Grateful for Acharya Prashant's videos? Help us reach more individuals!
Articles
हम सब के भीतर एक अर्जुन है || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
5 min
41 reads

आचार्य प्रशांत: देखिए, बात को समझिए। गीता, सांख्ययोग में, शुरू के कुछ श्लोकों के बाद से भी आरम्भ हो सकती थी। पहला अध्याय तो पूरा ही अर्जुन के विषाद का निरूपण है और दूसरे अध्याय के भी कुछ आरंभिक श्लोकों में अर्जुन की ही व्यथा है। कृष्ण की ज्ञानवर्षा तदोपरांत प्रारम्भ होती है। गीता यदि सिर्फ़ कृष्ण द्वारा प्रदत्त ज्ञान है तो वो तो दूसरे अध्याय से भी आरम्भ हो सकती थी, वहाँ से नहीं आरम्भ हुई है।

मैं पहले अध्याय को और दूसरे अध्याय के आरंभिक श्लोकों को बहुत महत्वपूर्ण मानता हूँ। गीता पर अब मैं अनेकों बार बोल चूका हूँ, मेरा सौभाग्य रहा है, और जितनी बार बोला है मैंने उतनी बार आग्रह करा है कि पहले अर्जुन के एक-एक वक्तव्य और तर्क में अपने-आपको देखिए, नहीं तो कृष्ण की बात आप पर लागू ही नहीं होगी।

कोई साधारण कृतिकार होता तो जहाँ से कृष्ण बोले हैं, गीता भी वहीं से शुरू कर देता। वेदव्यास की बात दूसरी है, उन्हें यूँ ही नहीं वेदव्यास कहा गया। अर्जुन की वृत्ति, अर्जुन की विडम्बना, अर्जुन की किंकर्तव्यविमूढ़ता, हम सबकी है। अर्जुन के तर्कों की जटिलता, अर्जुन का आतंरिक षड़यंत्र, हम सबका है। जब तक आपके मन में वो स्थिति नहीं आ जाती जहाँ आप कहें, ‘अर्जुन ने नहीं कहा, मैंने कहा’, तब तक कृष्ण की बात आपको काटेगी नहीं।

कृष्ण तो जो कुछ भी कह रहे हैं, काटने के लिए ही कह रहे हैं, वेदांत की विधि ही काटना है। गीता को गीताग्रंथ, गीता शास्त्र, या गीता उपनिषद् भी कहते हैं। वेदांत के तीन प्रमुख स्तम्भों में से एक है गीता, श्रीमद्भगवद्गीता। अन्य कई गीताएँ भी हैं, जो वेदांत में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, उनमें अग्रणी है भगवद्गीता। और वेदांत की क्या विधि? काटना। काटे नहीं तो वेदांत अपना काम नहीं कर सकता और आपको काटा कैसे जाएगा अगर आप अर्जुन ही नहीं तो? और आपको काटा नहीं गया तो गीता आप पर व्यर्थ गई न।

आप पढ़ते रहिए, गीता फिर आपके लिए साहित्य बन जाएगी; अच्छी पुस्तक है, साहित्य है बढ़िया। कुछ सामान्य ज्ञान की बातें, हो सकता है आपको कुछ श्लोक भी स्मृतिस्थ हो जाएँ। कोई पूछे तो आप भी बता दो, जैसे चलता है, 'यदा यदा ही धर्मस्य', ठीक बढ़िया। लेकिन आप कटेंगे नहीं। और जो कटा नहीं, वो अपनी ही क़ैद में रह गया। जब आप कटते हैं तभी आपके क़ैद की सलाखें कटती हैं क्योंकि अपनी क़ैद आप स्वयं हैं। आप कट ही नहीं सकते अगर आप देखें अर्जुन के वक्तव्यों को और आप चौंक ना जाएँ। आप कहें, ‘अर्जुन तो लिखा ही नहीं है, मेरा नाम लिखा हुआ है। अर्जुन कहाँ है, मैं लिखा हूँ।‘

‘कौन हूँ मैं? थोड़ा अच्छा थोड़ा बुरा। बड़ा जटिल हूँ मैं, कुछ कह नहीं सकता कैसा हूँ मैं। मैं इतना अच्छा हूँ कि मैं कभी पूरी तरह से बुरा हो नहीं सकता और मैं इतना बुरा हूँ कि अपनी बुराई को बचाए रखने के लिए मैं उसमें आंशिक सच्चाई मिला देता हूँ। बताओ कि मैं अच्छा हूँ कि बुरा हूँ? पता नहीं मैं क्या हूँ!’ अह्मवृत्ति की यही तो विडम्बना है, कुछ पता नहीं वो क्या है। कह नहीं सकते कि उसे सत्य से प्रेम है, या प्रचंड घृणा। प्रेम उसे सत्य से इतना है कि वो जो करती है उसी की ख़ातिर करती है; और घृणा उसे सत्य से इतनी है कि सत्य को देखते ही भाग खड़ी होती है।

ये जो विरोधाभास है, ये जो दो ध्रुवीय द्वैत है — यही मनुष्य की कहानी है, यही पूरा संसार है। अन्यथा जब मैंने गीता पर बोला है तो मैंने कई दफ़े अर्जुन की बड़ी भर्त्सना भी कर दी है। ख़ासतौर पर आने वाले अध्यायों में आप पाएँगे कि अर्जुन एक जगह तो ये तक कह देते हैं, पूरा आक्षेप लगा कर, कि ‘आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं, कृष्ण’। अगर आज हम दूसरे अध्याय के कुछ श्लोकों तक प्रगति कर पाए तो वहाँ आप पाएँगे कि एक जगह पर अर्जुन घोषणा करते हैं कि, ‘मैं युद्ध नहीं लड़ूँगा’ और धनुष रख ही देते हैं नीचे। सलाह नहीं माँग रहे, कृष्ण को अपना निर्णय सुना रहे हैं।

तो जब ऐसे रंग-ढंग देखता हूँ तो अर्जुन की बड़ी भर्त्सना भी करी है मैंने। और कई बार लगता है कि अर्जुन सामान्य मनुष्यों से इतने श्रेष्ठ हैं कि स्तुति योग्य हैं। किसी साधारण व्यक्ति पर तो गीता उतरती ही नहीं। वहाँ हज़ारों-लाखों का जमावड़ा है, उसमें अगर कोई एक सुपात्र हैं, गीता के योग्य, तो वो अर्जुन हैं। ठीक वैसे जैसे अर्जुन के बारे में एक मत बनाना बड़ा कठिन है, उसी तरह से अह्मवृत्ति के बारे में एक बात कहना बड़ा मुश्किल है।

अच्छे-से-अच्छे हैं हम, बुरे-से-बुरे हैं हम, और अच्छे-बुरे एक साथ हैं हम। ऐसा नहीं है कि एक पल अच्छे हैं और एक पल बुरे हैं। जिस पल आप अच्छे हो रहे हैं, उस पल आप शायद अच्छे हो रहे हैं, अपनी बुराई को कहीं-न-कहीं बचाए हुए। और जब आप बहुत बुरे हो रहे हैं तो इसलिए हो रहे हैं क्योंकि आपको अच्छाई चाहिए थी, उसके प्रेम में बुरे हो गए।

जब आत्मा एक मात्र सत्य है तो जो कुछ भी होगा, आत्मा को ही केंद्र में रख कर के होगा न। प्रेम भी आप करोगे तो उसी से करोगे और घृणा भी करोगे तो उसी से करोगे। तो ऐसा जटिल है अर्जुन का चरित्र और अर्जुन प्रतिनिधि हैं हम सब के मन के।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles