धार्मिकता माने कट्टरता? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

Acharya Prashant

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धार्मिकता माने कट्टरता? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। आपको सुनते हुए मुझे कुछ दस महीने हो गए हैं और आपने उपनिषदों पर बहुत ज़ोर दिया है। पर जब मैं लोगों तक आपका संदेश लेकर जाता हूँ तो लोग मुझपर कट्टरवाद यानि फंडामेंटलिज़्म का सवाल उठाते हैं। ईमानदारी से, मुझे भी कभी-कभार इस पर शक उठ जाता है। कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: एक तो ‘फंडामेंटलिज्म' का अनुवाद ‘कट्टरवाद' नहीं होता। न! बिलकुल भी नहीं। फंडामेंटल्स माने क्या होता है? आधार, मूल। तो फंडामेंटलिज़्म को अधिक-से-अधिक आप मूलवाद बोल सकते हो या आधारवाद बोल सकते हो। और अगर मूल या आधार में सच है तो सत्यवाद बोल सकते हो।

हालाँकि सत्य का कोई वाद नहीं होता। ‘इज़्म’ नहीं है ट्रुथ। ‘ट्रुथिज़्म' क्या होता है? कुछ नहीं। तो फंडामेंटलिज़्म को 'मूलवाद' बोल सकते हो, कि जो एकदम मूल बातें हैं, उन पर चलना है। ठीक है!

जैसे डिफरेंशियल कैलकुलस (अंतर कलन) में होता था — प्रथम सिद्धांतों का प्रयोग करके हल करें! फर्स्ट प्रिंसिपल्स क्या होते हैं उसके? 'एफ़ एक्स प्लस एच माइनस एफ़ एक्स अपॉन एच, एच टेंडिंग टू ज़ीरो, इज़ इक्वल टू एफ़ डैश एक्स।'

यही होता है?

सवाल करें होंगे न ऐसे? कि भई फ़ॉर्मूला सीधे मत लगा दीजिए कि ‘डी बाई डी एक्स ऑफ़ एक्स स्क्वायर इज़ टू एक्स' नहीं, फर्स्ट प्रिंसिपल्स से सॉल्व (हल) करके दिखाइए। तो ये होते हैं फंडामेंटल्स — वो मूल बात जहाँ से आगे की बात निकलती है।

फंडामेंटलिज़्म का अर्थ ‘कट्टरता’ कैसे हो गया? कट्टरता के लिए शब्द है — बिगाट्री। कट्टरता क्या है? बिगाट्री। तो बिगाट्री और फंडामेंटल को हम एक कैसे बोल रहे हैं? ये क्या चल रहा है?

ये तो बहुत गंदी चाल है कि जो कट्टर लोग हों—और कट्टर का मतलब क्या होता है? कट्टर का मतलब होता है, जो आचरण में कट्टर है; फंडामेंटल्स से दूर है, लेकिन आचरण में कट्टर है। ये होती है बिगाट्री, कट्टरता। कि जानते-समझते कुछ नहीं, लेकिन कह रहे हैं कि, ‘साहब, पूजा उस तरफ़ को मुँह करके करनी है, तो उसी तरफ़ को मुँह करके करनी है।' ये कट्टरता है। 'और पूजा शाम को पाँच बजे करनी है, तो पाँच ही बजे करनी है। पाँच बजकर पाँच मिनट हो गए तो अपराध हो गया, सजा दे देंगे।' ये कट्टरता है।

ये कट्टरता है क्योंकि इस बात का फंडामेंटल्स से, मूल से, सत्य से कोई ताल्लुक नहीं। ये बात एक सतही-सी चीज़ है, जिसका कुछ महत्व हो सकता है। मैं नहीं इनकार कर रहा कि एक दिशा में मुँह करके पूजा करने का कोई महत्व नहीं; उसका कुछ महत्व हो सकता है। लेकिन उसका महत्व फंडामेंटल नहीं है, आधारभूत नहीं है। लेकिन आप उससे चिपके हुए हो, आप उसको पकड़े हुए हो।

और इतना ही नहीं; जो लोग उधर को मुँह करके पूजा नहीं कर रहे, आप उनको कह रहे हो कि, ‘ये सब अधार्मिक लोग हैं, इन पर मुकदमा चला दो, इनको जेल में डाल दो।' ये सब कर रहे हो आप इस तरीक़े से, ये होती है बिगाट्री।

फंडामेंटलिज़्म तो अपने-आपमें बहुत अच्छी, बहुत प्यारी और बहुत आवश्यक चीज़ है।

आप बात समझ रहे हो?

‘अहम् ब्रह्मास्मि’ — ये फंडामेंटल है। तो, जो इस पर चले वो फंडामेंटलिस्ट हुआ। फंडामेंटलिस्ट कहाया जाना तो गौरव की बात है। तो आप कह रहे हो कि, 'मैं आपको उपनिषद पढ़ा रहा हूँ, और लोग आप पर फंडामेंटलिस्ट होने का आरोप लगा रहे हैं।'

आप कहिए, "जी, धन्यवाद! आपने मेरी इतनी प्रशंसा करी। आप तो मेरी तारीफ़ कर रहे हो, इट इज़ अ कंप्लीमेंट — इवेन इफ़ बैकहैंडेड (यद्यपि व्यंग्यभरी प्रशंसा)। आपको तो पता भी नहीं है कि आपने मुझे कितनी बड़ी उपाधि दे दी, कह दिया — फंडामेंटलिस्ट!"

लोग हो कहाँ पाते हैं फंडामेंटलिस्ट! ये तो बिरलों का काम है, आसान काम नहीं है फंडामेंटलिस्ट होना।

फंडामेंटलिस्ट माने ‘बिगोट’ या ‘टेररिस्ट’ नहीं होता। वो तो जो पूरा पब्लिक डिसकोर्स (सार्वजनिक संवाद) है, उसको विधर्मी लोगों ने विकृत कर रखा है, डिस्टोर्ट बिलकुल। तो वहाँ धर्म से संबंधित कुछ भी होता है, वो उसको ऐसे प्रस्तुत करते हैं जैसे कि कितनी गंदी, बदबूदार, छि-छि बात है। तो कोई आदमी अपने धर्म का अटूट पालन कर रहा हो, तो उसको ‘फंडामेंटलिस्ट’ कह दो।

या तो आपको धर्म से समस्या है, या आप फंडामेंटलिस्ट का अर्थ नहीं समझते। एक आदमी कह रहा है, "मेरा धर्म है, झूठ के ख़िलाफ़ रहना हमेशा; मेरा धर्म है, अहिंसा के साथ रहना हमेशा। मैं अपने भोजन में, अपने आचरण में, या बाज़ार की चीज़ों में थोड़ी-सी भी हिंसा देखूँगा तो मैं अस्वीकार कर दूँगा।" ये आदमी है असली फंडामेंटलिस्ट।

आपको क्या समस्या है फंडामेंटलिज़्म से? और दूसरी बात, आप मूर्ख और नालायक लोगों को फंडामेंटलिस्ट बोलकर फंडामेंटलिज़्म का नाम क्यों खराब कर रहे हो?

आपको कोई मूर्ख आतंकवादी मिल जाता है, जिसको कुछ पता नहीं; सत्रह-अट्ठारह साल का है। किसी ने उसे इन्डॉक्‌ट्रिनेट्‌ (शिक्षित) कर दिया है और वो जाकर के यूँही एके फोर्टी सेवन लेकर के हवा में गोलियाँ चला रहा है; कोई मिल गया मार दिया। ये उसकी शिक्षा है, ऐसा उसका आचरण है। उसको आपने कह दिया कि फंडामेंटलिस्ट है।

ये जो आपने पकड़ लिया अजमल कसाब, इसे फंडामेंटल्स का कौन-सा ज्ञान था? तो आप उसे फंडामेंटलिस्ट क्यों बोल रहे हो?

असली फंडामेंटलिस्ट तो महात्मा बुद्ध हैं, आचार्य शंकर हैं। वो आपको बताएँगे न कि फंडामेंटल्स क्या होते हैं। लोग कहेंगे कि 'अरे, अरे बाप रे बाप! बुद्ध भगवान को फंडामेंटलिस्ट बोल दिया, शंकराचार्य को फंडामेंटलिस्ट बोल दिया!'

बिलकुल बोल दिया, डंके की चोट पर बोल रहा हूँ। ये असली फंडामेंटलिस्ट हैं। और फंडामेंटलिज़्म बहुत सम्मान की बात है। मैं चाहता हूँ, सब फंडामेंटलिस्ट हो जाएँ, मूलवादी। मूल माने असली, जो ऑथेंटिक है।

ऑथेंटिक होने में कोई समस्या? तो फंडामेंटलिज़्म इज़ ऑथेंटिसिटी (मूलवाद असली होना है)। असली, खरा; मिलावटी नहीं, एकदम फंडामेंटल। एलोयड नहीं, शुद्ध। फंडामेंटलिज़्म हुआ ‘शुद्धवाद’। शुद्धता से कोई समस्या? कीचड़ लपेटना ज़्यादा अच्छा लगता है? नहाकर बुरा-बुरा सा लगता है?

और ये कोई पहला सवाल नहीं है इस तरीके का, बहुत आये हुए हैं पहले भी कि लोग हमसे कहते हैं कि, 'देखिए! कदम-कदम पर कॉम्प्रोमाइज़ करना चाहिए। आप तो बिलकुल अड़े जा रहे हैं। थोड़ी ईगो (अहम्) भी तो अच्छी होती है न! थोड़ा लव (प्रेम) में अटैचमेंट (आसक्ति) भी तो होना चाहिए न! आप फंडामेंटलिस्ट मत बनिए, थोड़ा अटैचमेंट होने दीजिए, प्लीज़। प्लीज़!' प्लीज़-प्लीज़ करके गला पकड़ लेगी या लेगा, जो भी हो।

कहते हैं कि, 'देखिए! शत-प्रतिशत तो कुछ भी नहीं होता।' कोशिश तो कर सकते हो? कोशिश भी नहीं कर सकते? मैं बिलकुल मानता हूँ कि आदमी जीते जी पूर्णता तक नहीं पहुँच सकता, लेकिन जीवन व्यर्थ ही गया अगर पूर्णता की ओर लगातार बढ़ते भी नहीं गए तो।

दोनों बातें एक साथ याद रखनी हैं — वहाँ तक पहुँचा नहीं जा सकता लेकिन फिर भी उसकी ओर लगातार बढ़ते रहना है।

और ये बहुत आता है — 'अटैचमेंट के आप इतने ख़िलाफ़ क्यों हैं? दूसरे लोगों ने तो बोला है न, कि प्यार में लगाव (आसक्ति) आवश्यक है। क्यों, ऐसे तो ठीक नहीं है! दिल नहीं है क्या आपका!'

क्या चल रहा है ये?

दो और दो चार होते हैं, ये फंडामेंटल्स हैं। इन्हें कैसे बदलोगे, बताओ! और जो इन्हें बदल दे, उसका क्या होगा ये भी बता दो? बोलो न! और तुम्हें फंडामेंटल्स से समस्या है।

'आप न बस अपनी ही चलाते हैं, दो परसेंट तो दूसरों की सुनिए न!' अपनी नहीं चला रहा हूँ। जो सच बात है उसे यथासंभव बोल रहा हूँ। और मैं दो परसेंट नहीं, सौ परसेंट तुम्हारी सुनूँगा, अगर तुम भी सच बोलो तो।

मुझे अपनी नहीं चलानी है, मैं शत-प्रतिशत तुम्हारी ही बात सुन लूँगा, तुम्हारी ही बात के पीछे-पीछे चल दूँगा; लेकिन तुम सच तो बोलो। तुम भी जानते हो कि तुम झूठ बोल रहे हो, अपनी वृत्तियों के ग़ुलाम हो, फिर भी कहते हो कि, 'पाँच परसेंट हमारी भी बात मान लीजिए न, आप तो फंडामेंटलिस्ट हुए जा रहे हैं।'

कैसे मान लें भाई!

आमतौर पर मिलावट हम जीवन में किसी भी चीज़ में नहीं चाहते। और ये तो जीवन के बिलकुल केंद्रीय मुद्दे हैं, इनमें मिलावट कैसे चला दोगे, बताओ। कैसे?

किसी से रिश्ता बना रहे हो, जिसके लिए प्रेम का अर्थ आसक्ति है; जिओगे कैसे, अब ये बताओ? कैसे जिओगे? न तुम जी पाओगे, न वो व्यक्ति जी पाएगा। फंडामेंटल्स का ख़्याल अगर रख लोगे तो ज़िंदगी की बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों से बच जाओगे।

और जिन लोगों को पाते हो कि ज़िंदगी बिलकुल बर्बाद हो गयी है, चेहरा उजड़ा चमन है, आत्महत्या की नौबत आ रही है, तो जान लेना कोई फंडामेंटल ग़लती करी है इन्होंने। ऊपरी, सुपरफिशियल ग़लतियाँ तो हम सब करते हैं, रोज़-रोज़ करते हैं, उनसे कोई बड़ा नुक़सान नहीं हो जाने का। आधारभूत ग़लतियाँ, फंडामेंटल ग़लतियाँ मत करना। बी अ फंडामेंटलिस्ट (मूलवादी बनो)।

आ रही है बात समझ में?

फंडामेंटल्स कहाँ मिलते हैं? साखी ग्रंथ में मिलेंगे, वेदांत में मिलेंगे, संतवाणी में मिलेंगे। यहाँ तुम्हें फंडामेंटल बातें मिलेंगी। यहाँ पर ऊपर, ये नहीं बातें होतीं कि, 'हाइपरसोनिक मिसाइल कब लॉन्च होगी?' वहाँ वो बातें मिलेंगी जो आदमी के अस्तित्व में बिलकुल मूलभूत हैं। जहाँ से शुरुआत ही होती है हमारी, वहाँ वो बातें मिलती हैं।

तुम वहाँ जाकर क्रिकेट का स्कोर पूछोगे, तो नहीं मिलेगा वहाँ। तुम वहाँ जाकर के पूछोगे कि, ‘कोलंबस अमेरिका कब गया?' नहीं पता चलेगा। कोई ऋषि तुम्हें नहीं बताने वाला। तुम वहाँ चिकित्सा शास्त्र पूछो या और बातें पूछो, नहीं मिलेगा।

हालाँकि हमें ये बोलने में बड़ा मज़ा आता है कि, ‘इंटरनेट भी हमारे वेदों में मौजूद है। और विमानन प्रद्यौगिकी भी है। सबकुछ है हमारे वेदों में, एकदम एक-एक चीज़ है।'

नहीं है वहाँ पर। न सिर्फ़ नहीं है, बल्कि ऋषियों की कोई मंशा भी नहीं थी इन चीज़ों की बात करने की। क्योंकि उन्हें किसकी बात करनी है? फंडामेंटल्स की बात करनी है। उनका काम आपको रसायन शास्त्र पढ़ाना नहीं है।

पर चूँकि हम फंडामेंटल्स स्वयं नहीं जानते तो हम कहना शुरू कर देते हैं कि, ‘देखो! वेदों में सिविल इंजीनियरिंग है!' और क्या है? 'न्यूक्लियर साइंस है!' ये वो आदमी है जिसने वेद की किसी प्रति को कभी छूकर भी नहीं देखा है, पक्का बता रहा हूँ। एक पन्ना नहीं पलटा है। और साथ-ही-साथ इसके मन में ज्ञान के प्रति, वेदांत के प्रति छुपी हुई घृणा है, अन्यथा ये ऐसी बातें नहीं करता।

असली शास्त्र वही है जो सिर्फ़ फंडामेंटल्स की बात करे। क्या है फंडामेंटल बात? फंडामेंटल बात बस ये है कि, ‘मैं हूँ।' और मैं कौन हूँ? 'मैं अतृप्त चेतना हूँ। और एक ही चीज़ मुझे शांत कर पाएगी, उसको सच्चाई बोलते हैं।'

इसी बात को दुहरा-दुहरा के हज़ार तरीक़े से बोला जाता है शास्त्रों में। बस एक इतनी-सी बात है। तो कहते हैं, 'इतनी सी बात है न, तो अब कुछ नहीं पढ़ें न, कोई उपनिषद वगैरह नहीं चाहिए?' फंडामेंटल्स में ये भी शामिल है कि हम बहुत ढीठ हैं, एक बार में नहीं समझ सकते। छः हज़ार बार एक ही बात को समझाना पड़ता है। तब समझ में आती है थोड़ी-थोड़ी।

समझ रहे हैं?

तो बिलकुल शान से कहिए, मैं हूँ मूलवादी, आधारवादी, सत्यवादी। कोई दिक्कत नहीं है। फंडामेंटलिज़्म का असली अर्थ यही है, कट्टरवादी नहीं है उसका अर्थ। कट्टरवादी के लिए अंग्रेज़ी में दूसरा शब्द है। क्या? बिगट।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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