हकलाने का इलाज || (2019)

Acharya Prashant

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हकलाने का इलाज || (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मुझे हकलाने की समस्या है। लोग कहते हैं कि यह अर्द्ध-चेतन मन की आदत है। कृपया प्रकाश डालने का कष्ट करें की यह अर्द्ध-चेतन मन का क्या महत्त्व है हमारे जीवन में।

आचार्य प्रशांत: हकलाने, या न हकलाने का ही क्या महत्त्व है जीवन में?

इतने लोग हैं जो नहीं हकलाते, वो क्या स्वर्ग में जी रहे हैं? अभी अगर सिद्ध हो जाए कि तुम्हारा हकलाना मानसिक नहीं है, अपितु कोई शारीरिक ही बात है, तो? अभी तो शायद इस आशा में हो कि कोई मानसिक बाधा है, उसको हटा देंगे तो हकलाना हट जाएगा। अगर साबित हो जाए कि बात मानसिक नहीं है, शारीरिक है, बात सॉफ्टवेयर की नहीं है, हार्डवेयर की है, कि ये तुम्हारा हकलाना मिट ही नहीं सकता, तो क्या करोगे? मन पर बोझ लिए घूमते रहोगे?

‘हकलाना’ इतनी बड़ी बात है ही क्यों? हकलाते हो, तो हकलाते हो। क्या हो गया? अष्टावक्र आठ जगह से टेढ़े थे, क्या हो गया? हकला नहीं भी रहे हो, तो उससे भला कौन-सा लाभ मिल जाना है? दुनिया के निन्यानवे प्रतिशत लोग शायद नहीं हकलाते, तो? ये मुद्दा ही छोटा है। इस मुद्दे की अवहेलना करना सीखो।

और इस मुद्दे की उपेक्षा नहीं करोगे तो ऐसे मुद्दे तो एक-के-बाद-एक आते ही रहेंगे। फिर कहोगे कि – “पाँच फुट छः इंच का हूँ, आचार्य जी, चार इंच ऊँचाई और मिल सकती है क्या?” फिर कहोगे, “ज़रा गेहुँए रंग का हूँ, गोरा हो सकता हूँ क्या?” फिर कहोगे, “वज़न थोड़ा ज़्यादा है, किसी तरह कम हो सकता है क्या?”

कोई अंत है?

जैसा साजो-सामान मिला है, उसको लिए-लिए, वैसा ही मंज़िल की ओर आगे बढ़ो। हकलाकर बोल रहे हो या नहीं, ये बात महत्त्व की नहीं है। जो बोल रहे हो, बात में दम होना चाहिए। बहुत लोग हैं जो धाराप्रवाह बोलते हैं। लेकिन क्या बोलते हैं धाराप्रवाह? बकवास! व्यर्थ, गन्दगी।

जीवन को एक सार्थक लक्ष्य दो। बोलने लायक हो कुछ, तो ही बोलो। नहीं तो मौन बहुत सुन्दर है। और जब बोलो, तो हमने कहा, शब्दों में दम होना चाहिए, वज़न होना चाहिए।

हकलाने को, या इस प्रकार के किसी भी शारीरिक दोष को बहुत महत्त्वपूर्ण मत बना लो।

जीवन का केंद्र ही मत बना लो।

ठीक है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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