छोटी बातों का कारण पूछो, जो भी बड़ा है वो अकारण है || आचार्य प्रशांत (2015)

Acharya Prashant

9 min
53 reads
छोटी बातों का कारण पूछो, जो भी बड़ा है वो अकारण है || आचार्य प्रशांत (2015)

प्रश्नकर्ता: सर एक सत्र के लिए कई लोगों को आमंत्रित किया हुआ था पर आए कुछ ही लोग, तो ये जो लोग आएँ हैं, क्या ये उनका निर्णय था या उन्हें आना ही था?

आचार्य प्रशांत: वही चुनिन्दा क्यों आए उसका कारण मिल सकता है, बहुत आसानी से मिल जाएगा। आप उन लोगों को लीजिए और बाकीयों को लीजिए और उन्हीं से पूछ लीजिए कि अपने-अपने कारण बता दो।

कारण हम सब के पास होते हैं, वो कारण गहरे कितने हैं – ये बात अलग है। हो सकता है वो कारण छद्म कारण हों लेकिन कारण तो बता ही देंगे। जो न आने वाले हैं वो ख़ास तौर पर बता देंगे कि क्यों नहीं आए क्या कारण है। आने वाले भी कुछ-न-कुछ बता ही देंगे। साथ-ही-साथ इस बात का कारण भी पता चल जाएगा कि वो सत्र आयोजित ही क्यों हुआ। जिन्होंने आयोजित किया उनसे पूछा जाए तो वो भी कुछ-न-कुछ कारण बता ही देंगे। उसी तारीख को क्यों किया गया उसका भी कुछ-न-कुछ कारण बता ही दिया जाएगा, पर जिसको जानना है वो शायद वहाँ रुकना नहीं चाहेगा, वो कहेगा, "और बताइए।"

जो आए उन्होंने जो कारण लिखा है उसके पीछे कोई और कारण होगा। मान लीजिए किसी ने लिख दिया है कि "मैं यहाँ आया हूँ क्योंकि मैं एक आध्यात्मिक साधक हूँ।" तो अगर उससे पूछा जाता है कि, "तुम क्यों एक आध्यात्मिक साधक हो?" तो फिर उसके पीछे कोई और कारण, उसके पीछे कोई और कारण और फिर कोई और कारण। जो नहीं आया है उसने लिखा है, "मैं नहीं आ पाया क्योंकि मुझे एक विवाह में जाना था जो उसी दिन और उसी समय था", तो फिर उससे पूछा जाएगा कि, "तुम्हें क्यों जाना था उस विवाह में? वो क्यों उस सत्र से ज़रूरी थी?" तो इस तरह कारणों के पीछे कारण, कारण, कारण चलते ही रहेंगे।

अंततः आप एक ऐसी जगह आ जाएँगे जहाँ कोई कारण देते बनेगा नहीं क्योंकि कारण आप जब भी देते हैं तो उसमें आप ये कहते-ही-कहते हैं कि, "मैं और परिस्तिथियाँ", कारणों में हमेशा दो चीज़ें होती हैं – मैं और परिस्तिथियाँ, और परिस्तिथियों के आधार पर मेरा निर्णय। निर्णय में हम सोचते हैं कि कुछ विवेक शामिल है और परिस्तिथियाँ बाहर की बात हैं, "विवेक मेरा अपना है और परिस्तिथियाँ बाहर की बात है।" पीछे जाते-जाते एक बिंदु ऐसा आ जाता है जहाँ पर अब परिस्तिथियाँ बची ही नहीं, वहाँ पर कुछ समझाया नहीं जा सकता, कोई कारण नहीं दिया जा सकता। वहाँ फिर चुप हो जाता है आदमी।

तो इसीलिए तो दो तरीके होते हैं कि या तो इतनी मेहनत करले कोई और इतनी मेहनत करने के बाद चुप हो जाए, एक तरीके से जैसे कि कोई दिन भर श्रम करे तो फिर शाम को थकान हो जाती है तो ऐसे ही चुप हो जाए, और दूसरा ये होता है कि चुप-चाप श्रद्धा में पहले ही कदम पर कह दे कि, "होगी किसी की इच्छा इसलिए आए थे" और जिनको नहीं आना था वो नहीं आ पाए। आने वाले अपनी इच्छा से आए नहीं, ना आने वाले भी अपनी इच्छा से वंचित नहीं रहे।

छोटी-मोटी चीज़ों के लिए कारण हमेशा ढूँढे जा सकते हैं। जो भी कुछ सीमित है उसका कारण हमेशा मिल जाएगा। इसीलिए पदार्थ का कारण ढूँढने में कभी कोई दिक्कत नहीं होती है, सीमित है न। ये बोतल ऐसी क्यों है इसका कारण मिल जाएगा, इसका रंग ऐसा क्यों है ऐसा दिखाई क्यों देता है उसका भी कारण मिल जाएगा। पानी इतने ही तल पर क्यों है इसका भी कारण मिल जाएगा। अभी तापमान इतना क्यों है इसका भी कारण मिल जाएगा—ये सब सीमित सवाल हैं जिनके सीमित जवाब दिए जा सकते हैं, तो जहाँ भी सीमा है वह कारण मिल जाएगा। पर अगर कोई वास्तव में जानना चाहता है, आखिर तक जाकर जानना चाहता है तो कारण नहीं मिलेगा, कारण अटक जाएगा।

कारण के लिए दो चाहिए न – आप और परिस्तिथियाँ, कारण और प्रभाव, करने वाला और कार्य। फिर वहाँ रुक जाता है आदमी। छोटी बातों में कारण पूछ लेना चाहिए। जीवन में जो कुछ भी महत्वपूर्ण हो उसका कारण नहीं पूछना चाहिए उसके सामने सिर्फ सर झुका देना चाहिए।

नल में पानी क्यों नहीं आ रहा है इसका कारण पूछ लीजिए, पूरी तहकीकात कर लीजिए और ठीक कर दीजिए तो नल में पानी आने लग जाएगा। वोल्टेज दो-सौ-चालीस वोल्ट की बजाए एक-सौ-अस्सी ही है तो बेशक जाँच कर के उसको ठीक कर लीजिए, पर अचानक कुछ समझ में आ गया तो उसका कारण मत पूछिएगा, अचानक प्रेम प्रतीत हुआ उसका कारण मत पूछिएगा, अचानक द्रवित हो गए तो उसका कारण मत पूछिएगा। बुखार चढ़ गया है तो उसका कारण पूछ लीजिएगा, अस्पताल में जाकर जाँच कराइएगा तो वो बता देंगे कि बुखार क्यों हुआ है पर बुखार के बीच में भी अगर आनंद आ रहा हो तो उसका कारण मत पूछिएगा।

जो कुछ भी वास्तविक है, बड़ा है, असीमित है, उसका कारण मत पूछना।

तो अब ये सवाल मैं आप से करता हूँ कि आप वहाँ पर आए तो ये आप के लिए एक छोटी सी बात थी या वास्तव में महत्वपूर्ण थी? अगर छोटी सी बात थी तो उसका कारण आप खोज ही लेंगे। आप कहेंगे कि, "न्यौता आया था और रविवार की शाम थी और हम खाली थे तो हम चले गए।"

प्र२: सर रमण महर्षि से भी किसी ने एक बार ये पूछा था कि जो बड़ी बातें हैं वो तो पहले से निर्धारित हो सकती हैं पर ये छोटी सी बातें जैसे आप किस दरवाज़े से आए हो, आप कॉफ़ी पियोगे या चाय पियोगे, ये बातें कैसे निर्धारित होती हैं, तो महर्षि ने बड़े साफ़-साफ़ बोला कि छोटी-से-छोटी बातें भी पहले से निर्धारित होती हैं। सर जैसे कि मैं यहाँ आया हूँ तो मुझे उसका कारण नहीं पूछना चाहिए पर महर्षि तो कहते हैं कि छोटी सी भी बात पहले से निर्धारित होती है। सर इस बात में थोड़ी सी उलझन है।

आचार्य: मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि आप कारण न पूछें। देखिए, पूरा जिसको मिल जाता है वो स्वयं ही कारण नहीं पूछता, उसको मन में यह सवाल ही नहीं उठते। कारण का प्रश्न ही मन में तभी तक है जब तक कुछ अधूरा है और जब तक बात अधूरी है - अधूरी माने सीमित; छोटी - जब तक बात अधूरी है, सीमित है, छोटी है तब तक आपको ये प्रश्न पूछना ही पड़ेगा कि कारण क्या है। तो उसमें "मैं पूछूँ या नहीं" वाली बात नहीं है, आप पूछोगे-ही-पूछोगे। कारण सिर्फ़ वही नहीं पूछता जिसको दिल भर कर मिल गया। जब तक उतना प्राप्त नहीं हुआ है, जब तक बेचैनी और अपूर्णता है तब तक तो आप कारण पूछोगे-ही-पूछोगे।

अब प्रश्नकर्ता कौन है? जो कह रहा है कि, "बताइए कि मैं इसी दरवाज़े से क्यों आया?" प्रश्नकर्ता वो है जो अपूर्णता के भाव में है, उसको ये पूछना ही पड़ेगा कि कारण बताइए क्योंकि जहाँ सीमा है जहाँ छोटापन है वहाँ सवाल है, वहाँ कारण की तलाश है। उत्तर देने वाला कौन है? उत्तर किसने दिया? रमण महर्षि ने, वो उत्तर कहाँ से देंगे? वो पूर्णता के भाव से देंगे, तो उनको यह सवाल कभी उठता ही नहीं है कि इसकी वजह क्या है, इसकी जाँच-पड़ताल करूँ, कारण पता करूँ कि क्या करूँ। उनके लिए सब आत्मा का नाच है। तो उनसे आप कहेंगे कि कारण बताइए तो वो कहेंगे कि "कैसा कारण, कोई कारण नहीं है।" समझ रहें है न? तो सवाल पूछने वाले और उत्तर देने वाले का भेद है ये और कुछ नहीं है।

और इसमें ऐसा नहीं है कि सवाल पूछना नहीं है, सवालों की बड़ी उपयोगिता है और आपसे कह भी दिया जाए कि पूछने नहीं हैं तो आप हो सकता है कि मौखिक रूप से न पूछें पर दिल में कुलबुलातें रहेंगे। आप हो सकता है कि व्यक्त न करें पर मन-ही-मन तो सवाल उठते ही रहेंगे। वो सवाल तो तभी जातें हैं, कारण की तलाश तो तभी जाती है जब पूर्ण प्राप्ति हो। फिर कोई आपसे पूछे कि, "प्रेम क्यों है?" तो आप समझाने नहीं बैठ जाओगे बल्कि आप यह कहोगे कि, "ये सवाल ही बेहूदा है, क्या कारण बताएँ कि प्रेम क्यों है।" हाँ, बात अगर छोटी है और सीमित है तो उसका कारण आप बता दोगे, फिर आप बता सकते हो कि, "प्रेम इसलिए है क्योंकि पैसे की तलाश है, शरीर की तलाश है", जो भी है फिर आप बता सकते हो। छोटे के कारण होते हैं बड़े के नहीं होते इसीलिए रमण महर्षि के लिए कोई कारण नहीं है पर प्रश्नकर्ता के लिए कारण है।

प्र३: सर जैसे प्रश्नकर्ता के लिए कारण है और आपने कहा कि प्रश्न पूछने वाला कौन है और उसका उत्तर देने वाला कौन है ये बहुत महत्व रखता है पर अगर सर मन में यह बात बैठ गई कि सब कुछ पहले से ही निर्धारित है तो ये एक खिलौने कि तरह हो जाता है।

आचार्य: तो फिर खेलते रहो खिलोने से पर चैन तो तुम्हें तब भी नहीं पड़ेगा न, तुम्हारा सवाल बुझ गया क्या? तुम्हें दे दिया उत्तर कि, "हाँ सब कुछ पूर्व नियोजित है।" तो इससे तुम्हे शांति मिल गई? खेलते रहो खिलौने से, क्या हो जाएगा? तोड़ दोगे खिलौने को थोड़ी देर में। खिलौनों से खेल कर तुम शांत थोड़े ही हो जाते हो, खेल लो कुछ समय।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories