हिंदी अपनाकर भारत पिछड़ जाएगा! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

Acharya Prashant

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हिंदी अपनाकर भारत पिछड़ जाएगा! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी नमस्कार। मेरा सवाल भारत देश के बारे में है कि मैं ये चीज़ नहीं देख पा रहा, अगर भारत आज से अपनी भाषा हिंदी और संस्कृति से जुड़ता है तो कैसे अन्य देशों के साथ कम्पीट (प्रतियोगिता) कर सकता है?

आचार्य प्रशांत: तुम क्या करते हो, जिसमें तुम अन्य देशों से कम्पीट करते हो?

प्र: जैसे आज के टर्म्स में तो जीडीपी के टर्म्स में ही बात होती है।

आचार्य: तुम अपना बताओ, अपना बताओ। तुम ऐसा क्या करते हो जिसमें तुम फ़्रांस से कम्पीट करते हो?

प्र: जी मैं तो नहीं करता, मैं तो जैसे!

आचार्य: तुम नहीं करते तो अपनी बात करो न। जिन्हें करना होगा वो सीख लेंगे अँग्रेज़ी, तुम क्यों अँग्रेज़ हुए जा रहे हो?

(व्यंग्यात्मक रूप से)बिजली विभाग में हैं, झारखंड में पोस्टिंग है और कह रहे हैं, मैं इंटरनेशनली कॉम्पिटीटिव (अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी) नहीं रह पाऊँगा। अबे! तू

बिजली विभाग में इंटरनेशनली कॉम्पिटीटिव!

भारत के एक सौ चालीस करोड़ लोगों में से कितनों के इंटरनेशनल ट्रांसेक्शन्स (अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन) होते हैं भाई? कितनों के? शून्य दशमलव शून्य एक प्रतिशत। लेकिन बड़ा भारी आर्ग्यूमेंट (तर्क) रखा जाता है –पर फिर हमारी इंटरनेशनल कनेक्टिविटी (अंतर्राष्ट्रीय संयोजकता) का क्या होगा?

और वो जो शून्य दशमलव शून्य एक प्रतिशत हैं, उसमें से भी दो तिहाई बाहर देसियों से ही बात कर रहे हैं; अमेरिका बात करते ज़रूर हैं, पर वहाँ भी जो बिहारी बैठा है उसी से बात कर रहे हैं।

अँग्रेज़ी का क्या करोगे? सरकारी स्कूल में टीचर हैं, कह रहे हैं, इंटरनेशनल!

ज़ोमैटो में काम करता है, डिलीवरी करने कहाँ जाता है? उज़्बेकिस्तान? क्या करेगा इंटरनेशनल?

और जिन्हें इंटरनेशनल इंटरफ़ेस (अंतर्राष्ट्रीय अंतराफलक) पर रहना है, वो सीख लें भाई, उनके लिए आवश्यक है।

आप आईएफ़एस (इंडियन फॉरेन सर्विस : भारतीय विदेश सेवा) में जाते हो, आपको नहीं आ रही होती हैं फॉरेन लैंग्वेजेस (विदेशी भाषाएँ), वहाँ आपको सिखा देते हैं, क्योंकि ज़रूरत है। जिनको ज़रूरत होगी, उनको सिखा देंगे। ये तुमने समाज में ही क्या चलन चला रखा है कि एक-एक बात, एक-एक पोस्टर, एक-एक होर्डिंग, सब कुछ अँग्रेज़ी में है; यहाँ इंटरनेशनल काम चल रहा है?

तुम्हारी दुकान होगी 'अजंता फुटवियर', उसमें ब्राज़ील से लोग खरीदने आते हैं? इंटरनेशनल क्या है वहाँ पर? तो हिंदी में क्यों नहीं लिख सकते थे, अजंता फुटवियर। दुकान है ग्वालियर में। कह रहे हैं, मेरा इंटरनेशनल ट्रेड इफ़ेक्ट (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रभावित) हो जाएगा। क्यों? क्योंकि मैं जूते नहीं, मैं फुटवियर बेचता हूँ।

सीधे लिखो, 'अजंता जूता विक्रेता'। पर कुछ अच्छा-सा लगता है न, फुटवियर! फुटवियर!

और मुझे भी विदेशियों से बहुत बात करनी पड़ती है, तो मैं तब बोल लेता हूँ अँग्रेज़ी; तुमसे क्यों बोलूँ? आप चाहते हैं मैं आपसे करूँ अँग्रेज़ी में बात सारी?

उनसे जब करनी होती है तो मैं करता हूँ। पूरा एक चैनल उनके लिए है, लो देखो। ये आपस में क्या कर रहे हो तुम ये?

इंदौर वाला, गोरखपुर वाला मिलें और कह रहे हैं, बडी हाय, हाउ आर यू? (और भाई, कैसे हो) इंदौर गोरखपुर; इंटरनेशनल हैं ये?

मुझे बताइए न, गोरखपुर के रेस्टॉरेंट का मेन्यू अँग्रेज़ी में क्यों है? वहाँ कौनसा अँग्रेज़ खाना खाने आ रहा है? वो मेन्यू अँग्रेज़ी में क्यों है? गोवा का मैं मान सकता हूँ, वहाँ पर आते हैं विदेशी। वहाँ मेन्यू अँग्रेज़ी में है; समझ सकता हूँ। गोरखपुर में रेस्टॉरेंट का मेन्यू अँग्रेज़ी में क्यों है?

और अब तो सरकारी कामकाज भी अँग्रेज़ी में होने लगा है, पहले होता था थोड़ा हिंदी में। भारत सरकार के सब मंत्रालयों की जो ट्विटर प्रोफाइल हैं, उस पर सब अँग्रेज़ी चल रही होती है, तुम किससे बात कर रहे हो? ये तुमने ट्वीट चीनियों के लिए करी है?

बोल रहे हैं – नहीं, देखिए भारत में अहिन्दीभाषी लोग भी हैं न। अच्छा! एक बात बताओ, हिंदी न समझने वाले लोग ज़्यादा हैं या अँग्रेज़ी समझने वाले? ज़्यादा लोग कब समझेंगे? हिंदी में डाल दें, कम-से-कम हिंदी वाले तो समझेंगे।

चलो, साथ में कुछ और प्रमुख भाषाओं में भी डालो।लेकिन अँग्रेज़ी में डाल रहे हो तो कितने लोगों ने समझा? अगर तुम्हारा उद्देश्य यही है कि ज़्यादा लोग समझे, तो ये तर्क तो बिलकुल गलत है कि हिंदी में डाला तो कम लोग समझेंगे। अँग्रेज़ी में डालने पर कितने लोगों ने समझा?

और भारत सरकार है, जो वैसे ही इतने ज़्यादा लोगों को नौकरी दिए हुए है व्यर्थ ही। जितने लोग होने चाहिए, उससे तीन गुना लोग नौकरी पाए हुए हैं सरकार में, तो कुछ और लोगों को भी नौकरी दे दो। सब प्रमुख भाषाओं का एक ट्विटर हैंडल बना दो – होम मिनिस्ट्री हिंदी, होम मिनिस्ट्री तेलुगु, होम मिनिस्ट्री तमिल, गुजराती।

क्यों नहीं हो सकता भाई? अनुवाद ही तो करना है। पर नहीं, सब भारतीय भाषाएँ हटा दो, अँग्रेज़ी में काम चलेगा। कौन समझ रहा है, जो तुम लिख रहे हो अँग्रेज़ी में वहाँ पर?

'कार्डमम टी' (दालचीनी की चाय) ये होता क्या है? 'कोरिएंडर'(धनिया), तुलसी को बासिल बोलते हैं जाने बेसिल? 'तुलसी' नहीं बोला जा रहा। और क्या-क्या चीज़? हींग को पता नहीं क्या बोलते हैं? ज़बान में गाँठ पड़ जाएगी, 'हींग' ऐसे।(जबान में गाँठ खोलने का अभिनय करते हुए) कोई एक आदमी चाहिए होगा सिर्फ़ गाँठ खोलने के लिए। (श्रोतागण हँसते हैं)

हींग नहीं बोल सकते, हेस्टापटीटापटीना पता नहीं, क्या बोला अभी।

कुछ भी नहीं है, भीतर की हीनभावना है। मेरा देश गिरा हुआ है, मेरा धर्म गिरा हुआ है, तो मुझे थोड़ी-सी राहत मिलती है जब मैं अँग्रेज़ी बोल देता हूँ।

कन्वर्ज़न (परिवर्तन) दूर है? दूर है कन्वर्ज़न? हम कन्वर्टेड (परिवर्तित) हैं। जब उत्तरप्रदेश में घरों में हींग को हींग न बोला जाए, हेस्टापटीटा बोला जाए, तो समझ लीजिए कन्वर्ज़न हो चुका है।

जीरे को क्या बोलते हैं? मिसेज़ वर्मा मिसेज़ गुप्ता को बता रही हैं – मुझे हेस्टापटीटा में क्युमिन डालना है। ये नहीं बोलेगी, बताओ क्यों? क्योंकि इसमें थोड़ी-सी हिंदी थी। आई मिक्स क्यूमिन हेस्टापटीटा विथ हसबैंड हैप्पी (श्रोतागण हँसते हैं)

समस्या की जड़ को देखा करिए। जब आदमी बीमार हो, तब बीमारी का इलाज करिए। हम न तो बीमारी का इलाज करते हैं, न हमें ये पता चलता है कि मौत हो चुकी है। हम लाश के जलने के समय शोर मचाते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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