चोट खाए अहंकार, माफ़ करे अहंकार || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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चोट खाए अहंकार, माफ़ करे अहंकार || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

श्रोता : बार-बार आकर कोई पीड़ा पहुँचा रहा है और उसे माफ़ ही करते रहेंगे तो क्या वो ये नहीं सोचेगा कि हम में तो कोई दम ही नहीं है| उस समय क्या ज़रूरी नहीं है कि थोड़ा अहंकारी हुआ जाए और पलट कर वार किया जाए? अहंकार तो ज़रूरी है, कहीं ज़्यादा तो कहीं थोड़ा |

वक्ता : एक कहावत है, ‘मुक्त आकाश में तुम कील नहीं गाड़ सकते, कील गाड़ने के लिए दीवार का होना ज़रूरी है’| इसका अर्थ समझो- कि कील भी, जिसमें इतनी धार है, खुले आकाश का कुछ नहीं बिगाड़ सकती; काट नहीं सकती, उसको पीड़ा नहीं पहुँचा सकती है| कील भी तुम्हें तब ही पीड़ा पहुँचा पाएगी जब तुम में अहम् की दीवार खड़ी हो वरना कोई आएगा कील लेकर और तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा| तुम पीड़ित ही इसलिए होते हो क्योंकि अहंकार है| सच तो यह है कि अहंकार के अलावा और कुछ पीड़ित हो ही नहीं सकता| जब भी पीड़ित महसूस होना तो समझ लेना कि अहंकार है क्योंकि अहंकार के अलावा कुछ होता ही नहीं है पीड़ित होने के लिए| पीड़ित जब भी हो, तो सामने वाला जो कर रहा है, सो कर रहा है पर वह तुम्हारे भीतर चोट तभी पहुँचा सकता है जब तुम में अहंकार हो वरना वह चोट पंहुचा ही नहीं सकता|

श्रोता : सर अहंकार नहीं है, उम्मीद है|

वक्ता : हर उम्मीद अहंकार से ही निकलती है| अगर मेरा अहंकार कहता कि, ‘मैं भारतीय हूँ ‘, और भारत और ऑस्ट्रेलिया का मैच चल रहा है, तो क्या मैं उसे निष्पक्ष होकर देख पाऊँगा? तुरंत क्या उम्मीद आएगी?

सभी श्रोता : भारत को जीतना चाहिए|

वक्ता : हर उम्मीद के पीछे अहंकार बैठा है|

श्रोता : सर, अहंकार हटाया कैसे जाए?

वक्ता : अभी हमें अहंकार हटाने का कोई कारण ही नहीं मिला है| अभी तो हमने ठीक-ठीक समझा ही नहीं है कि उसके पेंच क्या हैं| वह कितना घातक है, यह हमने समझा कहाँ है? समझ गए तो उसको हटाना बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा| क्या तुम आज तक कोई ऐसा मैच देख पाए हो जिसमें भारत खेले और तुम कहो कि मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कौन जीते और कौन हारे, मैं तो यह देख रहा हूँ कि बॉलिंग कितनी प्यारी हो रही है? कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तेंदुलकर बोल्ड हो गया है, मैं तो तब भी ताली बजा रहा हूँ क्योंकि गेंदबाज़ ने गेंद इतनी प्यारी फ़ेंकी थी| देख पाए हो क्या? जेम्स ने बॉल डाली है और कितनी प्यारी बॉल, बॉल आती है, इन-स्विंगर है, बल्लेबाज़ के बैट का अन्दर का एज लेती है और स्टंप्स को छेड़ती हुई, विकेट-कीपर को बीट करती हुई, चार रन के लिए निकल जाती है, और तुम ज़ोर से तालियाँ बजाते हो कि चार रन मिल गए| क्या तुम यह कहते हो कि इस पर तो बोल्ड हो जाना चाहिए था? ऐसा करते हो? भारत और पाकिस्तान का मैच चल रहा हो, तब भी करते हो? वसीम अकरम घातक बॉल डाल रहा है, वर्ल्ड कप फाइनल है और तुम वसीम अकरम के लिए तालियाँ बजा रहे हो, ऐसा करते हो?

सभी श्रोता : सर, यह तो एक ख़ास स्थिति है|

वक्ता : ख़ास नहीं, सामने है बात| दिक्कत हो जाती है न? हर प्रकार की उम्मीद का जो स्रोत है, वह अहंकार ही है| समझ में आ रही है बात?

सभी श्रोता : जी

वक्ता : तुमने पहली बात कही थी, पीड़ा की| तो पीड़ा को समझना कि पीड़ित सिर्फ अहंकार ही हो सकता है| तुम्हारे पीड़ित होने से कहीं साबित नहीं होता कि तुम बड़े साफ़ आदमी हो और सामने वाला तुम्हारे साथ कुछ बुरा कर रहा है| बल्कि जितना बड़ा अहंकार, वह उतनी ही आसानी से पीड़ित होगा| जितना बड़ा अहंकार है, वह उतनी ही आसानी से पीड़ित होगा, बिना बात के पीड़ित हो जाएगा|

दूसरी बात तुमने कही; माफ़ (फोर्गिव्नेस) करने की| यह माफ़ करना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि जो पीड़ित ही नहीं हुआ, उसे किसी को माफ़ करने की ज़रुरत क्या है? माफ़ वह लोग करते हैं जो खेल खेलते हैं कि पहले हम बुरा मानेंगे और फिर माफ़ करेंगे, और माफ़ करने में अहंकार बहुत खुश होता है कि ‘देखो हमने माफ़ किया, जा!’

तो इस माफ़ करने में भी बहुत ऊंची बात नहीं है| जिसको बुरा ही नहीं लगा वह माफ़ क्यों करेगा? जो हर्ट ही नहीं हुआ वह माफ़ क्यों करेगा? माफ़ करना तो ये बताता है कि तुम कितने निर्भर हो कि कोई भी आता है और तुम्हें हर्ट करके चल देता है| और जितना हर्ट होगे, उतना माफ़ भी करोगे। फिर आओ हर्ट करते रहो, माफ़ी लेते जाओ, और हम बड़े बनते जा रहे हैं| आते जाओ, लेते जाओ- माफ़ी| अगली बात तुमने कही कि ऐसे मौकों पर थोड़ा अहंकार दिखाना अच्छा है या नहीं? किसी भी मौके पर तुम क्या दिखा रहे हो वह एक बात है, और तुमने क्या मान ही लिया है वह दूसरी बात है| अभी हो सकता है कि तुम में से कोई ऐसी हरकत करे कि मुझे गुस्सा दिखाना पड़े|

पर गुस्सा दिखाना एक बात है और गुस्सा हो ही जाना दूसरी बात है|

कोई तुमसे सड़क पर चलते हुए पूछे कि ‘कौन हो?’, तो तुम्हें कुछ न कुछ बोलना पड़ेगा कि, ‘मैं….कुछ हूँ’| कुछ न कुछ स्थिति के हिसाब से बोलना एक बात है, पर मान ही लेना दूसरी| उस बात के साथ एक गहरा तादात्म्य बैठा लेना, उसको अपनी पहचान ही बना लेना, वह बिलकुल दूसरी बात है| रोल-प्लेइंग कर लो, इसमें कोई बुराई नहीं है| जैसे एक एक्टर रोल-प्ले करता है, पर एक्टर ये मानना थोड़े ही शुरू कर देता है कि यह जो मैंने रोल किया है मैं यही हूँ| तो अमज़द खान मान लो घूम रहा है कि, ‘मैं गब्बर ही हूँ’, बड़ी दिक्कत हो जाएगी| वो घर में भी जा रहा है तो बच्चों में से किसी को कालिया बोल रहा है, किसी को साम्भा बोल रहा है और बीवी से पूछ रहा है कि, ‘कितने आदमी थे?’| बगल से निकल रहा है, अड़ोस-पड़ोस जा रहा है और पूछ रहा है, ‘होली कब है, कब है होली?’ और दुनाली अपनी साथ रखे है|

(सभी हँसने लगते हैं )

अरे, जब तक ज़रुरत थी, एक प्रकार का रोल कर लिया, पर हम ये भूल नहीं जाएँगे कि हम जो कर रहे हैं वह हम हैं ही नहीं| हम कुछ और हैं|

असलियत में हम क्या हैं, उसको भुला नहीं देना है| या यह कहो कि जो नकली रोल अदा करते रहते हैं उन नकली रोलों को बहुत गंभीरता से नहीं ले लेना है, उनको अपनी पहचान ही नहीं बना लेना है|

तो ठीक है, कोई आया है और बहुत परेशान कर रहा है, जैसे गली-मोहल्लों में आवारा कुत्ते लग जाते हैं पीछे, तो उनको भगाने के लिए हाथ में पत्थर हो या ना हो, बस इशारा कर दो, भाग जाते हैं| पर इसका ये मतलब नहीं है कि तुम्हें बहुत गुस्सा ही आ गया है| उसको भगाना था, डराया और भाग गया| अब पता चला कि कुत्ता है, उसके सामने तुम आग-बबूला हुए जा रहे हो कि. ‘हम जैसे श्रेष्ठ आदमी के पीछे तू कैसे लग गया? हम हर्ट हो गए हैं’, और बुरी तरह से आग-बबूला हैं और मुँह से झाग निकल रहा है, और कुत्ता भी तुमसे घबरा रहा है, तो कहते हो, ‘जा, माफ़ किया’| भाई, पहले अहंकार पीड़ित होता है, फिर माफ़ करता है| और ये सब कुत्ते के साथ चल रहा है, सड़क पर!

ज़रुरत थी, कोई था जो बहुत परेशान कर रहा था, उसको भगा दिया; एक प्रकार का व्यव्हार दिखा दिया और वह गया, लेकिन उस पूरी चीज़ को गंभीरता से नहीं ले लिया| आ रही है बात समझ में?

सभी श्रोता : जी सर|

वक्ता : देखो न, मन कितना प्रतिरोध पैदा करता है| ‘सर, थोड़ा-बहुत अहंकार तो चलेगा ना? प्लीज! सर बस 10%, सर 0% मत करिए, लेने-देने की बात करिए’| सर कुछ कह रहे हैं कि अहंकार डर में जीता है, पर ‘थोड़ा बहुत तो रहने दो ना सर’|

जैसे छोटे बच्चे होते हैं न, जिनको भगा भी दो तब भी भाग कर वापस आते हैं और कहते हैं ‘इत्ता सा दे दो’| वैसे ही यह कह रहा है कि ‘सर, इतना सा तो अहंकार छोड़ दो| अहंकार मरना नहीं चाहता, उसका अपना एक वजूद होता है; जो ख़त्म नहीं होना चाहता| अहंकार क्या अपने पांव से खुद मरने आएगा?

देखो, दो ही जगह होती हैं जहाँ से हम संचालित होते हैं, दो ही केंद्र हैं हमारे: एक समझ और दूसरा अहंकार|

जब हम समझ के केंद्र से संचालन करते हैं तो समझ सीधे-सीधे कहती है कि अहंकार झूठा है और हंसती है अहंकार पर| और जब हम अहंकार के केंद्र से संचालन करते हैं तो अहंकार का एक ही काम होता है; अपने आप को बचाना कि ‘मुझे बचा लो, मुझे ज़िंदा रहना है ‘|

तो जब भी तुम कह रहे हो कि अहंकार बचना चाहिए तो तुम खुद देख लो कि तुम समझ से संचालन कर रहे हो या अहंकार से| अहंकार का एक ही लक्ष्य होता है कि, ‘मेरा कुछ खो ना जाए, मेरा कुछ घट ना जाए, मैं जिंदा रहूँ, मैं बचा रहूँ’| और समझ कहती है कि हमारा कोई कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता, जिसको जो कोशिश करनी है कर ले, मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है| वो यह कहती ही नहीं कि मुझे इतना सा छोड़ दो| अहंकार हमेशा कुछ साबित करने की कोशिश में लगा रहता है, डरा रहता है| उसके पास हमेशा एक ही बात होती है, कुछ साबित करने की| समझ के पास कोई बात ही नहीं होती साबित करने के लिए|

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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