प्रश्नकर्ताः छोटा मुँह और बड़ी बात है। तकरीबन, मैं एक-दो, एक-डेढ़ साल की बात कर रहा हूँ। पहले जब गुरुजी मिले थे 1995 में, तो कुछ देर उनके साथ रहे फिर वो आस्ट्रेलिया चले गये। तो तब भटक गया था। कभी याद आती थी उनकी, लेकिन शायद बिलकुल ही मेरा भ्रम हो। मैं निर्णय करने के काबिल नहीं समझता अपनेआप को।
आपका शिविर सितम्बर में अटेंड किया था, मैं कह सकता हूँ कि कोई ऐसा क्षण नहीं है कि जब गुरुजी या गार्ड या आप किसी वक्त न साथ हों या न मन में हों। तो ये क्या भ्रम है या ये बात ठीक भी हो सकती है?
आचार्य प्रशांतः शिष्य का मन ऐसे होता है जैसे तपती हुई मिट्टी। जेठ माह की मिट्टी। कई बार फट भी जाती है, इतनी तपती है, जून की मिट्टी। शारीरिक गुरु का आगमन ऐसे होता है जैसे आषाढ़। जून का अन्त आया और पानी बरसा। ये जो पानी की बूँद पड़ रही है, ये देही गुरु है। जो ऐसे सामने बैठ जाता है, आपके हाथ-पाँव लेकर के, मुँह लेकर के और कुछ-कुछ बोलता है। ठीक है? तो इसका जब मिलन होता है शिष्य से तो बात पता चलती है कि मिलन हुआ है। मिट्टी का रंग बदलता है और मिट्टी से खुशबू उठती है।
पहली बारिश की खुशबू, याद है न? और मिट्टी है, मिट्टी माने गन्दगी और उससे क्या उठ रही है? खुशबू। कितनी अजीब बात है! ये शिष्य और शरीरी गुरु का मिलन है। बारिशें होती हैं और जितना मिलता है शिष्य शरीरी गुरु से, उतना गीला होता जाता है, मिट्टी की तरह। कैसा? गीला। आसू बहते हैं, दिल नम हो जाता है, गीलापन आ जाता है। जहाँ सख्ती होती है वहाँ चीज़ आद्र हो जाती है, मुलायम हो जाती है।
पर शरीरी गुरु हमेशा तो रह नहीं सकता। बादल आगे बढ़ जाते हैं, बारिशें बीत गयीं, सावन, आषाढ़ सब खत्म, बीत गया। अभी तक मिट्टी बिलकुल गीली दिखाई दे रही थी। सतह पर भी पानी दिखाई दे रहा था। अब मॉनसून बीत गया। पहले तो तपती हुई मिट्टी थी फिर मानसून पर मॉनसून भी बेचारा हमेशा तो रह नहीं सकता था। शरीरी गुरु हमेशा तो रह नहीं सकता। अब ये जो गीली मिट्टी थी, ये फिर उपर से सूखी दिखाई देने लगती है। ऊपर-ऊपर से ये फिर सूख जाती है, सख्त हो जाती है। ये ऊपर-ऊपर से सूख जाती है पर अब पानी इसने पी लिया है। अब पानी इसके भीतर इसकी गहराई में पहुँच गया है, अब ऊपर-ऊपर नहीं पता चलेगा।
अब इसको देखोगे तो ऊपर-ऊपर से ये पानी का नाम लेती नहीं सुनाई देगी। जब तपी हुई थी तो पुकारती थी, ʻपानी मिले, पानी मिले, पानी मिले।ʼ जब पानी बरसा तो भी पुकारती थी, ʻपानी मिला, पानी मिला, पानी मिला।ʼ तब पुकार थी और पुकार में कौनसा शब्द था, ʻपानी।ʼ
जब तपती थी मई-जून में तो क्या पुकारती थी? ʻपानी मिले’, तो कौनसा शब्द था, ʻपानी।’ फिर जब पानी बरसा तो भी पुकारी, क्या? ‘पानी मिला, पानी मिला।’ जब पानी पी लेती है खूब तो उसके बाद पानी का नाम लेना ही बन्द कर देती है। जब गुरु अपना काम कर गया और खूब पिला गया पानी तो पानी का नाम लेना बन्द कर देती है और पानी दिखाई भी नहीं देता। मिट्टी सूख गयी और पानी कहाँ गया? पानी कहाँ गया? पानी अब मिट्टी की गहराईयों में उतर गया, ये है मिट्टी, ये मिट्टी है।
अब नहीं आपको सतह पर पानी कहीं दिखाई देगा। अब पानी का नाम नहीं ले रही है मिट्टी। अब पानी मिट्टी की हरकतों का आधार बन गया। अब मिट्टी क्या हरकत करेगी? अब मिट्टी में से प्राण प्रस्फुटित होंगे। सतह सूखी है लेकिन मिट्टी में से बहुत कुछ है जो प्रस्फुटित हो रहा है, निकलकर आ रहा है और वो जो अब मिट्टी से प्रकट हो रहा है वो प्रमाण है कि मिट्टी ने पानी पिया है। नन्हें पौधे उठ रहे हैं, घास उठ रही है, फूल खिल रहे हैं, ये प्रमाण है कि मिट्टी को पानी मिला है।
मिट्टी अब आवाज़ नहीं दे रही। मिट्टी अब बात नहीं कर रही पानी की। मिट्टी के कर्म और हरकतें अब बता रहे हैं कि इसको पानी मिल गया। अब ऊपर-ऊपर से बात नहीं है कि गुरु, गुरु, गुरु, गुरु। न सपने आ रहे हैं कि गुरु जी सपनों में आ रहे हैं, सब बन्द। क्योंकि अब गुरु कहाँ प्रवेश कर गया? गहराई में। केन्द्र में घुस गया गुरु। अब आप नाम नहीं लोगे। अब क्या नाम लेना! पानी तो गहरा पहुँच गया और जब गहरा पहुँच जाता है पानी तो उससे दुनिया-भर की प्यास बुझती है। सतह पर रह पानी तो कीचड़ कहलाता है।
गुरु ने तुमपर जो बरसाया, अगर वो तुमारी सतह पर ही रह गया तो उसका नाम है कीचड़ और अगर गहरे प्रवेश कर गया तो उससे दुनिया-भर की प्यास बुझेगी। दुनिया की प्यास बुझेगी लेकिन तुम्हारी सतह पर दिखाई नहीं देगा, तुम्हारी सतह सूखी ही रहेगी। असली शिष्य की यही पहचान है। गुरु उसके इतने गहरे जाकर बैठ जाता है कि फिर उसके लफ़्ज़ों में और लबों पर रहे, ये ज़रूरी नहीं रह जाता। हाँ, गढ्ढा खोदोगे तो पानी मिलेगा। आकर के बात करोगे, उसकी ज़िन्दगी को देखोगे तो पानी मिलेगा। उसपर उगी हरियाली को देखोगे तो तुम समझ जाओगे कि पानी तो इसमें बहुत है। इसके दिल में पानी है, दिल में पानी न होता तो इतनी हरियाली कहाँ से आती?
तो जो शिष्य गुरु की बात को सिर्फ़ सतह-सतह पर ले लेता है उसको तो कीचड़ मिलती है। और जो उसे गहरे तक पी लेता है, वहाँ फूल खिल जाते हैं, हरियाली आ जाती है। अभी आगे भी है मामला। फिर जितनी हरियाली आती है, बादल उतना बरसते हैं। जानते हो न रेगिस्तान में बारिश क्यों नहीं होती? बहुत कारण, एक कारण ये भी है कि वहाँ पेड़ नहीं है। जितने पेड़ होते हैं बारिश उतनी ज़्यादा होती है क्योंकि पेड़ ही बादलों को खींचकर लाते हैं। और पेड़ कब होंगे जब गहराई में पानी है। जितना पानी होगा उतना ज़्यादा मिलेगा पानी। लेकिन ये याद रखना है कि कीचड़ बादलों को खींचकर नहीं लाता।
सतह पर ही रह गया जो तुम्हें गुरु ने बरसाकर दिया तो कोई बादल नहीं आने वाला। बादल भी तुम तक तब आएगा जब जो गुरु से मिला वो सीधे दिल में उतर गया। दिल में उतर गया, तुम्हारे कर्मों में आ गया, तुम्हारी हरकतों में आ गया, तुम्हारे जीवन में आ गया। तुमसे बड़े-बड़े पेड़ फूटे, विशाल वृक्ष खड़े हो गये। अब ये वृक्ष और वर्षा करवाएँगे और क्रम चलता रहेगा, जंगल हो जाओगे।