गीता पढ़ी, गर्लफ़्रेंड चिढ़ी? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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गीता पढ़ी, गर्लफ़्रेंड चिढ़ी? || नीम लड्डू

मैं तो ऐसा भी सुन चुका हूँ कि, ”सर मेरी गर्लफ़्रेंड मुझे छोड़ कर चली गई।“ क्यों? “वो मैं हफ़्ते भर से रात को गीता के श्लोक फॉरवर्ड किया करता था व्हाट्सएप पर, वो चाहती थी कि मैं कुछ और भेजूँ उसको रात में होटम-हॉट। मैंने भेज दिए गीता के श्लोक। वो इसी बात पर हफ़्ते के अंदर छोड़ कर चली गई।“ भला हुआ छोड़ कर चली गई। ये गीता ने तुमको आशीर्वाद दिया है। पहला – तुम्हारी ज़िंदगी से ऐसी बला टाल दी। अनकूल नहीं है गीता। और जिन लोगों को अनकूल लगती है गीता, वो फिज़ूल हैं। आ रही है बात समझ में? अब कोई बोलेगा कभी, “अनकूल है”, तो बोलना, “अनकूल नहीं है, अनुकूल है।“ अनुकूल समझते हो? जस्ट राइट, बिफिटिंग , एक दम ठीक। उसको बोलते हैं अनुकूल। बोलो, “अरे! तुम्हारी चीज़ें तो बस कूल हैं। जो कूल होता है, थोड़ी देर में वो लूकवार्म (गुनगुना) हो कर के कूल नहीं रह जाता। ये जो मेरे पास है ये इतना अनुकूल है कि इसके आगे अब कुछ प्रतिकूल नहीं है। तुम्हारा कूल तो किसी काम का नहीं, ये जो मेरे पास है ये अनुकूल भी है, हॉट भी है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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