दुनिया में एक-से-बढ़कर-एक प्रकाशित स्त्रियाँ हुईं हैं, जाओ उन्हें चाहो, बिलकुल उनके प्रेम में पड़ जाओ, न्योछावर हो जाओ उनपर, तुम्हारी ज़िंदगी बन जाएगी। पर तुम ऐसा करते नहीं। ऊँची स्त्रियों से तुम्हें भय लगता है, क्योंकि ऊँची स्त्री के पास जाकर के तुम अपना बौनापन बरक़रार नहीं रख सकते।
तो जब तुम कहते हो कि तुम्हें स्त्रियाँ बड़ा आकर्षित करती हैं, बड़ा सताती हैं तो तुम वास्तव में किन स्त्रियों की बात कर रहे हो? तुम दो कौड़ी की स्त्रियों की बात कर रहे हो। तुम ऐसी स्त्रियों की बात कर रहे हो जो हाड़-माँस से ज़्यादा कुछ हैं ही नहीं। वही तुम्हारे ज़हन पर छाई रहती हैं।
किसी के होंठ, किसी के बाल, किसी की आँखें, किसी के स्तन, किसी की खाल। इन्हीं का विचार करते रहते हो न? तो फिर ये भी क्यों बोलते हो कि तुम्हें स्त्री का ख्याल रहता है, सीधे-सीधे बोल दो कि तुम्हें माँस का ख्याल रहता है, माँस! जैसे किसी माँसाहारी को हर समय माँस-ही- माँस दिखाई देता हो।