हर घर को खा रहीं ये ताकतें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

Acharya Prashant

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हर घर को खा रहीं ये ताकतें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मैं नागपुर से हूँ, मैं विगत आठ महीनों से आपको सुन रही हूँ और एक घुटन थी, एक बेचैनी थी, एक अजीब सी तड़प थी। आ गयी यहाँ आपके पास इस शिविर में, एक अजीब सी शांति लग रही है, आनंद आ रहा है। मैं ये नहीं कह रही हूँ कि यह हंड्रेड परसेंट (शत प्रतिशत) है, कुछ परसेंटेज है जो मुझे लग रहा है। अंदर से जुड़ रही हूँ, ये जो आनंद है ये अस्थिर है। मैं घर जाऊँगी फिर से अपने कार्य क्षेत्र में जुड़ने वाली हूँ और मुझे पता है कि मेरे घर में ही चैलेंजेस (चुनौतियाँ) हैं। इस वीडियो में आप सबके सामने शेयर (साझा) कर रही हूँ कुछ बाते जो कहनी चाहिए।

मेरा जो भाई है वो कुछ ग़लत रास्तों में पड़ गया, और वो ग़लत रास्ते ऐसे थे कि उसने पैसे लगाये, सट्टे में, क्रिकेट में, लगभग दस लाख हो गया उसका।

हम एक मीडीयम (मध्यम) परिवार से हैं। वो हमसे दूर रहता था और बहुत दिन के बाद में हमको ये पता चला, तीन-चार साल के बाद उसने बताया, ब्याज लेकर इतना पैसा हो गया, और मर जाएगा, माँ-बाप को डर था मर जाएगा, कुछ कर जाएगा ये, तो खेत बेचा और पैसे बटा दिए।

अब फिर ये हालात है, वो फिर कहता है मेरे पास इतने पैसे बचे हुए हैं तो मेरे माता-पिता को डर रहता है कि सुधरेगा या फिर कुछ कर लेगा। हम कुछ नहीं कहते इसको। मैं कहती हूँ तो मैं सबसे बुरी बन जाती हूँ।

अब मैं यहाँ से जा रही हूँ, मेरी जो अवस्था है कि ठीक है मुझे मन की शांति मिल रही है। अब वो चैलेंज (चुनौती) है मेरे पास वहाँ जाकर। अब मैं न तो उसको सुधार पाऊँगी, न वो सुधर सकता है ये भी मुझे नहीं पता। इस अवस्था में मैं अपनेआप को कैसे मेंटेन करूँ। ये जो आनंद है मैं वहाँ पर हर पल कैसे महसुस कर सकती हूँ? मैं क्या करूँ, मुझे घुटन होती है अगर मैं उसके बारे में सोचूँ तो। क्योंकि मैं कुछ भी नहीं कर पा रही हूँ, न मेरे हाथ में कुछ है।

आचार्य प्रशांत: देखिए, आपकी जो अभी समस्या है, उसके समाधान के लिए कोई जादू जैसा संभव नहीं हैं। जो आपको घुटन होती है वो शायद लंबे समय तक होती ही रहेगी क्योंकि आप देख पा रही हैं कि कुछ ग़लत हो रहा है। जो कर रहा है ग़लत, जिसके साथ हो रहा है वो आपके बस में नहीं। वो व्यक्ति आपके नियंत्रण में नहीं है। आप शायद ऐसा अभी कुछ न कर पाए कि उसे तत्काल रोक सके।

क्या है जो आप कर सकती हैं? आपको समझना होगा कि ये जो समस्या है ये आपकी व्यक्तिगत समस्या नहीं है। इस समस्या से अगर आपको निपटना है तो आप सीधे इसकी जड़ पर ही प्रहार करिए ना।

ये बात, ग़ौर से सुनिएगा, सिर्फ़ आपके घर की नहीं है; ये बात हर घर की है अलग-अलग रूप में। कोई घर ऐसा नहीं है जहाँ कोई बिगड़ा हुआ न हो। कुछ घरों में पता होता है, कुछ घरों में पता भी नहीं होता है कि कई सदस्यों का मामला किस हद तक बिगड़ चुका है। ज़्यादातर घरों में तो सभी बिगड़े हुए होते है।

वहाँ पर जाइए, उस ताक़त से निपटिए जो हर घर को बिगाड़ती है। उस ताक़त से नहीं आप निपटेंगे और सिर्फ़ अपनी व्यक्तिगत समस्या पर केंद्रित रहकर कुछ मिलेगा नहीं। यूँही थोड़े बिगड़ गया भाई। जितने लोग यहाँ बैठे हैं सब थोड़ा विचारें कि कैसे बिगड़ा होगा। और जिन ताक़तों ने भाई को बिगाड़ा, क्या वही ताक़तें आपको बर्बाद नहीं कर रहीं?

क्रिकेट, सट्टा ये पूरा माहौल समझ रहे हैं आप? इस माहौल में मैं और कौन-कौन से शब्द जोड़ दूँ? क्रिकेट जोड़ा, सट्टा जोड़ा, झूठ वग़ैरह जोड़ा, पैसा जोड़ा। इसमें और कौनसे शब्द जोड़ देने चाहिए, जो इसी माहौल में आते हैं कि जिस व्यक्ति के जीवन में ये शब्द होंगे, क्रिकेट, सट्टा, पैसा, झूठ उसके जीवन में कुछ और शब्द भी होंगे, वो कौनसे शब्द हैं? लालच, और?

'क्या उम्र होगी भाई की जब वो इन सब चीज़ों में पड़ा था?'

प्र: बाइस।

आचार्य: बाइस की उम्र का एक लड़का है जिसके जीवन में ये शब्द हैं: क्रिकेट है, सट्टा है। उसके जीवन में निसंदेह कुछ और शब्द भी होंगे; कौनसे हैं?

श्रोतागण: नशा।

आचार्य: नशा, और?

श्रोतागण: दोस्त-यार।

आचार्य: दोस्त-यार, और?

श्रोतागण: क़र्ज़।

आचार्य: क़र्ज़, और?

श्रोतागण: सेक्स,

आचार्य: और?

श्रोतागण: लिविंग इन द मोमेंट।

आचार्य: लिविंग इन द मोमेंट। हाँ, और?

मनोरंजन—क्रिकेट मनोरंजन ही है न। उसी मनोरंजन का दूसरा रूप उसकी ज़िंदगी में ज़रूर होगा। क्या है जो इन सब चीज़ों को प्रोत्साहन देता है; नशे को, जुए को, सट्टे को, पैसे को? बॉलीवुड, मीडिया।

ये सब जो हैं, ये सिर्फ़ इन्हीं के घर को प्रभावित कर रहे हैं? ये जो अभी हमने बातें कहीं, ये जो ताकतें हैं, ये ताकतें क्या सिर्फ़ आपके ही घर को प्रभावित कर रही हैं? ये ताकतें हममें से हर एक के घर को प्रभावित कर रही हैं। ये ऐसी सी बात है कि कोई बोले 'भाई, वायु प्रदूषण बहुत बढ़ गया है और मेरे घर में किसी को अस्थमा हो गया।' ये उनका निजी मामला है क्या? उनके घर में कोई ख़ास निजी हवा चलती है जिससे अस्थमा हो जाता है? या वो जो चीज़ उनके घर को बीमार कर रही है वो सबके घर को बीमार कर रही है?

उसकी जड़ों पर जाना होगा।

क्रिकेट, सट्टा, फन (मज़ा), फ्रेंडशिप , यारी, धमाल ये सब एक साथ चलते हैं। मौज, मस्ती, मज़ा, मनोरंजन, लव (प्यार), सेक्स ये सब एक साथ चलते हैं। ये एक ही पैकेज (एकमुश्त) के हिस्से हैं। आप देख पा रहे हैं?

बहुत ज़्यादा संभावना है कि इनमें से कोई एक भी चीज़ आपकी ज़िंदगी में हो तो बाक़ी चीज़ें भी या तो होंगी या धीरे-धीरे आ जाएँगी। ये आप देख पा रहे हैं?

इनका वैसे ही साथ है जैसे चोली और दामन का साथ है—मुहावरा पुराना हो गया—जैसे चिकन और दारू का। लड़का घर में था तो बोलते थे 'देखो ये तो बिलकुल पंडितो के घर का है, प्याज भी नहीं छूता।' होस्टल आएगा फिर दारू और उसके साथ में चिकन और उसके बाद तो फिर और बहुत कुछ।

पैसा यूँही थोड़ी किसी को चाहिए होता है। आपके भाई को क्यों चाहिए पैसा? उस पैसे का वो कही न कहीं-न-कहीं कुछ देख रहा है न। ऐसा तो है नहीं कि उसे वो पैसा इसलिए चाहिए कि वो किसी बहुत नेक काम में लगवाएगा। गाँव में ग़रीबों के लिए अस्पताल बनवाना है पैसे से? संस्था को दान देना है उस पैसे का? क्या करना है? उस पैसे से क्या चाहिए — फन (मज़ा); 'लेट्स हैव फन'। और थोड़ा सा उसमें और बढ़ा दीजिए तो 'लेट्स हैव फन बेबी'। ठीक? यूँही थोड़े कोई सट्टा खेलता है!

ये सब किसने सिखाया उसको, किसने सिखाया? अब देखिए आप भूल कहाँ पर करती हैं। आपको इस बात से समस्या है भाई ने पैसे डुबो दिए लेकिन जिन ताक़तों ने उसे ये पैसे डुबोने सिखाए, हो सकता है आप ख़ुद उन ताक़तों की फैन (प्रशंसक) हों। अब कैसे काम चलेगा?

आप ज़हर के पेड़ की पत्तियाँ नोंच रही हैं और जड़ों में पानी डाल रही हैं। ये कौनसी होशियारी है! ये हम सब करते हैं। पत्ती में ज़हर है ये पता चल रहा है क्योंकि पत्ती खाते हैं तो बीमार पड़ जाते हैं। तो पत्ती से दुश्मनी निकाल रहे हैं, ' अरे, ये ग़लत हो रहा है, पत्ती नोंच दो।' और उसकी जड़ों में हम ही पानी डालते हैं।

घटिया फ़िल्में जो ये फन, सेक्स , सट्टा, पैसा, जुआ, नशा इनको प्रोत्साहित करती हैं, इन फ़िल्मों के वास्तविक फाइनेंसर कौन है? इन फ़िल्मों को वास्तविक फाइनेंसिंग या फंडिंग कौन दे रहा है? आप दे रहे हैं। आप नहीं हैं इनके फैन ? बोलिए! आप एक तरफ़ उनके फैन हैं, उनको लाइक करेंगे, उनको सब्सक्राइब करेंगे, उनकी फ़िल्में देखेंगे अमेजन, नेटफ्लिक्स, सबकुछ; फिर आपको ही ये बुरा लगता है आपके घर का एक बच्चा नशे में पड़ गया, जुए में पड़ गया। उन्होंने ही तो डाला है, जिनके आप फैन हैं।

और फिर आप उस व्यवस्था को सिर्फ़ नशे, मनोरंजन, फ़िल्मों तक क्यों सीमित रख रहे हैं? अब उसको और बढ़ाएँगे तो फिर उसमें पॉलिटिक्स भी आ जाएगी, पूरी एकॉनॉमिक्स आ जाएगी। ये जो पूरी व्यवस्था ही है न, वो इस तरीक़े की है कि वो जब भी किसी कमज़ोर शिकार को पाएगी, उसको हड़प जाएगी।

बस इतना सा होता है कि आप एक ज़ंजीर ले लें और उसको तनाव में डालें, खींचे दोनों तरफ़ से तो उसकी जो सबसे कमज़ोर कड़ी होती है वो पहले टूट जाती है। आप दोष किसको देंगे, कमज़ोर कड़ी को, जो घर का सबसे छोटा बच्चा हो, कमज़ोर बच्चा हो उसको दोष देंगे कि वह कमज़ोर कड़ी निकला? या आप उन ताक़तों को दोष देंगे जो उस ज़ंजीर पर इतना तनाव डाल रही हैं?

हम अपने परिवारों को एकदम ग़लत माहौल में रख रहे हैं और हम उसको बोलते हैं सामान्य माहौल। आप किसी घर में घुसें, वहाँ बच्चें बैठे हों टीवी के सामने और वो रिमोट लेकर के चैनल फ्लिप कर रहे हों, आप कहेंगी यह तो नॉर्मल सी बात है। फिर आपको ताज्जुब क्यों होगा जब उसमें से एक बच्चा नशेड़ी, दूसरा भंगेड़ी, तीसरा किसी और चीज़ में, चौथा सेक्स रैकेट में पकड़ा जाएगा? बोलिए, क्यों ताज्जुब होगा? आपको तो ये सब नॉर्मल लगता था न।

आपने ही वो टीवी ख़रीदा आप ही ने उन चैनल्स को सब्सक्राइब करा होगा। आप पैसे देते होंगे उन चैनल्स को देखने के। आपके ही पैसों का इस्तेमाल करके आपके घरों में आग लगाई जा रही है।

कोई भी बुरी ताक़त जीत नहीं सकती अगर उसे जनसामान्य का समर्थन न मिला हो।

आप आज दुनिया में जितनी भी बुराइयाँ देखते हैं न वो बुराइयाँ सिर्फ़ इसलिए क़ायम हैं क्योंकि आप उन्हें समर्थन देते हैं। बस हमारी बेहोशी ऐसी है कि हमें पता भी नहीं है कि हम उन्हें समर्थन देते हैं। और समर्थन से मेरा मतलब है फाइनेंसिंग।

अब वो ज़माना तो है नहीं कि कोई किसी की कनपट्टी पर बंदूक रखकर काम करा ले। अब जो भी होता है काम वो पैसे से होता है। तो आप जब किसी का समर्थन करते हैं तो एक ही तरीक़ा होता है — पैसे देना। और जब आप किसी को बर्बाद करना चाहते हैं तो एक ही तरीक़ा है — उसकी फाइनेंसिंग रोक दो; उसके फंड्स किसी तरीक़े से ब्लॉक (अवरुद्ध) कर दो वो किसी तरीक़े से, वो ख़त्म हो जाएगा।

ओलम्पिक्स में गोल्ड चाहिए? फाइनेंसिंग बढ़ा दो, गोल्ड आने लग जाएँगे। किसी पार्टी को जिताना है चुनाव में, उसकी फाइनेंसिंग कर दो वो जीतने लग जाएगी। किसी बच्चे का आईआईटी वग़ैरह में सिलेक्शन कराना है, लगा दो दस, बीस, चालीस लाख; बहुत संभावना है उसका सिलेक्शन भी हो जाएगा। ये तक हो जाएगा। हर माल बिकाऊ है। सबकुछ हो जाता है पैसे से।

आप बताइए आपका पैसा कहाँ जा रहा है। आप अपने महीने के ख़र्चे देखिए, आप बताइए कि आप पैसा कहाँ ख़र्च कर रहे हैं। आप जहाँ पैसा ख़र्च कर रहे हैं न, वही पैसा लौटकर आ रहा है, आपको खा रहा है; आपको पता भी नहीं है। बहुत संभावना है आपने जो जूता पहन रखा है, आपने जो कपड़ा पहन रखा है, आपने जो घर ख़रीदा है, वही से कोई ऐसी चीज़ निकली है जो आपको बीमार कर रही है। अपनी बीमारी हमनें मोल खरीदी है।

अगर ऐसा होता न कि हमारा दुश्मन हमसे दूर बैठा होता और वहाँ से हम से लड़ाई कर रहा होता तो बात दूसरी होती। अभी वो दूर नहीं बैठा है, अभी वो हमारा ही इस्तेमाल करके हमें बर्बाद करता है। हमें नहीं पता होता।

और वो कैसे आपका इस्तेमाल करता है? सबसे पहले आपके दिमाग़ में ये खुराफत डालकर कि वो आपको गुड लाइफ़ (अच्छी ज़िंदगी) दे सकता है। सबसे पहले आपके भाई को किसी-न-किसी ने यह समझाया है—उसकी भाषा में बता देता हूँ—कि 'देख लौंडे, ऐसी होती है गुड लाइफ़ , सट्टा लगाने का, पैसा बनाने का ये करने का, वो करने का।' ये किसी ने उसको समझाया है।

अपने भाई के मामले में आप क्या कर सकती हैं, क्या नहीं, कह पाना बड़ा मुश्किल है। लेकिन इतना आप कर सकती हैं कि औरों के घरों में यह हाल न हो। आपका भाई संभलेगा, सुधरेगा, पता नहीं। दूसरों के भाइयों को आप बचा सकती हैं। जितना ज़्यादा हो सके, सही बात घर-घर तक पहुँचाइए। नहीं तो ये हाल घर-घर में हो ही रहा है। आपमें साहस है, आपने खुलकर बता दिया। औरों में इतना साहस कई बार होता नहीं। कई बार तो साहस की बात भी नहीं, पता भी नहीं होता कि घर में बर्बादी हो चुकी है।

यहीं ऋषिकेश में उधर जब आप भंडारी स्विस कॉटेज वाला से आगे जाते हैं तो वहाँ पर शराब का ठेका बनाया है सरकार ने। उसके रास्ते में एक लड़का और एक लड़की दोनों नशे में धुत् गिरे मिले अपनी मोटरसाइकिल से। और वो सड़क पर पड़े हुए हैं दोनों, बाइक से गिर चुके हैं। तो उनको उठाया गया। वो लड़की बुलेट से गिरी हुई है, नशे में है। उसको उठाया गया और अभी वो पूरी उठी भी नहीं है और पूछ रही है 'भाया, ठेका किधर है।' उसके बाप को थोड़ी पता होगा, घर की तो वो पापा की परी होगी। पापा की परी पूछ रही है 'भाया ठेका किधर है।' पापा को वो मोतीचूर के लड्डू थमाती है। बॉयफ्रेंड के साथ मटन उड़ाती है। आपको पता भी नहीं है आपके घरों में क्या चल रहा है। जिन ताक़तों की मैं बात रहा हूँ वो हर घर को खा रही हैं।

संतोष मत मनाइए कि पता चल रहा है कि अभी किसी और के घर में हो रहा है। वो आपके भी घर में हो रहा है। और उसको रोकना है तो उसकी जड़ पर ही वार करना होगा।

ग़ौर से देखिए किन ताक़तों को समर्थन देते है चाहे अपने वोट के रूप में, चाहे अपने पैसे के माध्यम से!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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