छोड़ो डर का आदर, प्रेम में जियो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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छोड़ो डर का आदर, प्रेम में जियो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: हमारे साथ बड़ी अन्यायपूर्ण बात कर दी गयी है। हमें बता दिया गया है कि ज़िंदगी मुश्किल है। तुम सब जवानी में ही एक गांठबांध कर बैठ गए हो, वो ये है कि जीवन एक संग्राम है। तुमसे कह दिया गया है कि तुम युद्ध भूमि में पैदा हुए हो और चारों तरफ बम-गोले बरस रहे हैं, गोलियां चल रही हैं, भाले हैं, खून की नदियाँ हैं और तुम्हें इन सबका सामना करना है। भाषा देखो न कैसी रहती है, ‘जीवन का सामना करो’। अरे जीवन क्या कोई खुंखार जानवर है? करना नहीं पड़ता है, तुम उसको ऐसा बना देते हो, जैसे की कोई साधारण सी चीज़ हो और तुम उस पर दो सींग लगा दो, उसके दांत उगा दो और फिर कहो कि अरे डर गया। जैसे इस कमरे में एक दीवार है, तुम जाओ और इस पर एक भूत की तस्वीर बनाओ और फिर उसको देख कर खुद ही डर जाओ, रोना शुरू कर दो कि तस्वीर कितनी भयानक है। ज़िंदगी भयानक है या तुमने बनाई है? ये बात हम भूल चुके हैं की ज़िंदगी को भयानक हमने ही बना लिया है, उसमें कुछ है ही नहीं भयानक। बड़े-बड़े आते हैं और नसीहत देते हैं कि भविष्य बड़ा चुनौतिपूर्ण है और तुम्हें उन सभी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और तुम कहते हो, ‘वाह! ये हमारा शुभचिंतक है, ये चाहता है की हम तरक्की करें’ और तुम नहीं देख रहे हो वो तुम्हारे दिमाग में ज़हर भर रहा है।

श्रोता १: लेकिन वो हमें प्रेरणा दे रहा है।

वक्ता: क्या प्रेरणा है? ‘अब मैं ज़िंदगी का सामना करूँगा’। बंदूक़ लाए हैं, और चला रहे हैं हवा में। उत्साह बढ़ गया, तो कुछ तो करना पड़ेगा। कभी देखना अपने आप को जब उत्साह बढ़ता है तो क्या करते हो। जीवन कहीं से युद्ध- भूमि नहीं है पर बात-बात में तुमको नसीहत यही दी गयी है कि खतरा बहुत है, बचकर रहना।

श्रोता २: फूंक-फूंक कर कदम रखना।

वक्ता: फूंक-फूंक कर कदम रखना, घर से बाहर मत निकलना। नतीजा ये हुआ है कि कदम तो कहीं नहीं रखे जाते, पर फूंक बहुत है जीवन में। तुम सब भविष्य की तैयारी मेंजुटे हुए हो। एक बात बताओ अगर भविष्य में खतरा न होता तो क्या तैयारी में जुटते? तुम सब भविष्य से आशंकित हो, तुम्हारे मन में ये बात डाल दी गयी हैकि भविष्य मतलब ख़तरा और अपने आप को तैयार करो ताकि उस खतरे का सामना कर सको। तुम ख़तरा न बोलो, उसे चुनौती बोल लो।

श्रोता ३: सर, खतरा ही तो चुनौती होती है।

वक्ता: बात एक ही है। लगातार तैयारी में जुटे हुए हो, ‘खतरा! कुछ आ रहा है’ और अगर तुम लड़की हो तब तो पूछो मत। घर से बाहर मत निकलना लक्कड़बग्घा, गीदड़ पता नहीं क्या-क्या घूम रहा है। और जो भी घूम रहा है वो रात को ८ बजे के बाद ज़्यादा घूमता है। फिर देखो वो लड़की ऐसी सहमी-सहमी दिखाई देगी। माँ ने पिछले २५ साल से यही बोला की एक लक्कड़बग्घा आएगा और उठा कर ले जाएगा और तुम कहते हो की इस लड़की की बड़ी-बड़ी आँखें हैं। तुम समझ नहीं रहे हो की वो सिर्फ डरी हुई आँखें हैं। गब्बर को भी पता था कि जब यहाँ से ५० कोस दूर कोई रोता है तो माँ कहती है, ‘सो जा नहीं तो…’

सभी श्रोता(एक स्वर में): गब्बर आ जाएगा।

वक्ता: और दुनिया की हर माँ ने यही काम किया है। तुम्हारे मन में गब्बर का डर भराहै। माताओं को गब्बर से विशेष आकर्षण है। खुद तो आसक्त रहती ही हैं और बच्चे के मन में भी डर ज़रूर भरेंगी कि कुछ गड़बड़ ज़रूर है और उसको नाम दे दिया जाता है प्रेम का। इतना प्यार है की हमें तुम्हारी परवाह है। प्यार में तुम किसी के मन में डर भरते हो क्या? ये उल्टा गणित किसको बता रहे हो? ये क्या फ़िज़ूल की बात है? तुम जिससे प्रेम करते हो उसका भला चाहते हो, उसको मुक्ति देते हो, तुम उसको डर नहीं देते। जो तुम्हारे मन में डर भर दे वो तुम्हारा हितैषी कैसे हो सकता है? दुश्मन है। इस बात को पहचान लो अच्छे से कि जो दुश्मन प्रकट हो वो कम खतरनाक होगा, पर जो दोस्त की शक़्ल ले कर बैठा हो उससे बचना मुश्किल है। ये सारी दुश्मनी जानबूझ कर नहीं की जा रही है, बात बस इतनी सी ही है की जो लोग तुम्हारी ज़िंदगी में मौजूद हैं वो बेचारे खुद भी नहीं जानते। ऐसा नहीं है कि वो जानबूझ कर नुक़सान पहुँचा रहे हैं। वो खुद नासमझ हैं, उन्होंने खुद जीवन भर सिर्फ पीड़ा झेली है, वो खुद डरे सहमे रहे हैं और वही डर तुमको विरासत में दे रहे हैं।

ये जो हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था है, ये कर क्या रही है? ये लगातार भविष्य की तैयारी ही तो कर रही है। वो इसके अलावा और कुछ जानते ही नहीं। लगातार तुमको बाहर कीचीज़ों की जानकारी दे रही है। तुम्हारी तो किस्मत है की तुमको HIDP मिल गया लेकिन दुनिया भर की व्यवस्था में ऐसी कोई शिक्षा नहीं है जो तुम्हारा परिचय तुमसे कराती हो। नासमझ लोग हैं जिन्होंने ये सब पाठ्यक्रम लिख दिए हैं और बस इतना किया है कि दुनियाभर की जानकारी से तुम्हारा सर भर दिया है। इसके बारे में जान लो, उसके बारे में जान लो, ये टेक्नोलॉजी, वो इतिहास, ये सबभर जाए तुम्हारे दिमाग में। बस ये न पता चले कि तुम कौन हो, ये बात नहीं पता चलनी चाहिए। इस बात से सब डरे हुए हैं कि कहीं ये राज़ न खुल जाए कि ‘मैं कौन हूँ’, बस ये मत बताना। तो इसके लिए शिक्षा में जगह ही नहीं रखी गयी। उन्हें समझ में ही नहीं आता की इसकी जगह है और हर चीज़ से ऊपर है इसकी जगह।

श्रोता ४: या वो समझना ही नहीं चाहते।

वक्ता: कह सकते हो। पर जो नासमझ होगा वही नहीं समझना चाहेगा।

श्रोता ५: ताकि उनकी इज्ज़त बची रहे।

वक्ता : हम जिसको इज्ज़त बोलते हैं वो डर के अलावा और क्या है? तुम जिस भी चीज़ को इज्ज़त बोलते हो वो डर के अलावा और क्या है? वरना प्रेम काफी है। तुम्हें किसी की इज्ज़त क्यों करनी है? प्रेम काफी नहीं है क्या? प्रेम से हट कर इज्ज़त क्या होती है? तुम सिर झुका दो, सुबह-शाम प्रणाम करो, ये इज्ज़त है? ये क्या चल रहा है? जो असली चीज़ होती है, जो किन्हीं दो स्वस्थ लोगों के सबंधों की बुनियाद हो सकती है, वो है प्रेम। प्रेम की कोई बात नहीं करेगा, और वो नहीं भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें कोई अंतर नहीं पड़ता कि तुम हमसे प्यार करते हो कि नहीं, हमारी इज्ज़त ज़रूर करना। प्यार कब का ख़त्म हो गया कोई फर्क नहीं पड़ता, इज्ज़त ख़त्म की तो तुम्हे मार डालेंगे। बात यही है की नहीं?

सभी श्रोता(एक स्वर में): बिल्कुल सर।

वक्ता: प्यार कब का ख़त्म हो चुका है, पर इज्ज़त होनी चाहिए।और तुम्हें ऐसे बहुत लोग मिलेंगे। ‘हमें बुरा ही नहीं लगता, हम इतने सुस्त हो गए हैं कि हमें ये अंतर ही नहीं पड़ता की प्रेम है या नहीं, पर अहंकार इतना बड़ा है की इस बात से बहुत फर्क पड़ता है कि …

सभी श्रोता(एक स्वर में): इज्ज़त है की नहीं।

वक्ता: इज्ज़त है की नहीं। जो असली आदमी होगा वो रो पड़ेगा अगर प्रेम नहीं पायेगा, जो नकली आदमी होता है उसे सिर्फ इज्ज़त चाहिए। असली आदमी इज्ज़त की परवाह नहीं करेगा, वो कहेगा की इज्ज़त दो कौड़ी की चीज़ होती है, इसमें रखा क्या है। जो असली प्राण हैं, जीवन को वो मिलना चाहिए। हम उसकी तो कभी बात ही नहीं करते। इज्ज़त हमने प्यारी चीज़ बना दी है और प्यार पर हज़ार तरह की बंदिशें लगा दी हैं। तुम देख रहे हो अपनी पागल दुनिया को? तुम्हें सबसे ज्यादा रोका उसी पल जाएगा, जिस पल तुम ऐसा कुछ पाओगे जहाँ वास्तव में प्रेम है। तुम कदम प्यार की दिशा में बढ़ाओ फिर देखो कि दुनिया क्या करती है। हाँ, इज्ज़त की दिशा में कदम बढ़ाओ फिर देखो दुनिया क्या करती है। ‘इज्ज़तदार भविष्य! हमें फक्र है अपने बच्चे पर, अपने छात्र पर, या अपने भाई पर, हमें नाज़ है’।

सभी श्रोता(एक स्वर में): हमें प्यार नहीं है।

वक्ता: न वो नहीं है, वहाँ बड़ी दिक्कत है। ये सारी बातें जो पूरी कंडिशनिंग हुई है उसका नतीज़ा हैं। यह सब मन में भर दिया गया है। बच्चा नहीं पैदा होते ही कहता है कि मेरी इज्ज़त करो। वो तो मस्त नाचता है और न वो किसी की इज्ज़त करता है। इज्ज़त की परवाह नहीं करता वो। तुम कुछ भी हो उसे फर्क नहीं पड़ता। ‘तुम हमें पसंद हो तो ठीक और नहीं पसंद हो तो निकलो’। ये सब बातें बच्चे के मन में, बाद में भर दी जाती हैं: इज्ज़त, शर्म, हया। ये तुम लेकर नहीं आये थे, ये तुम्हारे भीतर डाल दी गयी हैं। ये बड़ी बातें हैं, इज्ज़त, शर्म और फिर तुम इनका बोझ जीवनभर ढ़ोते हो।

तुम्हें इज्ज़तदार होना है। बहुत लोग यह बात बड़े अधिकार से कहते हैं कि शर्म-हया बेच कर खा गया। बड़ा अच्छा किया। पर मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूँ कि शर्म और हया को ख़रीदा किसने? फिर इसी पल के साथ मन में एक भाव पैदा होता है, ग्लानि का। शर्म हमेशा सिर्फ दूसरों के सामने ही नहीं आती, अपने सामने भी आती है। देखाहै? तुम अपनी आँखों में गिर जाते हो और तुम कहते हो कि ये मेरी अंतरात्मा है। ये अंतरात्मा वगैराह कुछ नहीं है, ये वही प्रोग्रामिंग ही चल रही है।

तुम्हारी ऐसे प्रोग्रामिंग कर दे गयी है कि तुम्हें बता दिया गया है कि कब अच्छा अनुभव करना है और कब ख़राब। उसको तुम सेल्फ-रिस्पेक्ट भी बोलते हो। तुम जो ख़ुशी अनुभव करते हो, कहते हो कि आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, मैं अपनी नज़रों में उठ गया हूँ, वो तुम अपनी नज़रों में नहीं उठे हो, वही प्रोग्राम चल रहा है। तुम्हारी नज़र तो अभी खुली ही नहीं है, तो अपनी नज़रों में उठने या गिरने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। अभी तो प्रोग्राम ही चल रहा है, उसने तुमको बता रखा है की अन्दर ‘अ’ जाएगा तो अच्छा लगेगा, अन्दर ‘ब’ जाएगा तो रोना शुरू, अन्दर ‘स’ जाए तो आत्महत्या, और तुम उसी पर चलते हो। पक्का पता है की ये घटना हो जाएगी तो मैं ये कर डालूँगा।

श्रोता २: पहले से?

वक्ता: जो पहले से पता हो वो प्रोग्रामिंग है।

श्रोता ३: पूर्व योजना बना रखी है।

वक्ता: पूर्व योजना। क्या सभी कुछ पूर्व नियोजित है? कुछ ऐसा भी है जो पूर्व नियोजित न हो? क्या यह भी पूर्व नियोजित है कि एक दिन इस कमरे में बैठ कर इस तरह बोलोगे और प्रश्न करोगे?

सभी श्रोता(एक स्वर में): नहीं।

वक्ता: तो ये बात कहाँ से आ रही है? जहाँ से भी आ रही है, वो स्रोत बड़ा कीमती है, उसको पकड़ो। वो क्या है जो योजना के बाहर है? वो क्या है जो प्रोग्रामिंग के बाहर है? उसको जानो तब कुछ मज़ा आएगा।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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