहीं करना। क्योंकि अगर पृथ्वी का विनाश रोकना है, तो लोगों में भोगवादिता को रोकना पड़ेगा। लोगों में भोगवादिता रोकने के लिए अध्यात्म चाहिए, आध्यात्मिक लोग है नहीं और आध्यात्मिक लोगों को हम बनाएँगे भी नहीं। क्योंकि लोग आध्यात्मिक हो गये, तो ऐसे नेता थोड़े ही चुनेंगे फिर।
नदियाँ प्रदूषित हैं, इसकी वजह अध्यात्म की कमी नहीं है क्या? बोलिए। भ्रूण हत्याएँ होती हैं, बलात्कार होतें हैं, इसकी वजह अध्यात्म की कमी नहीं है क्या? सच्ची शुद्ध धार्मिकता के अलावा कुछ नहीं है जो किसी भी समस्या का हल कर सके। इसी को सन्तों ने कहा है “राम नाम निज औषधि।” एक वो नाम है जिससे सब बीमारियों का हल हो जाता है। नाम बहुत है। तो बार-बार सन्तों ने नाम के गुण गाये हैं। कहा, ‘उस एक चीज़ से सब हो जाता है।’
“एक साधे सब सधे”
और वो एक चीज़ नहीं है। तो तुम बाकी चीज़ें लगाते रह जाओ, कुछ लाभ नहीं। आप कर लिजिए एक के बाद एक कॉन्फ्रेंस।
प्रदूषण रोकने के लिए आप कह दिजिए ग्रीन टेक्नोलॉजिज़’ लेकर आ रहें हैं, इलेक्ट्रिक व्हीकल ले कर आ रहें हैं। ले आओ इलेक्ट्रिक व्हीकल , सब को भोगने हैं। इतना लोहा कहाँ से लाओगे? और वो जो लोहा बनता है, जानते हो न स्टील प्रोडक्शन कितना ज़्यादा कार्बन एमिशन (उत्सर्जन) करता है। और वो जो उसमें इलेक्ट्रिक बैटरिज़ लगती हैं, वो वेस्ट डिस्पोजल (अपशिष्ट निपटान) कहाँ करोगे? ये तुम्हारी ‘ग्रीन टेक्नोलॉजिज़’ ग्रीन है कहाँ? बताओ तो। और उसको चार्ज तो करना पड़ेगा, चार्ज करने के लिए क्या चाहिए? इलेक्ट्रिसिटी। और इलेक्ट्रिसिटी कैसे बनाते हो?
तो किस को बेवकूफ़ बना रहे हो कि ‘टेक्नोलॉजी इज़ द सॉल्यूशन टू ग्लोबल प्रॉब्लम्स’ (वैश्विक समस्याओं का समाधान तकनीक है)। टेक्नोलॉजी से तुम्हारी कोई समस्या हल नहीं होने वाली। जो तुम कहते हो न कि देखो हम माडर्न लोग है, टेक्नोलॉजीकल सॉल्यूशन लेकर आएँगें'। देयर कैन ओनली बी अ स्परिचुअल सॉल्यूशन टू ग्लोबल प्रॉब्लम्स (वैश्विक समस्याओं का सिर्फ़ एक आध्यात्मिक समाधान हो सकता है)।
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