गुरु की पहचान क्या? || (2019)

Acharya Prashant

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गुरु की पहचान क्या? || (2019)

प्रश्नकर्ता: गुरु की पहचान क्या है?

आचार्य प्रशांत: गुरु की पहचान ही क्या है?

जो मुक्ति दिला दे, सो गुरु।

अगर मुक्ति लक्ष्य नहीं है, तो आपको कैसे पता कि आप किस सद्गुरु की सेवा कर आए? बहुत सद्गुरु घूम रहे हैं। 'सद्गुरु' तो अब सस्ता शब्द हो गया है, जिसको देखो वही अपने नाम के साथ लगा रहा है। आपको पता कैसे चलेगा कि आप किसकी सेवा कर आए? सद्गुरु की पहचान ही कैसे करोगे? बोलो?

इरादा आपका नेक है कि - “सद्गुरु की सेवा करो, मुक्ति अपने आप मिल जाएगी।” सुनने में बात अच्छी लगती है, लेकिन बात में पेंच है। इतने घूम रहे हैं सद्गुरु, तुम्हें कैसे पता लगेगा कि वो हैं भी सद्गुरु या ऐसे ही कोई फ़र्ज़ी अपनी दुकान खोल कर बैठा है? ये तो पता तभी लगेगा न कि जब पाओगे कि जीवन में बंधन कट रहे हैं, और मुक्ति के फूल खिल रहे हैं। तो लक्ष्य तो ‘मुक्ति’ को ही बनाना पड़ेगा।

सद्गुरु की सेवा करके मुक्ति नहीं मिलती। जो मुक्ति दिला दे उसका नाम 'सद्गुरु' है। मुक्ति केंद्रीय है।

सद्गुरु की परिभाषा मुक्ति से आएगी; मुक्ति की परिभाषा सद्गुरु से नहीं आएगी। केंद्र में सदा मुक्ति को रखो।

जिसको आज सद्गुरु समझ रहे हो, पाओ कि उसके पास समय बिता लिया, उसकी बात सुन ली, फिर भी मन का बोझ बढ़ ही रहा है, बंधन बढ़ ही रहे हैं, अंधेरा और अज्ञान कट नहीं रहा है:

जा गुरु से भ्रम न मिटे, भ्रांति न जीव की जाय। ता गुरु झूठा जानिए, त्यागत देर न लाय।।

जिस गुरु के साथ रह करके मन का अंधेरा दूर ना हो रहा हो, भ्रम ना कट रहे हों, भ्रांतियाँ ना मिट रही हों, क्षण नहीं लगाना चाहिए उसको त्यागने में। तुरंत त्यागो! ख़ुद भी डूबेगा, तुम्हें भी डुबाएगा! और ये गुरु का गोरखधंधा ख़तरनाक है। इस से ज़रा सम्हल कर रहना! बहुत सम्हल कर रहना!

किसी 'व्यक्ति' के प्रति निष्ठा मत रखने लग जाना, ‘व्यक्ति’ गुरु नहीं होता।

शिविर के तीन दिन आप सब गुरु उपासना करते हैं, जब मैं प्रवेश लेता हूँ। आप करते हैं, आपके साथ मैं भी करता हूँ; ये आसन गुरु का है। जब तक ये (स्वयं की ओर इंगित करते हुए) व्यक्ति इस काबिल है कि इस पर बैठ सके, इसकी सुनो। जिस दिन ये व्यक्ति इस काबिल ना रहे कि यहाँ बैठ करके इस पद के साथ न्याय कर सके, इसकी बिलकुल मत सुनना।

गुरु संदेशवाहक है।

जब तक वो बिना किसी विकृति के, घपले के, मिलावट के, मिश्रण के संदेश सुना रहा है, तब तक उसकी बात सुनने लायक है। जिस दिन उसने संदेश में माल-मिलावट शुरू कर दी, उस दिन उसको तुरंत त्याग देना। व्यक्तियों में क्या रखा है? लक्ष्य तो सच्चाई है। लक्ष्य तो आज़ादी है। व्यक्ति को थोड़े ही पूजना है। व्यक्ति तो आते-जाते रहते हैं।

हर व्यक्ति दूसरे ही व्यक्ति जैसा है; हाड़-माँस के पुतले आप हैं, हाड़-माँस का पुतला दूसरा व्यक्ति भी है, हाड़-माँस का पुतला वो भी है जिसको आप ‘गुरु’ बोलते हो। हाड़-माँस की पूजा थोड़े ही करनी है। हाड़-माँस की पूजा करनी है तो अपनी ही कर लो, तुम्हारे पास भी तो हाड़-माँस है! उस सच्चाई की पूजा करनी है जो उस हाड़-माँस से आविर्भूत होती है। हाड़-माँस से वो सच्चाई आनी बंद हो जाए तो जय राम जी की! या पाओ कि कभी आ ही नहीं रही थी, भ्रमवश किसी को सुन रहे थे—“त्यागत देर ना लाय”, जय राम जी की!

गुरु ऊँचे-से-ऊँचा साधन भी हो सकता है, और गुरु से बड़ा पिंजड़ा भी कोई दूसरा नहीं कि फँस गए तो फँस गए। जीवनभर फिर गुरु-सद्गुरु की आराधना चल रही है—वो ग़ुलामी हो गई। गुरु मुक्ति का वाहक भी हो सकता है और गुरु स्वयं बहुत बड़ी ग़ुलामी भी बन सकता है तुम्हारे लिए। अधिकांशतः गुरु के नाम पर ग़ुलामी ही मिलती है - भेजा ठप्प कर दिया जाता है, विचारणा ठस हो जाती है, सोचने-समझने की शक्ति ही ख़राब हो जाती है। अच्छे-अच्छे लोग जाकर के सत्संगों में, प्रवचनों में बैठ आते हैं, और उसके बाद भी मूर्खतापूर्ण बातें शुरू कर देते हैं, अंधविश्वासी हो जाते हैं।

तो इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि ये जो गुरु-सद्गुरु का गोरखधंधा है, इस से सावधान ही रहो! लगातार जाँचते चलो। और क्या जाँचना है? मुक्ति मिल रही है कि नहीं; बंधन कट रहे हैं कि नहीं; अंधेरा हट रहा है कि नहीं; जो बातें पहले नहीं समझ में आती थीं वो समझ में आ रही हैं कि नहीं—ये पैमाना है, ये मापदंड है।

नहीं तो, फिर कह रहा हूँ, किसी इंसान की पूजा थोड़े ही करने लग जानी है कि – “महाराज! महाराज! महाराज! आपके चरण कहाँ हैं?” क्यों चरण छूने हैं किसी के?

तुम अपना भला देखो। गुरु वो जो तुम्हारी भलाई में सहायक हो सके। जब तक भलाई में सहायक है, भली बात; नहीं तो तुम अपने रास्ते, हम अपने रास्ते।

अगर 'मुक्ति' ध्येय नहीं होगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि 'गुरु' कौन है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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