एक चेहरा जो भुलाए नहीं भूलता || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

Acharya Prashant

10 min
118 reads
एक चेहरा जो भुलाए नहीं भूलता || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी! लगभग एक साल से ऊपर हो गया आपको सुन रही हूंँ। शुरुआत में बहुत ज़्यादा सबकुछ सकारात्मक मिल रहा था, सकारात्मक बदलाव आ रहे थे उसके बाद फिर अभी ये मार्च दो हज़ार इक्कीस का शिविर भी किया था, ग्राफ ऊपर ही जा रहा था।

लेकिन फिर जो नौकरी मैंने शुरु की जुलाई में, तो उसके बाद बाहरी प्रभाव पड़ा। एक व्यक्ति की तरफ़ आकर्षित हुई, काफ़ी ज़्यादा लगाव हो गया था। उसकी वजह से तब से ग्राफ मेरा नीचे जा रहा है।

वो काफ़ी दर्द भरा रहा। बाद में मुझे महसूस हुआ कि मैं बेहोश थी उस समय पर। अभी मेरे दिमाग में उस व्यक्ति का चेहरा आ जाता है या उसके विचार आते हैं। मैं जितना भूलने की कोशिश करती हूंँ, सोचती हूंँ काम पर ध्यान दूँ, वो नहीं हो पाता है।

तो मुझे लग रहा है ये सब होने की वजह से अभी अब मैं आपको अच्छे से सुन भी नहीं पा रही हूँ। वो सब होने की वजह से शायद। यही है।

आचार्य प्रशांत: जूझते हुए सुनो। जितना सुन सकते हो उतना सुनो। छटपटाते हुए सुनो। कोई और विकल्प नहीं है। आपको कोई बहाना, कोई झुनझुना थमाने का मेरा काम नहीं है। दो बातें आपने बतायीं कि एक तो नौकरी और दूसरा संगति। मैं बिलकुल समझता हूँ कि पेट चलाने के लिए नौकरियाँ करनी पड़ती हैं, बिलकुल व्यर्थ की नौकरियाँ। होती हैं भौतिक मजबूरियाँ। सभी को करनी पड़ती हैं शायद।

मैं कोई ऐसा तरीका नहीं बताऊँगा कि घटिया नौकरी करते हुए भी कैसे शांति और आनंद से तनाव-मुक्त रहा जा सकता है। मैं कहूँगा जितने दिन वो घटिया नौकरी करनी पड़ रही है उतने दिन छटपटाओ और एक क्षण को भी भूलो मत कि तुम घटिया नौकरी कर रहे हो।

तीन साल तक मैं भी कारपोरेट में था। तो जलो। मैं जला इसीलिए बाहर आ पाया। मैं भी वहाँ बैठकर मेडिटेशन शुरू कर देता तो अभी वहीं होता। कि जब तनाव ज़्यादा बढ़े तो गुरुदेव का म्यूजिक (संगीत) लगा दें, गाइडेड मेडिटेशन (पथ प्रदर्शित करने वाला ध्यान)! (श्रोतागण हँसते हैं)

पूर्णिमा का चाँद है, सरोवर पर उसकी छवि पड़ रही है, प्रतिबिंब प्रेमिका के मुख जैसा लग रहा है। और अभी-अभी बॉस से लतियाए गये हैं। न ईमानदारी है, न खुद्दारी है कि इस्तीफा दे दें।

तो मेडिटेशन करने बैठ गये और बोले, 'ये बढ़िया है। जितनी बार लात पड़ती है उतनी बार मेडिटेशन कर लेते हैं। एकदम सब शांत हो जाता है।' नहीं कुछ मत करो। जल रहे हो तो पूरी तरह जलो। पूरी तरह जलो।

"बिरहिनि ओदी लाकड़ी, सपचे और धुँधुआय। छूटि पड़ौं या बिरह से, जो सिगरी जरी जाए।।"

“कबीर ओदी लाकड़ी"— ओदी लकड़ी जानते हो क्या है? ओदी लकड़ी माने गीली लकड़ी। "धुधुके और सिसिआय"— गीली लकड़ी होती है, वो धुँआ मारती रहती है, सिसियाती रहती है। "छूटी पड़ो या बिरह से, जो सगरी जरी जाए"— इस अवस्था से, इस पीड़ा से एक ही तरीक़ा है उसके लिए बचने का— पूरी जल ही जाये।

आधा-आधा मत जलो, पूरे जल जाओ। गीली लकड़ी की तरह नहीं रहो, सूखी लकड़ी की तरह धकधकाकर जलो, लपट मारो और समाप्त हो जाओ। कुछ तो है न, तुम्हारे भीतर का जो तुम्हें वहाँ रखे हुए है! तुम्हारी छटपटाहट तुम्हें बताएगी कि वो जो कुछ भी है तुम्हारी छटपटाहट से बड़ा नहीं है। होगा कोई लालच, होगी कोई मजबूरी जो आपको वहाँ रखती है। आपकी पीड़ा आपको बताएगी कि उतनी मजबूरी सहना ठीक नहीं।

पीड़ा जब मजबूरी से बड़ी हो जाएगी नौकरी छोड़ दोगे। हम अपनी पीड़ा का पूरा अनुभव ही नहीं करने देते स्वयं को। हम फ्राइडे (शुक्रवार) को मूवी देख आते हैं, सैटरडे (शनिवार) को बार में बैठ जाते हैं। संडे (रविवार) को सेक्स कर लेते हैं। मंडे (सोमवार) को फिर लात खाते हैं। (श्रोतागण हँसते हैं)

पूरा छटपटाओ न! ऐश, आराम करने के लिए नहीं पैदा हुए हो। 'ओम् शांति ओम्' बोलने के लिए नहीं पैदा हुए हो। संघर्ष के लिए पैदा हुए हो। बहुत तुम शांतिप्रिय होते तो यकीन मानो पैदा ही नहीं होते। पैदा ही अशांति होती है।

तो पैदा होने के बाद ये क्या स्वांग है कि मुस्कुरा रहे हैं और कह रहे हैं, ‘आऽ! आनंद के फूल खिले हैं’! अभी एक चूहा काट ले पीछे से। फिर? (श्रोतागण हँसते हैं) इतने में आनंद स्वाहा हो जाएगा।

कुछ आ रही है बात समझ में?

वही बात संगति की भी है। बेहोशी में हम रिश्ते बना लेते हैं। अब प्रायश्चित करो न! जान लगाओ, श्रम करो। पर कम-से-कम झूठ मत बोलो अपनेआप को कि सब ठीक चल रहा है। ये लगातार याद रखो कि ये मामला तो गड़बड़ ही है।

हाँ, बिल्कुल होगा कि बैठोगे तुम और तुमको गंगा में भी छवि दिखाई पड़ रही है किसी की। और जिसकी दिखाई पड़ रही है आदमी वो ऐसा ही है बिलकुल, बेकार! लेकिन तुम्हारे लिए वही बन गया है, उसमें रब दिखता है। और कोई ऐसा उपाय नहीं है, ऐसी दवा नहीं है कि वो यादें आनी बंद हो जाएँँगी। मेरे पास तो नहीं है कम-से-कम। वो सब यादें आती रहेंगी।

अपना काम करते रहो। सिरदर्द होता रहेगा, काम करते रहो। जो ज़िन्दगी में था, बहुत कभी जिससे मोह बैठ गया था हो ही नहीं सकता कि उसको एक झटके में उखाड़ फेंको। वो तो परेशान करेगा, रोज़ याद आएगा। दिन में दूर रखोगे, सपनों में आएगा। क्या करोगे? उदास रह लो थोड़ा। फिर काम पर लग जाओ। उदासी के साथ काम में लग जाओ।

देखो, मैं काम जानता हूँ। उदासी की दवा नहीं जानता। शायद काम ही उदासी की दवा बन जाए। कौन से काम की बात कर रहा हूँ? ऊँचे काम की। (श्रोतागण हँसते हैं)

तड़प का कोई इलाज नहीं है मेरे पास। आप सामने बैठे हैं। आप बड़े प्रेम से आये हैं यहाँ। दबाने-छुपाने वाली कोई बात नहीं है। मैं बहुत तड़पा हूँ, बहुत छटपटाया हूँ। मैं अभी भी छटपटाता हूँ। मैं किसी भी तरीक़े से कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं हूँ।

आपको कहीं कोई ग़लतफ़हमी न हो जाये इसीलिए मैं पहले ही बताए देता हूँ। मैं समाधि में नहीं दिन भर बैठा रहता, मैं क्रोध भी करता हूँ, मुझे मोह भी होता है, जितने दोष हो सकते हैं मैं सबका अनुभव करता हूँ। हाँ, काम सबसे ऊपर रखता हूँ।

अशान्ति मेरे पास है, चिंता मेरे पास है, थकान मेरे पास है। आप जो बात बताएँ सब मेरे पास है। तो मैं आपसे बोलूंँ कि देखो, ये सब मिट जाएगा; तुम बिलकुल निर्विचार में प्रवेश कर जाओगे। तो बेकार का पाखंड वग़ैरा मुझे अच्छा लगता नहीं।

जो सीधी बात है वो करनी चाहिए न! आप यहाँ पर सच्ची बात सुनने आए हैं, बनावट से कोई लाभ नहीं। जो आपके साथ हो रहा है वो सबके साथ हुआ है, मेरे साथ भी हुआ है। ग़लत नौकरियों में भी सब फँसते हैं, ग़लत सम्बन्धों में भी सब फँसते हैं।

और शायद ये एक अनिवार्य सज़ा होती है पैदा होने की कि पेट के लिए भी आपको समझौते करने पड़ते हैं; और मन और तन भी आपसे सौ तरह के समझौते कराते हैं।

जूझते रहो, लगे रहो वो संघर्ष ही बहुत दूर तक ले जाता है फिर। बहुत आगे तक ले जाता है। ईमानदार पीड़ा इतने सौंदर्य को जन्म देती है कि पूछिए मत। अगर आपकी पीड़ा में सच्चाई है तो उसमें से सच्ची कला उभरेगी। वास्तव में पीड़ा के बिना कोई भी सच्चा काम हो ही नहीं सकता।

पीड़ा निष्प्रयोजन नहीं होती, उद्देश्यहीन नहीं है। उसके बड़े लाभ होते हैं। जो आग है न, सूखी लकड़ी वाली, उसमें तपिए। निखर जाएँगे। जितना आप अपने दर्द के प्रति संवेदनशील होते जाएँँगे उतना ही आपको समझ में आएगा कि आपका दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है, वो सबका है। क्योंकि वो हमारी मूल वृत्ति से उठ रहा है जो सबमें है।

सम्बंधों की पीड़ा सब झेलते हैं, नौकरी की पीड़ा सब झेलते हैं, जीवन के बेहोश निर्णयों की पीड़ा सब झेलते हैं। आप कहाँ किसी और से अलग हैं? जैसे-जैसे आप ये जानते जाएँँगे आपका आध्यात्मिक विकास ही तो हो रहा है।

आदमी और आदमी के बीच की दूरी मिटती जाएगी। आपको दिखता जाएगा— आपका दर्द दूसरे के दर्द से अलग नहीं। फिर आपके जीवन में करुणा, अहिंसा सब अपनेआप आएँँगे। ईमानदार पीड़ा बहुत सारे सदगुणों को लेकर आती है जीवन में।

जिस आदमी के जीवन में वास्तविक दर्द है वो हिंसक नहीं हो सकता। दो ही स्थितियाँ हैं मन की— पीड़ा और पीड़ा के होते हुए भी सच्चाई। दोनों ही स्थितियों में साझा क्या है? पीड़ा।

तो पीड़ा से तो कोई आपको छुटकारा या निजात मिलनी नहीं है। हाँ, ये जो दूसरी स्थिति है इसी को आनंद भी कहते हैं। आनंद में भी पीड़ा है, दोनों ही स्थितियों में पीड़ा है। दूसरी स्थिति को आनंद कहते हैं।

आनंद पीड़ा से मुक्ति का नाम नहीं है। आनंद में भी पीड़ा है। पीड़ा के बावजूद अगर आपने घुटने नहीं टेक दिये तो इसे आनंद कहते हैं। जो पीड़ा में भी अडिग है वो आनंदित है। आनंद कोई खुशी वग़ैरा नहीं है, फूल वग़ैरा खिलने को आनंद नहीं कहते। मुस्कुरा-मुस्कुरा कर दौड़ रहे हैं, कूद रहे हैं इसको आनंद नहीं कहते। इसको नौटंकी कहते हैं।

मुझे नहीं मालूम मेरी बात सहायक होगी कि नहीं, पर अपनी ओर से जो सच कह सकता था आपसे कहा है और इस आस्था पर कहा है कि सच सदा सहायक होता है। उसे छुपाना नहीं चाहिए। अगर सच सहायता नहीं कर सकता तो फिर सहायता कहीं से नहीं मिलेगी।

पीड़ा आपको गंभीरता देती है, गहराई देती है। सुख में आप उथले हो जाते हैं। किसी आदमी से घृणा करनी हो तो उसे तब देख लेना जब वो बहुत सुखी हो। लोग सबसे ज़्यादा घृणास्पद तब हो जाते हैं जब वो अपने सुख के क्षणों में होते हैं।

अपने उन क्षणों को याद करो जब तुम बहुत सुखी थे। घिन आएगी। और हमें घिनौने कामों में ही तो सुख मिलता है। सुख से कहीं बेहतर है दुःख। ये सच्चाई की ओर ले जाता है, यथार्थ के दर्शन कराता है।

मैं जान बूझकर के अपने ऊपर दुख डालने की बात नहीं कर रहा हूँ। पहले ही बहुत है। और डालोगे कहाँ से? प्याला पूरा भरा हुआ है और दुख कहाँ से लाओगे?

तो इतनी बुरी चीज़ भी नहीं है पीड़ा, दर्द, असफलता। उसके साथ जीना सीखिए। एक दिन उससे दोस्ती हो जाती है, फिर आनंद!

दर्द से दोस्ती!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories