देखने से पहले आँखें साफ़ करो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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देखने से पहले आँखें साफ़ करो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: अगर किसी को महान कहोगे भी तो किसको कहोगे? इस बात को ध्यान से देखना।

अपनी दृष्टि से अगर तुम देखते, तो क्या कभी तुमको एक नंगा आदमी जो जंगल में घूमता है, महान लग सकता था? उसके पास कुछ है नहीं, जो भीख मांगता है, और जो ऐसी उलझी-उलझी बातें करता है जिनका मतलब ही समझ में ना आए, वो तुम्हें महान लगेगा? तुम उसे पागल समझकर पत्थर और मारोगे।

तुम क्यों कह रहे हो कि महावीर महान हैं? तुमने खुद तो कुछ जाना नहीं। तुम कह रहे हो कि जिसको समझ आ गया, वो महान हो जाता है। लेकिन महान होने का मतलब क्या? तुम अगर साफ़ साफ़ अपनी नज़र से देखते तो शायद तुम्हें वो महान नज़र नहीं आते, ये भी किसी ने तुम्हें बोल दिया है कि फलाने महान थे, कोई वैज्ञानिक महान हैं कोई पैगम्बर हैं, कोई संत महान हैं। उनकी महानता तुमने जानी है क्या? ये देखो सब कितना बाहरी खेल चल रहा है कि अगर तुम्हें समझ में आ गया, तो कोई महान हो जाएगा। अब ना तुम्हें समझ की समझ है, ना तुम्हें महानता की समझ है, पर तुम उसकी बात को माने चले जा रहे हो ।

तुम्हें ना ये पता कि समझ क्या है, तुम्हारे लिए शायद ये भी विचार है। जब तुम कहते हो महावीर, काहे की महानता? क्यों महान है? महान तो वो तब हैं जब तुम जानो कि वो महान हैं। तुमने कहाँ से जाना कि वो महान हैं? और अगर तुम जान गये होते कि वो महान हैं, तो क्या तुम ऐसे होते? अगर मैं ठीक-ठीक जान जाऊँगा कि ठीक क्या है, तो क्या तब भी गलत रह पाऊँगा? अगर हम ठीक-ठीक जान पाते कि बुद्ध क्या हैं, और महावीर क्या हैं, तो हम ऐसे कैसे रह पाते? तो अभी हम उनका नाम बिल्कुल नहीं लेंगे। अभी हम सिर्फ अपने आप को देखें, इतना काफी है। बुद्ध, महावीर को तुम किन आंखों से देखते हो? इन्ही आंखों से न ।तो अगर उनको ध्यान से देखना है तो पहले अपनी आँखें साफ़ करनी पड़ेंगी ।तो मन से निकल दो कि कोई महान था क्योंकि हमें पता ही नही कौन कैसा था ?

अभी हम अगर किसी को बोलें कि वो ऐसा है और वो वैसा है, तो ये वैसी ही बात होगी कि एक आदमी जो बिल्कुल अपनी आँखें ना खोलता हो, वो ये कहे कि गुलाब का रंग कितना तीखा है।आँख अपनी खोली नहीं और कहता है कि गुलाब का रंग कितना तीखा है।अब जरूर उसने ये सुना होगा और उसे मान लिया।अभी हम नहीं बात कर सकते। ये मत कहो कि उनमें समझ कहाँ से आ गयी? उनकी प्रक्रिया, उनकी अपनी प्रक्रिया थी । हम अपनी प्रक्रिया पर चलेंगे, हमें अपनी यात्रा करनी है।

तुम्हें बुद्ध का जीवन जीना है या अपना जीवन जीना है?अपना जीवन तो अपने जीवन पर ध्यान दो।बस ये देखो कि सुबह से शाम तक तुम कॉलेज में क्या करते हो? किस तरीके से तुम क्लास रूम में जाते हो? ठीक अभी तुम्हारा मन कैसा हो रहा है? तुम किन इरादों के साथ कॉलेज में आए हो? मन में एक डर क्यों बैठा रहता है? अपने आप को देखो कि क्या तुम पढ़ाई तभी करते हो जब डेटशीट लग जाती है परीक्षा की ।इसका अर्थ ये है कि तुम डर के कारण पढ़ते हो। और एक मन जो डरा हुआ है, क्या वो किताब के साथ कभी भी पूरे तरीके से हो सकता है?असंभव है उसके लिए।

अपना जीवन ही खुली किताब है जिसमें सब दिखाई दे जाएगा। इधर-उधर देखने की कोई विशेष ज़रूरत नहीं है। अपने आप को देखो उतना काफी है , सारे जवाब दिखाई देंगे।

-’संवाद’ परआधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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