बुद्धि के दोषों को हटाने का उपाय क्या? || आचार्य प्रशांत, रामगीता पर (2020)

Acharya Prashant

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बुद्धि के दोषों को हटाने का उपाय क्या? || आचार्य प्रशांत, रामगीता पर (2020)

देहेन्द्रियप्राणमनश्चिदात्मनां हसड्भादजस्त्र परिवर्तते धियः। वृत्तिस्तमोमूलतयाज्ञलक्षणा यावद्धवेत्तावदसौ भवोद्धव: ।।

बुद्धि की वृत्ति ही देह, इन्द्रिय, प्राण, मन और चेतना आत्मा के संघातरूप से निरन्तर परिवर्तित होती रहती है। यह वृत्ति तमोगुण से उत्पन्न होने वाली होने के कारण अज्ञानरूपा है और जब तक यह रहती है, तब तक ही संसार में जन्म होता रहता है। ~ रामगीता (श्लोक ३१)

प्रश्नकर्ता: बुद्धि की वृत्ति से आगे निकलने का क्या उपाय है?

आचार्य प्रशांत: बुद्धि के वृत्ति से आगे निकलने का मतलब होता है कि कुछ ऐसा जीवन में ले आ लेना जो साधारणतया तुम्हारी बुद्धि तुमको सुझाएगी नहीं। बुद्धि तो प्रकृति का ही एक उत्पाद है। तुम्हारे पास ये मस्तिष्क न हो तो तुम्हारी बुद्धि बचेगी क्या?

मनुष्य में, हम कहते हैं, बुद्धि है और जानवरों में नहीं है, उसका कारण मनुष्य की प्रकृति ही तो है न। मनुष्य का जो मस्तिष्क है, वो किसी कुत्ते या बन्दर के मस्तिष्क से भिन्न है तो इसलिए मनुष्य में बुद्धि पायी जाती है। और बुद्धि भी मस्तिष्क में किन-किन जगहों से ज़्यादा सम्बन्धित है हम ये भी अब जानते हैं। उन जगहों पर चोट लग जाए या उन जगहों पर कोई प्रयोग कर दिया जाए तो तुम्हारी बुद्धि भी गड़बड़ा जाएगी । तो बुद्धि तो प्राकृतिक है, प्रकृति से सम्बन्धित है। है न?

जो कुछ भी प्रकृति से सम्बन्धित है, वो त्रिगुणात्मक ही होता है। तो बुद्धि में भी ये जो गुण सम्बन्धी वृत्तियाँ हैं, वो हमेशा रहेंगी-ही-रहेंगी। सतोगुणी बुद्धि होगी, रजोगुणी होगी, तमोगुणी होगी। बुद्धि तो ऐसी रहेगी ही।

कुछ ऐसा करना है जो प्रकृति से आगे का है माने बुद्धि से आगे का है माने ऐसा है जिसको करने की आम-तौर पर प्रकृति तुमको राय नहीं देगी। तुम्हारे भीतर ऐसी कोई प्राकृतिक भावना उठेगी नहीं कि मैं ये काम करूँ। वो करना होता है। उसी का नाम अध्यात्म है।

उसके लिए अगर ठीक से आपने पढ़ा हो तो राम गीता के ही श्लोक क्रमांक बाईस और चालीस रास्ता सुझा देते हैं। दो-चार बातें उन्होंने कही हैं। पहली बात उन्होंने ये कही है कि अपने दम पर जो कर सकते हो कर लो। श्लोक क्रमांक बाईस है वो शुरुआत ही इससे करता है, ‘शुद्ध चित्त होकर — यहाँ से नहीं शुरुआत करता है कुछ और करनी है — शुद्ध चित्त होकर। सारी ज़िम्मेदारी आप पर डालता है। अभी गुरु नहीं आये तस्वीर में, ग्रन्थ भी नहीं आये, अभी बस आपकी बात हो रही है। ‘अपने दम पर पहले शुद्ध चित्त हो जाओ।’

पहला काम ये करना है कि अपनी ओर से अपने विचारों को जितना परख सकते हो, अपनी मंशा की, अपने जीवन की और अपने उद्देश्यों की जितनी सफ़ाई कर सकते हो कर लो भाई! उसके बाद क्या करना है? गुरु की कृपा से “तत् त्वम् असि” आदि महावाक्य के द्वारा। उसके बाद ग्रन्थों के पास जाना है गुरु की कृपा से। उसके बाद जब तुमने अपने ऊपर जितना काम तुम स्वयं कर सकते थे फिर गुरु के सुझाये हुए ग्रन्थों के पास जाओ और कौनसे ग्रन्थ सुझाये हैं?

वेदान्त वाक्यों की बात की गयी है, महावाक्यों की बात की गयी है। “तत् त्वम् असि” आदि महावाक्यों पर विचार करके परमात्मा और जीवात्मा की एकता जानकर निश्चल हो जाओ, सुखी हो जाओ। परमात्मा और जीवात्मा माने आत्मा और मन की एकता जानकर के। ये करना है। पहली चीज़ ये करनी है कि अपनी ओर से सच्चा जीवन जीने के, मन की सफ़ाई के, जितने तुम उपाय कर सकते हो करो। इन उपायों के फलस्वरूप ही तुम्हें कोई पथप्रदर्शक मिल जाएगा। चाहो तो उसको ये नाम ‘गुरु’ दे दो, चाहो तो न दो। पर कोई तुमको मिल जाएगा ऐसा। कोई वो ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति हो, वो कोई स्थिति भी हो सकती है, वो कोई ताकत हो सकती है, वो कुछ भी हो सकता है। लेकिन तुमने अपनी ओर से अगर भरपूर कोशिश की है तो तुम्हें कुछ-न-कुछ ऐसा मिल जाएगा जो तुमको राह दिखाएगा। और वो क्या राह दिखाएगा अगर सच्चा मिला है तो? श्लोक बाईस कहता है कि वो तुमको वेदान्त वाक्यों की ओर ले जाएगा।

ध्यान रखो इधर-उधर के पचास ग्रन्थों की बात नहीं करी गयी है सीधे वेदान्त की बात करी गयी है। और वेदान्त में भी जो उच्चतम वाक्य हैं। चार तो स्थापित महावाक्य हैं ही वेदान्त के, इन चार महावाक्यों के अलावा अन्य भी बहुत शीर्ष वाक्य हैं। उनको भी महावाक्य ही बोल सकते हो। न जाने कितने हैं! सैकड़ों में हैं। और वो सब-के-सब इशारा एक ही ओर को कर रहे होते हैं।

तो सिर्फ़ उनकी तरफ़ जाना है। और जो उनमें चला गया, उनमें डूब गया, उनके स्मरण में रहा, बार-बार उनका अपने जीवन पर प्रयोग करता रहा वो यहाँ कहा गया है कि फिर वो सुमेरू के समान माने पर्वत के समान निश्चल हो जाएगा। फिर वो नहीं डिगेगा। फिर दुनिया की ऊँच-नीच उसको नहीं हिला पाएगी और वो लगातार फिर आनन्द में जियेगा। ये तरीका बताया गया है।

इसी तरीके को जो दूसरा श्लोक है श्लोक क्रमांक चालीस वो इस तरह से बताता है, आपने पूछा न कि बुद्धि से आगे जाने का क्या उपाय है, तो कहता है कि गुरु के समीप रहना और वेद वाक्यों से आत्मज्ञान का अनुभव लेना और देहादि सम्पूर्ण जड़ पदार्थों का त्याग कर देना। अगर बाईसवांँ श्लोक और चालीसवांँ श्लोक लो तो जो तरीके बताये गए हैं — तीन-तीन तरीके दोनों में बताये गए हैं, बाईसवें श्लोक में भी, चालीसवें श्लोक में भी। पर उन तरीकों का जो क्रम है वो बाईसवें में ज़्यादा उपयोगी तरीके से बताया गया है। तरीके वही तीन दोनों श्लोकों में बताये गए हैं। क्रम में लेकिन सबसे पहले आता है अपने ऊपर काम करना।

अपने ऊपर पहले जितना काम कर सकते हो कर लो फिर गुरु के समीप जाओ और गुरु उसके बाद जो ग्रन्थ सुझाये और ग्रन्थ भी यहाँ पर साफ़ कर दिया गया है कि वेदान्त ग्रन्थ। गुरु जो ग्रन्थ बताये उन ग्रन्थों पर मनन-चिन्तन करो, उन्हीं वेद वाक्यों के आधार पर जीवन व्यतीत करो, तुम्हारा काम हो जाएगा। यही तरीका है और कोई तरीका नहीं है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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