आपको रहस्यमयी ताक़तों से डर नहीं लगता? || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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आपको रहस्यमयी ताक़तों से डर नहीं लगता? || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्नकर्ता: पिछले कुछ महीनों से आप झाड़-फूँक, जादू-टोना और तंत्र इत्यादि के खिलाफ़ ख़ूब बोल रहे हैं। आपको तांत्रिकों से डर नहीं लगता?

(श्रोतागण हँसते हैं)

आचार्य प्रशांत: (मुस्कुराते हुए) चलो अच्छा है, मुझे ऐसे ही गलत साबित कर दो। कुछ कर दो मेरे साथ। (श्रोतागण हँसते हैं) आमंत्रण है सब भूत-प्रेत, झाड़-फूँक और जीवात्मा और सूक्ष्म शरीर वालों को। मुझ पर भी किसी साये का, भूत-प्रेत का, देवी-देवता का हमला करा ही दो न। मार ही डालो! या पागल कर दो, या कुछ भी कर दो। चुनौती है।

जितने घूम रहे हैं ये कहते हुए कि अभिमंत्रित जल फेंकेंगे तो तुम्हारा बुरा हो जाएगा या कल्याण हो जाएगा। आज तक भी जितनी बातें कहीं गई हैं इस तरीक़े की, उनके बिलकुल उल्टा ही चला हूँ। अब राम जाने कि मेरा भला हुआ है कि बुरा हुआ है? पर आज जहाँ भी हूँ, वो इन सब अंधविश्वासों के बिलकुल उलट चल करके हूँ।

न ज़िंदगी में कोई मंत्र मारा, न जंतर मारा, न तंत्र मारा; न किसी पत्थर को अहमियत दी, न कोई कभी अँगूठी डाली; न माला, न धागा; न सही दिशा में सिर करके सोया, न सही समय पर उठा, मुझे तो ज़बरदस्त सज़ा मिलनी चाहिए। मुझसे ज़्यादा किसने उल्लंघन किया है सब जंतर-मंत्र, जादू-टोने का! और अगर अभी तक नहीं मिली है तो मैं आमंत्रित कर रहा हूँ — दीजिए मुझे सज़ा।

जो बताते हैं कि आँख बंद करके उड़ जाते हैं वो। आइए सामने आइए, स्वागत है आपका। शरबत पिलाएँगे आपको, इतनी दूर से उड़कर आए हैं, जेट लैग (यात्रा थकान) हो रहा होगा।

हम सबके भीतर एक बिंदु बैठा है अज्ञान का, जो चूँकि सच्चाई को नहीं जानता न, इसीलिए उसे शक रहता है कि कहीं झूठी चीज़ें भी सच न हों। इस बात को समझो। मैं आपसे पूछूँ कि कलम कहाँ है और अगर आप नहीं जानते कि इस चीज़ (हाथ में कलम लेकर दिखाते हुए) को कलम कहते हैं तो आपके लिए इस कमरे की कौन-कौन सी चीज़ कलम हो सकती है?

आपके लिए इस कमरे की हर चीज़ कलम हो सकती है। इसी तरीक़े से जब हम सच नहीं जानते तो हमारे लिए कुछ भी सच हो सकता है। जब आप नहीं जानते कि कलम क्या होती है—आपने कलम कभी देखी नहीं, तो मैं आपसे कहूँ, ‘कलम है इस कमरे में, बताओ कौन-सी चीज़ है कलम?’ तो आप कहते हैं क्या पता किस चीज़ को कलम बोलते हों। हो सकता है इस पंखे का ही नाम कलम हो। कुछ भी कलम हो सकता है न!

वैसे ही जब आप सच नहीं जानते, तो कुछ भी सच हो सकता है। जब कुछ भी सच हो सकता है तो आपके भीतर के अज्ञान का फ़ायदा उठाने के लिए सौ तरह की आपको कहानियाँ बताई जाती हैं जो आपके डर को बढ़ावा देती हैं। और वो डर ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ निरक्षर, अनपढ़ लोगों में होता है।

वो डर उतना ही बड़ा खूब पढ़े-लिखे लोगों में भी होता है, जिनको आप हाइली एजुकेटेड (अत्यधिक शिक्षित) बोल दोगे। बल्कि जो वैज्ञानिक हैं, उनमें भी होता है। क्योंकि हो सकता है कि आप बहुत ऊँचे वैज्ञानिक हों, लेकिन भीतर के सच का आपको कुछ पता न हो।

तो ये गंडा-ताबीज़, झाड़-फूँक, जीवात्मा, ये वो, ये सब चलता ही इसीलिए है क्योंकि कुछ बहुत कुटिल, शातिर लोग होते हैं जिन्हें पता होता है कि हर आदमी भीतर-ही-भीतर डरा हुआ तो है ही। पूरे विश्वास के साथ वो नहीं कह सकता कि पदार्थ क्या है? भौतिक क्या है? पराभौतिक क्या है? इस मुद्दे पर हर आदमी भीतर से ज़रा संदेह में है, असमंजस में है। चूँकि आप संदेह में हैं इसीलिए आप पर कोई भी दावा थोपा जा सकता है।

आप नहीं जानते कि जो भी चीज़ कल्पना के दायरे में आती है, जो भी चीज़ नाम, रूप, रंग, आकार रखती है, वो मानसिक है। और आप नहीं जानते कि जो असली है वो मन में आ नहीं सकता। हम इन दोनों चीज़ों में साफ़ भेद करते नहीं हैं। तो इसीलिए हमें डराने वाले, बहकाने वाले, इन दोनों के बीच में एक धुंधला-सा क्षेत्र ईज़ाद कर लेते हैं जिसको वो कहते हैं मिस्टिकल एरिया (रहस्यमय क्षेत्र), जिसको वो बोलते हैं अदर डाइमेंशन्स ऑफ़ लाइफ़ (जीवन के अन्य आयाम)।

वो कहते हैं — देखो, एक तो है मटीरियल (भौतिक), और एक शायद होता होगा पैरामटीरियल (पराभौतिक), जिसको निराकार, निर्गुण कह सकते हैं। लेकिन एक ऐसा भी होता है जो न पूरी तरह से मटीरियल है और न ही अभौतिक है। वो भौतिक भी नहीं है, पराभौतिक भी नहीं है, वो भूत-प्रेत है। तो भूत-प्रेत क्या है? वो दिखता तो है पर तुम उसे छू नहीं सकते, तुम उसे छुओगे, तुम्हारा हाथ बीच से निकल जाएगा।

बात समझ रहे हैं?

ये ये नहीं देख रहे कि ये जो बात कह रहे हैं वो विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म के प्रति भी अज्ञान को दर्शाती है, दोनों का उल्लंघन है। अगर कुछ ऐसा है जो मटीरियल नहीं है तो वो दिख नहीं सकता। क्योंकि देखने वाली आँखें मटीरियल हैं। तो अगर आपको कुछ दिख रहा है तो वो मटीरियल ही होगा। उन्हें ये मूल सिद्धांत नहीं पता कि आपको कोई ऐसा अनुभव नहीं हो सकता जिसमें जो अनुभव का विषय है, जो ज्ञेय वस्तु है वो मटीरियल न हो।

आप कल्पना करिए किसी भी ऐसी चीज़ की जो मटीरियल नहीं है। कर सकते हैं क्या कल्पना? कोशिश करिए। कल्पना भी करिए किसी ऐसी चीज़ की जो मटीरियल नहीं है। आप जिस भी चीज़ की कल्पना करेंगे, उसमें भौतिकता शामिल होगी। और जो कुछ भौतिक है वो तो यहीं ज़मीन का हिस्सा है। उसको काहे मिस्टिकल (रहस्यवादी) बना रहे हो? काहे उसको भूत-प्रेत, अदर डाइमेंशन (अन्य आयाम) बोल रहे हो? वो तो यही डाइमेंशन है। मिट्टी का डाइमेंशन , मॉलिक्यूल्स (अणु) का डाइमेंशन।

लेकिन इसके पीछे जो मनोविज्ञान है उसको समझना ज़रूरी है। चूँकि हम डरे हुए हैं इसीलिए हमें डराया जाना बहुत आसान है। और हम डरे हुए क्यों हैं? क्योंकि हम सच से दूर हैं। जो सच से दूर होगा, उसकी सज़ा ये होगी कि वो इन सब चक्करों में पड़ेगा। ऐसी वाइब्रेशन्स (कंपन), ऐसी एनर्जीज़ (ऊर्जा), ये अँगूठी पहन लो, ये पत्थर धारण कर लो, फ़लाना पानी पी लो, और इस तरह के जितने भी टोटके होते हैं, ये सब सच से दूरी के कारण होते हैं। ठीक है, सज़ा मिलनी ही चाहिए। चतुर व्यापारी आकर के फिर लूटेंगे हमारे अज्ञान को, यही सज़ा है।

जिस दिन आपको पूरा भरोसा हो जाएगा न कि जहाँ तक आपकी बात है, आप ये शरीर ही हैं और शरीर के नष्ट होने के बाद आपका कुछ नहीं बचना है, उस दिन दो असर होंगे आपके ऊपर। गौर से सुनिए। जिस दिन आपको पूरा भरोसा हो गया, आप अच्छी तरह साफ़-साफ़ जान गए कि इस शरीर से कुछ नहीं है जो आगे चला जाना है, उस दिन आपके ऊपर दो असर होंगे — पहली बात, आप ज़िंदगी को सही जीना जान जाएँगे। आपको साफ़ सुनाई देगी घड़ी की टिक-टिक, आपको साफ़ सुनाई देगी मौत की आहट। आपको दिखाई देगा कि ये जो यंत्र है जिसको आप अपना शरीर बोलते हैं, ये लगातार ख़त्म होने की ओर बढ़ रहा है। तो आप सही ज़िंदगी जीना शुरू कर देंगे — ये पहला असर होगा आपके ऊपर।

और दूसरा असर ये होगा कि आप रातों में शमशान जाने से घबराएँगे नहीं। जानते हैं कि आप रातों में शमशान जाने से घबराते क्यों हैं? क्योंकि आपको कहीं-न-कहीं ये शक है कि मरने के बाद भी कुछ बच जाता है और जो बच जाता है वो शमशान में डोल रहा होगा।

अगर आपको पूरा भरोसा होता कि मरने के बाद कुछ नहीं बचता आपका, तो आप शमशान जाने से घबराते नहीं। लेकिन हर आदमी शमशान जाने से घबराता है। क्योंकि आप इस बात को साफ़ समझ ही नहीं पाए हैं कि आप प्रकृति की लहर मात्र हो। लहर गई तो गई, मिट गई। उसका अब कोई अवशेष बचेगा नहीं।

आप समझ ही नहीं पाए हो। आपको लग रहा है कुछ-न-कुछ बचेगा। और चचा मरे थे दस साल पहले वो अभी तक वहाँ मसान में ही डोल रहे हैं। तो उससे उम्मीद भी जगती है — ‘मेरा कुछ तो बच ही जाएगा।’ जब कुछ बच ही जाएगा तो कौन आज को सुंदर करे, सँवारे, सफल करे? आगे के लिए कुछ बच ही जाना है।

तो एक ग़लत ज़िंदगी जीने में और ये भूत-प्रेत, जादू-टोना और ऑकल्ट (रहस्यमय) में विश्वास रखने में बहुत गहरा सम्बन्ध है।

बात समझ में आ रही है?

जिस दिन आप बिलकुल सही ज़िंदगी जीने लगोगे, उसका एक परिणाम आपको ये दिखाई देगा कि आपका ऑकल्ट में यकीन बिलकुल ख़त्म हो जाएगा। आप हँसने लग जाओगे।

और आप गलत ज़िंदगी जी रहे हो, उसका एक प्रमाण होती हैं वो बहुत सारी अँगूठियाँ जो आपने धारण कर रखी होती हैं और जो मालाएँ आपने डाल रखी होती हैं और इधर-उधर जो आप पत्थरों के चक्करों में पड़े होते हो और ये ताबीज़ और ऐसा और वैसा, फ़लानी माला… क्या-क्या नहीं!

बल्कि यहाँ तक कह सकते हैं कि कोई व्यक्ति कितनी ग़लत ज़िंदगी जी रहा है, इसको नापने का एक पैमाना ही यही है कि देख लो कि उसका कितना विश्वास है इन सब चीज़ों में। सूडो स्प्रिचुएलिटी (छद्म आध्यात्मिकता), लाइफ़ आफ्टर डेथ (मृत्यु के बाद जीवन)।

और मैं अगर ग़लत बोल रहा हूँ, तो मेरा दुनिया के सारे भूत-प्रेतों को निमंत्रण है — ‘अहसान करो मुझ पर। आओ और कुछ अनिष्ट करो मेरा।’ और जो भूत-प्रेत अभी सो रहे हों, भई अब उनका भी समय होता होगा, वो बाद में देख लें यूट्यूब पर चढ़ेगा ये। (श्रोतागण हँसते हैं) तो तुम यूट्यूब पर देख लेना। भई जब वो इधर-से-उधर जा सकते हैं, वो सारे काम कर रहे हैं जो इंसान करता है तो यूट्यूब भी देख ही सकते हैं वो।

और मैं अपनी बात से मुकर न जाऊँ, इसके लिए इतने सारे गवाह बैठे हैं। भई सबके सामने मैंने दुनिया भर के सब तांत्रिकों को, भूतों को, प्रेतों को चुनौती दी है। मेरा कुछ कर ही दो अब।

(हँसते हुए) अरे! पहले भी बहुत बार दे चुका हूँ, (श्रोतागण हँसते हैं) कुछ नहीं कर पाते ससुरे। मेरी पूरी ज़िंदगी ही झूठ को चुनौती की तरह है, बिगाड़ सकता है जो बिगाड़ ले।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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