आचार्य प्रशांत: जिस दिन आपको पूरा भरोसा हो गया, आप अच्छी तरह साफ़-साफ़ जान गए कि इस शरीर से कुछ नहीं है जो आगे चला जाना है, उस दिन आपके ऊपर दो असर होंगे — पहली बात, आप ज़िंदगी को सही जीना जान जाएँगे। आपको साफ़ सुनाई देगी घड़ी की टिक-टिक, आपको साफ़ सुनाई देगी मौत की आहट। आपको दिखाई देगा कि ये जो यंत्र है जिसको आप अपना शरीर बोलते हैं, ये लगातार ख़त्म होने की ओर बढ़ रहा है। तो आप सही ज़िंदगी जीना शुरू कर देंगे — ये पहला असर होगा आपके ऊपर।
और दूसरा असर ये होगा कि आप रातों में शमशान जाने से घबराएँगे नहीं। जानते हैं कि आप रातों में शमशान जाने से घबराते क्यों हैं? क्योंकि आपको कहीं-न-कहीं ये शक है कि मरने के बाद भी कुछ बच जाता है और जो बच जाता है वो शमशान में डोल रहा होगा।
अगर आपको पूरा भरोसा होता कि मरने के बाद कुछ नहीं बचता आपका, तो आप शमशान जाने से घबराते नहीं। लेकिन हर आदमी शमशान जाने से घबराता है। क्योंकि आप इस बात को साफ़ समझ ही नहीं पाए हैं कि आप प्रकृति की लहर मात्र हो। लहर गई तो गई, मिट गई। उसका अब कोई अवशेष बचेगा नहीं।
आप समझ ही नहीं पाए हो। आपको लग रहा है कुछ-न-कुछ बचेगा। और चचा मरे थे दस साल पहले वो अभी तक वहाँ मसान में ही डोल रहे हैं। तो उससे उम्मीद भी जगती है — ‘मेरा कुछ तो बच ही जाएगा।’ जब कुछ बच ही जाएगा तो कौन आज को सुंदर करे, सँवारे, सफल करे? आगे के लिए कुछ बच ही जाना है।
तो एक ग़लत ज़िंदगी जीने में और ये भूत-प्रेत, जादू-टोना और ऑकल्ट (रहस्यमय) में विश्वास रखने में बहुत गहरा सम्बन्ध है।
बात समझ में आ रही है?
जिस दिन आप बिलकुल सही ज़िंदगी जीने लगोगे, उसका एक परिणाम आपको ये दिखाई देगा कि आपका ऑकल्ट में यकीन बिलकुल ख़त्म हो जाएगा। आप हँसने लग जाओगे।
और आप गलत ज़िंदगी जी रहे हो, उसका एक प्रमाण होती हैं वो बहुत सारी अँगूठियाँ जो आपने धारण कर रखी होती हैं और जो मालाएँ आपने डाल रखी होती हैं और इधर-उधर जो आप पत्थरों के चक्करों में पड़े होते हो और ये ताबीज़ और ऐसा और वैसा, फ़लानी माला… क्या-क्या नहीं!
चूँकि हम डरे हुए हैं इसीलिए हमें डराया जाना बहुत आसान है। और हम डरे हुए क्यों हैं? क्योंकि हम सच से दूर हैं। जो सच से दूर होगा, उसकी सज़ा ये होगी कि वो इन सब चक्करों में पड़ेगा। ऐसी वाइब्रेशन्स (कंपन), ऐसी एनर्जीज़ (ऊर्जा), ये अँगूठी पहन लो, ये पत्थर धारण कर लो, फ़लाना पानी पी लो, और इस तरह के जितने भी टोटके होते हैं, ये सब सच से दूरी के कारण होते हैं। ठीक है, सज़ा मिलनी ही चाहिए। चतुर व्यापारी आकर के फिर लूटेंगे हमारे अज्ञान को, यही सज़ा है।
पूरा लेख यहाँ पढ़ें: https://acharyaprashant.org/en/articles/aapako-rahasyamayi-taakaton-se-dar-nahin-lagataa-1_c74dc5d