आचार्य प्रशांत: तुम उसको बोल रहे हो पॉर्न मत देख, दिन में तू चार घंटे पॉर्न देखता है, इतने में तू पढ़ाई कर लेगा तो टॉप कर जाएगा। वो कहता है टॉप कर जाऊँगा तो भी जो चीज़ मिलेगी उस पॉर्न से बेहतर तो नहीं है। टॉप करके भी तुम मुझे सेक्स ही तो दिलवाने वाले हो, वो मैं सीधे ही ले लेता हूँ।
जीवन के जब सारे आदर्श ही भौतिक हैं, तो भौतिक सुखों में जो अव्वल आदर्श है, व्यक्ति सबसे पहले उसी की ओर भागेगा। भागेगा-ही-भागेगा ये तो प्राकृतिक बात है। जब आप पूरे जीवन को भौतिक बनाए हुए हो, आप कहते हो अमेरिका बहुत मज़बूत देश है, क्यों? क्योंकि उसकी सेना बहुत बड़ी है और उसकी अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है। और दोनों बातें क्या हैं? भौतिक माने मटीरियल। अमेरिका बड़ा देश क्यों है? जीडीपी और मिलिट्री। और आप गिनते हो कि उसके पास कितने न्यूक्लियर बॉम्ब हैं।
रूस यूक्रेन पर भारी पड़ रहा है, क्यों ज्ञानी ज़्यादा हैं? हथियार ज़्यादा हैं न। पूरी दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वो एक जवान आदमी को क्या सन्देश दे रहा है। ऑनली द मटीरियल काउंट्स , सिर्फ़ जो भौतिक है उससे ही फ़र्क पड़ता है, वही असली चीज़ है। और भौतिक सुखों में सबसे ऊपर का सुख तो यही लगता है जवानी में, कि सेक्स मिल जाए, तो वो अपना उसमें लगा हुआ है।
तुम उसे उस भौतिक सुख से आगे का तो कुछ दो, तो वो कहे कि यार पॉर्न तो ठीक है, सुख मिल रहा है लेकिन और कुछ मिल रहा है जो इससे भी आगे का है। पॉर्न से आगे का अध्यात्म होता है, वो जब तक नहीं रहेगा तब तक पॉर्न रहेगी। आपकी मोरैलिटी (नैतिकता) को जितनी चोट लगती हो लगती रहे, कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला।
तुम आज बोल रहे हो इंटरनेट का ट्रैफिक , मैं जब आईआईटी में गया वहाँ इंटरनेट नहीं होता था। तब पत्रिकाएँ चलती थीं और वो एक कमरे से दूसरे कमरे में सर्कुलेट (घूमती) होती रहती थी। वो ऐसी हो जाती थी कि छूने का मन न करे। लेकिन तब भी उनके चीथड़े — और बड़ा कोऑपरेशन था लड़कों में; इस्तेमाल करके दूसरे के दरवाज़े से नीचे खिसका देते थे। कहते थे, ले अब तेरा नम्बर। कारण वही है, 'गिव देम समथिंग हायर दैन दैट, बियोंड दैट' (उन्हें कुछ ऊँचा, कुछ हटकर दो), तो वो सुनें भी तुम्हारी।
नहीं तो मन तो परेशान ही रहता है न अपनी दुखी और बेचैन हालत से। उसको जिधर भी सुख दिखेगा वो भागेगा, तुम रोक नहीं सकते। कैसे रोकोगे? वो भी जब एकदम सस्ता डेटा हो, मुफ़्त में मिल रहा है। हज़ारों वेबसाइट्स हैं, ट्रैफिक बता रहे हो अस्सी-नब्बे प्रतिशत, सब उधर को ही भाग रहे हैं। भागेंगे ही वो जब आसानी से मिल रहा है।
कुछ और है? यहाँ बैठे हो, कितनी बार पॉर्न का ख़्याल आया? कुछ को तो आया भी होगा, पर ज़्यादातर को नहीं आया होगा। जिन्हें अक्सर आता है, बार-बार आता है उन्हें भी यहाँ बैठकर तो नहीं आया होगा। या मुझे धोखा हो रहा है, नहीं आया न? मेरा दिल रखने के लिए बोल दो नहीं आया। क्यों नहीं आया? कुछ और चल रहा है न, वो ख़्याल ही नहीं आया।
ऐसा नहीं कि आपने दमन कर दिया उस इच्छा का, ऐसा नहीं कि आपको ख़्याल आ रहा था और आपने कहा कि छि, गन्दी बात! ख़्याल आया ही नहीं और सिर्फ़ यही एक तरीक़ा है। जब आप एक ऊँची ज़िन्दगी जीने लगते हो न, तो निचले ख़्याल आने ही कम हो जाते हैं।
ऐसा नहीं कि आपको कोई सूत्र मिल जाता है डर को जीत लेने का, आपके पास फ़ुरसत नहीं बचती डरने की, ऐसा नहीं कि आपको लालच के विरुद्ध कोई विधि मिल गई है, बस आपके पास फ़ुरसत नहीं होती लालच में आने की। वही बात वासना पर भी लागू होती है। अचानक आपको याद आएगा, अरे! तीन महीने हो गए पॉर्न देखी ही नहीं और ये होता था। जब एग्जाम्स चल रहे होते थे उन दिनों पर डेबोनियर वग़ैरह की माँग कम हो जाती थी, फ़ुरसत किसको है? समझ आ रही है बात!
फ़ुरसत कम दो अपनेआप को और किसी ऐसी चीज़ में लगो जो बहुत गहराई से तृप्त कर देती है, तो इन झंझटों से बचोगे। देखो, पॉर्न तो चलो मुफ़्त मिल जाती है, सेक्स हरदम मुफ़्त नहीं मिलता, उसके लिए बहुत बड़ी क़ीमत चुकाते हो और ये अंज़ाम होता है ग़लत ज़िन्दगी का।
सम्बन्ध समझना, आप ग़लत जीवन जियोगे, उसमें बेचैनी रहेगी। बेचैनी जितनी बढ़ेगी तुम्हें सेक्स उतना ज़्यादा चाहिए, उसके लिए तुम ग़लत शादी-ब्याह करोगे, ग़लत सम्बन्ध बनाओगे। कोई ठीक-ठाक भी साथी मिल गया तो तुम उसको अपनी हवस के लिए ही इस्तेमाल करोगे, अपनी ज़िन्दगी ही ख़राब कर लोगे किसी और की भी ख़राब करोगे।
और सबकुछ मूल में किस बात से निकल रहा है? मूल में इस बात से निकल रहा है कि हमारे पास कोई आदर्श नहीं है भौतिक के अलावा। मैंने पूछा था, एक-दूसरे को कभी बधाई दी है किसी भी ऐसी चीज़ पर जो भौतिक न हो? किन चीज़ों पर दूसरे को बधाई देते हो? गाड़ी ख़रीद ली, घर बना लिया, बच्चा पैदा हो गया, नौकरी लग गयी, प्रमोशन हो गया, लॉटरी लग गयी, यही तो सब होता है न?
तो देखो न तुम बच्चों को सन्देश क्या दे रहे हो कि यही सब कुछ है, इन्हीं बातों पर तो खुशी होनी है। तो वो कहता है यही सब कुछ है तो इसमें भी जो सबसे आगे की चीज़ है मैं वही पकड़ लेता हूँ, सेक्स।
सेक्स इतना चाहिए ही इसलिए होता है क्योंकि भीतर तकलीफ़ बहुत ज़्यादा है। जितना दिन भर गड़बड़ काम करके तनाव बटोरोगे उतना ही ज़्यादा फिर उस तनाव को किसी तरह से रिलीज़ करने की ज़रूरत पड़ेगी। ज़िन्दगी ऐसी जियो जिसमें तुम्हारा तनाव ही तुम्हारी ऊर्जा बन जाए। हमारा तनाव हमारे भीतर बस बेचैनी बनकर इकट्ठा होता रहता है, जैसे प्रेशर कुकर में प्रेशर, प्रेशर अगर बढ़ ही रहा है तो विस्फोट होने दो न और वो फिर एक सकारात्मक, सृजनात्मक विस्फोट हो, कुछ करके ही दिखा दो।
धूमिल कहते थे, “अपनी आदतों में फूलों की जगह पत्थर भरो, अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आकार दो। मासूमियत के हर तक़ाज़े को ठोकर मार दो, अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आकार दो।“
ऊब को आकार नहीं दोगे तो ऊब यही बनेगी बस सेक्स, पॉर्न, हस्तमैथुन यही करते रहोगे बस, ये ऊब के परिणाम हैं। ऊबे हुए हो, ऊब को आकार नहीं दे रहे, भीतर जो तनाव है उसको एक सही चैनल एक अच्छी दिशा नहीं दे रहे। मस्त ज़िंदगी जियो और जी भरके जियो, थकना सीखो, थकते क्यों नहीं हो, थकते क्यों नहीं हो? किसके लिए ऊर्जा बचा के जी रहे हो?
थकोगे नहीं और समय बचाकर रखोगे और फिर कह रहा हूँ, पॉर्न छोटी बीमारी है इस छोटी बीमारी से विवाह वाली बड़ी बीमारी जन्म लेगी। विवाह और क्या होता है, सुनने में बहुत भद्दा लगेगा लेकिन कहना ज़रूरी है विवाह हमारे लिए पॉर्न की लाइफ़ लॉंग सप्लाई (आजीवन आपूर्ति) होती है, अस्योर्ड, गारंटीड (सुनिश्चित, आश्वस्त)।
कि भारत सरकार जैसे कह रहे हो कि सूची जारी करती है, उसमें (विवाह में) तो कोई सूची भी नहीं जारी कर सकता। रोककर दिखाओ, अब तो हक़ है हमारा, इसीलिए इतना मैरिटल रेप (विवाहित दुष्कर्म) होता है। क्योंकि वो बीवी थोड़ी ब्याही है उसने, वो तो अपने घर अनलिमिटेड लाइफ़ लॉंग अस्योर्ड सप्लाई ऑफ पॉर्न (कभी ना खत्म होने वाला जीवन भर चलने वाला दुष्कर्म की सामग्री) लेकर आया है।
और संस्कृतिवादियों को बड़ी इसमें तकलीफ़ होती है वो कहते हैं, “पर पति पत्नी का बलात्कार थोड़ी कर सकता है।“ दुनिया में पिचानवे प्रतिशत बलात्कार पतियों द्वारा किए जाते हैं पागल। या तो तुम पागल हो या ढोंगी हो या खुद भी बलात्कारी हो और इसीलिए कह रहे हो कि नहीं-नहीं पति कैसे बलात्कार करेगा? और ये वही पति है जो अपनी जवानी में पॉर्न एडिक्ट (अश्लील वीडियो देखने का आदी) था, अब पत्नी आ गई है अब पॉर्न की ज़रूरत नहीं अब तो लाइव परफॉर्मेंस , स्क्रीन क्यों?
और फिर इसमें ऐसा भी नहीं है कि पति शोषक ही रह जाता है, वही पति फिर चालीस-पैंतालीस की उम्र में फिर, “आचार्य जी, डायन है, खा गयी पूरा हमको”। (व्यंग्य करते हुए) और जब तुम उसको खा रहे थे शारीरिक तौर पर पन्द्रह साल पहले, तुमने उसे शारीरिक तौर पर खा लिया उसने तुमको मानसिक तौर पर खा लिया, हिसाब बराबर।
तुम्हें लग रहा है जो सैनिक लड़ाई के मोर्चे पर लगा हुआ है और जिसके कान के पास से गोलियाँ निकल रही हैं साँय-साँय; वो सोच रहा होगा सेक्स के बारे में? तो वैसे योद्धा बन जाओ न और मैदान पुकार रहा है, पूरी धरती को तुम्हारी ज़रूरत है, हम नष्ट होने की कगार पर खड़े हैं, जानते हो न अच्छे से?
सौ बार तो समझा चुका हूँ, यहाँ पृथ्वी ही नष्ट हो रही है और हमारे जवान लोग क्या कर रहे हैं? (फ़ोन देखने का इशारा करते हुए) तो तुम्हारी ऊर्जा की किसी और रणक्षेत्र में आवश्यकता है, वहाँ चले जाओ और वहाँ जब गोलियाँ बरसेंगी, धमाके हो रहे होंगे, खून बह रहा होगा तो वीर्य बहाने की नहीं सोचोगे।
इससे और भी नुकसान होते हैं। स्त्री-पुरुष के बीच जो सहजता होती है सेक्स में, वो नष्ट हो जाती है। कोई है जो पन्द्रह, अब तो और बच्चे बारह, चौदह की उम्र से ही देख रहे हैं। उस उम्र से पॉर्न देखना उसने शुरू कर दिया है, उसका आगे जिस लड़की से सम्बन्ध बनेगा वो उसके साथ शारीरिक रूप से भी सहज नहीं रह पाएगा। वो कहेगा, वही सब जो मैंने देखा है स्क्रीन पर वही दोहराना है। और वो तुम दोहरा नहीं पाओगे वहाँ प्रोफेशनल्स बैठे होंगे। उनका धन्धा है, वो एडल्ट एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री (वयस्क मनोरंजन उद्योग) कहलाती है, वो एक इंडस्ट्री है प्रॉपर।
तो उसमें जब इंडस्ट्री है तो प्रोफेशनल्स (पेशेवर) भी होते हैं। वो उनको महारत हासिल है, वो यही करते हैं। इसमें उन्होंने विशेषज्ञता हासिल करी है। उनकी भी कोचिंग, ट्रेनिंग सब होता होगा और तुम कहते हो नहीं, जो मैंने वहाँ देखा वही मुझे अपनी ज़िन्दगी में भी करना है, कैसे कर लोगे? तो जो एक सहज सीधा-साधा सेक्स होता है उससे भी वंचित रह जाओगे।