यहाँ तक बताना सबको अच्छा लगता है, “हमें भी आईएएस बनना है”। उसके आगे जैसे ही पूछो न, “क्यों बनना है?” बताने में फिर एक दिक़्क़त हो जाती है । फिर मेरे जैसा हाल हो जाएगा, मुझे पता चल गया था कि क्यों बनना है। तो फिर मैंने हाथ खींच लिए। मैंने कहा, “नहीं बनना! अगर इसलिए बनना होता है तो नहीं बनना है।“
बहुत ज़रूरी होता है कि तुम ख़ुद से ही धोखा करो और ख़ुद को ही ना बताओ कि तुम्हारे असली मंसूबे क्या हैं। वह मंसूबा वही है जिसने भारत को दुनिया के भ्रष्ट देशों की सूची में बिलकुल अव्वल श्रेणी में रखा हुआ है।
पूछो, “काहे को बनना है?” तो क्या बोलता है, “जनसेवा करेंगे!” और ब्यूरोक्रेसी (नौकरशाही) में करप्शन (भ्रष्टाचार) के इंडेक्स (सूची) में भारत सबसे ऊपर! भारत की प्रगति में बड़ी-से-बड़ी बाधाओं में गिना जाता है भारत का *ब्यूरोक्रेटिक सेटअप*।
यह सब-के-सब अगर वाकई जनसेवा के लिए ही अंदर घुसे थे तो भ्रष्टाचारी कौन है फिर? ये तो सब जनसेवक हैं, भ्रष्टाचार कौन कर रहा है फिर? तुम झूठ बोल रहे थे न, तुम्हारा मंसूबा ही काला था। जिस दिन तुमने फॉर्म भरा था उसी दिन से, बल्कि उससे पहले से ही तुम्हारा मंसूबा दूसरा था।