प्रश्नकर्ता: क्रोध पर कैसे काबू करें? गुस्सा बहुत आता है।
आचार्य प्रशांत: गुस्सा इच्छा के न पूरा होने पर आता है और कोई कारण होता नहीं है। आपने कुछ चाहा आपको मिला नहीं, आप उबल पड़े। जीवन इच्छाओं से जितना संचालित होगा, उतनी सम्भावना होगी न कि इच्छा पूरी नहीं हो रही हो? पचास इच्छाएँ करोंगे तो पक्की बात है कि उसमें से तीस तो नहीं ही पूरी होनी हैं और तीस नहीं पूरी होगी तो कितनी बार फिर गुस्सा आया?
प्र: तीस बार।
आचार्य: तीस बार, गुस्सा तो सिर्फ़ उस छण में आया जब ये प्रकट हो गया कि इच्छा नहीं पूरी हो रही है और इच्छा पाली कब-कब थी? बड़े लम्बे समय से पाल रहें थे इच्छा को, पाल रहे थे, पाल रहे थे। दिनभर इच्छा को पोषण और प्रोत्साहन दिया और जब इच्छा को प्रोत्साहन दे रहे थे तब बड़ा अच्छा-अच्छा लगता था। क्योंकि इच्छा वादा होती है कि सुख मिलेगा।
जब तो इच्छा को पनपा रहें थे और फ़ैला रहे थे, तब तो ऐसा लगता था जैसे ‘जन्नत’। और लगता था कि जैसे कि जन्नत तो और इच्छाएँ बुलाई। आजा तुम भी आओ, तुम भी आओ, ये सब और उसके बाद फिर क्या होना शुरू हुआ, नतीजें आने शुरू हुए।
पहली इच्छा रद्द, खारिज। रह गए उछलने, दीवार को मार रहे हैं अपना सिर फोड़ रहे हैं, जो भी करा। दूसरी इच्छा खारिज, तीसरी इच्छा अर्धपूर्ण, चौथी अब आप सोच रहे हैं ये भी जाएगी, ये भी होगी नहीं पूरी, चौथी पूरी हो गई संयोगवश। और पूरी होते ही आपका क्या हुआँ, दो बातें, पहला , ये पूरी हो सकती है तो और भी बहुत सारी पूरी हो सकती हैं। बुलाओ रे सबको बुलाओ।
दूसरा, ये पूरी हो कर भी पूरी नहीं हुई, अभी भी कुछ बचसा गया है, तो बुलाओ रे और बुलाओ क्योंकि ये इच्छा पूरी हो कर भी वो तो दे नहीं पाई न जो इससे चाहिए था, पूर्ण तृप्ति तो मिली नहीं तो और इच्छाएँ बुलाओ।
तो तीन इच्छाएँ जो पूरी नहीं हुई उनसे तो क्रोध आया, चौथी जो पूरी हो गई उससे और इच्छाएँ आई। अब जो वो और इच्छाएँ आई हैं वो? पूरी होंगी नहीं तो और क्रोध को जन्म देंगी।
इच्छा पूरी न हो, तो क्रोध को जन्म देती है और इच्छा पूरी हो जाए तो और इच्छाओं को जन्म देती है। इधर कुआँ उधर खाईं। अब गये फँस, बताओ तुम्हारी इच्छाएँ पूरी हो कि न हो?
पूरी हुई तो भी फँसे, नहीं पूरी हुई तो भी फँसे। तो समाधान फिर सिर्फ़ एक है, क्या? देख लो कि इच्छा का अर्थ क्या है। दबाओं नहीं इच्छा को, समझलो, उसकी पोल खोल दो, उसकी हकीकत ज़ाहिर कर दो कि ये बात है ये जो इच्छा ऐसे आ रही है ये खेल है सारा, अब उससे मिलेगी आज़ादी।
क्रोध लक्षण है, क्रोध तुम्हें बताता है कि तुम इच्छाओं के गुलाम हो। क्रोध तुम्हें बताता है कि विवेक नहीं है तुममें, तुम किसी भी चीज़ को अपनी चाहत बना लेते हो।
जो चीज़ चाहने लायक नहीं उसको चाहत बना लिया। अब उबलते-उबलते घूम रहे हो तो तुम ही बेवकूफ़ हो। एक है उबलेलाल, एक है जलेलाल तो, दोनों ने काम एक ही हुआ है, गये थे आग पर बैठ गए। एक उबले एक जले, कोई रोस्ट घूम रहा है, कोई फ़्राई घूम रहा है। चलिए बॉयल्ड आपके लिए।(श्रोता की तरफ़ इशारा)
बॉयल्ड समझते हो कौनसे, उबले वाले कौनसे हैं, जिनमें नीचे से आँच आ रही होती है ऊपर से ढ़कना लगा होता है। मतलब समझ रहे हो न? स्थिति अपनेआप को ऐसी दी है कि कामनाओं को उत्तेजना मिलती जा रही हैं और उनकी पूर्ति का साधन नहीं हैं। ऊपरसे ढ़क्का लगा हुआ है, फिर इनके जब विस्फोट होते हैं तो यकायक होता है पूरा फटते हैं। दबाएँ है, दबाएँ हैं अभी।
प्र: घर पर किसी एक का गुस्सा करने से पूरे घर के लिए नर्क बन जाता है जो भी उनके साथ जो रह रहें हैं।
आचार्य: क्योंकि उनकी इच्छा ये थी कि ऐसे के साथ रहें। जो नर्क का ही दूत हो, ऐज़ेन्ट हो, उसके साथ रह रहें हो और उसमें सुधार भी नहीं ला रहे, तो इसका अर्थ है कि तुम खुद भी नर्क को ही चुन रहें हो। ऐसे के साथ अगर हो तो तुम्हारा धर्म है कि लगकर के उसकी शुद्धि का यत्न करो, उसकी अगर सफ़ाई नहीं होगी तो तुम्हारी गन्दगी हो जाएगी।
घर में एक बीमार है, उसे संक्रामक बीमारी है या तो उसको ठीक कर दो या बाकी सबको बीमार होने दो। ऐसा नहीं हो सकता कि एक बीमार है और उसके विषाणु दूसरों को न लगे।
ये सब कह के मत पिन्ड छुड़ा लिया करो कि ये उसका अपना व्यक्तिगत मसला है, वो तो हैं ही ऐसे ‘साहब ज़रा गुस्सैल हैं’, नहीं साहब गुस्सैल नहीं है फिर पूरा घर नर्क है। और ये बात हम बड़ी, बड़े सम्मान के साथ कहते हैं कि देखिए, ‘उनका तो स्वभाव ही कुछ ज़रा तेज़ है।‘
प्र: तो फिर उन्हें रास्ते पर कैसे लेकर आएँ?
आचार्य प्रशांत: उनसे कहिए कि तुम ठीक रास्ते पर नहीं आते तो हम ठीक रास्ते पर चलेंगे। उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनका रास्ता ठीक नहीं है जब जो भी उनका रास्ता है आप उनके पीछे-पीछे ही चले जा रहे हो।
पहले आप दिखाओ तो कि ठीक रास्ते प्रति आपकी निष्ठा है और ऐसा नहीं होता है कि घर में एक व्यक्ति के मन की स्थिति बाकियों के मन कि स्थिति से बिलकुल भिन्न हो। अगर एक आदमी ऐसा है कि जो क्रोध और कामना में बिलकुल लिपटा हुआ है तो घर का माहौल ही ऐसा होगा जिसमें क्रोध और कामना खूब हैं।
वो पूरा माहौल ही बदलना पड़ेगा, उस माहौल से किसी एक पर ज़्यादा असर हो गया है किसी पर कम असर हुआ है लेकिन माहौल है तो ऐसा ही सबके लिए। वो पूरा माहौल ही बदल डालिए।
हो सकता है ऐसा कि टीवी चलता हो, एक आदमी बिलकुल लगातार देखता हो पकड़कर के और बाकी उतना लगातार न देखते हो, पर टीवी चलता है तो आवाज़ तो पूरे घल में पहुँचती है न या ऐसा है बाकी लोग अप्रभावित रह जाएँगे।
माँ-बाप लड़ते हो तो ठीक है लड़ने वाले जन दो ही हैं पर असर बाकी के पाँच-सात जनों पर पड़ेगा की नहीं, चाचा-चाची, दादा-दादी, बच्चे जो भी हैं घर में, पूरा माहौल ही बदलना पड़ेगा।