गुरु का काम क्या है? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2015)

Acharya Prashant

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गुरु का काम क्या है? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2015)

गुरु धोबी शिष कापड़ा, साबुन सिरजनहार|

सुरति शिला पर धोइये, निकसे ज्योति अपार||

– संत कबीर

वक्ता: जब हम कपड़े की, साबुन की, मैल की और पानी की बात करते हैं तो ये सब एक ही तल पर होते हैं| साबुन हो या मैल हो दोनों पदार्थ हैं, भौतिक हैं, रसायन हैं| ठीक है ना? कपड़ा हो या पानी हो, ये भी वैसे ही हैं जैसे साबुन और मैल| यहाँ तक की कपड़ा धोने वाला और कपड़ा भी एक ही तल पर हैं, क्योंकि वो भी भौतिक ही हैं| जिस हाथ से कपड़ा धोया जाता है और जो कपड़ा होता है उसमे एक समानता तो है ही ना, और वो बहुत मूल-भूत समानता है; क्या समानता है? दोनों पदार्थ हैं, तो वो एक ही तल पर हो गए सारे|

लेकिन गुरु और शिष्य के बीच जो घटना घटती है वो तलों का अतिक्रमण होती है, उसमें सब कुछ उसी तल पर नहीं हो रहा होता है जिस तल पर कार्यक्रम शुरू हुआ होता है| शुरुआत होती है एक तल पर, अंत कहीं और होता है|

मैल क्या है? मैल ये भ्रम है, मैल ये भाव है कि मैं वो हूँ जो मैं अपनेआप को समझता हूँ, यही मन का मैल है, और यही मन है|

क्योंकि ये मैल यदि हट गया तो मन वो रहेगा ही नहीं जो वो अपने आप को समझता है| हम सब अपने आप को कुछ समझते हैं ना, हम सब अपने आप को किसी न किसी रूप में जानते हैं| कुछ न कुछ हमारी पहचान है, कुछ हमारी अपने बारे में धारणा है, “मैं ये हूँ, मैं वो हूँ, मैं इतने साल का हूँ, मैं ये काम करता हूँ, मैं यहाँ का रहने वाला हूँ, मेरी ये जिम्मेदारियाँ हैं|”

अपने आप को इस रूप में परिभाषित कर के हम अपने आप को संसार में एक जगह दे देते हैं| “मैं कौन हूँ? मैं संसारी हूँ|” हम अपने आप को संसार के तल पे, भौतिक तल पे बैठा देते हैं| “मैं कौन हूँ? मैं संसारी हूँ, जिसका संसार में ये नाम है, ये धर्म है, ये काम है, ये परिवार है, ये समाज है, ये अवस्था है, ये अतीत है, ये आगे के लक्ष्य है, ये मैं हूँ”, और ये जो ‘मैं’ है ये भौतिक है| भौतिक है इसका प्रमाण ये है कि, ये मैं शुरू ही उसी दिन हुआ था जिस दिन शरीर ने जन्म लिया था, और जिस दिन ये शरीर नहीं रहेगा उस दिन ये मैं जैसी कोई चीज़ रहेगी नहीं|

तो पूरी तरह से भौतिक है, पदार्थ है| जो जन्म लेता है माँ के गर्भ से वो पदार्थ होता है ना, भौतिक चीज़| तो ये जो मैं है ये पूरे तरीके से क्या है? पदार्थ है| ठीक है ना? और इस ‘मैं’ ने अपने आप को एक मटेरियल प्लेन पर ही अवस्थित कर रखा है| बात आ रही है समझ में? यही मैल है, यही मैल है| ये जो मैल है इसकी अपनी कोई सत्ता नहीं है| आम तौर पे जब आप कपड़ा धोते हैं तो उसमे जैसा हमने कहा, “कपड़ा और मैल दोनों एक ही चीज़ होते हैं और दोनों को अलग-अलग किया जा सकता है|”

ये तो आपका मूल्य है कि आप कहते हैं कि कपड़े में जो लग गया वो मैल है| कपड़े में ही एक दूसरी चीज़ लग जाए तो आप उसको कहते हैं कि रंग है, डाई है और आप बहुत प्रसन्न भी हो जाते हैं, समझ रहे हो ना? और वही डाई अगर थोड़ा अव्यवस्थित तरीके से लग जाए तो आप कह दोगे कि ये मैल है| तो ये तो आपके मन के ढांचे और मूल्यों की बात है कि आप मैल को क्या प्रभाषित कर देते हो| कुछ भी आपके लिए मैल हो सकता है, जो आपको पसंद न आए वो मैल है; पर है कपड़ा और मैल एक ही|

पहले दूर-दूर होते हैं (हाथों से इशारा करते हुए) ये कपड़ा है, ये कोई रंग है या धूल है; रंग भी हो सकता है, धूल भी हो सकती है, पसीना भी हो सकता है, वो जब इक्कठे हो जाते हैं तो आप कहते हो कि कपड़ा गन्दा हो गया| जब वो अलग-अलग हो जाते हैं तो कहते हो कि कपड़ा साफ़ हो गया| अलग-अलग होने पर भी दोनों की सत्ता बची रहती है, अलग-अलग होने पर भी कपड़ा भी बचा रहता है और मैल भी बचा रहता है और इनके अलग-अलग होने में एक तीसरे तत्व का हाथ रहता है जो पानी कहलाता है| वो पानी भी बाहर से आया और अलग हो जाएगा और उसकी भी अपनी सत्ता बची रहेगी|

लेकिन जब मन की दुनिया में घटना घटती है तो मामला इससे ज़रा हट के होता है| वहाँ क्या होता है इसको समझिए, मन की दुनिया में जब घटना घटती है तो मैल की मन से प्रथक कोई सत्ता होती नहीं| आप जब सामान्य रूप से कपड़ा धोते हो तो कपड़ा साफ़ हो गया तो आपको दिखाई पड़ता है न की – गंदगी अब ये रही, और अब वो गंदगी बह रही है, वो गंदगी हट गयी है, पानी के साथ चली जा रही है; ठीक, ऐसे ही होता है ना| लेकिन मन की दुनिया में मैल आपको मन से हटकर कहीं दिखाई नहीं पड़ेगा, क्योंकि मन ही मैल है|

आप कह नहीं पाओगे कि “देखो मन साफ़ हो गया और मन का मैल देखो वो बहा जा रहा है” क्योंकि मन ही मैल है| मैल ही जमा हो हो कर के वो बन जाता है जिसको आप मन कहते हैं| इसीलिए मैल हटेगा जब, मैल जब हटेगा तो न मैल बचेगा न मन बचेगा| जब मैल हटेगा तो न मैल बचेगा न मन बचेगा और सामान्यता जब आप कपड़ा धोते हैं तो जब मैल हटता है तो कपड़ा बचता है एक तरफ़ और दूसरी तरफ़ मैल और पानी; ऐसा ही होता है न? मन की दुनिया में जब मैल धुलता है तो उसके बाद न मैल बचता है, न मन बचता है|

मैल था क्या? मैल मूलतया भ्रम ही तो था ना| भ्रम हट गया उसके बाद वो कहाँ से बचेगा? आपको कुछ ऐसा दिखाई पड़ रहा था, आपने कोई ऐसी बात धारण कर ली थी जो है ही नहीं| वो धारणा हट गयी, वो झूठा विशवास था वो टूट गया, अब उसको कहाँ से ले के आओगे दिखाने के लिए? अँधेरे में तुम को लग रहा था कि सामने कोई जानवर खड़ा हुआ है, रौशनी आई, तुम्हारा भ्रम टूट गया, अब वो जानवर तुम कहाँ से ले कर आओगे? ये जो जानवर है, जो है नहीं पर लगता है, यही मैल है, यही मन है और यही मैं है|

संसार क्या? जो अपने होने का आभास तो खूब कराता हो लेकिन जैसे ही करीब जा कर के ध्यान से उसे देखो तो खोखला नज़र आता हो| वही मैं है, वही संसार है, वही मन है|

अब निश्चित सी बात है, जब ये मैल ही नकली था, सिर्फ भ्रम था, तो इस नकली मैल को हटाने के लिए कोई असली पानी तो नहीं लगा होगा| जो सो रहा है, जब तुम उसे जगाते हो तो जगाते ही हो ना, कोई जन्म तो नहीं दे देते| जगना तो उसका स्वभाव था, तुमने बस उसकी नींद, उसके सपने, उसके भ्रम दूर कर दिए और तो तुमने कुछ नहीं किया|

जो उठ गया, जो जग गया, जागने के बाद तुम उससे कहो कि जाओ अपने सपने ले कर के आओ; क्या वो ला पाएगा? ये बिल्कुल वही बात हुई कि जो जग गया उससे तुम कहो कि “जाओ अपना मैल वापिस ले कर के आओ” वो नहीं ला पाएगा| क्योंकि भ्रम चीज़ ही ऐसी होती है, जब तक होती है, जब तक भ्रम लग रहा होता है तब तक उसमे बड़ी जान होती है, तब तक उसमे बड़ी ताकत होती है| जब आप सपने में होते हो तब सपना आपको बिलकुल नियन्त्रण में रखता है, बिलकुल छाया होता है आपके ऊपर लेकिन एक बार सपना गया तो अब सपने को कहाँ से लाओगे?

ठीक उसी तरीके से एक बार सपना गया तो अब जगाने की प्रक्रिया की भी कहाँ कोई ज़रूरत है? वो भी कहाँ से लाओगे? वो भी सार्थक मात्र तब तक थी जब तक व्यक्ति सोया पड़ा था, जब तक मन सोया पड़ा था| सोए हुए मन को ही गंदा मन भी कहा जाता है| ये सब एक ही बातें हैं, आध्यात्म की दुनिया में इनके लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग होता रहता है – सोया हुआ मन, गन्दा मन| तो किसी असली पानी की ज़रूरत नहीं थी, भ्रम को दूर करने के लिए बस एक इशारे की ज़रूरत होती है|

कोई असली व्याधि हो तो उसके लिए असली दवाई दी जाए| एक दफ़े मैंने आप लोगों से कहा था “*व्हेन द डिज़ीज़ इज़ अनरियल दैन द डायग्नोसिस इज़ द क्योर|*” दवाई नहीं चाहिए, मात्र ज्ञान, डायग्नोसिस , मात्र ये जानना कि तुम्हारी बीमारी नकली है| तुम किसी नकली बीमारी के भ्रम में घूम रहे हो और डॉक्टर के पास जाओ और वो तुम्हें असली दवाई दे दे तो तुम्हारा नुकसान हो जाएगा| हो जाएगा या नहीं? अभी तो तुम्हें कोई ऐसा चिकित्सक चाहिये जो तुम्हें बस ये बता दे कि तुम व्यर्थ परेशान हो, तुम्हारी सारी चिंताएँ व्यर्थ की हैं, तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है ये सब बोझ ले कर के घूमने की|

तो पानी यहाँ पर मात्र ज्ञान है, मात्र बोध है| वो कहाँ से तुम्हें दिखाई पड़ेगा? अगर पानी दिखाई देने लगे, अगर कपड़ा साफ़ होने के बाद मैल और पानी दोनों बहते नज़र आएँ तो उसका तो अर्थ ये होगा कि पानी और मैल दोनों एक ही तल की वस्तुएँ हैं, ये तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा; फिर तो हम कह रहे हैं कि बोध और भ्रम एक ही तल के हैं|

बात समझ में आ रही है?

तो मैल गयी, भ्रम था, गया और मैल के जाने के बाद कृपा करके ये न सोचें कि आपका पुराना कपड़ा बड़ा स्वच्छ हो के सामने आएगा| चाहत हमारी यही रहती है कि गुरु के पास जाएँ, हमारा अंतर वस्त्र, हमारा मन गन्दा हो गया है, उसकी सफ़ाई हो जाएगी| आपकी इच्छा कुछ हद तक पूरी भी होती है, सफाई हो जाती है लेकिन सफाई होने के बाद स्वच्छ कपड़ा नहीं बचता है मात्र ज्योति बचती है| कोई ये उम्मीद ले के न जाए कि गुरु आम धोबी की तरह है कि आप जाएँगे, अपना कपड़ा उसको देंगे और वो बस मैल मैल साफ़ कर देगा और कपड़ा बिलकुल साबुत आपको लौटा देगा; (जोर देते हुए) न|

निकसे ज्योति अपार|

बस अपार ज्योति बचेगी, मैल तो जाएगी ही, आपने जो आवरण दिया था, जो वस्त्र दिया था साफ़ करने के लिए, वो भी चला जाएगा क्योंकि आपके सारे वस्त्र जिस ताने बाने से बुने गए हैं वो ताना बाना अपने आप में मैल ही है| देखिए इस बात को समझिएगा थोड़ा, हम ये सोचते हैं कि “हम ठीक हैं, हम कुछ हैं, हम में कुछ सदगुण, हम में कुछ दुर्गुण” कि जैसे कपड़ा हो, कपड़े के ऊपर कुछ रंग रोगन किया हो जो सुन्दर दिखाई पड़ता हो तो आप उसको क्या बोलते हो? “सद्गुण”| और उसी कपड़े पर इधर-उधर का कुछ धूल, पसीना, मिटटी आ के लग गया हो तो आप क्या बोलते हो “दुर्गुण”|

तो हमारे मन में जो मॉडल रहता है वो ये रहता है कि मैं कौन? “मैं ये कपड़ा और उसमे कुछ चीज़ें हैं जो मनोवांछित हैं और कुछ चीज़ें हैं जो मनोनुकूल नहीं है|”तो हम क्या उम्मीद ले के जाते हैं गुरु के पास? कि वो क्या साफ़ करेगा? हम क्या उम्मीद ले के जाते हैं|

श्रोतागण: मैल साफ़ कर देगा|

वक्ता: कि वो सिर्फ़ मैल साफ़ कर देगा| ठीक है ना? और किसी भी सामान्य धोबी के यहाँ होता भी यही है| सही बात तो ये है कि आप धोबी के यहाँ जाएँ और वो मैल तो साफ़ करे ही करे, रंग भी साफ़ कर दे आपके कपड़े का तो आप उसके ऊपर चढ़ जाओगे| आप कहोगे कि “तुझे मैंने एक सीमित काम के लिए रखा है| वो सीमित काम क्या है?”

श्रोता१: मैल साफ़ करना|

वक्ता : “और तू बस उतना ही करेगा जितना मैं चाहता हूँ” और आपकी बात बिलकुल ठीक भी है क्योंकि धोबी आपका सेवक है, आप धोबी से ऊपर हो, आपने धोबी को नियुक्त किया है अपनी इच्छा अनुसार कुछ कमकरने के लिए, एक अर्थ में आप धोबी के मालिक हो, स्वामी हो| गुरु के साथ किस्सा दूसरा है, वो आपका सेवक नहीं है, वो आपकी इच्छा अनुसार काम नहीं करेगा|

पहली बात तो धोबी के पास आप जाते हो, गुरु के पास आप स्वयं जाते नहीं, वो खुद आपको खींचता है| पहली बात तो कि धोबी के पास तो आप जाते हो कि चल तू ज़रा मेरे हिसाब से काम कर दे गुरु के पास आप खुद कभी नहीं जाते| उसकी इच्छा होती है तो वो खींच लेता है आपको और दूसरी बात ये कि धोबी आपके कपड़े के साथ बस वो सब कुछ करेगा जिसकी आप अनुमति देंगे, जो आप चाह रहे होंगे| गुरु तो कपड़े के साथ कुछ और ही कर ले जाएगा|

हम क्या हैं? हम परतें हैं| हम एक के बाद एक कपड़ो की परतें हैं, हम आवरण की परतें हैं, हम संस्कारों की पर्ते हैं, उसको ही कपड़ा कहा जाता है, कपड़ा और कुछ नहीं है| हमारा भ्रम ये रहता है कि परतें ठीक हैं, उनमे बस थोड़ा सा कुछ गन्दा हो गया है| हमें ये समझ में नहीं आता है कि परत थोड़ी सी गंदी नहीं है, परत पूरी की पूरी ही गंदी है| तुम में दुर्गुण नहीं आ गया है, दुर्गुणों का नाम ही तुम हो|

अंतर समझिएगा|

हम कहते हैं कि “मैं हूँ, ठीक-ठाक और मुझ में कुछ बीमारियाँ आ गई हैं, मुझ में कुछ कमज़ोरियाँ आ गई हैं, मुझे कुछ भ्रम रहते हैं| बाँकी मैं ठीक हूँ, उन भ्रमों के अलावा बाँकी मैं ठीक हूँ, मैं ठीक ही नहीं हूँ, बहुत बढ़िया हूँ; क्योंकि उनको यदि हटा दो तो मुझ में क्या बचते हैं? सद्गुण|” तो हमे गर्व भी रहता है, हम कहते हैं “देखो ये सब मेरी कमजोरियाँ हैं और बाँकी जो बचा है वो क्या है मेरी? ताकतें| हम अपने आप को इसी रूप में देखते हैं|

गुरु आपको इस रूप में नहीं देखता| गुरु कहता है कि जिसे तुम अपनी मैल समझते हो वो तो मैल है ही निर्विवाद, लेकिन जिसे तुम अपना रंग-रोगन समझते हो, जिसे तुम अपनी खूबसूरती समझते हो, जिसे तुम अपनी पहचान समझते हो, जिसे तुम अपना सद्गुण समझते हो वो भी मैल है और वो ज़्यादा खतरनाक मैल है क्योंकि वो मैल के रूप में लक्षित नहीं होती| जो मैल दिख गयी की मैल है, वो बहुत खतरनाक नहीं रह गयी, क्यों? क्योंकि तुम उसकी सफ़ाई कर डालोगे, पर जो मैल खूबसूरती का रूप ले के बैठी हो, जो मैल तुम्हारी पहचान का रूप ले के बैठी हो, जिस मैल के साथ तुमने नाते जोड़ लिए हों, जिस मैल को तुमने अपना स्वरुप और स्वभाव समझ समझ लिया हो, वो मैल बहुत खतरनाक हो जाती है क्योंकि अब तुम जान दे दोगे उस मैल की रक्षा करने के लिए|

तुम अपनी ही बीमारि की रक्षा के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दोगे| तो गुरु उस मैल को साफ़ करने के लिए ज़्यादा उत्सुक रहता भी नहीं जो ले कर के तुम उसके पास जाते हो| गुरु उन सवालों के उत्तर देने को बहुत इक्षुक रहता भी नहीं जो तुम उससे पूछते हो| गुरु तो उन सवालों की ज़्यादा ताक में रहता है जो तुम छुपाते हो| जो सवाल तुमने पूछ दिया निश्चित रूप से वो दो कौड़ी का होगा| क्योंकि वहाँ तुम तैयार हो कि “ये सवाल सामने रख दिया अब इसका जो भी हो” उसकी तुम्हारे लिए कोई बहुत क़ीमत नहीं हो सकती, वहाँ पर तुम्हारा कुछ दाव पे नहीं लगा होगा| तुम्हारा कुछ दाव पे लगा होता तो तुम उसे ज़ाहिर नहीं करते?

सवाल तुमने ज़ाहिर कर दिया इसका मतलब की उस सवाल से तुम्हारा कोई ख़ास रिश्ता नाता है ही नहीं| तुमने कहा कि ये सवाल है दे दो, अब वो इसको तोड़ फोड़ भी दे तो हमे फर्क क्या पड़ता है| ये तुमने चतुराई दिखाई है, ये सवाल तुम्हारी चातुराइयाँ है, तुम्हारे सारे सवाल तुम्हारी चतुराईयाँ हैं| तो गुरु उन सवालों की बहुत परवाह नहीं करेगा जो तुम पूछ रहे हो| वो तो उन सवालों को पकड़ेगा जो तुम बिलकुल पूछ नहीं रहे| और तुम अच्छे तरीके से जानते हो कि तुमने क्या छुपा रखा है अंतर मन में|

बात समझ रहे हो?

जैसे की कोई कपड़ा हो और उसपे कोई कलाकृति बनी हो, कोई डिज़ाईन बना हो, जो तुम्हें बड़ा पसंद हो, तो तुम उसकी रक्षा करना चाहते हो| तुम उसको थोड़ी प्रस्तुत करते हो कि अरे! धोबी मेरा ये पसंदीदा डिज़ाईन भी धो देना| तुम उसको नहीं प्रसतुत करते, या करते हो? पर गुरु का काम है उसी डिज़ाइन को धो देना क्योंकि वो जो डिज़ाइन है वही तुम्हारा पैटर्न है, वहीं पर तुम्हारा चित अटका हुआ है, वहीं तुम्हारा गहरा संस्कार है| और वो जो तुम्हारा पूरा आवरण है, जो कपड़ा है तुम्हारा, वो पूरा का पूरा ही उन्ही चीज़ों का बना है जो तुम्हें पसंद है, जिनसे तुमने तादात्मय स्थापित कर लिया है|

तो जाते तो हो तुम गुरु के पास कि ज़रा ये मेरे दो चार दाग धो दीजिएगा| दाग तो धुलते ही हैं तुम भी पूरे पूरे धुल जाते हो, वापस ही नहीं आते, कपड़ा ही पूरा साफ़ हो जाता है| धोबी क्या साफ़ करेगा कपड़े को, धोबी तो साफ़ करता है तो साफ़ करने के बाद भी कपड़ा बच जाता है; गुरु साफ़ करता है तो साफ़ करने के बाद कपड़ा भी नहीं बचता| मैल कैसी, यहाँ तो कपड़ा भी गया, साफ़ हो गया, कुछ नहीं बचा, नग्न हो गए पूर्णतया| और तुम्हारी उस नग्न अवस्था का ही नाम है अनंत ज्योति| क्योंकि वही हो तुम स्वभाव रूप, मात्र प्रकाश, मात्र ज्योति पुंज| ये जो अपार ज्योति है ये तुम थे ही, ये तुम्हारे कपड़ों के नीचे छुपी रह जाती है और यही तुम्हारी त्रासदी है|

तुम प्रकाश बाहर-बाहर ढूढने के लिए परेशान होते हो, तुम समझ ही नहीं पाते कि तुम खुद प्रकाश पुंज हो लेकिन उस प्रकाश को तुमने अपने ही आवरणों के नीचे अच्छादित कर रखा है| और तुम्हारी आँखे सदा बाहर की ओर देख रही हैं कि किसी तरीके से थोड़ी रौशनी मिल जाए तो मार्गदर्शन हो जाए, किधर को जाऊँ कुछ पता चल जाए|

बात समझ में आ रही है?

हमने दो-तीन बातें बोली हैं| पहला, मैल क्या है? मैल और मन का रिश्ता क्या है? गुरु का कम क्या है? और मैल और मन के हटने के बाद तुम्हारा स्वरुप क्या है? तुम कौन हो? ये जो अपार ज्योति है, ये हमारे आम भौतिक तल की नहीं है, इसमें कोई बटवारा नहीं होता| संसार के तल पे तो ऐसा प्रतीत होता है कि शिष्य, गुरु और सिरजनहार ये अलग-अलग हैं;

गुरु धोबी शिष कापड़ा, साबुन सिरजनहार|

कि तीन इकाईयाँ हो जैसे| और तुम्हें भी ऐसे ही दिखाई देगा जब तुमने शुरुआत करी होगी, जब तुम अभी-अभी आए होगे, कि मैं गन्दा हूँ, ये दो चार धब्बे हैं इनकी सफ़ाई करनी है| तो तुम्हें तीन अलग अलग इकाईयाँ दिखाई दे रही होंगी| कौन तीन अलग अलग इकाईयाँ? मैं, गुरु और परमात्मा| लेकिन मैल गया नहीं कि फिर सारे भेद ख़त्म हो जाएँगे, ये तीन इकाईयाँ तुम्हें दिखाई ही नहीं पड़ेंगी| क्यों? क्योंकि मात्र प्रकाश बचेगा| जो तुम, वही गुरु; जो गुरु, वही परमात्मा; तीनो एक हो जाते हैं|

अलग अलग दिखने का कारण ही मैल है| यही तो परम भ्रम है ना की कुछ भी अलग-अलग है, यही तो भ्रम है ना की तुम गुरु से अलग हो और गुरु परमात्मा से अलग है| यही तो भ्रम है ना की परमात्मा कुछ है| जब भी तुम कहते हो कि कुछ है तो तुम उसे एक सिमित इकाई बना देते हो| यही तो भ्रम है ना की तुम कुछ हो, छोटे से, नन्हे से, कमज़ोर, सिमित; ये भाव गया नहीं कि तुम साफ़| उस सफ़ाई में न कोई चिंता है, न कोई बोझ है, न आज है, न कल है, न आना है, न जाना है, मात्र एक स्थैरय है, एक ठहरापन|

संसार तुम्हारे चारों ओर गति करता रहता है और तुम ठहरे से रहते हो, यही प्रकाश का स्वभाव है| इस कमरे को देखो जहाँ तुम लोग बैठे हो, अभी आए, फिर जाओगे भी और बहुत सारी गति विधि है जो इस कमरे के भीतर चल रही है लेकिन इस प्रकाश को देखो वो ठहरा हुआ है; ये स्वभाव है तुम्हारा| जो कुछ भी हो रहा है वो प्रकाश में हो रहा है, जो हो रहा है अपने मनोनुसार तुम उसे अच्छा बोल सकते हो, बुरा बोल सकते हो, प्रकाश को अंतर नहीं पड़ता| तुम अच्छा काम करो तो प्रकाश और उज्जवल नहीं हो जाएगा, तुम बुरा काम करो तो प्रकाश मद्धिम नहीं हो जाएगा| तुम आओगे अंदर तो प्रकाश कम नहीं हो जाएगा, तुम जाओगे बाहर तो प्रकाश ज़्यादा नहीं हो जाएगा; वो बस है|

आना, जाना, उठना, बैठना संसार का लगा रहता है, उसकी मौजूदगी बस है| गुरु के सामीप्य का या परमात्मा द्वारा धो दिए जाने का अर्थ यही है कि मुझे कुछ ऐसा मिल गया है जो अब जाता ही नहीं, वो बस है, लगातार है| बाहर स्थितियाँ बदलती रहती हैं, मौसम बदलते रहते हैं, दिन-रात, ऋतुएँ बदलती रहती हैं पर अपने पास कुछ ऐसा है जो बदलता नहीं| हमारे हाव-भाव बदलते रहते हैं, हमारी उम्र बदलती रहती है, हमारे सम्बन्ध बदलते रहते हैं, पर भीतर कोई ऐसा नाता जोड़ लिया है जो बदलता नहीं| और वो विशुद्ध है, मात्र बोध रूप; प्रकाश से बेहतर उसके लिए कोई शब्द चुना नहीं जा सकता|

तो, जैसा तुम से कह रहा था कि हम आम तौर पे कैसे होते हैं? ज़मीन पे पड़ी रेत की तरह, कि हवाएँ आई और उड़ा ले गई; देखे है ना वो रेत के टीले? वैसे होते हैं; अभी यहाँ हैं, हवाएँ आई, उड़ा ले गई कुछ देर में वहाँ नज़र आते हैं| अपना हमारा कुछ होता नहीं, कोई स्थैरय होता नहीं| ऐसा भी कह सकते हो कि जो उड़ के जाती है एक जगह से दूसरी जगह वही मैल है| जिसको तुम कहते हो ना कि मन बदल गया, ये जो चीज़ है जो बदल जाती है, यही मैल है| इसको एक विधि की तरह भी पकड़ सकते हो, जिसको भी बदलता देखो, जो कुछ भी बदलता देखो उसी को समझ जाओ कि मैल है और जिस क्षण में तुम ये समझ रहे हो कि जो भी कुछ बदलता दिखाई दे रहा है वो मैल है, उस क्षण में तुम उसके साथ हो जो बदल नहीं रहा है| तुम उसके साथ नहीं होते, तो तुम ये कभी समझ ही नहीं पाते कि जो बदल रहा है वो मैल है|

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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