वक्ता: भारत में कितने ऐसे लोग होंगे जो लेनिन को अपना आदर्श मानते हैं? बहुत कम? ठीक? ब्राज़ील के कितने खिलाड़ी होंगे जो सचिन तेंदुल्जकर को अपना आदर्श मानते हैं? ब्राज़ील के खिलाड़ियों के लिए -– कुछ भी वो खेलता हो –- आदर्श कौन हो सकता है? पेले, रोनाल्डो, रोनाल्डिन्हो। ठीक है न? हिंदुस्तान में बहुत कम लोग होंगे, जिन्होंने लाओ त्जू को अपना आदर्श माना होगा या कि यदि क्रांतिकारी हैं, तो डॉक्टर सुन्याद सेन को बड़ी इज्ज़त देते हों। मुश्किल हो जाता है न? आप अगर एक मुस्लिम हैं तो आपके लिए मुश्किल हो जाएगा कृष्ण को आदर्श मानना। आप अगर एक हिन्दू हैं, तो अड़चन आएगी मोहम्मद को आदर्श मानने में।
आदर्श कहाँ से आते हैं? बच्चा पैदा हुआ है, उसके पास आदर्श हैं? आदर्श कहाँ से आ गए? आदर्श का अर्थ ही क्या होता है? आदर्श का अर्थ ये होता है कि मौलिकता की सम्भावना को ख़त्म कर दिया जाए। मौलिकता मतलब ओरिजिनैलिटी। यह रास्ता है, यह पहले से बना हुआ है; इसी पर चलते जाओ। ऐसा चेहरा परंपरागत रूप से सुन्दर माना आया है, तुम भी ऐसा ही चेहरा पहन लो। क्यूँ?
आदर्श की जगह, मैं तुम्हें एक दूसरा शब्द दे रहा हूँ: दर्शन। मूलधातु दोनों शब्दों की एक ही है, आदर्श की और दर्शन की धातु एक ही है। पर मैं तुमसे कह रहा हूँ : दर्शन। दर्शन का अर्थ है जानना। जानना, देख पाना। साफ़-साफ़ देखो और तुम्हें उधार की आंखें लेने की ज़रूरत नहीं है, अपनी आँखों से देखो न! तुम सीखना ही चाहते हो अगर, तो अस्तित्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे सीखा नहीं जा सकता। यदि आदर्श बनाने का पूरा उद्देश्य ही तुम्हारा यही है कि, ‘’मैं उस आदर्श से कुछ सीखूँगा,’’ तो सीखने के लिए तो पूरा अस्तित्व खुला हुआ है।
ये तुम्हारा कैंपस है, तुम पेड़ से, पौधे से, घास से, चिड़िया से सबसे सीख सकते हो। लेकिन जब तुम एक जड़ आदर्श बना लेते हो, जब तुम यह कह देते हो कि, ‘’फ़लाना मेरा आदर्श है,’’ तो तुम उसके विपरीत से नहीं सीख पाओगे। अगर सफ़ेद तुम्हारा आदर्श है, तो तुम काले से नहीं सीख पाओगे। आदर्श बनाने का अर्थ ही यही है कि, ‘’मैंने छोटे को पकड़ लिया और बाकी सब को छोड़ दिया। एक हिस्से को पकड़ लिया और जो व्यापक है, उसको छोड़ दिया।’’ सफ़ेद से भी सीखो और काले से भी सीखो और सीखने का मतलब उनकी नक़ल करना नहीं होता। सीखने का मतलब होता है: उनको समझना, उन्होनें क्या किया।
तुम जैन हो, तुम महावीर को आदर्श बनाओगे, तो उन्होनें तो छोटे से छोटे से कीड़े को भी मारने को मना किया। अब तुम्हारे लिए कृष्ण को आदर्श मानना मुश्किल हो जाएगा क्यूँकी उन्होनें तो युद्ध करा दिया था। तो तुमने देखो, अपने आप को कैसा नुकसान पहुंचाया: ‘’एक को बनाऊंगा तो, दूसरे को छोड़ना पड़ेगा।’’ मैं कह रहा हूँ एक को पकड़ के दूसरे को छोड़ना क्यूँ ज़रूरी है? दोनों को समझो, दोनों सम्मानीय हैं। और दोनों के जितना करीब जाओगे, उतना तुम पाओगे कि दोनों में बहुत कुछ मिल रहा है।
जीवन में कोई रेखाएं नहीं है, कोई सीमाएँ नहीं है उन सीमाओं के अलावा, जो तुमने खुद बना ली हैं। तुमसे किसने कह दिया है कि कोई आदर्श बनाओ? मैं तुमसे कह रहा हूँ: कि पहली बात तो कोई आदर्श है नहीं और दूसरी बात कि अगर आदर्श बनाना ही है तो सब कुछ आदर्श है। क्या नहीं है ऐसा जिससे तुम कुछ सीख नहीं सकते? जिनकी इतिहास में बड़ी निंदा हुई है, जो इतिहास में सबसे ज़्यादा भरत्सना पाए हुए लोग हैं, उनसे भी तुम बहुत कुछ सीख सकते हो। और जो बड़े चमकते हुए चरित्र हैं इतिहास में, उनके जीवन में भी सब कुछ ऐसा नहीं है, जिसको तुम अपनाने लग जाओ। जानना ज़रूरी है कि ये क्या हुआ, कब हुआ और कैसे हुआ।
किसी का बड़ा प्यारा कथन है कि, ‘’ मेरे घर में साड़ी खिड़कियाँ खुली रहती हैं ताकि हर दिशा से हवा आए और बहे, पर मैं किसी भी दिशा से आती हुई हवा को ये इजाज़त नहीं देता हूँ कि, वो मुझे ही उड़ा कर ले जाए।’’ बात को समझ रहे हो? पूरा अस्तित्व खुला हुआ है तुम्हारे लिए। तुम्हारे ऊपर कोई बाध्यता नहीं है कि मुझे इसी देश से, या इसी क्षेत्र से, या इसी या इसी धर्म से या इसी परंपरा से कोई आदर्श उठाना है।
जितना व्यापक हो जाओगे, उतना तुम्हारा जीवन भी पूरा-पूरा रहेगा और जितना संकुचित रहोगे उतना ही छोटे-छोटे से रह जाओगे और ख़त्म हो जाओगे।
शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।