प्रश्न: आपने कहा वर्तमान में जीयो, लेकिन वर्तमान में बहुत सारी ताकतें हैं जिन पर हम निर्भर हैं| वो हमसे कभी ऐसा करने को बोलते हैं, कभी वैसा करने को बोलते हैं| हम उन पर निर्भर हैं, इसलिए हम उनसे डरते हैं| क्या करें?
वक्ता: याद रखना, तुम कभी किसी व्यक्ति से नहीं डरते, कोई व्यक्ति तुम्हें कभी भी डरा नहीं सकता| तुम डरते हो अपनी सुविधाएं छिन जाने से| तुमने एक सौदा कर रखा है कि हमें कुछ चंद छोटी-मोटी सुविधाएं दे दो और उनके लिए हम अपनी स्वतंत्रता तुम्हें दे देते हैं|
यही कारण है कि तुम डरे हुए हो, वरना तुम्हें कोई कैसे डरा सकता है| तुम डरते इसलिए हो क्योंकि तुम्हारे पास जो कुछ है वो किसी और का दिया हुआ है| तुमने व्यापार कर के लिया है, और तुम्हें डर है कि वो तुमसे वापस छीन लेगा|
तुम्हें अपना नाम किसी और से मिला है, पहचान किसी और से मिली है, सुरक्षा किसी और से मिलती है| तुम्हारी ज़रूरतें कोई और पूरी करता है, तुम्हारे मन को सहारा किसी और से मिलता है| जब तुम इतना कुछ किसी और से लिए जा रहे हो, तो निश्चित सी बात है कि तुम डरोगे कि ये सब कुछ जो ये हमें दे रहा है, कहीं ये हमसे वापस ना ले ले|
अगर तुमने इतना कुछ न ले रखा होता तो तुम इतना डरते नहीं| पर तुम्हारी ज़िन्दगी में तुम्हारा अपना कुछ है ही नहीं| ज़िन्दगी भरी हुई है उधार की चीज़ों से, जो तुमने किसी और से ले रखी हैं| अब तो डरोगे ही, अब वो तुम्हारा मालिक बनेगा ही| जिस से लिया है ये सब कुछ, वो मालिक बन गया तुम्हारा|
अब डरोगे! वो कहेगा कि इतना कुछ दिया है, मैं वसूलूँगा भी तो| और जितना ज़्यादा किसी से लेते जाओगे, उतना गहरे तरीके से उसके सेवक बनते जाओगे, क्योंकि वो वसूलेगा| सौदा होगा! और ये सब लेने के चक्कर में तुम्हें अपनी स्वतंत्रता देनी पड़ेगी| अब क्यों रोते हो, ‘दूसरों की आज्ञा माननी पड़ती है, दूसरों के इशारों पर चलना पड़ता है’? इस स्थिति के ज़िम्मेदार तुम ख़ुद हो|
इतना घटिया सौदा तुमने किया क्यों? और क्यों करते जाते हो रोज़ाना? ये सौदा तुम रोज़ कर रहे हो| क्यों कर रहे हो?
-‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|
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