श्रोता: सर, हम पर इतना निवेश किया जा रहा है, तो हम से कुछ परिणाम की भी उम्मीद की जाएगी।
वक्ता: ये तो मात्र एक व्यापार है।
श्रोता: सर, ये तो जीवन है।
वक्ता: रिश्ता प्रेम का है या व्यापार का है ? मैंने तुम पर इतना पैसा लगाया है और अब वसूलने का समय आ गया। ये प्यार की नहीं, व्यापार की भाषा है।
प्रेम में शर्तें नहीं होती हैं कि मैंने तुम्हें इतना दिया है, तो अब लौटाओ। ये जो इस प्रकार का प्रेम है इसी में भ्रूण हत्या होती है न? भारत में जब हज़ार लड़के पैदा होते हैं तो उसके पीछे सौ लड़कियां पैदा होती हैं। तो लगा लो कि कितनी लड़कियां हैं जो गायब हो गयी हैं। वो इसी तरह गायब हो गयी हैं क्योंकि उनसे वसूली नहीं हो पाएगी, वो इस निवेश का रिटर्न नहीं दे पाएंगी न। तो उनका पहले ही क़त्ल कर दिया जाता है।
और अभी एक सज्जन ने कहा कि प्यार और व्यापार एक साथ चलते हैं। जब एक साथ चलते हैं तो क़त्ल होता है। और तुममें से कई ऐसे बैठे होंगे कि तुम्हारे पैदा होने से पहले कितनी लड़कियों की लाश गिरी होगी। नहीं तो तुम पैदा ही ना होते।
ये है तुम्हारे प्रेम का सच। फिर ऐसा ही प्रेम वसूलना चाहता है कि लड़का पैदा किया था इसलिए तो किया था कि वसूली हो सके। अगर सिर्फ देना ही देना था तो लड़की भली थी। लड़का पैदा ही इसलिए किया है कि इससे वसूलेंगे भी तो। होश में रहो कि दिन- रात तुम्हारे साथ हो क्या रहा है ?
इस होश के लिए कहीं दूर जाने की जरुरत नहीं है कि चल क्या रहा है। अपने ही जीवन को देख लो।
-’संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।