दूसरों को माफ़ कैसे करें?

Acharya Prashant

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दूसरों को माफ़ कैसे करें?
फ़ॉरगिवनेस कुछ होता ही नहीं है, फ़ॉरगेटफ़ुलनेस होता है। ये अपना अपमान है कि एक तो दूसरा घाव दे गया और पीछे से हम उसको लगातार याद रख रहे हैं। ज़िंदगी का नियम है कि जो चीज़ याद रखते हो, वही चीज़ कोई और रूप लेकर दोबारा आ जाती है। भूलना सीखो, आगे बढ़ते चलो, और जगह बनाओ ताकि ढंग के लोग ज़िंदगी में आ पाएँ। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा नाम सीमा है। मैं सिविल हॉस्पिटल में डॉक्टर काम कर रही हूँ। मेरा प्रश्न चैप्टर 85 से है, “बियोंड फ़ॉरगिवनेस।” काफ़ी बार हमारे साथ होता है कि कुछ बातें होती हैं जो हम पकड़ के बैठ जाते हैं। दूसरों को माफ़ नहीं कर पाते, और काफ़ी बार हम ख़ुद को भी कुछ चीज़ों के लिए माफ़ नहीं कर पाते, तो उन्हें पकड़ के बैठ जाते हैं। तो सर, हम कैसे बियोंड फ़ॉरगिवनेस पहुँच पाएँगे?

आचार्य प्रशांत: वही है, दूसरे को भगवान बनाना बंद करो। वो इतना बड़ा कैसे हो गया कि उसने इतना बड़ा घाव दे दिया। अगर आपको इतना बड़ा घाव लगा है कि आप भूल ही नहीं पा रहे, तो इतना बड़ा घाव देने वाला भी उतना ही बड़ा होगा। तो बहुत बड़ा घाव खाकर तो आपने किसी को भगवान बना लिया। और वो भी किसको बना दिया, जिसने घाव दिया है।

कोई आपको प्यार दे, आप उसे भगवान बना लो। थोड़ा सा समझ में आता है फिर भी। कोई आपको ज़िंदगी ही दे, आप उसको कहो भगवान हो, समझ में आता है। कोई आपको घाव दे रहा है और आपने उसको भगवान बना लिया, ये कैसी बात है?

आप कहते हो न कि पल-पल सुमिरन करेंगे। सोचो, जो आपको बहुत चोट देकर गया है, आप उसका पल-पल सुमिरन ही तो करते हो। वो तो भगवान का किया जाता है। जिसको आप लगातार याद रखो, वो तो क्या हो गया आपका? वो तो पूज्य हो गया। उसी की आराधना कर रहे हो, उसी की साधना कर रहे हो, याद कर रहे हो, “ऐसा ज़ख़्म दिया है जो न फिर भरेगा।” ये अपना अपमान है कि एक तो वो चोट मार गया और पीछे से हम उसकी पूजा कर रहे हैं। एक तो वो घाव दे गया और पीछे से हम उसको लगातार याद रख रहे हैं।

हर आदमी इस लायक नहीं होता कि उसको अपने मन में जगह दी जाए। जब वो तुम्हें चोट दे गया है तो उसको याद क्यों रख रहे हो?

लेकिन हमारे यहाँ ये चलता है कि चोट दी है उसने तो बदला भी तो लेना है, तो याद रखना है। उल्टा होना चाहिए। मन तो मंदिर है, साफ़ जगह है। यहाँ उसको रखो न, जिसको रखने से तुम ऊँचे उठते हो। राक्षसों की प्रतिमा थोड़ी रखते हैं, कि रखते हैं? कि राक्षस आया और तुम्हें ऐसे मार के चला गया और तुम उसकी प्रतिमा को यहाँ (मस्तिष्क की ओर इंगित करते हुए) पर रखे बैठे हो। ऐसा करते हैं क्या?

प्रतिमा उसकी रखी जाती है, जिसको देखो तो मन साफ़ हो जाए, ज़िंदगी थोड़ा बेहतर हो जाए, कुछ ऊँची अच्छी बात याद आए। जिसकी छवि से ही कुछ बहुत गंदा-गंदा याद आए, उसको क्यों याद रख रहे हो? उसकी छवि को क्यों यहाँ (मस्तिष्क की ओर इंगित करते हुए) पर सहेजे, सम्भाले बैठे हो?

और फिर हम बात करते हैं फ़ॉरगिवनेस की। फ़ॉरगिवनेस कुछ होता ही नहीं है, फ़ॉरगेटफ़ुलनेस होता है। फ़ॉरगिविंग नहीं होता, फ़ॉरगेटिंग होता है। “तू आदमी इस लायक नहीं था कि तुझे याद रखूँ, आई डिड नॉट फ़ॉरगिव।”

प्रश्नकर्ता: फ़ॉरगॉट।

आचार्य प्रशांत: “आई फ़ॉरगॉट।” ऐंड दैट्स व्हॉट यू डिज़र्व, नॉट टू बी फ़ॉरगिवन बट टू बी फ़ॉरगॉटन।

भूलना सीखो।

ये (मस्तिष्क की ओर इंगित करते हुए) बहुत बड़ी जगह नहीं है, यहाँ गड़बड़ चीज़ रखोगे तो अच्छी चीज़ बाहर आ जाएगी। इतना सा है (छोटा सा), सब यहाँ गड़बड़ माल रखोगे तो अच्छा माल कहाँ रखोगे? और गड़बड़ माल अच्छे माल को बाहर निकाल देता है कोहनी मार के, क्राउडिंग आउट हो जाती है उसकी। और हमने तो सब गड़बड़ माल ही रखा होता है यहाँ पर। किसी भी इंसान के पास जाओ तो वो बिल्कुल ज़ख़्मों का पुलिंदा है। अ बॉक्स ऑफ़ वूंड्स।

किसी से बात करो और जैसे ही तुम्हारी उससे थोड़ी दोस्ती गहराएगी तो वो तुमको अपने ज़ख़्म दिखाना शुरू कर देगा। मेरे साथ बचपन में ऐसा ट्रॉमा हुआ था, उसके बाद एंट्रेंस एग्ज़ाम के दिन मेरी तबीयत ख़राब हो गई। आपकी किस्मत अच्छी होगी तो अपने बारे में कोई एक आध ढंग की बात बता पाएगा, बाक़ी तो यही बताएगा कि मैं कितना बेचारा हूँ और मेरा अतीत में कितना शोषण हुआ है और लोगों ने मेरे साथ कितनी बुराइयाँ करी हैं। यही है न?

जिनको हम अपना मानते हैं, उनको तो सबसे ज़्यादा हम यही बताते हैं। आज मैं आपको बहुत कुछ अपने दिल की बात बताना चाहती हूँ और दिल की बात सारी यही होगी, मेरे साथ ये हुआ, मेरे साथ ये हुआ, मेरे साथ ये हुआ। मैं लड़की थी तो घर में पेरेंट्स डिस्क्रिमिनेशन करते थे। भैया को डबल रोटी, मुझे सिंगल रोटी। यह याद क्यों रख रहे हो? हम नहीं कह रहे कि ऐसा नहीं हुआ था। बिल्कुल हुआ होगा। पर ये याद अगर रखोगे न, तो तुम्हारा भविष्य भी तुम्हारे अतीत जैसा बन जाएगा।

अतीत अगर गड़बड़ है, हो सकता है अतीत गड़बड़ हो, होता ही है, कौन सा हम बहुत स्वर्गनुमा जगहों से आ रहे हैं। अतीत गड़बड़ होते हैं। तो अतीत अगर गड़बड़ है तो भविष्य अतीत जैसा बनाना है या अतीत से बिल्कुल अलग?

प्रश्नकर्ता: अलग।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो उसमें जो सूत्र है, नियम है ज़िंदगी का, वो ये है कि जो चीज़ याद रखते हो न, वही चीज़ दोबारा ज़िंदगी में आ जाती है, कोई और रूप लेकर के। तुम्हें लगेगा कि तुमने एक नया भविष्य बना लिया है, पर वो जो नया भविष्य होगा, वो अतीत का ही कोई संस्करण होगा।

ये भी हो सकता है कि जो भविष्य है, वो अतीत से 180 डिग्री माने विपरीत हो। पर विपरीत होकर भी वो संबंधित किससे है?

प्रश्नकर्ता: अतीत से।

आचार्य प्रशांत: अतीत से ही संबंधित है न। उसी रोड पर ऐसे जा रहे थे, उसी पर ऐसे आ गए, रहे तो उसी रोड पर गए न। जो चीज़ें जीवन को बेहतर न बनाती हों, वैल्यू एडिशन न करती हों, उन चीज़ों को याद रखना माने ख़ुद से दुश्मनी निभाना।

याद रखने के लिए कितना कुछ अच्छा है इस दुनिया में। आप यहाँ पर आए हो, इतनी किताबें हैं, आपने 1% इसमें से न पढ़ी हों। इतने ऊँचे लोग हैं, इतनी ऊँची उनकी बातें हैं। इनको याद रखो न। सड़ी-गली बातें, मैं स्कूल जा रही थी, कुत्ता काट गया। और वो कुत्ता कोई इंसान भी हो सकता है। और हमारे यहाँ ये होता है, लड़कियाँ स्कूल जा रही होती हैं, पीछे से इंसान काट जाते हैं, बिल्कुल होता है। क्यों याद रखें? वो कुत्ता ही है। आप क्यों उसको ट्रिब्यूट दे रहे हो याद रख के? वही क्यों भगवान बना रहे हो उसको?

आगे बढ़ते चलो, भूलते चलो और जगह बनाओ ताकि ढंग के लोग ज़िंदगी में आ पाएँ।

भले ही वो मरे हुए लोग हों। यहाँ पर जिनकी किताबें हैं, वो 99% ज़िंदा नहीं होंगे। पर उनको भी यहाँ (मस्तिष्क की ओर इंगित करते हुए) पर रखना कहीं बेहतर है, सड़े-गले ज़िंदा लोगों को यहाँ पर रखने से।

प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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