एक रात के ठाठ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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एक रात के ठाठ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: लड़का भले ही कितना बेअदब, बदतमीज़ रहा हो, जीवन भर उसने माँ-बाप की सुनी न हो, माँ को मुँह पर गरियाया हो, बाप को जूता मारा हो। लेकिन जब विवाह का समय आता है, तो कहता है 'माँ का दिल कैसे तोड़ सकता हूँ? अरे! माँ की आज्ञा है, शिरोधार्य है।’ (श्रोतागण हँसते हैं) तो तूने ज़िन्दगी में और कब माँ की आज्ञा मानी थी? पर इस चीज़ के लिए वो बताएगा कि माँ को बहू की तलाश है न। और दादी, वो दम तोड़ने को राज़ी नहीं बुढ़िया। वो कहती है, 'जब तक छौना हाथ में लेकर अपने ऊपर मुतवा नहीं लूँगी, तब तक मुँह में गंगाजल नहीं लूँगी'। (श्रोतागण हँसते हैं)

दादी के बड़े तुम भक्त हो गये अचानक और यही दादी जब बिस्तर में पड़ी-पड़ी कहती है कि मेरे लिए दवाई ले आ दे, तो तुम क्रिकेट का बल्ला उठाकर बोलते थे कि (श्रोतागण हँसते हैं) नहीं, मार नहीं देऊँगा, 'खेलने जा रहा हूँ'। तब तुम्हारे पास इतनी क़द्र नहीं थी दादी की कि दादी को समय पर दवा लेकर देदो। पर अब तुम बड़ी बात बताते हो कि मैं तो दादी भक्त हूँ। दादी का दिल रखने के लिए शादी कर रहा हूँ, कसम से। नहीं तो मैं तो पैदा ही हुआ था ब्रह्मचारी।

हाँ, इस तरह के तुम्हारे इरादे हैं कि घरवालों को खुश करना है, इसकी इच्छा बतानी है, ये करना है, बहाना देना है, तो ठीक है। और भी होती हैं बातें। बड़ी अजीब बातें हैं, समझना — विवाह के पीछे मकसद किस तरीक़े के होते हैं? वो होते हैं न वो, प्री-वैडिंग (शादी से पहले), ऊपर वो खिलौना कैमरा लेकर घूमता है, फिर नीचे कहा जाता है कि चलो अब तुम शाहरुख खान हो, तुम काजोल हो। जितनी हसरतें हैं निकाल लो अभी सब। वो सब हो जाएगा। एक दिन के लिए ही सही, हीरो-हिरोइन तो बन गये न? हमारा भी एल्बम बना, हमारी भी पिक्चर बनी।

तुम्हारे भीतर जितनी हीन भावना होगी उतना तुम चाहोगे कि एक दिन के लिए ही सही हम भी राजा-रानी बन जाएँ। विवाह के दिन हर लड़का चाहे वो कितना भी बड़ा..., घोड़ी पर तो चढ़ लेता है न। नहीं तो ऐसे तो टट्टू भी उसको अनुमति न दे। टट्टू भी बोलेगा मैं तुझपर चढ़ूँ वो ज़्यादा शोभा देगा। (श्रोतागण हँसते हैं) औक़ात देख किसकी ऊपर है? पर! विवाह के दिन एक-से-एक मूर्खानन्द घोड़ी चढ़ने को पा जाते हैं। तो अगर घोड़ी चढ़ने के ही तुम्हारे अरमान हैं, तो करलो विवाह लेकिन ये मत कहना कि उससे अकेलापन दूर हो जाएगा।

और विवाह के दिन कैसी भी लड़की हो एक दिन के लिए राजकुमारी बन जाती है। बन जाती है न? एक रात की राजकुमारी। और बड़ा अरमान रहता है, 'वहाँ सिंहासन पर बैठेंगे'। लोग आएँगे ऐसे भेंट अर्पित करेंगे (भेंट अर्पित करने का अभिनय)। बड़ा अच्छा लगता है। बिलकुल तर जाते हैं, एकदम गीले, है न? अनुभवी लोग हुँकारा भरते चलें। (श्रोतागण हँसते हैं)

मुझे भी वरना बड़ा अकेलापन लगता है। और फिर दहेज़ में मिले स्कूटर पर नयी-नयी पत्नी को बैठाकर के क़स्बे में शोभा यात्रा निकालने का गौरव ही दूसरा है। झाँकी निकली है भाई, पूरा शहर देखता है। हर कोण से झाँक-झाँककर देखता है। बड़ा गौरव प्रतीत होता है। और फिर साधारण-से-साधारण स्त्री भी जब माँ बन जाती है, तो यकायक वो सम्मान की पात्र हो जाती है। देखा है?

तो बड़ी प्रेरणा उठती है कि करो ये सब। कर लो ये सब, सम्मान मिल जाएगा। मैं नहीं मना कर रहा। ठीक है? सम्मान ही चाहिए ये सब करके तो मिल जाएगा पर अकेलापन तो नहीं दूर होगा। वो अकेलापन तो तुम्हे भीतर-भीतर खाता ही रहेगा, बींधता ही रहेगा।

मर भी जाओगे तो भी वो अकेलापन नहीं मिटेगा। इतनी सस्ती चीज़ नहीं है साधना, कि आग के फेरे लेकर के पूरी हो जाए। उस आग में अपनी आहुति देनी पड़ती है। फेरे लेने भर से काम नहीं चलेगा। यज्ञशाला में ख़ुद को ही समिधा बना देना होता है।

बाक़ी सब ठीक है। नाश्ता वगैरह सुबह अच्छा मिलेगा। टिफ़िन पैक हो जाया करेगा। नहीं तो बेचारे कुँवारों का तो ये ही रहता है दस रूपये के अमृतसरी छोले-कुलचे। रूखे लग रहे हों तो दस रूपये का बूँदी का रायता भी मिलेगा साथ में। वो बेचारे इसी पर पलते हैं। बीवी आ जाती है तो तर माल, मिल्टन के टिफ़िन में पैक होकर के मिलता है। वही टिफ़िन जो दहेज़ में लायी होती है साथ में। कभी दहेज़ का सामान देख लेना उसमें टिफ़िन ज़रूर होगा। बढ़िया सेहत बनती है, तोंद निकल आती है। नयी पैंट खरीदनी पड़ती है, चमक आ जाती है। पैंट में! नयी है भाई। जितने बेचारे यहाँ छड़े बैठे हैं वो भावुक हो रहे हैं कि अरे! अगर इतने लाभ हैं तो आचार्य जी, पहले क्यों नहीं बताया? लाभ-ही-लाभ हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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