गुरु कहीं गुलामी का दूसरा नाम तो नहीं? || आचार्य प्रशांत, गुरुपूर्णिमा पर (2021)

Acharya Prashant

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गुरु कहीं गुलामी का दूसरा नाम तो नहीं? || आचार्य प्रशांत, गुरुपूर्णिमा पर (2021)

आचार्य प्रशांत: गुरु संदेशवाहक है—जब तक वो बिना किसी विकृति के, घपले के, मिलावट के, मिश्रण के सन्देश सुना रहा है; तब तक उसकी बात सुनने लायक है। जिस दिन उसने संदेश में माल-मिलावट शुरू कर दी, उस दिन उसको तुरंत त्याग देना। व्यक्तियों में क्या रखा है? लक्ष्य तो सच्चाई है। लक्ष्य तो आज़ादी है। व्यक्ति को थोड़े ही पूजना है। व्यक्ति तो आते-जाते रहते हैं। हर व्यक्ति दूसरे ही व्यक्ति जैसा है। हाड़-माँस के पुतले आप हैं, हाड़-माँस का पुतला दूसरा व्यक्ति भी है, हाड़-माँस का पुतला वो भी है जिसको आप ‘गुरु’ बोलते हो। हाड़-माँस की पूजा थोड़े ही करनी है। हाड़-माँस की पूजा करनी है तो अपनी ही कर लो, तुम्हारे पास भी तो हाड़-माँस है! उस सच्चाई की पूजा करनी है जो उस हाड़-माँस से आविर्भूत होती है। हाड़-माँस से वो सच्चाई आनी बन्द हो जाए तो जय राम जी की! या पाओ कि कभी आ ही नहीं रही थी, भ्रमवश किसी को सुन रहे थे—“त्यागत देर ना लाय,” जय राम जी की!

गुरु ऊँचे-से-ऊँचा साधन भी हो सकता है और गुरु से बड़ा पिंजड़ा भी कोई दूसरा नहीं कि फँस गए तो फँस गए। जीवन भर फिर गुरु-सद्गुरु की आराधना चल रही है—वो गुलामी हो गई। गुरु मुक्ति का वाहक भी हो सकता है और गुरु स्वयं बहुत बड़ी गुलामी भी बन सकता है तुम्हारे लिए। अधिकांशतः गुरु के नाम पर गुलामी ही मिलती है। भेजा ठप्प कर दिया जाता है, विचारणा ठस हो जाती है, सोचने-समझने की शक्ति ही खराब हो जाती है। अच्छे-अच्छे लोग जाकर के सत्संगों में, प्रवचनों में बैठ आते हैं और उसके बाद भी मूर्खतापूर्ण बातें शुरू कर देते हैं, अंधविश्वासी हो जाते हैं। तो इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि ये जो गुरु-सद्गुरु का गोरखधन्धा है, इस से सावधान ही रहो! लगातार जाँचते चलो। और क्या जाँचना है? मुक्ति मिल रही है कि नहीं; बन्धन कट रहे हैं कि नहीं; अंधेरा हट रहा है कि नहीं; जो बातें पहले नहीं समझ में आती थीं वो समझ में आ रही हैं कि नहीं—ये पैमाना है, ये मापदंड है।

नहीं तो, फिर कह रहा हूँ, किसी इंसान की पूजा थोड़े ही करने लग जानी है कि – “महाराज! महाराज! महाराज! आपके चरण कहाँ हैं?” क्यों चरण छूने हैं भाई किसी के? तुम अपना भला देखो। गुरु वो जो तुम्हारी भलाई में सहायक हो सके। जब तक भलाई में सहायक है, भली बात, नहीं तो तुम अपने रास्ते, हम अपने रास्ते।

अगर 'मुक्ति' ध्येय नहीं होगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि 'गुरु' कौन है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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