बुलाती है मगर जाने का नहीं || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बुलाती है मगर जाने का नहीं || नीम लड्डू

यह लाज की, धिक्कार की बात है कि एक छोटे से सुख से ही खरीद लिया गया। अगर मैं छोटा आदमी होऊँगा ज़रूर जो इस छोटे से सुख से बिलकुल लार टपका दी मैंने। सवाल पूछते हैं फिर अपने-आप से कि, “तू इतना गिर गया? इतनी बड़ी चीज़ हो गई तेरे लिए एक शाम की खुशी, एक रात का जोश इतनी बड़ी चीज़ हो गई? तू कितना छोटा आदमी है कि एक छोटी सी चीज़ तुझे खरीद ले गई!”

हर छोटी चीज़ अगर मेरे लिए बड़ी हो जाए तो मैं कितना छोटा हूँ!

आदमी के भीतर अपनी एक ठसक होनी चाहिए। वैसे तुम भले ही विनम्र रह लो, लेकिन जिस पल कोई तुम्हारे ज़हन पर छाने की कोशिश करे, तुम्हें ललचाए-लुभाए, उस पल तो तुम्हारी ठसक को बिलकुल जाग्रत हो जाना चाहिए। तुम्हें कहना चाहिए, “ऐ छोटे! चुनौती दे रहा है, तूने हमें कितना छोटा समझ लिया कि तूने ऐसा अनुमान, अंदाज़ लगाया कि हमें जीत लेगा?”

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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