होती घटना तत्काल पकड़ क्यों नहीं पाता? || आचार्य प्रशांत (2016)

Acharya Prashant

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होती घटना तत्काल पकड़ क्यों नहीं पाता? || आचार्य प्रशांत (2016)

प्रशन: सर, आपने कहा कि जिस भी किसी चीज़ के बारे में बात हो रही हो वो उसी के सन्दर्भ में कही जा रही है। लेकिन हम किताब पढ़ रहे होते हैं, श्रोतागण की रिकॉर्डिंग सुन रहे होते हैं, कोई किताब पढ़ रहे होते हैं, तो हमें कैसे पता चलेगा कि बात किसके लिए कही गई है? ये बात हमपर लागू हो रही है या नहीं हो रही है?

वक्ता: ख़तरा है वहाँ पर। इसीलिए कोई भी किताब, ग्रंथ, गुरु, शास्त्र, जीवंत गुरु का स्थान नहीं ले सकता। तुम्हें बहुत-बहुत जागृत होना पड़ेगा अगर तुम्हें शास्त्र के माध्यम से जागृति चाहिए। जिसे शास्त्रों से जागृति चाहिए उसे पहले ही जागृत होना होगा। क्योंकि शास्त्र पढ़ के ये समझ पाना कि इस में से क्या है जो मेरे लिए उपयुक्त है, इसमें से कौन सी बात किस सन्दर्भ में कही गई है, शास्त्र पढ़ के ये जान पाना स्वयं अपने-आप में बुद्धत्व है। अन्यथा आप ये जान ही नहीं पाएँगे। बुद्ध ये भी तो कर सकते थे कि अपने ग्रंथ छपवा देते। और कहते भिक्षुओं को कि जाओ बाँट आओ। और यदि मेरे सामने नहीं ला सकते तो तुम अपने सामने लाओ। जाओ तुम फ़ैल जाओ दूर तक और तुम बात-चीत करो। किताबें इत्यादि तो बुद्ध के बाद लिखी गयीं, बुद्ध के बहुत बाद। और ऐसा नहीं कि तब इस विद्या का विकास नहीं हुआ था। लिखी जा सकती थी किताब।

श्रोता २: सर, जैसा कि आपने बोला कि उसी टाइम पर देखो जब हो रहा है “सी वेन इट इज़ देयर”। पर सर, ऐसा हो नहीं सकता कि कर्म करते हुए उसे देख लें। क्योंकि सर ऐसा होता है मेरे साथ, मैं बेवजह ही छोटी-छोटी बातों को महत्त्व देने लगता हूँ परन्तु यह सब मैं उस पल के गुज़र जाने के बाद ही उसे देख पाटा हूँ। तो सर उसी पल कैसे देखा जाये जिस समय कर्म हो रहा है?

वक्ता: नहीं बाद में भी जब आपको ख़याल आता है तो वो इसीलिए आता है क्योंकि उस क्षण में कुछ ऐसा होता है जो आपकी चेतना में उतर गया होता है। देखिए अगर सब कुछ ठीक ही चल रहा हो, सही ही चल रहा हो तो जो चल रहा है वो आपको याद नहीं रह जाएगा। वो स्मृति पर कोई चिह्न छोड़ेगा ही नहीं।

आप आज सुबह अपने-अपने घरों से यहाँ आए हैं, आप में से कितनों को सड़क के बारे में कुछ भी याद है? पर यदि उसी सड़क पर आपने कोई हादसा देख लिया होता तो वो याद रहता कि नहीं रहता? कुछ आपको याद यदि रह गया तो उसी से पता चलता है कि वहाँ पर कोई विद्रूपता थी। तो आपको बाद में भी अगर कुछ याद आ रहा है तो इससे यही पता चलता है कि जब वो घटना घटी तो वो आपके मानस पर अंकित हो गई थी। अंकित ना हुई होती तो बाद में कैसे याद आती? अंकित हुई, उसने छाप छोड़ी इससे ये पता चलता है कि वो घटना आपको सहज नहीं लगी।

जो कुछ भी सहज होता है वो कभी स्मृति पर अंकित होता ही नहीं। जहाँ कहीं भी सहजता नहीं होती, जहाँ कहीं भी कुछ ऐसा होता है जो आपके स्वभावानुकूल नहीं होता, वही होता है जो मन पर दर्ज़ हो जाता है।

दर्ज़ हो गया मन पर लेकिन तत्क्षण चैतन्य नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ? क्योंकि आपके मन पर उस समय अन्य कई विचार हावी थे जब वो विचार छँटते हैं कुछ देर बाद तब फ़िर ये जो अभी ताज़ा-ताज़ा दर्ज़ हुआ है इसने अपनी उपस्थिति का एहसास कराया। जैसे कि आपके पास हज़ारों पत्र आ रखें हो और वो पत्रों का एक ढ़ेर जमा हो गया है और एक पत्र और आ जाता है। उस नए पत्र का आपको कुछ पता ही नहीं चलेगा। उस पत्र में हो सकता है कुछ बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी हो लेकिन वो पहले से ही मौजूद ढ़ेर के नीचे गुम सा हो जाएगा। लेकिन जब आप उस ढ़ेर को छाँट लेंगे तब वो पत्र आपके सामने आएगा ज़रूर, कभी न कभी। उस पत्र का भी आपके सामने कभी न कभी आना बताता यही है कि वो आ चुका था पहले ही। पढ़ा आपने अब है क्योंकि आप व्यस्त थे इधर-उधर के कार्यक्रमों में। तो पढ़ा आपने अब है पर वो आपके पास आ अपने समय पर ही चुका था। वो आ पहले ही चुका था आप यदि खाली होते तो आप उसको तत्काल ही पढ़ लेते।

खाली हो जाइए। खाली हो जाइए आपके भीतर कुछ है जो हर उस घटना को तुरंत अस्वीकार कर देना चाहता है जो नकली है, जो आपके होने से, आपके स्वभाव से मेल नहीं खाती। आपको कोई मार्गदर्शन चाहिए ही नहीं। आप जो हैं उसके अतिरिक्त और कुछ भी होगा तो आपको भाएगा नहीं। और जीवन जीने के लिए इतना निर्देश काफ़ी है। मैं कुछ हूँ और मुझसे प्रतिकूल, मेरे विपरीत, मुझसे भिन्न यदि कुछ हो रहा है तो वो मुझे रुचेगा नहीं, बस हो गया। ऐसे ही जीना है। ऐसे ही सारे निर्णय हो जाएँगे आपके। पत्र आ जाता है तुरंत।

जम नहीं रहा? पर तुम उस पत्र को पढ़ नहीं पाते क्योंकि तुम?

श्रोता २: व्यस्त हो।

वक्ता: बहुत व्यस्त हो।

बात समझ पा रहे हैं न?

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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