हवस के शिकारी — तन ही नहीं मन भी नोच खाते हैं

Acharya Prashant

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हवस के शिकारी — तन ही नहीं मन भी नोच खाते हैं
जब समाज जागृत होने लगता है ना तो जितना बुरा नर को और नारी को लगता है रेप ऑफ द बॉडी में उतना ही बुरा उसको लगता है रेप ऑफ द माइंड में। और हम कभी नहीं बात करते हैं कि रेप ऑफ द माइंड की क्या सजा होनी चाहिए। औरत को भी यही लग रहा है कि मेरी सबसे बड़ी पूंजी मेरी यौन संपत्ति थी। तो अगर मेरी यौन संपत्ति छीन ली तो मेरा सबसे बड़ा नुकसान कर दिया। रेप ऑफ द माइंड हो रहा है तेरा लगातार पर तू उसकी कभी नहीं शिकायत करती। क्यों? क्योंकि वो लोग सम्माननीय कहलाते हैं। वह लोग बहुत बार धार्मिक भी कहलाते हैं। वह हमारे घरों के लोग हैं। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा प्रश्न एक्चुअली रेप कल्पिट्स को लेकर के है और मैं इस प्रश्न को दो भागों में विभाजित करना चाहती हूं। इसमें से पहला भाग ऐसा है जिसमें ये वो कल्पिट्स होते हैं जो बेसिकली रेप ये पोर्न एडिक्स होते हैं। तो ये लोग रोज पोर्न वीडियोस वगैरह देख के मतलब मानसिक रूप से रेप करते हैं और क्योंकि बार-बार कर रहे हैं तो इसलिए एडिक्ट भी हो जाते हैं और दूसरे वो लोग होते हैं जो मतलब उनकी मानसिक स्थिति ऐसी हो जाती है कि उनको रियलाइज ही नहीं होता है कि वो लोग मतलब फिजिकल रेप कर रहे हैं। एंड इट्स अ फिजिकल वायलेंस जिसकी वजह से जो जिसके ऊपर बीतती है ये चीज विक्टिम उन लोगों के ऊपर काफी बड़ा ट्रॉमा टाइप्स हो जाता है। उनकी जिंदगी काफी बदल जाती है उसके बाद। तो ये दो प्रकार के लोग हैं।

अब मेरा प्रश्न एक्सैक्टली यह है कि जो यह फिजिकल वायलेंस करने वाले जो कल्प्रीट्स हैं मेरे हिसाब से मुझे लगता है कि उनका जो यह कॉन्शियसनेस बोल दें जिनको इट्स एट द पॉइंट ऑफ नो रिटर्न देयर इज़ नो वे दे कैन यू नो कम बैक तो क्या इनको डेथ पेनाल्टी देनी चाहिए मतलब सबसे बड़ी सजा पर अगर जब मैं यह सोचती हूं तो मुझे लगता है क्या मैं दही भाव भावना में अटक गई हूं कि यू नो आई एम गिविंगेंस टू द बॉडी और सेकंड चीज यह भी हो जाती है कहीं ना कहीं कि यह लोग अपनी मतलब अगर यह इतने फिजिकल पे उतर चुके हैं। तो इनके अंदर इतनी हिम्मत भी आ चुकी है कि अपना मोरालिटी वगैरह साइड करके क्या पता इस चीज को दोबारा कर सकते हैं। तो डू यू थिंक इज देयर एनी स्कोप कि इन लोगों को छोड़ देना चाहिए या फिर इनको डेथ पेनाल्टी देनी चाहिए।

आचार्य प्रशांत: वो अगर आदमी बूढ़ा हो जाए या बिल्कुल उसी के जैसे विचार और चेतना कोई आदमी है जो बूढ़ा हो ही चुका है। 60 पार कर गया है। रेप अब कर ही नहीं सकता। शारीरिक रूप से अक्षम है। उसका क्या करें? मन से बिल्कुल वैसा ही है। बिल्कुल वैसा ही है। बस अब वो एक जो खास कृत होता है द फिजिकल एक्टिविटी ऑफ रेपिंग वो नहीं कर सकता। लेकिन वो बाकी सब कुछ कर सकता है। क्योंकि मन से वो बिल्कुल वैसा ही है जैसे ले लो वो 35 साल का रेपिस्ट। एक 35 साल वाला है, एक 65 साल वाला है। ठीक है? दोनों मन से बिल्कुल एक जैसे हैं। बल्कि 65 साल वाला 30 साल और आगे गिरा हुआ है। 35 में वो वैसा ही था और 35 के बाद वो और गिरता गिरता गिरता गिरता अब 65 का हो गया है। लेकिन अब वो रेप नहीं कर सकता। वो क्या कर रहा होगा? वो क्या कर रहा होगा?

श्रोतागण: और हिंसा। जोर से बोलो।

आचार्य प्रशांत: और से हिंसा कर रहा होगा। और 100 प्रकार से हिंसा कर रहा होगा ना। और 100 प्रकार से हिंसा कर रहा होगा। कर रहा होगा। कि नहीं कर रहा होगा। अब उसका क्या करना है?

एक है वो भी 35 ही साल का है। ये तो दो ले लिए। एक वो जो रेप करता है जिसका रेप रेप के नाम से जाना जाता है। और एक है वह भी 35 ही साल का है। और वह पूरे तरीके से एकदम सात्विक धार्मिक आदमी है। और अब तो हमारी न्यायपालिका भी बोलने लगी है कि आप अगर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बना रहे हैं तो हम इसको रेप नहीं मानेंगे और वो बिल्कुल अपनी धर्मपत्नी के साथ जबरदस्ती किया करता है। इसका क्या करना है?

मन तीनों का एक है। लेकिन रेपिस्ट तीनों में से एक ही कहला रहा है। तीनों बिल्कुल एक हैं यहां से। लेकिन तीनों में से रेपिस्ट तो हम एक को ही बोल रहे हैं ना। एक को ही बोल रहे हैं और हम कह रहे हैं इसको फांसी पर टंगा दो। जो 65 साल वाला है वो हो सकता है कोई उद्योगपति हो गया हो अब। वो जंगल के जंगल साफ करे दे रहा है। सिर्फ एक ये इंसान हो सकता है जिसने 500 प्रजातियां तो जीवों की खुद ही नष्ट कर डाली हो सदा के लिए। बिल्कुल हो सकता है। ये 700 प्रजातियों के परमानेंट एक्सटिंशन के लिए हो सकता है यह एक आदमी अकेला जिम्मेदार हो। बिल्कुल हो सकता है। और ये 65 साल का है।

लेकिन अब शरीर की बात ये यौन क्रिया के लिए सक्षम नहीं रह गया है। तो ये फिजिकली रेप किसी औरत का नहीं करता है। इसका क्या करना है? इसके लिए फांसी की सजा इसको भी दे दी जाए। और वो जो पतिदेव बैठे हुए हैं उनका क्या करना है? जो कि हर दृष्टि से वो मोरल भी हैं। आपने कहा उसने अपनी मोरालिटी हटा दी है। उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि मोरालिटी हटा के रेप कर देते हैं। पर ऑल मोरालिटी स्पेशली इन इंडिया फ्लोस फ्रॉम रिलजन, जो हमारा रिलीजन होता है वो हमारी मोरालिटी निर्धारित करता है। और जो लोक धर्म है और अब न्यायपालिका भी अगर ये कह रहे हैं कि पत्नी के साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करना इमोरल नहीं है तो इसको तो मोरालिटी का भी कोई सवाल नहीं बचा। ये कह रहा है मैं कोई इमोरल काम कर ही नहीं। अपनी पत्नी के साथ संबंध बना रहा हूं। इसमें क्या इमोरल है? तो अब तो इसको तो मोरालिटी की अभी कोई झंझट नहीं है। इसका क्या करना है?

इन तीनों में रेपिस्ट कौन कहला रहा है? सिर्फ लेकिन तीनों है यहां से बिल्कुल एक। अब क्या करें? बोलो। या हम कहना चाहते हैं कि सिर्फ एक पर्टिकुलर एक्ट है जिसकी सजा देनी है। पर्टिकुलर एक्ट की सजा देनी है या पर्टिकुलर माइंड की?

*प्रश्नकर्ता:** पर्टिकुलर माइंड।

आचार्य प्रशांत: और माइंड कोई बचपन से तो आता नहीं ना। माइंड तो तैयार होता है। माइंड तो प्रभावों के अधीन होता है। माइंड पर तो शिक्षा परवरिश परिवार इन्होंने काम किया होता है। मीडिया समाज में जो किस्से कहानियां प्रचलित हैं धारणाएं चलती हैं। इनसे बना होता है माइंड और ऐसा माइंड तीन का नहीं बना होगा। कितनों का बना होगा? 30 लाख का बना होगा। उसमें से कोई ऐसा भी हो सकता है जो सिर्फ डर के मारे रेप ना करे। हो सकता है ना? वो सिर्फ डर के मारे रेप नहीं कर रहा। उसका क्या करना है? माइंड से वो बिल्कुल वैसा ही है। बस उसको अभी तक मौका नहीं मिला ऐसा कि जहां वो काम कर जाए और सजा ना मिले। तो अभी तक डर के मारे नहीं कर रहा। मौका मिल गया तो कर भी देगा। उसका क्या करना है?

हम जिसको कानून बोलते हैं ना वो एक तरीके से अहंकार को बहुत बढ़ावा देता है। समझना। क्योंकि वो ईगो को एकनॉलेज करता है। वो लेनदेन की भाषा में बात करता है। एक तरह का ट्रांजैक्शन है, व्यापार है। आपको एक रेट कार्ड दे दिया गया है। रेट कार्ड मेन्यू कार्ड कि आप किसी को थप्पड़ मारेंगे तो आपको ₹10,000 जुर्माना होगा। तो आप कह सकते हो हां हां आई फाइंड दिस अ गुड डील ये 10,000 लो यह मैंने थप्पड़ मारा। एक फिल्म में ऐसा था कि वो आता है और थप्पड़ मारता है तो बोलता है कि ये जो थप्पड़ मारा है इसके इतने पैसे दे दो। तो तीन थप्पड़ और मारता है। बोलता है ये लो तीन गुने पैसे। तो कानून तो लेनदेन की भाषा में बात करता है ना। आपको पहले से पता है आप फलाना काम करोगे तो आपको 5 साल की सजा होगी।

और आप बिल्कुल कह सकते हो मैं 5 साल की सजा खुल के स्वीकार करता हूं। स्वेच्छा से स्वीकार करता हूं। ये मेरे लिए एक अच्छा ट्रांजैक्शन है। आई एक्सेप्ट दिस ट्रांजैक्शन। तो कानून सजा नहीं देता है। कानून तो बस आपसे कीमत लेता है। कहता है तुमने अभी-अभी फलाना काम करा उसी कीमत दे दो। ये तो एक दुकान जैसी बात हो गई ना। और पहले से ही उसका जो रेट कार्ड है वो फिक्स्ड है कि इस काम में इतनी सजा लगेगी। ठीक वैसे पिज़्ज़ा इतने का, बर्गर इतने का, फलाना कपड़ा इतने का, गाड़ी इतने की। वैसे ही फलाना अपराध इतने का, फलाना अपराध इतने का फलाना अपराध इतने का तो कानून जब आपसे ऐसे ट्रांजैक्शन करता है तो वह आपको एकनॉलेज कर रहा है। एकनॉलेज कर रहा है ना वो मान रहा है आप कोई हो तभी तो आपसे लेनदेन हो सकता है। इट्स एन इट्स एन एग्रीमेंट। इट्स अ इट्स अ कॉन्ट्रैक्ट। हां भाई आप ये कर लीजिए। हम आपको इतनी सजा दे देंगे। जी आपने ये कर लिया। आइए हम आपको अब सजा दे देते हैं। एंड टू एकनॉलेज द ईगो इज टू बोलस्टर द ईगो।

आप यह उससे नहीं कह रहे हो कि तुम हो ही क्यों? आप उससे कह रहे हो तुमने अब खाया पिया है तो कीमत चुका दो। आप बात समझ रहे हो? आप जिससे लेनदेन करते हो क्या आप यह कहोगे कि तुझे होना ही नहीं चाहिए? आप जिसके साथ व्यापार कर रहे हो, ट्रांजैक्शन कर रहे हो, क्या आप उससे ये कहोगे कि तुझे होना ही नहीं चाहिए? तो कानून भी अपराधी के साथ एक तरह का व्यापार करता है। वो ये थोड़ी कह रहा है तुझे होना ही नहीं चाहिए। आप भी जिस फांसी देने की बात कर रही हैं वो भी ऐसा ही है। वो बिल्कुल यह बोल सकता है कि हां भाई मेरे को 15 मिनट का सेक्सुअल प्लेजर चाहिए। उसके बाद मेरे को फांसी दे दो। मैं पहले से ही तय कर लेता हूं। वो बाकायदा आएगा कॉन्ट्रैक्ट साइन करेगा। हां जी मैं रेप करूंगा 15 मिनट और उसके बाद मुझे फांसी दे दी जाएगी। एंड आई एक्सेप्ट दिस डील। अब बोलिए।

आप सोच रहे हो आपने उसको सजा दी। वो कह रहा है सजा है ही नहीं। मजा है। 15 मिनट के बाद मरने को भी मिल गया तो मजा है। कोई दिक्कत नहीं। अब क्या करोगे? बोलो क्या करोगे? और अपराधी तो यही बोलता है। क्या उसको पता नहीं होता है कि सजा का क्या विधान है? पता तो होता ही है। वह बोलता है सजा चलेगी। अभी मुझे मर्डर करना है तो मैं करूंगा। सजा चलेगी। वो कहता है ये जो डील है ये फेवरेबल है। कह क्या है? छ ही साल की कैद होगी ना? हां। ठीक है। छ साल चलेगा। अभी मर्डर कर लेने दो। या 14 साल की होगी। 14 साल चलेगा। अभी कर लेने दो जो करना है। अब बोलो क्या करोगे? बोलो। आप जिसके साथ ट्रां एक्शनल हो जाते हो आप उसके अस्तित्व को स्वीकार कर देते हो। और अहंकार के बारे में सूत्र अच्छे से समझ लो। उसको आप जितना एकनॉलेज करोगे वो उतना बढ़ेगा। उतना बढ़ेगा। उसका झूठ ही यही है ना। वो क्या बोलना चाहता था? मैं हूं। अहम माने वो जो कहना चाहता है कि मैं हूं। और आपने उसको सजा दे क्या साबित कर दिया तू हैं? वो खुश हो गया। बोला देखा मैं तो यही कह रहा था मैं हूं।

आपको एक पूरी ऐसी व्यवस्था चाहिए जहां इंसान को इंसान बनाया जा सके। हम त्रिशंकु की तरह पैदा होते हैं। एकदम जानवर एकदम जानवर लेकिन संभावना लिए हुए कि हम इंसान हो सकते हैं। वो संभावना कभी साकार नहीं होती क्योंकि हमारी व्यवस्था जिन लोगों ने बनाई है उनको बहुत समझ रहा नहीं। उनके पास बहुत ज्ञान रहा नहीं। तो उन्होंने आदान प्रदान की भाषा में व्यवस्थाएं बना दी हैं। हमारा सब कुछ ऐसा ही है। एक्सचेंज जैसा ट्रांजैक्शनल रिश्ते कैसे होते हैं? ट्रांजैक्शनल।

तो न्याय व्यवस्था और अपराधी का भी एक रिश्ता ही तो होता है। वो भी तो एक रिलेशनशिप है ना मैन वूमेन रिलेशनशिप थोड़ी होती है। ठीक? जुडिशरी और जो कलप्रिट है उसमें भी क्या है? रिलेशनशिप। एंड ऑल आवर रिलेशनशिप्स आर ट्रांजैक्शनल। तू मुझे कुछ दे मैं तुझे कुछ दूंगा। तू मुझे कुछ दे मैं तुझे कुछ दूंगा। व्हेयरवर देयर इज़ ट्रांजैक्शन, द अंडरलाइंग एजमशन इज़ ऑफ द इनकंप्लीटनेस ऑफ द ईगो। वही एजम्पशन रेप करवाता है। वही एजम्पशन सजा दिलवाता है। तो एक तरीके से जो रेप कर रहा है और वो जो व्यवस्था उसको सजा दे रही है। दोनों एक ही एजम्पशन पर चल रहे हैं। इसने रेप क्यों किया? मैं अधूरा हूं। मुझे चैन नहीं मिल रहा है। मुझे प्लेजर चाहिए। मुझे प्लेजर कैसे मिलेगा? किसी के बॉडी को वायलेट करके मुझे प्लेजर मिल जाएगा। ठीक है प्लेजर ले लिया। एजम्पशन क्या था इसमें? मैं बेचैन हूं। इनकंप्लीट हूं। अपूर्ण हूं। मैं हूं और वो जो आपको सजा दे रहा है उसने भी तो यही करा है। कि यह एक ईगो है जिसके साथ मैंने ट्रांजैक्शन करा इसको सजा दे दो।

इस पूरी चीज में आपके सामने यह बात तो कभी आ ही नहीं रही है कि आपने जो करा वो गलत बाद में था। असफल पहले था। आपका दंड इसमें नहीं है कि आपने कुछ मोरली गलत करा। आपका दंड ये है कि आपने जो करा उससे आपको नहीं मिल सकता जो आप चाह रहे हो। ना तो रेपिस्ट को रेप करके प्लेजर मिल सकता है। और ना ही कैदी को दंड देकर के उसका सुधार हो सकता है। दोनों ही जगह असफलता है क्योंकि दोनों ही जगह अहंकार की प्रकृति को समझा नहीं गया है।

यह व्यक्ति कह रहा है मैं रेप करूंगा और इससे मुझे चैन मिल जाएगा। तुझे नहीं मिलने वाला। तुझे नहीं मिलने वाला। और न्याय व्यवस्था कह रही है मैं सजा कर दूंगा। और सजा क्या है? इट्स अ मींस टू करेक्ट। और विजिट मींस टू एक्सट्रैक्ट रिवेंज। तो दोनों ही स्थितियों में वो जो भीतर अंधेरा था वो तो साफ बच निकला ना। बच ही नहीं निकला। वो तो और बढ़ गया। आप जो बात बोल रहे हो वो बहुत देशों में चलती है। और ज्यादातर जो जितने पिछड़े हुए देश हैं वहां पर उतना ज्यादा कड़ी सजाओं का विधान रहता है।

आप अफगानिस्तान चले जाइए। वहां पर ये तो छोड़िए कि रेप के लिए क्या होगा? आपने जाकर के उसको देख भी लिया वर्जित किसी जगह पर या किसी हालत में तो उतने पर भी आपका गला काटा जा सकता है। तो? उससे वहां का समुदाय बहुत विकसित हो गया। तो? एक ही मूल अपराध है। जानना ही नहीं कि भीतर चल क्या रहा है। और ये अपराध जितना अपराधी कर रहा है जिसको आप रेपिस्ट बोल रहे हो उतना ही वो लोग कर रहे हैं जो उसको सजा दे रहे हैं। दोनों ही आत्म अज्ञान के पूरे पूरे शिकार हैं अपराधी हैं। दोनों ही कुछ नहीं जानते कि चल क्या रहा है।

और समझो अच्छे से। हम बना देते हैं ये नियम कि रेपिस्ट्स को डेथ पेनल्टी मिलेगी। इससे बस इतना होगा कि रेप की जगह उसकी जो भीतर की काली एनर्जी है वो किसी और दिशा में मुड़ जाएगी। बस यह होगा। और बिल्कुल हो सकता है कि अब जिस दिशा में मुड़े वो दिशा और ज्यादा घातक हो। समाज नहीं देख पाता कि एक महिला हजार तरीकों से सताई हुई है। या देखना चाहता नहीं है। वो अपने जीवन में अपनी संभावना को हासिल नहीं कर पा रही है। कभी खबर छपती है? उसको घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है। कोई खबर छपती है? छपती है? उसको पढ़ने भी नहीं दिया ठीक से। कोई खबर छपती है? अभी भारत में पिछले कुछ सालों में कुछ सनसनीखेज रेप मर्डर केसेस हुए हैं। जहां पहले रेप हुआ फिर मर्डर हुआ। मर्डर से सनसनी नहीं फैली। रेप से फैली। समाज को इस बात से कम मतलब था कि वो महिला अब जिंदा ही नहीं है। इस बात से ज्यादा मतलब था कि उसका रेप हो गया। इससे हमें क्या पता चलता है? हमें महिला की फिक्र है या उसकी सेक्सुअलिटी की? सीधा सा सवाल है। रेप मर्डर केस में रेप को प्रमुखता क्यों मिल रही है? मर्डर को क्यों नहीं? और किसी इंसान के साथ ज्यादा बड़ा गुनाह क्या है? उसका रेप हो जाए या उसका मर्डर हो जाए?

श्रोता: मर्डर

आचार्य प्रशांत: पर मर्डर छोटी बात है। रेप बड़ी बात है। अगर रेप इतनी बड़ी बात है तो हम महिला को देख किस तरीके से रहे हैं। ठीक वैसे जैसे रेपेस्ट देख रहा था सेक्सुअल तरीके से। और आपको बताता हूं जब रेप की खबर आती है ये सब पढ़िएगा आप करिए। तो जो Google ट्रेंड होता है वो अचानक से बढ़ जाता है। मान लीजिए कोई महिला है किसी नाम की कुछ नाम है उसका रेखा और खबर आ गई कि फलाने ने उसका रेप कर दिया है। अगले दिन आप पाएंगे कि वो जो Google सर्च है Google ट्रेंड आता है पूरा उसमें स्पाइक आ जाती है रेखा एमएमएस रेखा एमएमएस या रेखा रेप वीडियो।

यह हमारा समाज रेपिस्ट को सजा देगा या ये खुद रेपिस्ट है? तुम किसी को जिंदगी भर किचन में कैद कर दो तू सिर्फ रोटी बनाएगी, कपड़े धोएगी। ये खबर बनता है क्या कभी? बनता है। रेप सनसनीखेज बात है। निश्चित रूप से बड़ा गुनाह है बलात्कार। निश्चित रूप से आप किसी के शरीर ही नहीं मन के साथ खिलवाड़ कर रहे हो। बहुत बड़ा गुनाह है। पर मैं जानना चाहता हूं क्या ये एकमात्र गुनाह है? तो बाकी गुनाहों की कभी बात क्यों नहीं होती? बाकी गुनाहों की बात इसलिए नहीं होती क्योंकि हम खुद लड़की की बस सेक्सुअलिटी में इंटरेस्टेड हैं। तो उसके साथ जब रेप होगा तो बहुत बड़ी खबर है। बाकी उसके साथ 100 गुनाह होते रहे कोई खबर नहीं बनती। बूढ़ी महिला अकेली रहती थी। नौकर उसकी हत्या करके रुपया पैसा गहने ले भाग गया। और एक जवान आकर्षक महिला के साथ किसी ने बदतमीजी कर दी। बलात्कार नहीं भी हुआ। छेड़छाड़ कर दी। बताना समाज में और मीडिया में कौन सी खबर को प्रमुखता मिलेगी। जैसे उस वृद्धा स्त्री की जान की कोई कीमत ही नहीं थी। कीमत बस किसकी है? लड़की के सेक्सुअल पार्ट्स की। उनकी कीमत है बस। बाकी तुम उसकी गर्दन काट दो तो इस गर्दन इस पार्ट की कोई कीमत नहीं है।

सब जितने संस्कृतिवादी हैं सब इसमें लगे हुए हैं। बलात्कारियों को फांसी की सजा दे दो। मैं कह रहा हूं बिल्कुल दे दो। पर फिर उन सबको दो जो बलात्कार के बराबर के अपराध कर रहे हैं। ये होगा न्याय। या फिर अपनी गिरेबान में झांक करके देखो कि हम कैसी शिक्षा और कैसी परवरिश दे रहे हैं। कि जहां हर आदमी या तो रेपिस्ट है या पोटेंशियल रेपिस्ट है। जिन्होंने बलात्कार नहीं भी करा है उन्होंने इसलिए नहीं करा है क्योंकि उन्हें मौका नहीं मिला या उनको डर लग रहा है। सही स्थितियां मिल जाए अनुकूल स्थितियां और कोई खतरा ना हो कि बात लीक होगी। समाज में बाहर आएगी। मीडिया में छपेगी, एफआईआर हो जाएगी। बिल्कुल कोई खतरा ना हो। फिर देखो कि रेपिस्ट कौन नहीं है।

बोलो किस-किस को फांसी देनी है या कोशिश करें इस विष वृक्ष की जड़ों को ही काटने की। इसकी जड़ों को काटने का काम कर रहे हैं। गीता इसीलिए है, वेदांत इसीलिए, उपनिषद इसीलिए है। दुनिया भर का बोध साहित्य इसीलिए है। और जब तक वो विडम वो आत्मज्ञान हमसे दूर रखा जाएगा तब तक समाज में 100 तरह के जहर फैले हुए रहेंगे। सिर्फ डर दमन धमकाने के कारण अगर कहीं आपको शांति दिख रही है तो वो शांति नहीं है। वो ऐसा है जैसे टाइम बम फटने से पहले टिक टिक टिक टिक कर रहा होता है ना।

आप एक ऐसी संस्कृति चला रहे हो जिसमें आपने सब कुछ तो मटेरियल बना दिया ना, बना दिया ना? सब कुछ मटेरियल है हैप्पीनेस इज द पर्पस ऑफ लाइफ एंड हैप्पीनेस कम्स फ्रॉम कंसमशन ऑफ मटेरियल। यही है ना पूरी दुनिया का लोक दर्शन? हां? इसी फिलॉसफी पे हर आम आदमी चल रहा है ना। हैप्पीनेस, प्लेजर एंड दैट इज डिराइव्ड फ्रॉम कंसमशन ऑफ़ मटेरियल। राइट? हां। तो ये सब जो यहां बैठे हुए हैं सब मटेरियल है। इनका कंसमशन करना है। सब कुछ मटेरियल ही तो है। कंसमशन करना है। वही तो पर्पस है लाइफ का।

जब आपने लाइफ की बेसिक फिलॉसफी ही इतनी डिस्टोर्ट कर दी बच्चे के दिमाग में शुरू से ही जहर घोल दिया तो वो एक नहीं 100 तरीकों से रेप करेगा। एक इंसान का नहीं पूरी पृथ्वी का रेप करेगा और कर रहे हैं।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी अभी आपने कहा है कि हम गीता सिखा रहे हैं उस चीज को ठीक करने के लिए। गीता अर्जुन के लिए हो सकता है। दुर्योधन के लिए थोड़ी ना जो रेपिस्ट हो चुका है जिसने रेप कर दिया है उसकी चेतना को हम ऑलरेडी कह रहे हैं कि वो पॉइंट ऑफ नो रिटर्न पे जा चुका है। तो उसके लिए तो मृत्युदंड ही होगा।

आचार्य प्रशांत: जिसको बोल रहे हो कर चुका है। किसी एक्ट एक एक्ट की बात नहीं है ना। शुरुआत करते ही बोला था। इस माइंड की बात है। एक्ट तो वो कर देता है जिसको मौका मिल गया या जिसको किसी एक क्षण में इतनी उत्तेजना हो गई कि बर्दाश्त नहीं कर पाया। माइंड तो यहां पर करोड़ों का वैसा है और अगर हमें सचमुच महिलाओं को बचाना है तो इसका इलाज करना पड़ेगा और देखो जहां तक अगर रेप की आप व्यापक परिभाषा लोगे व्यापक परिभाषा तो एक महिला है जो हर तरीके से एनवायरमेंटली डिस्ट्रक्टिव लाइफ जी रही है। यह महिला खुद रेपिस्ट नहीं है क्या? बोलो? आप बहुत अच्छे से जानते हो कि आप तक डेयरी प्रोडक्ट्स पहुंचाने के लिए जितने भी मिल्च कैटल होते हैं दूध देने वाले जानवर उन सबका बलात्कार ही किया जाता है। जानते हो ना? कम्युनिटी पे कितनी बार वीडियो पोस्ट हो चुके हैं कि किस तरह से मवेशियों के अंदर इतना हाथ डाल के उनका गर्भाधान कराया जाता है। वो रेप है जानते हो आप अच्छे से। आप भी हां कह चुके हो रेप है। तो उसका दूध तो महिलाएं भी पी रहे हैं। तो फिर महिलाएं रेपिस्ट नहीं हो सकती हैं क्या?

रेप को आप एक बहुत अगर सीमित परिभाषा दोगे तो उसका फिर उपचार भी आप बहुत सीमित ही निकालोगे। सीमित उपचारों से बात बनेगी नहीं। हां, समस्या को दबाया जा सकता है। वो दबाने का काम तो लॉ एंड ऑर्डर करता ही है। पर अगर आप उसका गहरा आमूलचूल समाधान चाहते हो तो फिर समाधान गीता में और उपनिषद में है। बोध साहित्य में

प्रश्नकर्ता: मेरा क्वेश्चन यह है कि क्या सबको गीता सिखाया जा सकता है?

आचार्य प्रशांत: कर तो रहे हैं प्रयास। यह आपके ऊपर है कि आप कितना दम लगाते हो सिखाने में। तो इसमें तो सवाल ही इस तरीके का है कि क्या मैं सबको सिखा सकता हूं? सवाल बूम रैंक करेगा आपके ऊपर आएगा, हां लगा दो जान ये तो फिर मेरे ऊपर ही सवाल है ना, क्या मैं सबको सिखा सकता हूं निर्भर करता है तुम कितनी जान लगाने को तैयार हो? लगाओ जान।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी मैं एक बार फिर से क्वेश्चन पूछ रही हूं। ठीक है?

*आचार्य प्रशांत:** आपने अभी तक जो बोला समझ लिया? इतना जो बोला था 40 मिनट तक पूरा स्पष्ट हो गया है? आप जब फिर से पूछ रही है तो उसमें आपकी मान्यता ये है कि मैं समझ ही नहीं पा रहा कि आप क्या पूछ रही हैं।

प्रश्नकर्ता: मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं जो कहना चाह रही हूं वो अभी तक कह नहीं पाई हूं। इसलिए मैं फिर से पूछ रही हूं।

आचार्य प्रशांत: आप जो कहना चाहती हैं मैं समझ गया हूं। मत बोलिए फिर से।

आपने दे दी फांसी वह मर गया। अब? पीछे फैक्ट्री चल रही है जिसमें से उसी क्षण 10,000 और पैदा हो गए उसके जैसे। यह कौन सी बहुत विवेक की बात है जो आप कहना चाह रही हैं? इसमें अधिक से अधिक आपका बदला पूरा हो जाएगा। इससे समाज का कोई हित नहीं होने वाला। ठीक उस क्षण जब आप उसको फांसी दे रहे होगे या गोली मार रहेगे पूरे समाज की एक फैक्ट्री लगी हुई है। उसी 5 मिनट में 1000 ऐसे और पैदा हो गए। आपको बस यह मिल जाएगा ठंडक लगी। मुझे बदला मिल गया। पर्सनल रिवेंज मिल गया। उस पर्सनल रिवेंज से क्या होगा?

मुझे किसी एक महिला की थोड़ी सोचनी है। मैं एग्रीगेट बात कर रहा हूं। सबको कैसे बचाएं? सबको कैसे बचाएं? एक बड़ा बढ़िया अभी कहीं पर था किसी ने वीडियो भेजा तो उसमें था कि वो लड़की है और वो कह रही है मुझे छेड़ दिया, मुझे छेड़ दिया तो उसका भाई खड़ा हो गया मैं तेरा भाई हूं तुझे किसी ने छेड़ दिया बता किसने छेड़ा है? तो वो मारने पहुंच गया जिसको छेड़ा था वो वहां पे उसको तुझे पीटूंगा तभी वहां एक दूसरी लड़की आती है और इस भाई को बोलती है ये ये मुझे दिन रात छेड़ा करता है। दो और आ गए बोले इसको पीटेंगे। अब बताओ कौन पिटे कौन ना पिटे? जो न्याय व्यवस्था का ठेकेदार बनकर जो मोरालिटी का पैरोकार बनकर जा रहा है कि मैं रेपिस्ट को सजा दूंगा। वो खुद एक पोटेंशियल रेपिस्ट है। जो जा रहा है कि मेरी बहन को छेड़ दिया। मैं तुझे मारूंगा। दो और लड़कियां आकर बोलेंगी ये भाई साहब हमें छेड़ा करते हैं। और ये यहां इसको मारने आए हैं। अपनी बहन को छोड़ के सबको छेड़ते हैं।

अपनी बहनों को भी समाज कितना छोड़ रहा है। आंकड़ों से वाकिफ नहीं है क्या आप? ज्यादातर यौन शोषण की घटनाएं घरों के अंदर होती हैं। सड़कों पर नहीं, झाड़ियों में नहीं। वो घरों के अंदर होती हैं। और क्योंकि घरों के अंदर होती हैं। तो इसीलिए लड़कियां महिलाएं कुछ शर्म के मारे, कुछ दबाव के मारे मुंह भी नहीं खोलती हैं। अपने ही जो परिवार के लोग होते हैं, कुल कुटुंबी होते हैं वही लोग आके यौन शोषण कर रहे होते हैं। और यही लोग फिर संस्कृति के पहरेदार बन के खड़े हो जाते हैं। देखो महिलाओं के साथ सदव्यवहार करना चाहिए। ये सब अपने ही घरों में कैसे हैं? अपने ही घरों की लड़कियों के साथ कैसे हैं? आंकड़े उपलब्ध हैं। देखिए।

एक बार मैंने लिखा था अंग्रेजी में। मैंने कहा था जब समाज जागृत होने लगता है ना तो जितना बुरा नर को और नारी को लगता है रेप ऑफ द बॉडी में उतना ही बुरा उसको लगता है रेप ऑफ द माइंड में। और हम कभी नहीं बात करते हैं कि रेप ऑफ द माइंड की क्या सजा होनी चाहिए। ना आदमी बात करता ना औरत बात करती। औरत को भी यही लग रहा है कि मेरी सबसे बड़ी पूंजी मेरी यौन संपत्ति थी। तो अगर मेरी यौन संपत्ति छीन ली तो मेरा सबसे बड़ा नुकसान कर दिया। अरे उस ये समाज तेरी जिंदगी छीन रहा है। रेप ऑफ द माइंड हो रहा है तेरा लगातार पर तू उसकी कभी नहीं शिकायत करती। हां तेरे जेटल्स पर आकर किसी ने पेनिट्रेशन कर दिया। तू कह रही है फांसी दे दे। और जिसने दिन रात तेरा यहां पे रेप करा है उसको लेकर तू कोई शिकायत नहीं कर रही है। क्यों? क्योंकि वो लोग सम्माननीय कहलाते हैं। वह लोग बहुत बार धार्मिक भी कहलाते हैं। वह हमारे घरों के लोग हैं। वह हमारे शिक्षक लोग हैं जिन्होंने हमारा यहां से रेप करा है।

मैं बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि फिजिकल रेप छोटा अपराध है। फिजिकल रेप बड़ा अपराध है। लेकिन उतना ही बड़ा अपराध इसको भी तो मानेंगे ना। इसकी कोई नहीं बात करना चाहता। क्यों? क्योंकि मेरे जेनिटल्स ही सबसे बड़ी चीज है। देखो मेरे जेनिटल्स पर उसने आक्रमण कर दिया तो उसको फांसी दे दो। और जो तेरे यहां पर उसने आक्रमण करके तुझे यहां से बर्बाद करा है, इसकी क्या सजा हो? इसकी तू बात नहीं करेगी कभी।

हमें नहीं दिख रहा इससे हमारा पूरा जो सेक्सुअल आइडेंटिटी है। इन आवर एंटायर एक्सिस्टेंस वी आर आइडेंटिफाइड विद आवर जेटल्स रादर देन आवर माइंड। कृपा करके इसको यह मत कर लीजिएगा कि मैं कह रहा हूं कि रेप कल्पिट्स के साथ लीनियंसी होनी चाहिए। मैं कह रहा हूं रेप की समस्या को उसकी पूरी समग्रता में देखिए और जितना बड़ा गुनाह शरीर का बलात्कार है उतना ही बड़ा गुनाह मन का और जीवन का बलात्कार है। उसकी भी सजा होनी चाहिए।

प्रश्नकर्ता: सर अभी आपने एक बात कही थी कि जब वो रेप नहीं कर पाता है। फिजिकल एक्ट वो नहीं हो पाता है तो वो और कई तरीकों से उस चीज को बाहर निकालता है। उसमें इस चीज को मतलब वो ह्यूमन फीमेल बॉडी नहीं पिछले कुछ सालों में ऐसी बहुत खबरें आई हैं जहां पे वो फीमेल बॉडी तो यूज कर रहा है इस चीज के लिए बट एनिमल्स...

आचार्य प्रशांत: बेस्टियलिटी, मैं बीच में बोलना ही जा रहा था फिर बात आ ही गई हो गई बिल्कुल पर इसकी उतनी बड़ी सजा भी नहीं होती है। मैंने कहीं पर नहीं सुना कि कोई उग्र हो रहा हो कि बकरी का रेप कर दिया इसको फांसी पे चढ़ा दो। यह तो वही है ना?

आप सब टीवी पर म्यूजिक वीडियोस देखते हैं। आइटम नंबर्स देखते हैं। तमाम तरह की सामग्री देखते हैं। वो जो कैमरामैन है जो एकदम घुस करके उसके शरीर में क्लोज अप्स ले रहा है। ज़ूम इन करे जा रहा है। पहले तो उसको अधनंगा करा है। प्रेम में नहीं किस में? लालच में, दबाव में। इसीलिए तो वहां पर कपड़े उतार के खड़ी है। और फिर कैमरा लेकर के वो पूरा घुसा जा रहा है, घुसा जा रहा है। और यह मैं पोर्न की नहीं बात कर रहा। मैं बात कर रहा हूं वो सब चीजें जो आम घरों में स्ट्रीम हो रही है टीवी पर। यह रेप नहीं है?

विजडम रहित संसार में कोई किसी को कितना भी एक्सप्लइट कर सकता है। प्रेम शब्द का विपरीत क्या होता है? शोषण। लव का ऑोजिट क्या होता है? कुछ और नहीं। एक्सप्लइटेशन। किन्ही भी दो इकाइयों के मध्य दो ही रिश्ते हो सकते हैं। या तो प्रेम होगा नहीं तो शोषण होगा।

प्रेम हमको बता दिया जाता है उम्र के साथ आने वाली चीज है। और प्रेम है गहनतम शिक्षा का परिणाम। वो शिक्षा नहीं मिली तो प्रेम नहीं आएगा और ये मेरी बात सुनकर ना जाने कितने चिहक गए होंगे, उछल गए होंगे अपनी कुर्सियों से। बोले होंगे अरे प्रेम थोड़ी सिखाना पड़ता है। प्रेम तो अपने आप आ जाता है। कैसे आ जाता है? वो जैसे ही 12 14 साल के होते प्रेम हम सीख जाते हैं। कैसे सीखें? हॉर्मोंस ने सिखा दिया? दाढ़ी मूछ ने सिखा दिया? शरीर में आकार प्रकार उभार बदलने लगे। वहां से प्रेम आ गया। कूद के प्रेम कहां से आ गया? माने प्रेम नहीं आया ना और नहीं आया तो प्रेम जब नहीं होता तो क्या होता है शोषण तो वह आ गया।

हमें पता नहीं क्या समस्या है पढ़ने लिखने से शिक्षा से मैं जब भी किसी समस्या का समाधान बताता हूं कि समाधान शिक्षा है। लोगों को लगता है ये देखो ये इन्होंने फिर वही पुरानी लीग की आदर्शवादी बातें करनी शुरू कर दी। ऐसे थोड़ी होता है। शिक्षा से नहीं होगा। सूली से होगा।

पेंसिल से नहीं होगा, गोली से होगा। गोली से मुझे कोई समस्या नहीं है। बताओ कितनों को मारनी है? और यह ना हो जाए कि जितने बलात्कारी हैं प्रकट और प्रछन्न दोनों खुले और छिपे दोनों उनको अगर हम गोली मारना शुरू कर दे तो पता चले कि हमारे ही आधे प्रेमी लोग गायब हो गए। फिर क्या करोगे? अगर हर तरह के बलात्कारियों को गोली मारनी शुरू कर दी तो आधे तो हमारे स्वजन ही गायब हो जाएं। फिर क्या करोगे?

बच्चे होते हैं छोटे उनको स्कूलों में पता है गुड टच बैड टच सिखाते हैं। ये उनको बैड टच कौन करने आ रहा है? पड़ोस के मोहल्ले से कोई आ रहा है। घर के ही लोग हैं। इतने छोटे-छोटे बच्चों को लड़कियों को ही नहीं, लड़कों को भी सिखाना पड़ रहा है कि बैड टच क्या होता है? चार-चार साल के होते हैं। उनको गुड टच बैड टच उनको पहले ही पता है कि यह चीज ऐसे नहीं करनी है और कोई करे तो जाकर के मम्मा को बताना है। पापा भी करे तो जाके मम्मा को बताना है। ये है लड़कियों को छोटी चार-पांच साल की। उन्हें बोलना होता है बैड टच अगर डैडी भी करें तो जाके मम्मा को बता दो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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