वक्ता: तुम सब किसी न किसी के दोस्त जरूर हो, तुम्हारे रिश्ते भी हैं, परिवार भी है । तुम चाहते हो कि उनके साथ कुछ अच्छा ही हो। है ना? अगर वाकई किसी के शुभ चिन्तक हो, ध्यान देना, अगर किसी के शुभ चिन्तक हो तो उसको कभी अपने विचार मत देना । कोशिश करना एक ऐसा माहौल बनाने की जिसमें वो सत्य को खुद ही देख पाए । अपनी धारणाऐं मत देना पर कोशिश करना ऐसा माहौल बनाने की जिसमें वो सत्य खुद ही देख पाए ।
एक आदमी है जिसने अपनी आँखों पर जबरदस्ती पट्टी चढ़ा रखी है, देखने की क्षमता सबके पास है, पर वो पट्टी चढ़ा कर बैठा हुआ है । तुम दो तरीकों से उसकी मदद कर सकते हो -एक तो ये कि अगर उसको दरवाज़े तक जाना है, तो तुम उसका हाथ पकड़ कर उसे दरवाज़े तक छोड़ दो । पर अगर तुम उसके सच्चे दोस्त हो, तो तुम क्या करोगे ?
सभी श्रोतागण: उसकी पट्टी खोल देंगे ।
वक्ता : कोशिश करो कि पट्टी खुल जाए। उसको यह बात बताने की कोशिश मत करो कि ले! ये सही विचार है, मैं तुझको दिए देता हूँ । उसे आँखें खोलने दो, सही- गलत वो खुद जान लेगा । HIDP यही करता है। HIDP कहता है कि हम कोई फाइनल जवाब नहीं देंगे । हम कुछ इशारा कर देंगे, बाकि तुम जानो । इसलिए तुम्हें कई बार ये लगता है कि HIDP में, ये बात को आधा-अधूरा लाकर छोड़ क्यों देते हैं? इसलिए छोड़ देते हैं ताकि आगे भी तुम खुद जानो । तुम खुद भी कुछ करोगे न। हमें पता है कि तुम में काबिलियत है । थोड़ा बताना भी जरुरी है क्योंकि अगर थोड़ा नहीं बताया तो बात शुरू भी नहीं होगी । पर अगर थोड़े से ज्यादा बता दिया तो फिर तुम्हें बैसाखी की आदत लग जायेगी । और एक जवान आदमी बैसाखी पर चले, ये शोभा नहीं देता ।
तुम्हारे पास अपनी आँखें हैं, अपने कान हैं, अपना दिमाग है। चल सकते हो, देख सकते हो, समझ सकते हो । तो HIDP तुम्हारी मदद करता है, लेकिन फिर ये भी जानता है कि कहाँ आकर तुम्हारी मदद रोक देनी है ।
हमारे लिए ये बहुत आसान बात है कि हम तुम्हें एक फाइनल बात बता दें । लेकिन वो गलत होगा तुम्हारे साथ। इसलिए हम तुम्हारे साथ वो कभी नही करेंगे। ये बात समझ आ रही है ? कोशिश हमारी यही रहेगी कि हम तुमसे कुछ सवाल पूछें और तुम्हें सोचने पर मजबूर कर दें । माहौल ऐसा पैदा करें कि तुम्हें सब दिखाई दे ।
HIDP तभी कामयाब है जब तुम खुद देखना शुरू कर दो । जब तक खुद नहीं देखोगे, HIDP सफल नहीं है ।
– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।