भावुकता क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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भावुकता क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

प्रश्न: सर, मैं पूछना चाहता हूँ कि एक इंसान की ज़िन्दगी में भावनाओं का किस तरह से असर होता है? भावनाएँ बहुत तरीके की हो सकती हैं| दोस्त के प्रति, माँ-बाप के प्रति| या अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो उस उद्देश्य के प्रति आपका व्यवहार कैसा रहता है| आप किसी चीज़ को किस हद तक महत्व देते हैं| हम आपसे पूछना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति के प्रति या किसी उद्देश्य के प्रति भावुक हो जाना क्या है|

वक्ता: भावुकता क्या है? भावुकता चीज़ क्या है? भावुकता का मतलब क्या?

श्रोता १: बहुत जल्दी किसी चीज़ के लिए भावुक होना|

श्रोता २: हित, लगाव|

वक्ता: ‘हित, लगाव’| साफ़-साफ़ समझ लो, भाव विचार ही है! विचार जब तक हल्का रहता है, शरीर को उसका पता नहीं चलता| जब विचार तीव्र हो जाता है, घनीभूत हो जाता है, तो उसका असर शरीर पर भी दिखाई देने लगता है| तुम्हें अगर हल्का-सा गुस्सा है, तो वह तुम्हारे चेहरे से पता नहीं लगेगा| पर वही गुस्से का विचार जब बढ़ जाएगा, तो तुम्हारी आँखें लाल होने लगेंगी, शरीर थकने लगेगा| तब तुम कहोगी, ‘यह भावुक हो रहा है’|

तुम थोड़े से मायूस हो, तो विचार है मायूसी| तुम कुछ सोच रहे हो, उससे मायूस हो| तुम थोड़े मायूस हो, तुम्हारा चेहरा साधारण-सा ही बना रहेगा, कोई कुछ कह नहीं पाएगा| पर वही मायूसी जब बढ़ जाएगी, तब तुम्हारी आँखों से आँसूं आ जाएँगे, और तुम कहोगे कि मैं भावुक हो गया| भावुकता कुछ नहीं है| विचारों का बढ़ जाना ही भावुकता है|

कोई भी विचार जब बढ़ जाता है, तो उसका असर शरीर पर दिखाई देने लगता है; इसी का नाम भावुकता है|

कोई भी विचार हो, कैसा भी विचार हो| भावुकता में कुछ ख़ास नहीं है, भाव में कुछ रखा ही नहीं है| तुम भाव को बड़ी कीमत देने लग जाते हो! तुम सोचते हो कि भाव में कुछ ज़्यादा साफ़ है, भाव में कुछ ज़्यादा पवित्र है, भाव में कुछ ज़्यादा असली है| कुछ असली-वसली नहीं है! भावुकता को कोई बहुत महत्व देने की कोई आवश्यकता ही नहीं है| सच तो यह है कि विचार बिल्कुल ही पागल हो गया है तो उसने अब शरीर पर भी असर दिखाना शुरू कर दिया है, यह भावुकता है| विचार सारी हदें तोड़ चुका है, तो अब शरीर भी कांप रहा है, यह भावुकता है| आवाज़ हिलने लग गई है, गाल लाल हो रहे हैं, आँखें रो रहीं हैं, यह भावुकता है| पर यह सब कुछ हो क्यों रहा है? क्योंकि इनके पीछे कोई विचार बैठा है|

वो विचार हटा दो, आँखों का बहना रुक जाएगा! वो विचार हटा दो, शरीर का कांपना रुक जाएगा, और हम अच्छे से जानते हैं कि विचार में कोई जान होती नहीं है| हर विचार बाहरी है| किस विचार को तुम महत्व दे रहे हो, यह बात भी बाहरी है| इसी कारण एक बात जो एक व्यक्ति को भावुक कर जाएगी, दूसरे व्यक्ति पर कोई असर भी नहीं छोड़ेगी क्योंकि दोनों के संस्कार अलग-अलग तरीके के हैं| बचपन से ही दोनों को शिक्षा अलग-अलग दी गई है| एक ही बात को सुनकर दोनो व्यक्ति भावुक हो सकते हैं, पर एक भावुकता में खुश हो कर नाचेगा और दूसरा इतना भावुक होगा कि वो रो-रो कर सिर पटक देगा, जान दे देगा| यह विपरीत भाव कहाँ से आ गए? यह यहीं से आ गए कि संस्कार विपरीत हैं|

दो सेनायें लड़ीं, एक जीती-एक हारी, एक ही घटना घटी है| घटना एक ही घटी है, पर एक सेना जीती है, एक हारी है| कुछ लोग भावुकता में रोते नज़र आएँगे, कुछ भावुकता में हँसते नज़र आएँगे| क्यों? क्योंकि दोनों को दो अलग-अलग पक्षों के संस्कार दे दिए गए हैं| एक को बता दिया गया है, ‘तुम इस पक्ष के हो’, दूसरे को बता दिया गया है, ‘तुम उस पक्ष के हो’|

देखो होता क्या है, कोई तुम्हारे सामने आकर कहे कि देखिये मैं आपके सामने अपने कुछ विचार रखना चाहता हूँ, तो तुम कहोगे कि तेरे विचारों की क्या कीमत है, बड़े आए ये विचारवान| और वही व्यक्ति तुम्हारे सामने आकर रोना शुरू कर दे और कहे कि देखिये मैं अपने भावों का कटोरा रख रहा हूँ आपके सामने, तो तुम उसे बड़ी अहमियत दोगे| तुम कहोगे, ‘अरे भाई! व्यक्ति भावुक है, ज़रा सुनो इसकी’| यह बात विरोधाभासी है| जो विचार है वही भाव है, बल्कि विचार तो फिर भी कुछ सधा हुआ होता है, भाव तो बिल्कुल ही हिला-डुला है| पर हमें बता दिया गया है, ‘भावों को कीमत देना’|

कोई तुमसे अपनी कोई बात मनवाना चाहता है तो वो बस दो आँसू गिरा दे तुम्हारे सामने, और बस देखो कि तुम मान जाओगे| आखिरी हथियार होता है यह| हम किसी पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहे, कोई हमारी बात नहीं सुन रहा, चलो थोड़ा भावुक हो जाते हैं| हो जाएगा काम! क्योंकि तुम्हें सिखा दिया गया है कि भावुकता बड़ी पवित्र चीज़ है! ‘किसी की भावुकता के साथ खिलवाड़ मत करना कभी’! और भावुकता है क्या? क्या कीमत है उसकी?

सत्य के साथ खिलवाड़ करते जाते हो, प्रेम के साथ खिलवाड़ करते जाते हो, पर कहते हो भावुकता के साथ खिलवाड़ नहीं करना! जो वास्तव में कीमती है उसके साथ तो खेले जा रहे हो! बोध के साथ खिलवाड़ कर लिया, मुक्ति के साथ खिलवाड़ कर लिया, भावों को तुमने बड़ी कीमत दे दी! ‘हम बड़े भाव-प्रदान आदमी हैं| देखिये, अभी हमसे कुछ मत बोलियेगा हम बड़े भावुक हैं’| तो? और कुछ होते हैं, वो पेशेवर भावुक होते हैं!

(हँसी)

जैसे दस्त लगने पर शरीर का मल बहता है, वैसे ही भावुकता में उनकी आँखें बहती हैं!

(हँसी)

और एक ही घटना है, दुर्गन्धयुक्त! बह रहे हैं| और ऐसे लोगों की तुम बड़ी कद्र कर लेते हो! ‘यह सच्चा आदमी है, यह दिन रात रोता है!’

(हँसी)

कोई साधारण तरीके से तुमसे कुछ बोले, तुम सुनोगे नहीं| वही अगर उग्र हो जाये, गुस्सा दिखा कर बोले, तो तुम कहोगे, ‘नहीं, खालिस बात बोल रहा है’|

(हँसी)

शान्ति की तुमने कोई कीमत ही नहीं रखी है| कोई शांत हो कर साधारण तरीके से कुछ कह रहा है, वो तो किसी काम का ही नहीं है| ‘अरे! थोड़ी नौटंकी होनी चाहिए, थोड़ा कोई पगलाए, तलवार चलाये, कपड़े फाड़ दे, पाँव पटके, सर पटके, आँसू टपकाए, खून बहाए, तब हमें लगेगा कोई असली घटना घटी! शान्ति में क्या असलियत है? शान्ति तो दो टके की चीज़ है’

भावुकता से सावधान रहना! खासतौर पर जो लोग किसी उद्देश्य के लिए भावुक हो रहे हों| बिल्कुल सावधान रहना! बड़ी नकली चीज़ है| ठीक है?

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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