होशपूर्ण जीवन के लिए नए साल के 10 नए संकल्प || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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होशपूर्ण जीवन के लिए नए साल के 10 नए संकल्प || आचार्य प्रशांत (2018)

क्यों नहीं पूरे होते हमारे संकल्प?

इस विषय में हमें यह बाज अच्छी तरह जान लेनी चाहिए कि आमतौर पर हम जिस भी लक्ष्य के पीछे भागते हैं, वो हमें किसी और से मिला होता है। नतीजतन, उसके प्रति लिए संकल्प में भी बहुत दम नहीं होता। जो लक्ष्य हमें समाज ने दिए होते हैं, उनके प्रति हम बहुत समय तक ऊर्जावान नहीं रह पाते। जो लक्ष्य हमें एक विशेष परिस्थिति ने, एक विशेष दिन ने दिए होते हैं, वो उस परिस्थिति और दिन के बीतते ही स्वयं भी बीत जाते हैं।

ये जो बाहर से आया हुआ उत्साह होता है, यह ऐसा ही होता है जैसे कोई गाड़ी को धक्का लगा रहा हो। गाड़ी ठीक है, गाड़ी में इंजन भी है और हर प्रकार से स्वयं चलने के काबिल है, पर फिर भी गाड़ी में कोई बाहरी ताकत धक्का लगा रही है। वो गाड़ी कब तक चलेगी? जब तक धक्का लगेगा! और याद रखना धक्का सिर्फ एक दिशा में नहीं लग रहा है; दस ताकतें हैं जो दस दिशाओं में धक्का लगा रही हैं। तो अब गाड़ी की हालत क्या होगी? कभी इधर, कभी उधर।

याद रखना कि आपके सारे लक्ष्य दूसरों ने दिए हैं, इसलिए वो कौड़ी बराबर हैं, इसलिए उनकी कोई कीमत नहीं है। जीवन का एक ही लक्ष्य हो सकता है – अपने तक वापिस आ जाना। इसलिए अगर लक्ष्य बनाने ही हैं तो ऐसे लक्ष्य बनाएं जो आपको आप तक ही वापस ले आएं; अगर संकल्प लेने ही हैं तो ऐसे संकल्प लें जो प्रतिपल होश बनाये रखने में सहायक हों। आइए जानते हैं वो 10 बातें जो समझ के साथ जीवन में उतार ली जाएं तो होशपूर्ण और ख़रा जीवन जीने में अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकती हैं:

1. एक डायरी बनायें, जिसमें नियम से रोज़ रात को लिखें कि दिन के कितने मिनट अपनी समझ, अपने होश, अपनी मुक्ति के लिए बिताए। उसी डायरी में रोज़ ये लिखें कि कितने काम थे जो आपको नहीं करने चाहिए थे, पर बाहरी प्रभाव में आकर आप वो काम कर गये। ईमानदारी से सारे कामों का विवरण लिखा करें। कितने काम नहीं होने चाहिए थे, पर लालच करा गया, डर करा गया, देह करवा गयी, हॉर्मोन्स करवा गए। ये दोनों हिसाब हर हफ्ते किसी ऐसे को दिखायें जिसको दिखाने में खतरा हो। जो तुम्हारी पोल-खोलकर रख दे, जो तुम्हें आईना दिखा सके। जो लिखा है, उसको हफ्ते-दर-हफ्ते नियमबद्ध तरीके से किसी ऐसे को दिखायें जो निर्भीक होकर आपकी वस्तुस्थिति पर प्रकाश डाल सके। वो कोई भी हो सकता है, अभिभावक, मित्र या गुरु।

2. अपने मासिक खर्चे में से इसका हिसाब रखें कि अपनी मुक्ति पर कितना खर्च कर रहे हैं। महीने भर में जितना भी खर्च करा। उसमें से कितना पेट पर, कितना खाल पर, कितना गर्व पर, कितना मोह पर, कितना कामवासना पर खर्च करा, और ये सब करने के बाद ये देखें कि कुछ बचा भी मुक्ति पर खर्च करने के लिए!

3. समय को देख लिया, धन को देख लिया, अब अपनी उपस्थिति को देखें। महीने भर में आपकी जहाँ कहीं भी मौजूदगी रही, आपकी मौजूदगी का कितना प्रतिशत आपने मुक्ति के लिए रखा? आप यहाँ भी पाए जाते हैं, आप वहाँ भी पाए जाते हैं, क्या किसी जगह पर अपनी मुक्ति के लिए भी पाए गए? इसमें फिर यात्रा आ जाती है…तो क्या आपने अपनी मुक्ति के लिए यात्रा करी? क्योंकि यात्रा तो आप करते ही हो, घर से दफ्तर तक की, दफ्तर से बाज़ार तक की, बाज़ार से घर तक की, रिश्तेदारों के घर तक की। ये भी तो यात्राएं हीं हैं, तो इन यात्राओं में मुक्ति के लिए कौन-सी यात्रा की, इसका साफ़-साफ़ हिसाब रखें।

4. प्रत्येक सप्ताह अपने लिए किसी ग्रंथ (उपनिषद्, संतों के वचन आदि) के कुछ अध्याय निर्धारित करें और डायरी में ईमानदारी से लिखें कि जितना निर्धारित किया, उतना पढ़ा कि नहीं पढ़ा। जो पढ़ें उसके नोट्स उसी डायरी में लिखें।

5. हर महीने खाने की किसी एक वस्तु का त्याग करें और किसी एक वस्तु को भोजन में शामिल करें। साल के अंत में 12 चीज़ें छोड़ देनी है और 12 नई चीज़ें शामिल करनी हैं। चीज़ खाने के अलावा, पीने की भी हो सकती हैं – छोड़ने की दिशा में ख़ासतौर पर। एक बात ध्यान रखिएगा कि छोड़ना बस उन चीज़ों को नहीं है जो आपको नुकसान पहुँचाती हैं, छोड़ना उन चीज़ों को भी है जो पशुओं को, पक्षियों को, पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही हैं।

6. प्रतिदिन दुनिया के बारे में , किसी भी क्षेत्र में (इतिहास, विज्ञान, भूगोल, राजनीति, धर्म, समाजशास्त्र, खगोलशास्त्र, पुरातत्वशास्त्र इत्यादि), किसी भी दिशा से, कोई एक ज्ञान की बात पता करनी है और उसे डायरी में लिख लेना है। ऑनलाइन ज्ञानकोष बहुत है, आज के ज़माने में कोई नई बात पता करना 5 से 15 मिनट की बात होनी चाहिए।

7. किसी एक शारीरिक खेल (टेनिस, स्क्वाश, बैडमिंटन, फुटबॉल इत्यादि) में साल खत्म होने से पहले इतनी योग्यता हासिल कर लेनी है कि उसे सम्मानपूर्वक किसी के भी साथ खेल सकें।

8. साल के अंत तक कोई एक कला खुद में विकसित करनी है। अगर वो कला किसी संगीत या वाद्ययंत्र से संबंधित हो तो सबसे अच्छा।

9. पर्यावरण और पशुओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए किसी एक सार्थक अभियान का हिस्सा बनें।

10. अगर आपके पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है तो किसी गरीब बच्चे के भरण-पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लें। इसका ये मतलब नहीं है कि पैसे दे आये और काम पूरा हो गया; इसका मतलब ये है कि आपको एक अभिभावक की तरह ये सुनिश्चित करना होगा कि उस बच्चे का विकास हो रहा है। नहीं तो आजकल इस प्रकार की बहुत योजनाएं चलती हैं कि पैसे दे दो किसी संस्था को और वो आपके दिए पैसे से किसी बच्चे को खाना-पीना, शिक्षा प्रदान करेगी। मैं उस व्यवस्था की बात नहीं कर रहा। मैं किसी ऐसे का अभिभावक बनने की बात कर रहा हूँ जिससे आपका शरीर का रिश्ता नहीं है। उसको बच्चे की तरह पालना-पोसना। इसका मतलब ये आवश्यक नहीं है कि उसको आप अपने घर ही ले आयें। अगर उसका अपने घर में ही पालन-पोषण हो रहा है तो कोई बात नहीं, पर आप ये सुनिश्चित करें कि उसको सही शिक्षा मिल रही है, उसका उचित विकास हो रहा है। सुनिश्चित करने के लिए केवल धन देना काफी नहीं होगा, उसे समय भी देना होगा।

इन १० बातों का अगर आप सही से पालन कर पाए तो एक नये जीवन की शुरुआत होगी। होशपूर्ण जीवन, निर्भीक जीवन, मुक्त जीवन।

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