आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये आचार्य प्रशांत जी?||आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये आचार्य प्रशांत जी?||आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्न: आचार्य जी, आप आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये?

आचार्य प्रशांत जी: हर आदमी की अपनी एक यात्रा होती है और उस यात्रा में दस कारण होते हैं जो उसके पीछे लगे होते हैं।

तुम्हारी अपनी एक यात्रा है जो तुम्हें तुम्हारे कॉलेज से ले कर के जा रही है, मेरी अपनी एक यात्रा रही है, जो मुझे अलग-अलग पड़ावों से होकर ले गई है।

उसमें कुछ ख़ास नहीं हो गया।

यात्रा, यात्रा है, उसको आम या ख़ास उपनाम देने का काम तुम करते हो।

तुमने तय कर लिया है कि इस-इस जगह से होकर अगर वो आदमी गुज़रा तो वो बहुत ख़ास है, और इन जगहों से अगर होकर नहीं गुज़रा, तो उसमें कोई विशेष बात नहीं। तुमको बाहर बैठकर जो बातें बड़ी आकर्षक लगती हैं, वो बातें हो सकता है उसको बिलकुल सामान्य लगती हों, जो उनके करीब रहा है, जो उनसे होकर के ही पूरी तरह गुज़र चुका है।

उसमें कुछ विशेष नहीं है।

कई बार तो मुझ पर ये बात आरोप की तरह डाली जाती है – “अच्छा, खुद तो कर आ ए ये सब, आई. आई. टी., आई. आई. एम्., सिविल सेवा। दुनिया में जो भोगना था वो सब भोग लिए हो, हमसे कहते हो कि सफलता के पीछे मत भागो।”

वाक़ई, कई बार ये बात मुझ पर आरोप की तरह कही जाती है कि – “तुमने तो सब कर लिया, हमें भी तो करने दो।” अरे! मैंने कर नहीं लिया, हो गया। अब माफ़ी माँगता हूँ कि हो गया। धोखे से हो गया, ग़लती थी।

न धोखा है, न ग़लती है। गति है, यात्रा है, लय है। ना उसके पाने में कुछ विशेष था, ना उसके छोड़ने में कुछ विशेष है।

तुम्हें लग रहा है मैं ऐश नहीं कर रहा। मुझसे तो पूछ लो मैं कर रहा हूँ कि नहीं?

इस मोहब्बत के लिए अध्यात्म की राह

“ज़िन्दगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है, ज़िन्दगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है,

ताज हो तख़्त हो, या दौलत हो ज़माने भर की, ताज हो तख़्त हो, या दौलत हो ज़माने भर की

कौन सी चीज़ मुहब्बत से बड़ी होती है?”

तो इतना मुश्किल भी नहीं है समझ पाना कि क्या है और क्यों है। ये जो आम ‘मोहब्बत’ होती है, जिसमें तुम किसी एक आदमी के पीछे या औरत के पीछे भाग लेते हो, उसमें भी गाने वाले को ये समझ में आ गया कि ताज हो, की तख़्त हो, की दौलत हो, ‘मोहब्बत’ इनसे बड़ी है। और ये बड़ी साधारण मोहब्बत है, जिसमें गाया जा रहा है, बहुत साधारण ‘मोहब्बत’ है। गाने वाले को कोई व्यक्ति मिल गया है, जो उसे बहुत ख़ास लग रहा है, और वो उसके लिए ये गीत गा रहा है ।

एक दूसरी मोहब्बत भी होती है, और जब वो मिल जाती है तो बस मिल गई। फिर, महाअय्याशी है वो, उससे बड़ी ऐश दूसरी नहीं है। जानते हो गीता में एक पूरा अध्याय है, जिसका नाम है – ‘ऐश्वर्य योग’। ये जो शब्द है ‘ऐश्वर्य,’ वो निकला ईश्वर से। ‘ऐश्वर्य’ मतलब – सब भरा हुआ। और वो कोई मैं यहाँ पर किसी देवी-देवता की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं अपनी बात कर रहा हूँ ।

जब ये समझ में आने लग जाता है कि – ‘मैं क्या हूँ’ और ‘मुझे कैसी ज़िंदगी जीनी है’, तो फिर तुम उन राहों को कोई ख़ास महत्त्व देते ही नहीं जिस पर सब चल रहे हैं। तुम कहते हो, “ये छोटी-सी ज़िन्दगी, ये बहुत ही छोटी है। आधी बीत गई, आधी और बची है, अधिक-से-अधिक। इसको वही सब करके गुज़ार दिया, जो करने का आदेश, इशारे, दूसरे दे रहे हैं, तो पागल हूँ मैं।”

तुम कहते हो, “ज़रा देखना पड़ेगा, ‘मैं कौन हूँ’?”, और उस ‘मैं कौन हूँ’? से ये निकल आता है कि – “मुझे करना क्या है?” फिर निर्णय कोई विशेष बचता नहीं है।

एक बार ये समझ में आया कि क्या पसंद है, क्या नहीं पसंद है, एक बार ये समझ में आया कि क्या अपना है, क्या अपना नहीं है, फिर रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। फिर तुम कहते हो, “जो मुझे मिला है उसमें इतनी ऐश है, कि वो दूसरों में भी बटें। काश किसी तरह दूसरे भी इस ऐश का अनुभव कर सकें।” फिर तुम कहते हो, “मुझ तक ही क्यों सीमित रहे? जो मुझे मिला है, ज़रा उसको दूसरों को भी चख लेने दो।” वही ‘अद्वैत’ है।

मैं भटक रहा था, मुझे कुछ मिल गया। रही होंगी कुछ परिस्थितियाँ जिनकी वजह से मिल गया, होगा कोई मूल कारण! पर जो खुद जाना है, वो इतना मज़ेदार है कि उसको जितना बाँटो, मज़ा और बढ़ता है। अब फिर उसमें ये परवाह नहीं रह जाती कि उसमें दौलत कितनी है, और गाज़ियाबाद में बैठे हो या जर्मनी में बैठे हो, वो सब बातें बहुत छोटी हो जाती हैं।

कुछ और है जो बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

देखो ना कितनी मज़ेदार बात है, तुम जिन चीज़ों के पीछे भागते हो, जो तुम्हें सपने की तरह लगती हैं, तुम्हारे सामने एक आदमी बैठा है जो हर उस पड़ाव से गुज़र चुका है जिसके पीछे कोई भी भागता है। तुम्हारे लिए आई. आई. टी. बड़ी चीज़, गुज़र चुके। तुम्हारे लिए आई. आई. एम. बहुत बड़ी चीज़, चलो वहाँ से भी गुज़र चुके। तुम्हारे लिए सरकारी नौकरी बहुत बड़ी चीज़, यहाँ सिविल सेवा ही क्लियर कर चुके। नौकरियों में भी जो एम. बी. ए. के बाद सबसे ऊँची नौकरी मानी जाती है, बादशाहों की नौकरी, कंसलटेंट की नौकरी, वहाँ से भी हो के आ चुके। और तुम्हारे पास बैठा हूँ, चक्कर पूरा कर के ।

तुम कहते हो तुम्हें कुछ नहीं मिला, और बहुत कुछ पाना है। और जो कुछ तुम्हें पाना है वो सब पा के तुम्हारे सामने बैठा हूँ। तो यही बात ठीक-ठीक समझ नहीं आ रही क्या, कि – मुझ में और तुम में कोई अंतर है ही नहीं?

यह लेख ‘जनसत्ता’ नामक अख़बार में भी प्रकाशित हुआ: आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये आचार्य प्रशांत?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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